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महाराष्ट्र : चीनी मिलों के लाखों चीनी मज़दूर बिना  सुरक्षा काम करने पर मजबूर

गन्ने की फसल की कटाई जारी है, अधिकतर कटाई मज़दूर अपने गांवों में वापस लौटना चाहते हैं क्योंकि वे कोविड-19 संक्रमण से डर रहे हैं। मिल मालिकों ने उनकी सुरक्षा हेतु पानी, भोजन, आवास या सैनिटाइज़र जैसी कोई सुविधा नहीं दी है।
महाराष्ट्र
फोटो सौजन्य: दीपक नागरगोजे

पुणे: 37 वर्षीय, संजय अलादर, जो हाल में महाराष्ट्र के पलुस गाँव में गन्ने की कटाई कर रहे हैं, वह खेत में ही रहते हैं और अन्य मज़दूरों के साथ मिलकर एक सामान्य शौचालय को उनके साथ साझा करते हैं। राज्य में फैल रहे कोविड-19 के संक्रमण के डर से वह अब अपने गांव सोलापुर लौटना चाहते हैं, क्योंकि वह जिस चीनी मिल के लिए काम कर रहे हैं, उसने मज़दूरों के लिए भोजन, रहने के लिए सुरक्षित स्थान या किसी दवा या सेनीटाइज़र्स का इंतज़ाम नहीं किया है।

संजय, उनकी पत्नी और सांगली ज़िले के एक ही गाँव के नौ और अन्य युगल भी पास के कुएँ से पानी लाने के लिए रोज़ाना संघर्ष करते हैं क्योंकि स्थानीय निवासी उन्हें वहाँ से पानी लेने से मना कर देते हैं।

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फोटो सौजन्य: दीपक नागरगोजे

संजय, महाराष्ट्र की चीनी मिलों में काम करने वाले 1.4 लाख से अधिक मज़दूरों में से एक हैं। उनमें से कुछ लोग काम छोड़ कर वापस आ गए हैं, और कुछ तालाबन्दी की वजह से उन जगहों पर ही फंस गए हैं जहां वे काम कर रहे थे। राज्य सरकार द्वारा जारी आदेशों के बावजूद, चीनी मिल मालिकों ने इन मज़दूरों को रहने का सुरक्षित स्थान उपलब्ध नहीं कराया है, ताकि जहाँ वे सामाजिक दूरी के नियमों का पालन कर सके, मालिकों ने उनके लिए भोजन, साबुन, सैनिटाइज़र या दवाओं का भी कोई इंतज़ाम नहीं किया है।

इस साल 155 चीनी मिलें 5018 टन चीनी का उत्पादन करने के उद्देश्य से 501 लाख टन गन्ने का रस निकाल रही हैं। चीनी उद्योग कुल 1.65 लाख श्रमिकों को रोज़गार देता है और आठ लाख से अधिक अन्य श्रमिकों को गन्ने की कटाई में लगाया जाता हैं।

देशव्यापी तालाबंदी के बीच, महाराष्ट्र सरकार ने चीनी को आवश्यक सेवा अधिनियम के तहत आवश्यक वस्तु केरूप वर्गीकृत किया है। राज्य ने सभी मिलों को आवास, भोजन और दवाई उपलब्ध कराने के साथ-साथ सामाजिक दूरी बनाए रखने का भी इंतज़ाम करने के आदेश दिए है, जिससे राज्य भर में तेज़ी से फैलते कोरोना वायरस को थामने में मदद मिल सके। राज्य में अब तक 300 से अधिक केस पाए गए  हैं।

महाराष्ट्र के चीनी आयुक्तालय (सुगर कमिश्नरेट) के 1 अप्रैल, 2020 के आंकड़ों के अनुसार, 17 सहकारी और चार निजी मिलों समेत क़रीब 21 चीनी मिलें अभी भी काम कर रही हैं। और 34 मिलों के मज़दूर जिनमें 21 मिलों के वे मज़दूर भी उन जगहों पर रह रहे हैं, जहाँ वे काम करते हैं। इन मज़दूरों की कुल संख्या 1लाख 40 हज़ार है।

जब वे चार महीने पहले सांगली ज़िले के पालूस गाँव में काम करने आए थे, तब संजय और उनकी पत्नी को इस्लामपुर में राजाराम बापू सहकारी शक्कर कारख़ाना वालवा द्वारा 1 लाख रुपये का भुगतान किया गया था। यहां चीनी मिल 8,000 से अधिक मज़दूरों को काम देती हैं।

सोलापुर गाँव के संजय और नौ अन्य युगल पालूस गाँव में ठहरे हुए हैं। संजय कहते हैं, “चीनी मिल ने इनकी सुरक्षा में कुछ भी नहीं दिया है, हालांकि मिल मालिक मीडिया को मज़दूरों को मिलने वाली सुविधाओं के बारे में बताते रहते हैं। हम सुबह छह बजे से उठकर 10 घंटे काम करते हैं। आस-पास के किसानों ने हमें अपने कुओं से पीने का पानी लेने से मना कर दिया है। जब वे खाने का सामान ख़रीदने जाते हैं, तो गांव वाले उन पर शक करते हैं और उनके साथ सहयोग नहीं करते हैं।"

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फोटो सौजन्य: दीपक नागरगोजे

ये 10 जोड़े वास्तव में इस बात से डर गए हैं क्योंकि उन्हें पता चला है कि सांगली के इस्लामपुर के 23 लोग कोविड-19 से संक्रमित हो गए हैं। तब से वे अपने गांव लौटने की कोशिश कर रहे हैं।

संजय ने आगे कहा कि हम भी घर सुरक्षित लौटना चाहते हैं क्योंकि हमारे दो बच्चे हमारा इंतजार कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “पास की दवा की दुकानों में मास्क और सैनिटाइज़र ख़त्म हो गए हैं। हम खेत में काम करते हैं और काम करते समय दूरी बनाए रखना असंभव है। लेकिन मिल मालिकों ने हमें कोई मास्क मुहैया नहीं कराया है।"

ट्रैक्टर मालिक, जो गन्ने को खेत से मिल तक की ढुलाई करते हैं, रवींद्र सूर्यवंशी ने कहा कि उन्हें यात्रा करने के लिए पुलिस से अनुमति की ज़रूरत है, लेकिन उनके पास न तो राजनेता या चीनी मिल के मालिक से यात्रा करने की कोई अनुमति है।

4,000 से अधिक मज़दूरों को रोज़गार देने वाली सतारा ज़िले के कराड़ में मौजूद कृष्ण सहकारी शक्करखाना कंपनी के लिए काम करने वाली एक मज़दूर शविता सरगड़ ने कहा: "सभी महिलाएं अपनी झोपड़ियों के सामने चूल्हा जलाकर खाना बनाती हैं और सुबह 9 बजे एक साथ खाना बनाती हैं। हम सब अपने माता-पिता और बच्चों को लेकर काफ़ी चिंतित हैं और हम सब वापस घर लौटना चाहते हैं।”

मांडेशी उस्तोड़ कामगार संगठन (मांडेशी शुगरकेन कटिंग लेबर ओर्गनाइज़ेशन) के माध्यम से गन्ना श्रमिकों के अधिकारों पर काम करने वाले एक कार्यकर्ता लक्ष्मण हेक ने न्यूज़क्लिक को बताया कि अधिकांश मज़दूर मराठवाड़ा और सोलापुर जिलों से हैं। उन्होंने कहा, "स्थानीय नेता इन मज़दूरों के बचाव में आगे नहीं आते हैं और सरकार से आदेश मिलने के बावजूद मिल मालिकों को सैनिटाइज़र, साबुन, पानी या भोजन देने के लिए नहीं कहा गया है।"

हेक ने सवाल उठाया कि सरकार ने क्यों चीनी को आवश्यक वस्तुओं में शामिल किया? उन्होंने कहा, “जैसे ही महाराष्ट्र सरकार ने मार्च के दूसरे सप्ताह में इस घातक वायरस के प्रसार को रोकने के उपाय शुरू किए थे तभी चीनी मिलों को बंद कर देना चाहिए था। लेकिन वे नुकसान नहीं उठाना चाहते हैं क्योंकि यह सीज़न का अंतिम पड़ाव है और अप्रैल के अंत तक यह सीज़न समाप्त हो जाएगा।"

एक हफ्ते पहले तक, महाराष्ट्र में चीनी मिलें मज़दूरों को काम करने के लिए मजबूर कर रही थीं, बावजूद इसके वे काम करने को कतई तैयार नहीं थे और वायरस से डर रहे थे। वे अपने गाँव वापस जाना चाहते थे। जब कुछ कार्यकर्ताओं ने अपनी चिंताओं का सार्वजनिक रूप से ज़िक्र किया तो कुछ चीनी मिलों ने मज़दूरों पर काम करने के लिए दबाव डालना बंद कर दिया, लेकिन उन्होंने अभी तक उन्हें कोई सुविधा नहीं दी है।

चीनी आयुक्तालय (शुगर कमिश्नरेट) के कमिश्नर सौरव राव ने न्यूज़क्लिक को बताया कि वर्तमान में चल रही सभी चीनी मिलें या जहाँ मज़दूर डेरा डाले हुए थे, उन्हें वहाँ सुविधाएँ प्रदान की जा रही हैं। जब उन्हें बताया गया कि मज़दूर लोग मिलों पर आरोप लगा रहे हैं कि वे उन्हें आवास, भोजन या दवाइयाँ उपलब्ध नहीं करा रहे हैं, तो उन्होंने कहा, "मैं इस पर ध्यान दूंगा।"

बीड में एक कार्यकर्ता, दीपक नागार्गजे ने यह भी आरोप लगाया कि “कई चीनी मिलें मज़दूरों को 29 मार्च तक काम करने के लिए ऐसे मजबूर कर रही थीं, मानो कि जैसे वे उनके बंधुआ मज़दूर हो। मिलों के मज़दूरों को इसके ख़िलाफ़ विरोध और हड़ताल करनी पड़ी, इसके बाद प्रशासन ने मिलों को कहा कि जो मज़दूर काम नहीं करना चाहते हैं उनके साथ ज़बरदस्ती न की जाए।”

एक अन्य उद्योग विशेषज्ञ ने अपना नाम न छापने की शर्त पर कहा कि अधिकांश चीनी मिलों पर महाराष्ट्र के विधायकों/मंत्रियों या उनके सहयोगियों का स्वामित्व क़ायम है। विशेषज्ञ ने कहा कि अगर राज्य सरकार सामाजिक दूरी के उपायों को इतनी गंभीरता से लागू कर रही है, तो इन मज़दूरों की सुरक्षा का इंतज़ाम क्यों नहीं किया जा रहा है? उन्होंने आवश्यक वस्तुओं की सूची में चीनी जोड़ने के निर्णय पर भी सवाल खड़ा किया।

लेखक पुणे स्थित एक स्वतंत्र पत्रकार हैं।

अंग्रेजी में लिखे गए मूल आलेख को आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं

Over 1.4 Lakh Labourers Toil in Maharashtra Sugar Mills Without Safety Measures

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