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यूक्रेन युद्ध का एक साल: मृगतृष्णा-सी है शांति बहाली  

पश्चिमी देश- अमेरिका, यूरोपीय संघ और नाटो यूक्रेनी लोगों की क़ीमत पर रूस के ख़िलाफ़ एक छद्म युद्ध लड़ रहे हैं, और निकट भविष्य में किसी भी बातचीत के समाधान की इच्छा नहीं रखते हैं, यह धीरे-धीरे स्पष्ट हो गया है।
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फोटो : एलेग्जेंडर रेका/टीएएसएस

24 फरवरी 2023 को बिना किसी समाधान के यूक्रेन युद्ध को एक साल पूरा हो गया है। यूक्रेन और रूस में सीधे तौर पर लाखों लोगों को प्रभावित करने के अलावा, युद्ध ने दुनिया भर में बड़े पैमाने पर आर्थिक समस्याओं को जन्म दिया है। शायद वैश्विक परमाणु टकराव तक भी यह युद्ध जा सकता है, इसके बहुत बड़े संघर्ष में बढ़ने की संभावना के बारे में गंभीर चिंता व्यक्त की गई है। फिर भी, पिछले वर्षों में, शांतिपूर्ण समाधान के लिए कदम उठाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय निकायों द्वारा बहुत कम प्रयास किए गए हैं।

अब तक इसका अच्छी तरह दस्तावेजीकरण हो गया है कि यूक्रेन के पश्चिमी समर्थकों-अमेरिका, यूरोपीय संघ और नाटो-ने बातचीत के जरिए समाधान को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

हकीकत तो यह है कि अपने हथियारों की आपूर्ति के लिए पश्चिमी देशों ने संघर्ष को और भी खूनी बनाने में अपनी भूमिका निभाई है। कहना चाहिए कि रूस समर्थक के रूप में सावधानीपूर्वक ऑर्केस्ट्रेटेड अभियान ने असंतोष की आवाज़ों को हाशिए पर डालने की कोशिश की है।

शांति प्रयासों में अड़चने

शुरुआती दिनों में, रूसी और यूक्रेनी प्रतिनिधियों ने बैठकर मुद्दों पर चर्चा करने की कोशिश की पर पश्चिम ने सक्रिय रूप से युद्ध को समाप्त करने के सभी प्रयासों में बाधा डाली।

 बेलारूस और तुर्की में कई दौर की वार्ता हुई। अप्रैल में यूके के तत्कालीन प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन की कीव यात्रा के कुछ दिनों के भीतर उन सभी प्रयासों को बिना किसी स्पष्टीकरण के छोड़ दिया गया था।

जॉनसन को रूस के साथ वार्ता से हटने और युद्ध जारी रखने के बदले में यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की को अधिक धन और हथियारों की पेशकश करने की सूचना मिली थी। उन्होंने यहां तक दावा किया कि "पुतिन को हराने की जरूरत है।"

तब से ज़ेलेंस्की ने रूस के साथ बात करने से इनकार कर दिया और पश्चिमी नेताओं के समान भाषा का इस्तेमाल किया। दिसंबर में, युद्ध की शुरुआत के बाद से अपनी पहली विदेश यात्रा के दौरान, ज़ेलेंस्की ने अमेरिकी कांग्रेस को संबोधित किया और दावा किया कि यूक्रेन में युद्ध तब तक रोका नहीं जा सकता जब तक कि रूस को पराजित नहीं किया जाता, यह दावा करते हुए कि इसके दुनिया के लोकतंत्र के भविष्य के परिणाम प्रभावित होंगे।

यूक्रेनी विदेश मंत्री डाइमट्रो कुलेबा ने, ज़ेलेंस्की के भाषण के बाद, संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व में "शांति शिखर सम्मेलन" का प्रस्ताव रखा। हालांकि , ऐसी बैठक के लिए शर्तों को पूरा करना लगभग असंभव था। यूक्रेन ने दावा किया कि रूस को शिखर सम्मेलन में शामिल होने की अनुमति केवल तभी दी जाएगी जब वह युद्ध न्यायाधिकरण का सामना करने और पारिश्रमिक का भुगतान करने के लिए सहमत हो।

इस बात पर कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि रूसियों ने, हालांकि बात करने की इच्छा व्यक्त की, कुलेबा द्वारा घोषित शर्तों को अस्वीकार कर दिया, उन्हें "भ्रम" कहा।

युद्ध के लिए उकसावे

युद्ध की घटनाओं से लेकर बयानों और नीतिगत उपायों तक, पिछले 12 महीनों के दौरान, पश्चिम की भूमिका ने केवल विशेषज्ञों के विचारों की पुष्टि की है, जिन्होंने इसे नाटो और रूस के बीच संघर्ष करार दिया है।

पश्चिमी देश न केवल यूक्रेन से मिन्स्क समझौतों को लागू करने का आग्रह करने में विफल रहे, बल्कि उन्होंने दूर-दराज़ समूहों का भी समर्थन किया, जो यूरोमैडान विद्रोह और रूस-भाषी आबादी पर हमले में सक्रिय थे। परिणामस्वरुप डोनबास क्षेत्र में हजारों मौतें हुईं। इस बीच, नाटो ने रूस की पश्चिमी सीमाओं के पास एक परिष्कृत एंटी-रॉकेट रक्षा प्रणाली की तैनाती का प्रस्ताव रखा।

इस इस स्पष्ट है कि युद्ध की शुरुआत के बाद से, अमेरिका और यूरोपीय संघ ने केवल यूक्रेन को उसकी निरंतरता के लिए धकेला है, और रूस द्वारा उठाए गए मुद्दों पर प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया है।

कुछ नाटो नेताओं ने यूक्रेन की सदस्यता के लिए समर्थन व्यक्त किया है। नाटो ने इस बीच यूरोप, स्वीडन और फिनलैंड से दो और सदस्यों को शामिल करने की प्रक्रिया शुरू की है। अमेरिका, यूरोपीय संघ और अन्य नाटो सदस्यों ने यूक्रेन को अरबों डॉलर के हथियारों की आपूर्ति की है, जिसमें टैंक भी शामिल हैं। यूक्रेन को भी युद्धक विमानों की संभावित आपूर्ति को लेकर बातचीत चल रही है। अकेले अमेरिका ने अब तक यूक्रेन को 100 अरब डॉलर से ज्यादा के हथियार मुहैया कराए हैं। यूक्रेन में लड़ने वाले अमेरिका व अन्य देशों के "स्वयंसेवकों" के बारे में अपुष्ट रिपोर्टें भी हैं।

सितंबर महीने में, रूस की नॉर्ड स्ट्रीम पाइपलाइनों को विस्फोटकों से उड़ा दिया गया था। हाल के दिनों में ऐसे साक्ष्य सामने आए हैं जो यह स्थापित करते हैं कि यह अमेरिका ही था जिसने यूरोप के साथ अपने आर्थिक संबंधों को तोड़कर रूस को अलग-थलग करने के उद्देश्य से इन विस्फोटों को अंजाम दिया था।

कुछ प्रस्तावों को अपनाने के अलावा,संयुक्त राष्ट्र, यूक्रेन में रूसी आक्रमण और कथित मानवाधिकारों के उल्लंघन की निंदा करने वाले शांति को बढ़ावा देने के लिए अपनी वार्ता में प्रभावी होने में काफी हद तक विफल रहा है। आंशिक सफलता, तुर्की से सक्रिय सहायता के साथ, काला सागर बंदरगाहों से अनाज निर्यात सौदा प्राप्त करने के लिए अब तक के संघर्ष में वैश्विक निकाय द्वारा किया गया एकमात्र उपयोगी हस्तक्षेप है।

इस बीच, अमेरिका, यूरोपीय संघ और उनके कुछ सहयोगियों ने रूस और रूसियों पर कई आर्थिक और राजनीतिक प्रतिबंध लगाए। खेल, संस्कृति और मीडिया के क्षेत्र में भी रूसियों के खिलाफ अघोषित बहिष्कार अभियान चल रहा है।

इस महीने के आरंभ में यूक्रेन की कीव यात्रा के बाद पोलैंड में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाईडेन का भाषण, यूक्रेन में युद्ध के सभी संदेहों को दूर करता है कि – यह एक संकर छद्म युद्ध है।

जो बाईडेन ने दावा किया कि यूक्रेन में युद्ध यूरोप, नाटो और अमेरिका के लिए एक परीक्षा है। उन्होंने नाटो में शामिल होने के लिए स्वीडन और फ़िनलैंड की बोली की सराहना की और रूसी दावों की पुष्टि करते हुए कहा कि यूक्रेनी क्षेत्र नाटो सहयोगी का क्षेत्र है।

साभार: पीपल्स डिस्पैच

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