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बिहार में 64 लाख बाढ़ पीड़ितों के लिए सिर्फ़ 17 राहत शिविर, कोरोना काल में दोहरा संकट

इस वक्त जब सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले की वजह से बिहार नेशनल मीडिया में छाया हुआ है। बिहार और महाराष्ट्र की सरकारों में राजनीतिक टकराव की ख़बरें हैं। राज्य के लोग अपने दौर की दो सबसे भीषण समस्याओं का सामना कर रहे हैं। एक तरफ कोरोना का अनियंत्रित आवेग है तो दूसरी तरफ़ बाढ़ का क़हर।
बिहार बाढ़

उत्तर बिहार के 16 जिले इस साल फिर से भीषण बाढ़ का सामना कर रहे हैं। राज्य के आपदा प्रबंधन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक लगभग 64 लाख लोग इस बाढ़ से प्रभावित हुए हैं, इनमें से 4.4 लाख लोगों को अपना घर छोड़कर दूसरी जगह शरण लेना पड़ रहा है। यह सब उस दौर में हो रहा है, जब राज्य कोरोना के भीषण संक्रमण के दौर से गुजर रहा है। इस भीषण बाढ़ की वजह से बेघर हुए 4.4 लाख लोगों को जहां ऐसे ठिकानों की जरूरत थी, जहां उनके भोजन, आवास की न्यूनतम व्यवस्था तो हो ही, कोरोना के संक्रमण से भी उनका बचाव हो सके। मगर राज्य सरकार ने उन्हें इस दोहरे संकट का मुकाबला करने के लिए अकेला छोड़ दिया है।

पूरे राज्य में इस वक्त सिर्फ 17 राहत शिविर संचालित हो रहे हैं, जहां सरकारी आंकड़ों के मुताबिक सिर्फ 17,916 लोगों को जगह मिली है, शेष चार लाख से अधिक लोग किस हाल में हैं, इसकी सरकार को कोई फिक्र नहीं।   

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इस वक्त जब सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले की वजह से बिहार नेशनल मीडिया में छाया हुआ है। इस मसले को लेकर बिहार औऱ महाराष्ट्र की सरकारों में राजनीतिक टकराव की खबरें हैं। राज्य के लोग अपने दौर की दो सबसे भीषण समस्याओं का सामना कर रहे हैं। एक तरफ कोरोना का अनियंत्रित आवेग है। संक्रमितों की संख्या 62 हजार के अधिक हो गयी है, रोज दो से तीन हजार नये मरीज मिल रहे हैं। राज्य के अस्पतालों में जगह कम पड़ रही है, 92 फीसदी संक्रमितों को होम आइसोलेशन में रखा गया है। तो वहीं दूसरी तरफ उत्तर बिहार की बड़ी आबादी अतिवृष्टि और भीषण बाढ़ का सामना कर रही है। मगर इन दोनों मामलों में सरकार की तरफ से सिर्फ योजनाओं की जानकारी देने के अलावा कोई काम नहीं किया जा रहा है।

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जहां तक बाढ़ का मामला है, मंगलवार 4 अगस्त को राज्य के आपदा प्रबंधन विभाग द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक इससे अब तक 16 जिले के 1152 पंचायतों के 63,60,424 लोग प्रभावित हुए हैं। इनमें से 4,40,507 लोग बेघर हो चुके हैं। मगर हैरत की बात है कि इसी रिपोर्ट के मुताबिक इन 4.4 लाख बेघरों के लिए विभाग सिर्फ 17 राहत शिविरों का संचालन कर रहा है, जिसमें सिर्फ 17,916 लोग रह रहे हैं। ऐसे में समझा जा सकता है कि शेष 4,22,591 लोग कहां और किस हाल में रह रहे होंगे। वह भी उस स्थिति में जब कोरोना की वजह से राज्य में छठी बार लॉकडाउन लगा है। दुकानों के खुलने पर पाबंदी है। कहीं आने जाने पर रोक है। आपस में घुलने मिलने में संक्रमण का खतरा है।

ध्यान देने वाली बात है कि राज्य के मुख्यमंत्री ने काफी पहले से कह रखा है कि इस कोरोना काल में बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए विशेष तैयारी की जरूरत है। उन्होंने सभी पीड़ितों की स्क्रीनिंग, उन्हें रहने की ऐसी व्यवस्था करना कि संक्रमण फैलने का खतरा न हो, मुमकिन हो तो सभी पीड़ितों का कोरोना टेस्ट कराना, उन्हें मास्क औऱ सेनिटाइजर देना, उन्हें लाने-ले जाने वाले नावों, बोटों का नियमित सेनिटाइज कराना आदि के निर्देश दिये हैं। खुद आपदा प्रबंधन विभाग दो माह पहले से इसकी तैयारी कर रहा है और इस काम से जुड़े कर्मियों की ट्रेनिंग करायी जा रही है। मगर खुद विभाग के आंकड़े इस बात की गवाही दे रहे हैं कि सरकार की तैयारियां नगण्य हैं।

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दरभंगा का राहत शिविर जहां मुख्यमंत्री के दौरे की वजह से सब चाक-चौबंद नज़र आया।

इसी सिलसिले में 5 अगस्त, बुधवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दरभंगा जाकर बाढ़ पीड़ितों का हाल लेने की कोशिश की है। सीएम जिस राहत शिविर में पहुंचे, वहां प्रशासन ने सजावटी व्यवस्था कर ली, मगर दरभंगा जिले के ही दूसरे शिविरों में बच्चे जमीन पर बैठकर एक दूसरे से सटकर खाते नजर आ रहे हैं।

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राहत शिविरों का वास्तविक हाल। दरभंगा की एक सामुदायिक रसोई।

जमीनी हालात बता रहे हैं कि बाढ़ को लेकर मुजफ्फरपुर, दरभंगा, समस्तीपुर आदि जिले में स्थिति काफी विस्फोटक है। बाढ़ का पानी घुस जाने की वजह से मुजफ्फरपुर के कांटी थर्मल पावर की दो यूनिट और बरौनी थर्मल की एक यूनिट मैं बिजली उत्पादन सोमवार से ठप है। इसके अलावा पावर ग्रिडों में भी बाढ़ का पानी घुस गया है। इस कारण तिरहुत और चंपारण के इलाकों में भीषण बिजली संकट की स्थिति है। ज्यादातर जगहों पर सिर्फ चार से आठ घंटे बिजली की आपूर्ति हो पा रही है।

इस अव्यवस्था से बाढ़ पीड़ित इतने नाराज हैं कि उन्होंने मंगलवार को मुजफ्फरपुर के पास एनएच 77 और एनएच 57 को सुबह से लेकर दोपहर तक जाम कर दिया और नारेबाजी करते है। उसी तरह पारू प्रखंड के चांदकेवरी पंचायत के सैकड़ों लोगों ने भी प्रखंड मुख्यालय पहुंच कर बीडीओ के खिलाफ नारेबाजी की। राज्य के दूसरे इलाकों से भी ऐसी छिट-पुट घटनाओं की खबरें हैं। राज्य के स्थानीय अखबारों के अंदर के पन्ने बाढ़ की खबरों से भरे पड़े हैं। मगर राज्य सरकार इस मसले पर सिर्फ बयान जारी कर रही है।

इस बीच उत्तर बिहार अतिवृष्टि का भी सामना कर रहा है। उत्तर बिहार के आठ जिलों में अभी भी एक हजार मिमि. से अधिक बारिश हो गयी है, जबकि अभी भादो और आश्विन का महीना बाकी है। ऐसे में जहां बाढ़ का पानी नहीं भी फैला है, वहां लोग जलजमाव से परेशान हैं। खेत लबालब डूबे हैं।

ध्यान देने वाली बात यह है कि इस समय राज्य के स्वास्थ्य और आपदा प्रबंधन दोनों महत्वपूर्ण विभागों का जिम्मा एक ही प्रधान सचिव प्रत्यय अमृत को दे दिया गया है। उन्होंने दावा किया है कि बाढ़ पीड़ितों का कोरोना को लेकर रैपिड टेस्ट कराया जायेगा। मगर राज्य में राहत शिविरों की संख्या को देखकर समझा जा सकता है कि उनकी बातों में कितना दम है।

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