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विज्ञापन विवाद पर ‘आप’ ने कहा, उपराज्यपाल के पास ऐसे आदेश पारित करने का कोई अधिकार नहीं

‘आप’ के प्रमुख प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज ने यहां एक संवाददाता सम्मेलन में उपराज्यपाल के निर्देश को ‘‘नया प्रेम पत्र’’ करार दिया।
Saurabh Bhardwaj
फ़ोटो साभार: पीटीआई

नयी दिल्ली: दिल्ली के उपराज्यपाल वी. के. सक्सेना के मुख्य सचिव द्वारा आम आदमी पार्टी (आप) से ‘‘राजनीतिक विज्ञापनों’’ के लिए 97 करोड़ रुपये की वसूली करने का आदेश देने के बाद ‘आप’ ने मंगलवार को कहा कि उनके पास ऐसे आदेश पारित करने का कोई अधिकार नहीं है।

‘आप’ के प्रमुख प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज ने यहां एक संवाददाता सम्मेलन में उपराज्यपाल के निर्देश को ‘‘नया प्रेम पत्र’’ करार दिया।

भारद्वाज ने दावा किया, ‘‘ भाजपा, हमारे एक राष्ट्रीय पार्टी बनने और एमसीडी से उन्हें सत्ता से बाहर करने के कारण घबरा गई है। उपराज्यपाल साहब सब कुछ भाजपा के निर्देशों पर कर रहे हैं और इससे दिल्ली के लोगों को परेशानी हो रही है। दिल्ली के लोगों की चिंता जितनी बढ़ती है, भाजपा उतनी खुश होती है।’’

उन्होंने कहा कि उपराज्यपाल के निर्देश कानून के दायरे में नहीं आते।

‘आप’ के नेता ने कहा, ‘‘ दिल्ली के उपराज्यपाल के पास कोई अधिकार नहीं है। वह ऐसे कोई निर्देश जारी नहीं कर सकते। यह कानून के अनुरूप नहीं हैं। अन्य राज्यों की सरकारें भी विज्ञापन जारी करती हैं। भाजपा की विभिन्न राज्य सरकारों ने भी विज्ञापन जारी किए जो यहां प्रकाशित हुए हैं। हम पूछना चाहते हैं कि विज्ञापनों पर खर्च किए गए 22,000 करोड़ रुपये उनसे कब वसूल किए जाएंगे? जब उनसे पैसा वसूल कर लिया जाएगा, तब हम भी 97 करोड़ रुपये दे देंगे।’’

गौरतलब है कि दिल्ली के उपराज्यपाल वी. के. सक्सेना ने मुख्य सचिव को सरकारी विज्ञापनों की आड़ में राजनीतिक विज्ञापन प्रकाशित करने के मामले में आम आदमी पार्टी (आप) से 97 करोड़ रुपये वसूलने का निर्देश दिया है। आधिकारिक सूत्रों ने मंगलवार को यह जानकारी दी।

सूत्रों ने बताया कि दिल्ली सरकार के सूचना एवं प्रचार निदेशालय (डीआईपी) ने 2016 में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा गठित सरकारी विज्ञापनों में सामग्री के नियमन से संबंधित समिति (सीसीआरजीए) के निर्देश पर कार्रवाई करते हुए बताया कि ऐसे विज्ञापनों पर 97.14 करोड़ रुपये (97,14,69,137 रुपये) खर्च किए गए जो नियम के अनुरूप नहीं थे।

एक सूत्र ने कहा, ‘‘ डीआईपी ने इसके लिए 42.26 करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान पहले ही कर दिया है और प्रकाशित विज्ञापनों के लिए 54.87 करोड़ रुपये अभी और दिए जाने हैं।’’

उन्होंने बताया कि निर्देश के तहत कार्रवाई करते हुए डीआईपी ने 2017 में ‘आप’ को निर्देश दिया था कि वह सरकारी कोष को तत्काल 42.26 करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान करे और 30 दिन के भीतर संबंधित विज्ञापन एजेंसियों या प्रकाशकों को सीधे 54.87 करोड़ रुपये की लंबित राशि का भुगतान करे।

सूत्र ने कहा, ‘‘ पांच साल व आठ महीने बाद भी ‘आप’ ने डीआईपी के आदेश का पालन नहीं किया है। यह काफी गंभीर मामला है क्योंकि यह जनता का पैसा है जिसे पार्टी ने आदेश के बावजूद सरकारी कोष में जमा नहीं कराया है। एक पंजीकृत राजनीतिक दल द्वारा एक वैध आदेश की इस तरह की अवहेलना न केवल न्यायपालिका का तिरस्कार है, बल्कि सुशासन के संदर्भ में भी उचित नहीं है।’’

उच्चतम न्यायालय ने सरकारी विज्ञापनों को विनियमित करने और बेकार के खर्च को रोकने के लिए कुछ दिशानिर्देश जारी किए थे। इसके बाद सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने 2016 में सरकारी विज्ञापनों में सामग्री के नियमन से संबंधित समिति (सीसीआरजीए) का गठन किया था। इसमें तीन सदस्य थे।

सीसीआरजीए ने इसके बाद डीआईपी द्वारा प्रकाशित विज्ञापनों में से उच्चतम न्यायालय के ‘‘दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने वाले’’ विज्ञापनों की पहचान की और सितंबर 2016 में एक आदेश जारी किया था।

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