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पारसनाथ पहाड़ी विवाद: आदिवासियों ने 11 फरवरी से रेल रोको आंदोलन की चेतावनी दी

पारसनाथ पहाड़ी आखिर किसका होगा – आदिवासियों का या जैनियों का, इसका विवाद गहराता जा रहा है।
Parasnath hill dispute: Tribals warn of Rail Roko movement from February 11
फोटो : सबरंग इंडिया

पूर्व सांसद और आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष सालखन मुर्मू ने पारसनाथ पहाड़ी को बचाने के लिए अपने तेवर कड़े कर लिए हैं। उन्होंने कहा – “मरांग बुरू आदिवासियों को वापस नहीं किया तो पूर्वी भारत में चक्का जाम होगा।“ पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ने पारसनाथ पहाड़ी के आदिवासी देवता मारंग बुरु का पूजा स्थल होने का दावा करते हुए सोमवार को धनबाद में घोषणा की कि वे 11 फरवरी से पारसनाथ पहाड़ी को फिर से हासिल करने के लिए अनिश्चितकालीन रेल रोको आंदोलन शुरू करेंगे।

इससे पूर्व पाकुड़ में आयोजित प्रेस वार्ता में भी सालखन मुर्मू ने कहा था कि आदिवासी सेंगेल अभियान, मरांग बुरू को बचाने, सरना कोड को लागू कराने, स्थानीय नीति को लागू करने, पलायन कर गए आदिवासियों एवं मूलवासियों को जमीन देने, रोजगार मुहैया कराने सहित अन्य मांगों को लेकर 11 फरवरी से अनिश्चितकालीन रेल रोको, चक्का जाम करने जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि पारसनाथ पहाड़ ही नहीं बल्कि देश के सभी पहाड़ पर्वतों को आदिवासियो को सौंपें, नहीं तो हमारा आंदोलन जारी रहेगा। उन्होंने कहा कि मरांग बुरू पर आदिवासियों का अधिकार है, न कि जैनियों का।


पारसनाथ पहाड़ी आखिर किसका होगा, इसका विवाद गहराता जा रहा है। इस बीच पूर्व सांसद और आदिवासी सेंगल के राष्ट्रीय अध्यक्ष सालखन मुर्मू ने इसे आदिवासी देवता मारंग बुरु का पूजा स्थल होने का दावा करते हुए सोमवार को घोषणा की कि वे 11 फरवरी से पारसनाथ पहाड़ी को फिर हासिल करने के लिए अनिश्चितकालीन रेल रोको आंदोलन शुरू करेंगे। आदिवासी मुद्दों का प्रमुख न्यूज पोर्टल 'मैं भी भारत' के अनुसार, सोमवार को धनबाद में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने पारसनाथ में बने जैन मंदिर को आदिवासियों को वापस नहीं करने पर कथित तौर पर ध्वस्त करने की धमकी भी दी।

उन्होंने कहा, “आदिवासी सेंगल अभियान ने पहले ही 17 जनवरी से मारंग बुरु बचाओ भारत यात्रा शुरू कर दी है और पांच राज्यों के 50 जिला मुख्यालयों पर विरोध रैलियां आयोजित की हैं। क्योंकि अब तक किसी भी सरकारी एजेंसी ने हमारी मांगों को नहीं सुना है इसलिए हमने 11 फरवरी से अनिश्चितकालीन ‘रेल रोको’ आंदोलन शुरू करने का फैसला किया है।” उन्होंने दावा किया कि आदिवासियों के लिए पारसनाथ का मारंग बुरु जुग जहर थान हिंदुओं के लिए अयोध्या में बने राम मंदिर से कम महत्वपूर्ण नहीं है।

सालखन मुर्मू ने कहा कि मरांग बुरु भारत यात्रा के तहत झारखंड समेत देश के अन्य राज्यों में आदिवासी बहुल इलाके में जनसभाओं का आयोजन किया जाएगा। आदिवासी समाज से कहा जाएगा कि पारसनाथ पहाड़ आदिवासियों का धार्मिक स्थल मरांग बुरु है। सेंगेल अभियान ने पारसनाथ पहाड़ को जैनियों के कब्जे से छुड़ाने का दृढ़ संकल्प लिया है। इस पर पहला अधिकार आदिवासियों का है। यह पहाड़ आदिवासियों के लिए राम मंदिर, स्वर्ण मंदिर, मक्का मदीना और वेटिकन सिटी जैसा है, जिसे हेमंत सरकार ने कथित तौर पर बेचने का काम किया है। भारत सरकार को यह लिखकर दिया इस पर सिर्फ जैनियों का अधिकार है।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, सालखन मुर्मू ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर जैनियों को संथाल जनजातियों के पवित्र स्थान को “बेचने” का कथित आरोप लगाते हुए कहा, “अगर केंद्र सरकार, राज्य सरकार और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग इसे आदिवासियों को वापस नहीं लौटाते हैं तो हम भी जैन मंदिर को ध्वस्त करने पर विचार कर सकते हैं और केंद्र सरकार से सर्वदलीय संवाद बुलाने और विवाद को हल करने के लिए एक राष्ट्रीय आयोग का गठन करने की मांग करते हैं। पारसनाथ पहाड़ियों पर उनके पूजा स्थल पर आदिवासियों का पहला अधिकार है और यहां तक कि अंग्रेजों ने 1911 में आदिवासियों के पक्ष में इस मुद्दे को सुलझाया था।”

14 जनवरी को राष्ट्रपति को दिया था मांग पत्र

सालखन मुर्मू ने बताया कि उन्होंने 14 जनवरी 2023 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र प्रेषित कर मांगों के बारे में जानकारी दी है। हमारी प्रमुख मांगों में वर्ष 2023 के आखिर तक सरना धर्म कोड को मान्यता देने, असम और अंडमान निकोबार द्वीप समूह के आदिवासियों को एसटी का दर्जा देने, झारखंड में प्रखंडवार नियोजन नीति लागू करने, देश के सभी पहाड़ व पर्वतों को आदिवासियों को सौंपने, आदिवासी स्वशासन व्यवस्था में जनतांत्रिक और संवैधानिक सुधार लाना आदि शामिल हैं। मांगों पर सकारात्मक पहल नहीं होने पर 11 फरवरी से तिलका मुर्मू की जयंती के अवसर पर पूर्वी भारत के पांच राज्यों में अनिश्चितकालीन रेल रोड चक्का जाम किया जाएगा।

पारसनाथ का विवाद शुरू कैसे हुआ?

2019 में झारखंड की रघुवर दास की सरकार ने केंद्र सरकार को एक पत्र भेजा। इस पत्र में उन्होंने अनुरोध किया कि पारसनाथ को इको टूरिज्म क्षेत्र घोषित किया जाए। जिसके लिए केंद्र में मौजूद बीजेपी सरकार ने हामी भरी थी।

2020 में कोविड-19 महामारी ने भारत को अपनी चपेट में लिया और भारत की आर्थिक, स्वास्थ्य और पर्यटन स्थिति चरमरा गई। कोविड की इस मार से उभरने के लिए ही 17 फरवरी 2022 में झारखंड सरकार ने एक नोटिस जारी किया और पारसनाथ के साथ झारखंड में मौजूद 6 धार्मिक स्थलों को धार्मिक पर्यटक स्थल घोषित कर दिया। ताकि झारखंड में दोबारा से पर्यटन शुरू किया जा सके। सरकार को उम्मीद रही होगी कि पारसनाथ पर पर्यटन को बढ़ावा देने से राज्य को कुछ पैसा भी मिल सकेगा।

लेकिन जैन समुदाय को सरकार का यह फ़ैसला एकदम रास नहीं आया। जैन समुदाय ने आशंका ज़ाहिर करते हुए कहा कि पर्यटन से उनके तीर्थ स्थल की पवित्रता भंग हो सकती है। उनका मानना है कि अगर यहा पर लोगों की आवाजाही बढ़ती है तो पारसनाथ में रह रहे जीवों और पहाड़ पर असर पड़ेगा। इस बीच 28 दिसंबर 2022 को पारसनाथ से जुड़ी एक खबर सामने आती है जिसके अनुसार एक जैन जात्री ने पारसनाथ पर आए एक पर्यटक के साथ झगड़ा किया। उन्होंने इस पर्यटक को मांसाहारी बताते हुए आरोप लगाया कि वह जैन तीर्थ स्थल की गरिमा और पवित्रता को भंग कर रहे हैं। इस घटना ने आदिवासी समुदाय में बेचैनी पैदा कर दी।

उधर, जैन समुदाय ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए केंद्र सरकार से एक आदेश जारी करवा दिया। इस आदेश के अनुसार पारसनाथ पहाड़ के क्षेत्र में किसी भी पर्यटक गतिविधि पर रोक लगा दी गई। इस फ़ैसले के बाद आदिवासी समुदाय की आशंका भरोसे में बदल गई कि जैन समुदाय सिर्फ़ पारसनाथ मंदिर पर अपना स्वामित्व नहीं मानता है। बल्कि यह समुदाय इस पूरे इलाक़े में अपनी शर्तें थोप रहा है।

इसके बाद आदिवासियों ने यह ऐलान किया कि पारसनाथ आदिवासियों का मारंग बुरू है। यहां के आदिवासी समुदाय पीढ़ियों से यहां पर अपने देवी देवताओं और पुरखों को पूजते रहे हैं। साथ ही आदिवासी परंपरा के अनुसार पुरखों और देवताओं को शराब और मांस दोनों चढ़ाया जाता है।

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