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संसद के भीतर और बाहर इंडिया ब्लॉक के सामूहिक विरोध का आधार केवल साझा न्यूनतम कार्यक्रम ही बन सकता है

विपक्ष के लिए एक साझा न्यूनतम कार्यक्रम बहुत जरूरी है ताकि वह जनता द्वारा उन्हें दिए गए जनादेश के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी समझ सके और संसद के भीतर और बाहर अपनी सक्रिय भूमिका की बेहतर जिम्मेदारी को निभा सके।
india alliance
फ़ोटो साभार : PTI

18वीं लोकसभा चुनाव-2024 में 63.7 करोड़ मतदाताओं ने लोकतांत्रिक जनादेश दिया है, यानी 96.8 करोड़ पंजीकृत मतदाताओं में से 65.8 फीसदी मतदाताओं ने मतदान किया, जो 142 करोड़ भारतीय आबादी का प्रतिनिधित्व करता है। अपने मताधिकार के ज़रिए भारत के आम लोगों ने संविधान-निर्देशित संस्थाओं, फ़ेडरल सहयोग, धार्मिक भाईचारे में दशकों से चली आ रही गिरावट और बहुसंख्य नागरिकों की आर्थिक भलाई को पूरी तरह से तबाह करने के चक्र को रोक दिया है।

इस चुनाव ने न केवल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की संवैधानिक आदर्शों के खिलाफ चल रहे उनकी पूरानी जंग को रोक दिया है, बल्कि यह इंडिया गठबंधन था -26 राजनीतिक दलों का गठबंधन- जिसको भी उतना ही स्पष्ट जनादेश मिला है कि वे समाज के हर वर्ग, जिसका वे प्रतिनिधित्व करते हैं, की आवाजों को लोकसभा की विपक्षी बेंचों से उठाने की जिम्मेदारी बेहतर ढंग से उठाए।

इन 63.7 करोड़ 'आम लोगों' ने – जोकि महज एक कोरी बयानबाजी नहीं है - बहुसंख्यक-सांप्रदायिक भाजपा को सत्ता से हटाया और उसे एक गठबंधन सरकार चलाने का जनादेश दिया है, और अप्रत्यक्ष रूप से, विपक्षी बेंचों पर बैठने वाले इंडिया ब्लॉक को सांसदों की एक बड़ी संख्या दी है जो वर्तमान में 2023 की 142 सांसदों की तुलना में 237 सांसद हैं।

इसलिए, यह न केवल मोदी 3.0 शासन पर नकेल डालने वाला जनादेश है, जो वास्तव में एक दैवीय रूप से निर्मित कल्ट से ग्रसित कार्यप्रणाली चला सकता है, बल्कि इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि इंडिया ब्लॉक खुद को सामूहिक विपक्ष बनकर कैसे चुनावी जनादेश के रूप में पेश करता है - क्योंकि 63 फीसदी मतदाताओं ने भाजपा को वोट नहीं दिया है - आम लोगों और प्रगतिशील नागरिक समाज ने भाजपा के खिलाफ लड़ने में एक अग्रणी भूमिका निभाई है।

अब सवाल यह उठता है कि क्या इंडिया ब्लॉक संसद के भीतर और बाहर अपनी सक्रिय भूमिका बेहतर जिम्मेदारियों के साथ निभाएगा। शुरुआत में यह ‘उचित समय पर उचित कदम’ की नीति निश्चित रूप से सामूहिक विरोध की उम्मीद को जगाती है। उम्मीद है कि इंडिया की ‘इंतज़ार’ की अवधि बहुत लंबी नहीं होगी और इसे केवल राजनीतिक दर्शक बनकर भी नहीं ‘देखा’ जाएगा!

स्पष्ट और तर्कसंगत तथ्य यह है कि इंडिया ब्लॉक के भीतर राजनीतिक दलों की ऐतिहासिक उत्पत्ति, विश्वास, राजनीतिक प्राथमिकताएं और मजबूरियां, वैचारिक स्थिति, वर्ग और जातिगत हित, क्षेत्रीय से राष्ट्रीय आकांक्षाएं, संगठनात्मक आकार, नेतृत्व का चयन और प्रतिनिधित्व, निर्णय लेने की प्रक्रिया, अल्पकालिक लोकलुभावनवाद से लेकर दीर्घकालिक सुधारवादी एजेंडा आदि भिन्न-भिन्न हैं। इस संदर्भ में, संसद में भागीदारी, बहस और संघर्ष अंदर और बाहर सर्वसम्मति पर आधारित सामूहिक विपक्षी भूमिका के लिए इंडिया ब्लॉक के लिए एक साझा न्यूनतम कार्यक्रम (सीएमपी) का महत्व अपरिहार्य रूप से जरूरी हो जाता है।

संभवतः, इंडिया ब्लॉक के पास उपलब्ध राजनीतिक रणनीतियां कई हैं – उनके विविध निर्वाचन क्षेत्रों और आकस्मिकताओं को देखते हुए जो एक दूसरे के साथ टकराव वाली भी हो सकती हैं। इसलिए, मुद्दों और नीतियों की प्राथमिकताओं पर एक आम सहमति होना जरूरी है जिसके लिए एक न्यूनतम साझा कार्यक्रम जरूरी हो जाता है, वह भी बिना किसी तय समयसीमा के, विपक्षी एकता के रूप में प्रभावी ढंग से काम करना न केवल मुश्किल होगा, बल्कि आम लोगों के ऐतिहासिक जनादेश का उल्लंघन भी होगा।

इसलिए, न्यूनतम साझा कार्यक्रम एक जरूरी रणनीति होनी चाहिए, ताकि इंडिया ब्लॉक अपनी सामूहिक विपक्षी भूमिका निभा सके और मोदी-3.0 सरकार और उसके गठबंधन क्षेत्रीय सहयोगियों पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दबाव के ज़रिए प्राथमिकताओं के आधार पर नीतियों को अपनाने की मांग कर सके।

इसके अलावा, मुद्दों और नीतियों की प्राथमिकताओं की एक आदर्श सूची होनी चाहिए, जिस पर न्यूनतम साझा कार्यक्रम का निर्माण किया जा सके, निश्चित रूप से अधिक विचार-विमर्श और समय की मांग है, नीचे दिए गए कुछ बिन्दु इंडिया ब्लॉक के लिए गहराई से विचार करने के लिए शुरुआती बिंदु हो सकते हैं।

राष्ट्रवाद को फिर से परिभाषित करना

भाजपा ने अपने ‘राष्ट्रवादी’ शासन को निजी हितों को बढ़ावा देने का पर्याय बना दिया है, ताकि हर महत्वपूर्ण ‘सार्वजनिक/योग्यता वाली वस्तु’, स्थान और प्राथमिकताओं पर स्वामित्व, मुद्रीकरण और व्यापार पर नियंत्रण किया जा सके, जिस पर कोई भी राष्ट्र निर्मित होता है इसके साथ, स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि, खाद्य, दवाइयां, बैंकिंग, दूरसंचार, वन, खदानें, सड़कें, बंदरगाह, रेलवे, रक्षा, हवाई अड्डे और यहां तक कि सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण डेटा आदि - को भी पूरी तरह से न सही पर सरसरी तौर निजी हाथों को सौंप दिया गया है। सैद्धांतिक रूप से, इनमें से अधिकांश वस्तुओं और सेवाओं को ‘बाहरी तत्वों’ के रहते, बाज़ार सर्वोत्तम तरीके से जनता की सेवा में पेश नहीं कर सकता है।

इसलिए, इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि आम लोगों का जीवन, आजीविका, तरक्की, सामाजिक सुरक्षा आदि, उनके दैनिक जीवन, शायद वेतन से वेतन तक, उनका ज़िंदा रहना महंगा और अनिश्चित होता जा रहा है क्योंकि इन क्षेत्रों को निजी खिलाड़ियों को सौंपा जा रहा है। इसलिए, इंडिया ब्लॉक राष्ट्रीय संपत्तियों को निजी हाथों से सार्वजनिक/सरकार के स्वामित्व में वापस लाकर राष्ट्रवाद के अपने शासन को फिर से परिभाषित कर सकता है - कम से कम, निर्णय लेने की शक्ति अपने हाथ में रखकर अनिवार्य रूप से ऊपर सूचीबद्ध 'सार्वजनिक वस्तुओं' और/या 'योग्यता वस्तुओं' वाले सेक्टर में ऐसा कर सकता है।

अधिकार-आधारित कल्याण कार्यक्रमों का विस्तार करना

संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन-1 ने भोजन, शिक्षा, रोजगार, वन और सूचना के अधिकार जैसे व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त और अधिकार-आधारित कल्याण कार्यक्रमों को सशक्त बनाया था, इंडिया ब्लॉक को न केवल इन कार्यक्रमों को मजबूत करना चाहिए, बल्कि पीढ़ी-परिभाषित हस्तक्षेपों के दूसरे चरण की मांग करनी चाहिए,  जैसे पोषण, बाल देखभाल, स्वास्थ्य देखभाल, चिकित्सा, पानी, परिवहन, ऋण-मुक्त तृतीयक शिक्षा, लाभकारी छोटी बचत, वृद्धावस्था पेंशन आदि का अधिकार को सुनिश्चित करना चाहिए।

बेशक, इन सभी अधिकार-आधारित कल्याण कार्यक्रमों की मांग है कि इंडिया ब्लॉक इन क्षेत्रों में काम कर रहे प्रगतिशील नागरिक समाज के साथ गहन परामर्श करे, ताकि भविष्य में इनके अधिनियमन के लिए संभावित कानून बनाने का वादा किया जा सके, यदि इंडिया गठबंधन जब भी सत्ता में आता है।

योजना आयोग को वापस लाओ

2014 में सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार ने जिस पहली संस्था को खत्म किया था, वह थी योजना आयोग – यह आज़ादी के बाद की पंचवर्षीय राष्ट्रीय योजना बनाने वाली प्रमुख और व्यापक रूप से स्वीकृत संस्था थी – जिसने उस राष्ट्रीय योजना समिति की जगह ली थी, जिसकी योजना किसी और ने नहीं बल्कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने बनाई थी और पंडित जवाहरलाल नेहरू 1938 में इसके पहले अध्यक्ष बने थे।

योजना आयोग की अनुपस्थिति ने राष्ट्रीय विकास के अल्पकालिक से दीर्घकालिक महत्व की नीतियों को प्राथमिकता देने के भारतीय राज्यों और नागरिक समाज के साथ बहुत जरूरी परामर्श के महत्व को अगर पूरी तरह से खत्म नहीं तो काफी कम कर दिया है। पंचवर्षीय राष्ट्रीय योजना को केवल 2047 में भारत की आज़ादी की शताब्दी मनाने के अदूरदर्शी ‘विकसित भारत’ दृष्टिकोण के प्रचार में बदल दिया गया है। इसलिए, इंडिया ब्लॉक के लिए योजना आयोग को वापस लाने की मांग करना पहला कदम होना चाहिए- साथ ही साथ अपने उन सक्षम संस्थानों को भी वापस लाने की मांग करनी चाहिए जिसमें राष्ट्रीय योजना, वित्त, कार्यान्वयन और मूल्यांकन के फ़ेडरल ढांचे पर जोर देने के सामूहिक एजेंडे को आगे बढ़ाना होगा।

चूंकि मोदी सरकार सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के तहत भारत के विश्व स्तर पर प्रशंसनीय समय पर किए गए सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षणों को खत्म करने में प्रभावी रही है, इसलिए इंडिया ब्लॉक के लिए सभी आवश्यक सर्वेक्षणों के संचालन की मांग करने का अवसर भी है – जिसमें जाति जनगणना वास्तव में उनमें से एक महत्वपूर्ण है - ताकि भारतीय समाज में व्याप्त समस्याओं की गहराई और विस्तार का पता लगाया जा सके।

इनमें उपभोग व्यय सर्वेक्षण, रोजगार, बेरोजगारी, ऐसे लोग जो शिक्षा, रोजगार और प्रशिक्षण (एनईईटी) किसी में भी नहीं है का सर्वेक्षण, घरेलू बचत और ऋण सर्वेक्षण, कोविड के बाद स्वास्थ्य व्यय सर्वेक्षण, कामकाजी व्यक्तियों के लिए काम, अवकाश और आवागमन पर समय-उपयोग सर्वेक्षण, तृतीयक शिक्षा की गुणवत्ता और छात्रों की ऋणग्रस्तता आदि पर सर्वेक्षण आदि शामिल हैं।

सार्वजनिक वित्त पर पुनर्विचार

सार्वभौमिक अधिकार-आधारित कल्याण की व्यवस्था लाने के लिए ‘सार्वजनिक वस्तुओं’ और/या ‘योग्यता वाली वस्तुओं’ के प्रावधानों को बढ़ाने के लिए अतिरिक्त सार्वजनिक वित्त की आवश्यकता होती है। इन कल्याण कार्यक्रमों के लिए सार्वजनिक वित्त की कितनी आवश्यकता है? ये अतिरिक्त सरकारी राजस्व कहां से आना चाहिए? कई प्रतिस्पर्धी और प्राथमिकता वाले क्षेत्रों के बीच सरकारी व्यय कैसे आवंटित किया जाएगा? हालांकि हम इसके बारे कुछ जानते हैं कि यह कहां से आएगा, उदाहरण के लिए, 2 फीसदी संपत्ति कर और केवल शीर्ष 1 फीसदी आबादी पर लगाया गया 33 फीसदी विरासत कर पाच सार्वभौमिक आर्थिक अधिकारों भोजन, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और वृद्धावस्था पेंशन को वित्तपोषित कर सकता है।

यह समझा जा सकता है कि इंडिया ब्लॉक सम्पत्ति-कर या विरासत-कर के लिए तुरंत आम सहमति पर नहीं पहुंच पाएगा, क्योंकि उनके कुछ राजनीतिक समर्थकों के पास राजस्व जुटाने के ऐसे साधनों के खिलाफ प्रत्यक्ष निहित स्वार्थ हैं, फिर भी, किसी भी कल्याणकारी कार्यक्रम के लिए आगे परामर्शात्मक विचार-विमर्श आवश्यक है, जिसके लिए वे सामूहिक रूप से वचनबद्ध हों।

जबकि भारत को एक विकसित देश बनाने का दावा किया जाता है, सरकारी राजस्व पर आनुपातिक दिशा - मोदी के वादों के लिए आवश्यक संसाधन - जनता की नज़र में स्पष्ट रूप से गायब है। इसलिए, इंडिया ब्लॉक को अधिकार-आधारित कल्याण कार्यक्रमों के लिए अपनी प्रतिबद्धताओं को मजबूत करने के लिए संसाधन जुटाने की योजना लानी चाहिए।

भारत का कर-जीडीपी अनुपात - जो सरकारी राजस्व और विशेष रूप से विकास कार्यक्रमों पर सरकारी व्यय को वित्तपोषित करने की क्षमता के मामले में एक महत्वपूर्ण व्यापक आर्थिक संकेतक है - अपने ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) समकक्षों में सबसे कम है, फिर विकसित अर्थव्यवस्थाओं के स्तर की तो बात ही छोड़ दीजिए।

2023 में, जबकि भारत का सरकारी राजस्व उसके सकल घरेलू उत्पाद का 20.2 फीसदी था, ब्रिक्स की अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं, जैसे कि ब्राज़ील, रूस, दक्षिण अफ़्रीका और चीन का राजस्व उनके संबंधित सकल घरेलू उत्पाद का क्रमश 39 फीसदी, 34.5 फीसदी, 27 फीसदी और 26.8 फीसदी है। भारत और चीन के बीच विकास के पथ में बहुत अंतर होने के पीछे भारत और चीन के बीच सरकारी राजस्व में 6.6 प्रतिशत अंकों का अंतर है।

सरकारी राजस्व और जीडीपी अनुपात में 6.6 प्रतिशत अंकों का यह अंतर भारत के विकास कार्यक्रमों में सार्वजनिक वित्त की क्षमता के लिए क्या मायने रखता है? 2023-24 के लिए उपलब्ध मौजूदा कीमतों पर भारत के जीडीपी को प्रस्तुत करने वाले प्रोविजनल अनुमान 295 लाख करोड़ रुपए के थे। कर-जीडीपी अनुपात में अतिरिक्त 1 प्रतिशत अंक की वृद्धि का मतलब है कि सरकार को प्रति वर्ष 2.95 लाख करोड़ रुपए अतिरिक्त राजस्व मिलेगा।

कर-जीडीपी अनुपात में चरणबद्ध और क्रमिक वृद्धि, जिसका अर्थ मान लीजिए पांच वर्षों में, प्रति वर्ष लगभग 19.5 लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त सरकारी राजस्व पैदा होता है, जो आदर्श रूप से भारत को, जीडीपी के वर्तमान स्तर पर, चीन के विकासात्मक प्रतिमान के साथ तुलना करने के लिए हासिल होना चाहिए।

इसलिए, इंडिया ब्लॉक अधिकार-आधारित कल्याण कार्यक्रमों में कोई प्रभावी और स्थायी बदलाव लाने के लिए राजस्व सृजन के क्षेत्रों पर गंभीरता से विचार नहीं कर सकता है। केवल लोकलुभावन राजनीति के लिए कल्याणकारी वादों की एक सूची, जिसमें सार्वजनिक वित्त का स्थिर प्रावधान न हो, कुछ और नहीं बल्कि नवउदारवादी लोकलुभावनवाद है जिसका भारतीय राज्य पिछले कुछ समय से अनुभव कर रहे हैं।

शेडो मंत्रिमंडल बनाना

एजेंडा निर्माण की उपर्युक्त सभी सूचियों के लिए संसद के अंदर और बाहर इंडिया ब्लॉक राजनीतिक दलों के बीच एक व्यवस्थित, समयबद्ध, निरंतर रणनीति की आवश्यकता है। इन प्रयासों में, विपक्ष अपने गठबंधन सहयोगियों के साथ मिलकर एक शेडो मंत्रिमंडल बनाकर इसकी शुरुआत कर सकता है। शेडो मंत्रिमंडल अपने संबंधित आधिकारिक मंत्रालयों द्वारा अपनाई जाने वाली नीतियों पर प्रभावी निगरानी और सौदेबाजी की ज़िम्मेदारी लेगा और उन्हें संसद, जनता और संविधान के प्रति जवाबदेह बनाएगा।

यही कारण है कि इंडिया ब्लॉक की रणनीतियों में से एक राजनीतिक दलों के भीतर शेडो मंत्रिमंडल का गठन हो सकता है, जिसमें विशेष क्षेत्रों के हितों और अनुभवों वाले नागरिक समाज से आवश्यक समर्थन लिया जा सकता है। शेडो मंत्रिमंडल की औपचारिक और अनौपचारिक प्रथाएं वास्तव में यूके, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया आदि जैसे कई देशों में विपक्षी बेंचों की एक प्रसिद्ध संसदीय रणनीति है।

बेशक, आधिकारिक कैबिनेट/मंत्रालयों के मुकाबले महत्वपूर्ण/प्राथमिकता वाले शेडो मंत्रिमंडल के चुनिंदा मंत्रालयों पर ही आरंभिक ध्यान दिया जा सकता है। यह शेडो मंत्रिमंडल अपने अवलोकनों और हस्तक्षेपों को सार्वजनिक चर्चा में लाने के लिए भी जिम्मेदार होगा। मंत्रालय-विशिष्ट सौदेबाजी और हस्तक्षेप शेडो मंत्रिमंडल के ज्ञान और अनुभवों को प्रभावी रूप से समृद्ध करेंगे, ताकि न केवल संसद के विपक्षी बेंचों में इंडिया ब्लॉक की सामूहिक रणनीति बनाई जा सके, बल्कि भविष्य के चुनाव एजेंडे और गठबंधन गतिशीलता को मजबूत किया जा सके और भविष्य में संभावित इंडिया ब्लॉक की सरकार बनाई जा सके।

जबकि आम लोगों को 2029 में अपने मताधिकार का इस्तेमाल करने का फिर मौका मिलेगा, यह मानते हुए कि संभवतः मोदी-3.0 सरकार एनडीए के तहत अपना कार्यकाल (2024-29) पूरा करेगा – इसलिए अपनी भावी सरकार का फैसला करने के लिए, विपक्षी इंडिया ब्लॉक को अपने भविष्य के एजेंडे के साथ अच्छी तरह से तैयार रहना चाहिए, और यदि संभव हो तो शेडो मंत्रिमंडल के मंत्रालयों को भी पेश करना चाहिए, यदि मोदी-3.0 शासन की जगह कभी भी, देर-सबेर एक इंडिया ब्लॉक गठबंधन सरकार बनती है तो वह मंत्रीमंडल जगह लेगा।

ये सब कहना आसान है, करना मुश्किल, क्योंकि भारतीय राजनीति अनिश्चिताओं, निहित स्वार्थों, नेतृत्व जटिलताओं से भरा है, इसलिए, ये न केवल मोदी-3 गठबंधन सरकार बल्कि विपक्षी इंडिया ब्लॉक के स्वरूप, कामकाज और निरंतरता को भी निर्धारित करेंगे। इसलिए, राजनीतिक मुकाबले का इंतज़ार करें और आगे इस पर नज़र रखें!

अमित साधुखान टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज, हैदराबाद कैंपस में अर्थशास्त्र पढ़ाते हैं। यह उनके निजी विचार हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

CMP: A Pre-requisite for INDIA Bloc’s Collective Opposition

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