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पीएमएवाई(यू) घोटाले ने किया केंद्र की सबके लिए आवास योजना की विफलता को उजागर

जिस दौरान डीएचएफएल कथित रूप से पीएमएवाई(यू) योजना में धांधलेबाजी करने में व्यस्त थी, उसी अवधि के दौरान केंद्रीय आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय ने 2018-19 वर्ष के लिए डीएचएफएल को ‘सीएलएसएस के तहत एमआईजी आवास निर्माण में योगदान के लिए प्राथमिक ऋणदाता संस्थान’ के तौर पर सम्मानित किया था।
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प्रतिनिधि तस्वीर। चित्र साभार: डीडी न्यूज़

हैदराबाद: हाल ही में 24 मार्च के दिन केन्द्रीय जाँच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा दीवान हाउसिंग एंड फाइनेंस लिमिटेड (डीएचएफएल) के निदेशकों एवं कई अनाम अधिकारियों के खिलाफ केंद्र सरकार की शहरी गरीबों के लिए आवास योजना, प्रधान मंत्री आवास योजना (शहरी) [पीएमएयू (यू)] में हजारों करोड़ की कथित घपलेबाजी के मामले में एफआईआर दर्ज किये जाने से भारतीय जनता पार्टी सरकार की इस सर्वप्रमुख योजना के कार्यान्वयन में मौजूद धोखाधड़ी की प्रकिया पर रोशनी डालने का काम किया है।

जिस दौरान डीएचएफएल कथित तौर पर इस योजना में धांधलेबाजी करने में व्यस्त थी, उसी दौरान केंद्रीय आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय ने डीएचएफएल को 2018-19 के लिए एमआईजी (मध्य आय समूह) के लिए सीएलएसएस (क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी स्कीम) के तहत ‘सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले प्राथमिक ऋणदाता संस्थान’ के तौर पर पुरस्कृत करने का काम किया था। यह उन पुरस्कारों में से एक है जिसे मंत्रालय द्वारा हितधारकों को पीएमएवाई(यू) के बेहतर तरीके से लागू करने के प्रदर्शन के आधार पर प्रदान किया जाता है।

सीबीआई द्वारा इस घोटाले के पर्दाफाश ने योजना के क्रियान्वयन से जुड़े राष्ट्रीय आवास बैंक और केंद्रीय आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय सहित संस्थानों की भूमिका, इन दोनों पर ही सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं। और जैसा कि केंद्र सरकार द्वारा इस योजना के प्रदर्शन को लेकर दावे किये जा रहे थे, सरकारी जांच के दौरान विफलता से उन दावों की कलई खुल चुकी है।

मार्च 2020 में सीबीआई ने डीएचएफएल के खिलाफ अपनी जांच शुरू की थी। इस दौरान अन्य लोगों के साथ-साथ कंपनी के प्रवर्तकों कपिल वधावन और धीरज वधावन को कथित तौर पर कई शैल कंपनियों का जाल बुनकर एस बैंक से 3,700 करोड़ रूपये की ऋण राशि को कथित तौर पर गबन करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया था। इसके अलावा प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय (एसएफआईओ) एवं भारतीय प्रतिभूति विनिमय बोर्ड (सेबी) ने भी अलग से इस गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी की गैर-क़ानूनी वित्तीय अनियमितताओं की जाँच का काम शुरू कर दिया है।

सीबीआई ने अपने बयान में कहा है कि डीएचएफएल के प्रवर्तकों एवं अज्ञात सरकारी अधिकारियों के खिलाफ ताजा मामला असल में ऑडिटर फर्म, मैसर्स ग्रांट थ्रोंटन की फॉरेंसिक ऑडिट में निकले नए खुलासे पर आधारित है, जिसमें डीएचएफएल के खातों की ऑडिट का काम किया गया था। दर्ज प्रथिमिकी के अनुसार ऑडिट रिपोर्ट में पाया गया है कि डीएचएफएल की एक गैर-मौजूद बांद्रा शाखा थी, जिसमें 2007 से लेकर 2019 के बीच में 14,046 करोड़ रूपये तक के मूल्य के ऋण के लिए 2.6 लाख “नकली और मनगढंत’ होम लोन खाते खोले गए थे। 

ऑडिट रिपोर्ट में पाया गया है कि “इस शाखा ने उन खाताधारकों के नाम पर खाते खोलकर 11,750 करोड़ रुपयों पर हाथ साफ कर लिया था, जिन्होंने पहले से ही अपना सारा ऋण चुकता कर दिया था। इन लेनदेनों पर पर्दा डालने के लिए तीन सॉफ्टवेयर प्लेटफॉर्म्स की मदद से कोडिंग की गई थी।”

सीबीआई की एफआईआर के मुताबिक बांद्रा शाखा में पीएमएएवाई(यू) के तहत कई फर्जी खाते खोले गए थे और “नेशनल हाउसिंग बैंक के अधिकारियों (बैंक के) के साथ मिलीभगत करके, इस प्रकार सरकारी खजाने से कथित धोखाधड़ी” को अंजाम दिया गया था।

2015 में शुरू की गई पीएमएवाई(यू) योजना के तहत, सरकार द्वारा आर्थिक तौर पर कमजोर वर्गों एवं निम्न आय वर्ग के लोगों को चार विभिन्न आवासीय विकल्पों के माध्यम से वित्तीय सहायता मुहैया कराई जाती है। इस योजना में मौजूद विकल्पों में एक के तहत, आवासीय इकाइयों को खरीदने के लिए लाभार्थियों को निजी या सरकारी हाउसिंग कंपनियों के माध्यम से क्रेडिट लिंक्ड ब्याज सब्सिडी के तहत ऋण मुहैया कराया जाता है।  

डीएचएफएल जैसी हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों द्वारा इस योजना के दिशानिर्देशों के अनुसार लाभार्थियों को (इस योजना आईडी के तहत 24 लाख रुपये तक की अधिकतम ऋण राशि) प्रदान की जाती है।

सीबीआई की प्राथमिकी के अनुसार “डीएचएफएल ने अपने संस्थागत निवेशकों या कंपनी के विश्लेषकों के साथ एक निवेशक काल के दौरान खुद इस बात का दावा किया था कि दिसंबर 2018 तक इसके द्वारा पीएमएवाई योजना के तहत 88,651 मामलों का निपटान कर लिया गया था। पीएमएवाई के तहत इसे अभी तक 539.40 करोड़ रूपये की ब्याज सब्सिडी हासिल हो चुकी थी, और 1,347.80 करोड़ रुपयों का ब्याज अनुदान मिलना शेष है, जो कि भारत सरकार से इसके द्वारा पीएमएवाई योजना के तहत वितरित किये गए कुल ऋण 1,887.20 करोड़ रूपये का योग है।”

यहाँ पर इस बात पर ध्यान देना उचित होगा कि 2017 में आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा पीएमएवाई(यू) योजना के दिशानिर्देशों में किये गए संशोधनों ने 2018-19 के दौरान सीएलएसएस के तहत एमआईजी विकल्प के चलते डीएचएफएल को लाभ पहुंचाया था, क्योंकि इसी के कारण मंत्रालय द्वारा डीएचएफएल को पुरस्कृत किया गया था। 

संशोधनों के मुताबिक, लाभार्थियों की परिभाषा को व्यापक बनाया गया था और इस योजना के तहत कार्यक्षेत्र को विस्तारित किया गया था। हालांकि मंत्रालय का कहना था कि घोषणा को सीएलएसएस और हुडको के लिए राज्य सरकारों, केंद्रीय नोडल एजेंसियों सहित हितधारकों से प्राप्त सूचनाओं के आधार पर संशोधित किया गया था। 

इस घोटाले से सरकार द्वारा पीएमएवाई(यू) योजना की उपलब्धियों को लेकर किये जा रहे दावों पर भी संदेह खड़े होते हैं। केन्द्रीय मंत्रालय के मुताबिक 22 मार्च, 2021 तक, इस योजना के विभिन्न आवासीय विकल्पों के तहत कुल 1.11 करोड़ घरों के लिए मंजूरी दे दी गई थी, जिनमें से 45 लाख घरों का काम पूरा हो चुका था। केंद्र सरकार द्वारा इस योजना में केंद्रीय सहायता के तौर पर अब तक 93,433 करोड़ रूपये जारी किये जा चुके हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक पिछले दो वर्षों के दौरान घरों के निर्माण कार्य में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है। इसके अनुसार दिसंबर 2018 तक 12.5 लाख घरों की तुलना में इस वर्ष मार्च तक 45 लाख घरों के निर्माण का कार्य पूरा हो चुका था।

इस योजना के शुभारंभ के मौके पर पीएम मोदी ने शुरुआत में 2022 तक 2 करोड़ घरों के निर्माण का लक्ष्य निर्धारित किया था, जिसे बाद में घटाकर 1 करोड़ कर दिया गया।

हालाँकि डीएचएफएल की सीबीआई जांच ने अब इस प्रदर्शन पर सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं और केंद्र सरकार द्वारा इस योजना को आधार कार्ड-आधारित प्रमाणीकरण प्रणाली के जरिये परीक्षण को विफल साबित कर दिया है, जिसके तहत इस योजना का लाभ उठाने के लिए आधार कार्ड को अनिवार्य शर्त बनाया गया था।

डीएचएफएल के लेनदेन से संबंधित श्रृंखलाबद्ध वित्तीय अनियमितताओं के बाद नवंबर 2019 में, भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) ने डीएचएफएल बोर्ड के अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन करते हुए आर. सुब्रमन्य कुमार को प्रशासक के तौर पर नियुक्त कर दिया, जिसके बाद जाकर नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी), मुंबई ने इस कंपनी के खिलाफ दिवालिया प्रक्रिया की कार्यवाही शुरू कर दी थी। खबरों के मुताबिक, फरवरी में आरबीआई ने पीरामल ग्रुप द्वारा एनसीएलटी के समक्ष डीएचएफएल को पुनर्जीवित करने के लिए प्रस्तुत की गई प्रस्तावित योजना को अपनी मंजूरी दे दी है। 

डीएचएफएल के ऊपर कुल बैंक ऋण 97,000 करोड़ रुपयों का है। इसमें से करीब 31,000 करोड़ रूपये कथित तौर पर फर्जी कंपनियों द्वारा गायब कर लिए गए हैं।

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