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संसद ने नए चुनाव आयुक्त विधेयक को दी मंज़ूरी,  सीजेआई को नियुक्ति समिति से हटाया  

नए अधिनियम में तीन सदस्यीय समिति का प्रावधान है जिसमें प्रधानमंत्री, उनकी पसंद के एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री और लोकसभा में विपक्ष के नेता शामिल होंगे, जिससे यह साबित होता है कि पीएम की पसंद हमेशा ऊपर रहेगी।
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संसद ने गुरुवार को मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की अवधि) अधिनियम, 2023 को मंजूरी दे दी है।

सदन से विपक्षी पार्टियों के सांसदों के सामूहिक निलंबन के बीच विधेयक को पहले दिन ही लोकसभा में पारित कर दिया गया था। फिर 12 दिसंबर को राज्यसभा ने इस विधेयक को मंजूरी दे दी थी।

विधेयक, मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) और अन्य चुनाव आयुक्तों (ईसी) की नियुक्ति, सेवा की शर्तों और कार्यालय की अवधि, चुनाव आयोग के काम की प्रक्रिया और उससे जुड़े या उसके प्रासंगिक मामलों को विनियमित करने वाला है।

2 मार्च, 2023 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अनूप बरनवाल बनाम भारत संघ (2023) मामले में भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) में नियुक्तियों के नियमन से संबंधित एक समिति के गठन का निर्देश दिया था।

फैसले के अनुसार, ईसीआई सदस्यों की नियुक्ति के लिए बनने वाली समिति में भारत के मुख्य न्यायाधीश, प्रधानमंत्री और लोकसभा में विपक्ष के नेता शामिल होने चाहिए थे।

हालाँकि, संसद ने जो विधेयक पारित किया उसमें सीजेआई को सीईसी और ईसी की नियुक्ति की चयन समिति से हटा दिया गया है।

विधेयक में प्रावधान है कि सीईसी और अन्य ईसी को ऐसे व्यक्तियों में से नियुक्त किया जाएगा जो भारत सरकार के सचिव के पद के बराबर का पद धारण किए होंगे या कर चुके होंगे और ईमानदार व्यक्ति होंगे जिन्हें प्रबंधन और चुनाव कराने का ज्ञान और अनुभव होगा।

विधेयक के अनुसार, कानून और न्यायमंत्री की अध्यक्षता वाली खोज समिति और जिसमें भारत सरकार के सचिव के पद से नीचे के दो अन्य सदस्य शामिल होंगे, जो सीईसी और अन्य ईसी की नियुक्ति के लिए चयन समिति के विचार हेतु पांच व्यक्तियों का एक पैनल तैयार करेगी। 

इसके बाद, एक पैनल जिसमें प्रधानमंत्री; लोकसभा में विपक्ष के नेता और प्रधानमंत्री द्वारा नामित कोई एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री होंगे जो राष्ट्रपति द्वारा की जाने वाली नियुक्ति के लिए नाम की सिफारिश करेंगे।

प्रासंगिक रूप से, विधेयक में यह भी प्रावधान है कि चयन समिति खोज समिति द्वारा पैनल में शामिल किए गए लोगों के अलावा किसी अन्य व्यक्ति पर भी विचार कर सकती है।

विधेयक में यह भी प्रावधान है कि सीईसी और ईसी अपना पद ग्रहण करने की तारीख से छह साल की अवधि के लिए या पैंसठ वर्ष की आयु तक, जो भी पहले हो, पद पर बने रहेंगे।

यह इसे भी स्पष्ट करता है कि जब एक चुनाव आयुक्त को मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त किया जाता है, तो उसका कार्यकाल चुनाव आयुक्त और मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में कुल मिलाकर छह वर्ष से अधिक नहीं होगा। सीईसी और ईसी दोनों को दोबारा नियुक्त नहीं किया जाएगा यानि वे इसके पात्र नहीं होंगे।

17 सितंबर को, द इंडियन एक्सप्रेस ने के खबर के जरिए बताया था कि पूर्व चुनाव आयुक्तों के एक समूह ने मिलकर, ईसीआई के पद के संभावित "डाउनग्रेड" करने के बारे में अपनी चिंता व्यक्त करते हुए प्रधानमंत्री को पत्र लिखने का फैसला किया था।

अनुच्छेद 324(2) केवल यह निर्धारित करता है कि मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा "संसद द्वारा उस संबंध में बनाए गए किसी भी कानून के प्रावधानों के अधीन" की जाएगी।

संसद ने 1991 में चुनाव आयोग (चुनाव आयुक्तों की सेवा की शर्तें और उनके काम की प्रक्रिया) अधिनियम लागू किया था।

उक्त अधिनियम चुनाव आयुक्तों के वेतन, पद की शर्तों, पेंशन और अन्य भत्तों से संबंधित मसलों को देखता था, लेकिन उनकी नियुक्ति की चयन प्रक्रिया या पात्रता मानदंड निर्धारित नहीं करता था। 

अब तक, सीईसी और ईसी की नियुक्ति प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा की जाती थी।

सौजन्य: द लीफ़लेट 

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