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भारत
राजनीति
त्रिपुरा नगर निकाय चुनावों में ‘धांधली’ के चलते विपक्ष का निराशाजनक प्रदर्शन 
यह पहली बार नहीं है जब राज्य को चुनाव पूर्व हिंसा और चुनाव के दिन ‘धांधली’ देखने को मिल रही है, ऐसा ही कुछ दो साल पहले पंचायत चुनावों के दौरान भी देखने में आया था।
संदीप चक्रवर्ती, शांतनु सरकार
30 Nov 2021
tripura

कोलकाता/अगरतला: हाल ही में संपन्न हुए नगर निकाय चुनावों में वाम मोर्चा और तृणमूल कांग्रेस को क्रमशः 79,586 और 66,388 मत हासिल हुए हैं, जहाँ सत्तारूढ़ भाजपा के इशारे पर चुनावों में कथित तौर पर व्यापक स्तर पर धांधली हुई है।

इन चुनावों में राज्य में मौजूद मुख्य विपक्षी दलों में वाम मोर्चा और टीएमसी को 19.99% और 16.68% मत हासिल हुए हैं, जो कि सत्तारूढ़ भाजपा को हासिल 2,38,962 वोट या 60% मतों से काफी कम हैं। 

चार्ट एक बेहद असामान्य मतदान के नमूने को दर्शा रहा है जहाँ पर भाजपा ने 99% वार्डों पर अपना कब्जा जमा लिया है। रविवार को चुनाव परिणाम की घोषणा के बाद त्रिपुरा के विपक्षी दलों का आरोप था कि किसी भी लोकतांत्रिक चुनाव में, यह एक अत्यंत दुर्लभ घटना है।

25 नवंबर को त्रिपुरा ने दशकों बाद कहीं जाकर ऐसे संदिग्ध निकाय चुनाव देखने को मिले हैं, क्योंकि भाजपा के गुंडों ने कथित तौर पर उन इलाकों को अपने कब्जे में ले लिया था जहाँ निकाय चुनाव होने जा रहे थे। विशेषकर महिला मतदाताओं को भगवा दल के कार्यकर्ताओं द्वारा मतदान करने से रोक डिगा गया था। शहरी क्षेत्र के नगर पालिका चुनावों में करीब 5.94 लाख मतदाता हैं।

हालाँकि कई वार्डों से हिंसा और भीड़ द्वारा मतदान केन्द्रों पर कब्जा कर लेने की खबरें आ रही थीं, किंतु राज्य चुनाव आयोग के सचिव प्रसनजित भट्टाचार्य का कहना था कि “सब ठीक चल रहा है, और मतदान में अभी तक किसी भी प्रकार की गड़बड़ी की शिकायत नहीं प्राप्त हुई है।”

विभिन्न सूत्रों के मुताबिक, सुबह 11 बजे तक सिर्फ 22% मतदाता ही मतदान केन्द्रों पर जाने की हिम्मत जुटा पाए थे, और 11 बजे के बाद तो अधिकांश वार्डों को हथियारबंद गुंडों ने अपने कब्जे में ले लिया था।

पारंपरिक तौर पर शहरी क्षेत्रों में, वाम दलों का मतदान प्रतिशत हमेशा से अन्य दक्षिणपंथी दलों की तुलना में कम रहा है। हालाँकि उन्होंने वर्ष 1988 और 1992 के सिवाय, जब उस दौरान भी चुनावों में धांधली हुई थी, के अलावा हर बार शहरी चुनावों में हमेशा 40% से अधिक मत हासिल करने में सफलता प्राप्त की थी। 

इस बार वाम दलों को 7 शहरी निकाय वार्डों में अपनी उम्मीदवारी के लिए पर्चा दाखिल करने से रोक दिया गया। अगरतला नगर निगम में वाम दलों के अधिकांश पोलिंग एजेंटों को 25 नवंबर की सुबह-सुबह वापस लेना पड़ा। चार अन्य नगरपालिकाओं में भी यही परिघटना देखने को मिली क्योंकि उन सभी वार्डों में जहाँ चुनाव प्रक्रिया चल रही थी, जमकर धांधली की जा रही थी।

हथियारबंद गुंडों और मोटरसाइकिल गैंग ने सुबह से ही उन इलाकों को अपने कब्जे में ले लिया था जहाँ पर चुनाव हो रहे थे।

अगरतला नगर निगम के सभी 51 वार्डों में अब एक भी विपक्षी सभासद नहीं है।

हालाँकि, धांधली के बावजूद वामपंथी तीन सीटों में जीत हासिल कर पाने में कामयाब रहे: जिसमें पानीसागर, अम्बासा और कैलाशशहर में उन्हें एक-एक सीट हासिल हुई है।

वाम मोर्चे के संयोजक नारायण कार ने एक प्रेस विज्ञप्ति में आह्वान किया है कि त्रिपुरा जिस आतंक के माहौल में जी रहा है उससे बाहर निकालने के लिए आगामी दिनों में और भी अधिक जुझारूपन की दरकार है। उनका यह भी कहना था कि राज्य में वोट के अधिकार को सत्तारूढ़ दल, पुलिस, प्रशासन और राज्य चुनाव आयोग की मिलीभगत ने गंभीर रूप से क्षति पहुंचाने का काम किया है।  

माकपा के राज्य सचिव जितेन्द्र चौधरी ने कहा है कि “राज्य में पिछले 44 महीने से राजनीतिक आतंक कायम है। नगर निकाय के चुनावों में, राज्य चुनाव आयोग, राज्य पुलिस और प्रशासन की तिकड़ी और सत्तारूढ़ दल ने वोट की लूट का एक खाका तय कर रखा था जो आज की मतगणना प्रक्रिया में देखने को मिला है।

चौधरी ने आगे कहा, “इन चुनावों में त्रिपुरा के शहरी मतदाताओं का असली मिजाज परिलक्षित नहीं हो सका है। यह चुनाव त्रिपुरा के चुनावी इतिहास में एक काले धब्बे के तौर पर चिंहित किया जायेगा। राज्य को इस अन्धकार से बाहर निकालने के लिए और भी सशक्त आंदोलन खड़ा करने की जिम्मेदारी आन पड़ी है।”

उन्होंने आगे कहा कि “जहाँ एक तरफ लोग न सिर्फ अगरतला और पांच अन्य नगरपालिकाओं में ही बिना किसी भय के वोट दे पाने में अक्षम रहे, जहाँ हमने चुनावों को रद्द करने की मांग की थी, बल्कि अन्य नगरपालिकाओं का भी यही हाल रहा, जहाँ कानून-व्यवस्था की स्थिति चुनाव कराने के लिए उपयुक्त नहीं थी। वहां पर लोगों ने तमाम बाधाओं से लड़ते हुए मतदान किया था।” 

जिन स्थानों पर चुनाव संपन्न हुए उनमें से कुछ ही वार्डों में टीएमसी का प्रदर्शन अच्छा रहा। 

चुनावों के बाद रविवार को मीडिया के साथ बातचीत में जितेन्द्र चौधरी ने कहा, “1988 और 1992 में भी राज्य में कांग्रेसी नेता संतोष मोहन देब के के नेतृत्व तले इसी प्रकार के चुनाव हुए थे और तब 300 से अधिक की संख्या में वामपंथी कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी गई थी। वामपंथियों ने उस समय अर्ध-फासिस्ट आतंक से मुकाबला किया था और उसे परास्त किया था। उस लड़ाई से सबक लेते हुए और उन अनुभवों से सीख लेते हुए भाजपा को परास्त किया जाएगा। हालाँकि उनकी तरफ से चुनाव के दौरान हंगामा खड़ा किया गया, इसके बावजूद वाम मोर्चे ने मतदान में हिस्सा लिया और कुछ स्थानों पर यदि टीएमसी राह में आड़े नहीं आई होती तो वहां पर वामपंथी जीत जाते। भले ही उन्होंने कितना भी प्रयास क्यों न किया हो, लेकिन वे हमें शून्य सीट पर लाने में कामयाब नहीं हो सके हैं।”

मुख्यमंत्री बिप्लब देब की टिप्पणी पर कि चुनावों में भगवा दल की भारी जीत असल में लोगों की जीत है पर वयोवृद्ध कम्युनिस्ट नेता का कहना था, “यह जीत उन ताकतों की है जो लोकतंत्र के लिए हानिकारक हैं। राज्य के वर्तमान मुख्यमंत्री ने लोकतंत्र की मौत के वारंट पर दस्तखत कर दिए हैं।”

चुनावों से पहले आतंक का राज 

गौरतलब है कि नगर निगम चुनावों से पहले, 2018 में राज्य में सत्ता में आने के बाद भाजपा नेताओं ने कथित रूप से सभी विपक्षी सभासदों और पंचायत के पदाधिकारियों को बंदूक की नोक पर इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर कर दिया था, और इस प्रकार एक साल से भी अधिक समय से नगरपालिकाओं पर कब्जा जमा रखा था। जब 2019 में पंचायत चुनाव आयोजित किये गये थे तो 93% से भी अधिक सीटें निर्विरोध घोषित हो गई थीं, क्योंकि विपक्षी वामपंथियों को दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं द्वारा बंदूक तानकर मुकाबले से दूर बने रहने के लिए मजबूर कर दिया था। इस चुनाव में भी उदयपुर और बिशाल गढ़ सहित 7 नगर निकायों में विपक्षी उम्मीदवारों को जबरन मुकाबले से बाहर कर दिया गया था, और 13 नगर निगम निकायों में हुए चुनावों में जमकर धांधली की गई।

देशेर कथा के वरिष्ठ पत्रकार राहुल सिन्हा से प्राप्त इनपुट्स के साथ।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Opposition Fares Dismally in 'Rigged' Tripura Civic Polls

Tripura Civic Polls
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Jitendra Chaudhury
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Poll Violence
Tripura Election Commission

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