किसान अंदोलन : ‘निरंकुश सत्ता’ के ख़िलाफ़ एक जुनूनी संघर्ष!
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दिल्ली: पंजाब के विख्यात कवि अवतार सिंह संधू ‘पाश’ की क्रांतिकारी कविताओं और उम्मीदों के सहारे फरीदकोट का एक किसान साइकिल से करीब 400 किलोमीटर की यात्रा करके नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसानों को समर्थन देने के लिए दिल्ली की सीमा टिकरी बॉर्डर पर पहुंच गया।
किसान पाल संधू पंजाब के फरीदकोट जिले के रामीना गांव के रहने वाले हैं। वह सोमवार को दिल्ली-हरियाणा सीमा के निकट प्रदर्शन स्थल पर किसान नेताओं का भाषण सुन रहे थे। उनकी साइकिल पर कई तख्तियां टंगी हुई थीं, जिन पर पाश की कविता ‘सबसे ख़तरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना...’ की पंक्तियां पंजाबी में लिखी थीं। उनकी सजी हुई साइकिल वहां से गुजर रहे प्रदर्शनकारियों को आकर्षित कर रही थी और कई लोग उसके साथ तस्वीरें खिंचवा रहे थे।
पाल संधू ने कहा, ‘‘ मैं घर पर बेचैन था और खुद को साथी किसानों की हालत का पता करने से रोक नहीं सका। ये किसान साझा लक्ष्य के लिए कड़ाके की ठंड में कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। मेरा भाई भी कुछ दिन पहले एक ट्रैक्टर-ट्रॉली में आया था जो कि टिकरी बॉर्डर पर ही है। मैंने भी यहां आने का निर्णय लिया और साइकिल से आया।’’
फरीदकोट के किसान ने बताया कि वह 19 दिसंबर की सुबह आठ बजे अपने घर से निकले थे।
इसी तरह आंदोलन को समर्थन देने के लिए बिहार के एक 60 वर्षीय किसान सत्यदेव मांझी बिहार के सीवान से दिल्ली बॉर्डर के टिकरी तक साइकिल चलाकर पहुंचे। उन्होंने 11 दिन में एक हजार किलोमीटर की यात्रा तय की। भीषण ठंड के बावजूद सत्यदेव मांझी लगातार साइकिल चलाते रहे और किसान आंदोलन में शामिल हुए। समाचार एजेंसी ANI से बात करते हुए मांझी ने केंद्र सरकार से अपील की कि वो किसान हितों को देखते हुए तीनें नए कृषि कानून वापस ले ले।
ये इस आंदोलन में शामिल किसानों के हौसले और मज़बूत इरादों की झलकी है। ये किसान जो दिल्ली पहुंचे इन्होंने यहां तक पहुँचने के लिए सरकारी बाधाओं को हँसते हुए पार किया है। सोचिए इस भीषण ठंड में इन्होंने वाटर कैनन और आंसू गैसे के गोलों के हमलों को सहा है, उसके बाद भी इनके चेहरे पर कोई शिकन नहीं दिखी थी। परन्तु सरकार शायद अभी भी किसानों के आत्मबल का परीक्षण ले रही है जबकि किसान ने साफ किया कि वो यहां से तभी वापस जाएंगे जब ये सरकार उनके 'मौत का फ़रमान' यानी नए कृषि क़ानून वापस लेगी। किसानों का कहना है कि ये निरंकुश सत्ता है, लेकिन हमारा जुनून भी कुछ कम नहीं।
ये किसान सिर्फ़ अपने हक़ों के लिए लड़ ही नहीं रहे हैं, बल्कि अपने आस-पास दिख रहे कमज़ोरों की मदद भी कर रहे हैं। दिल्ली का सिंघु बॉर्डर जो इस आंदोलन के केंद्र के रूप में उभरा है। वहां आसपास गरीब मज़दूरों की बस्ती है जिनके लिए कई बार दो वक्त का भोजन भी मुश्किल है परन्तु इस आंदोलन में चल रहे लंगर ने उनके भोजन की चिंता को तो दूर किया ही है। बल्कि उनके बच्चों के भविष्य को भी बेहतर करने का प्रयास कर रहे है।
पंजाब के किसान समूह ने स्थानीय झुग्गियों के बच्चों के लिए ‘अनौपचारिक स्कूल’ की शुरूआत की
पंजाब के आनंदपुर साहिब के किसानों के एक समूह ने सिंघु सीमा पर स्थानीय झुग्गियों के बच्चों के लिए एक अस्थायी टेंट में ‘अनौपचारिक स्कूल’ शुरू किया है।
विरोध स्थल पर की जाने वाली कई ‘सेवा’ के रूप में लेखक बीर सिंह और अधिवक्ता दिनेश चड्ढा की ओर से सोमवार को यह अस्थायी स्कूल शुरू किया गया है।
एक स्वयंसेवी सतनाम सिंह ने कहा, ‘‘यहां सब कुछ ‘सेवा’ है। हमने पड़ोसी झुग्गी-झोपड़ियों के कई बच्चों को भोजन के लिए घूमते देखा और सोचा कि क्यों न उन्हें भी रचनात्मक तरीके से काम करने में मदद की जाए।’’
उनके अनुसार, किसानों के बीच शिक्षित व्यक्ति, जिनके पास स्नातक या पीएचडी की डिग्री है, वे बच्चों को पढ़ा रहे हैं।
उन्होंने कहा कि लगभग 60-70 बच्चे रोज़ पढ़ने, लिखने, और कहानियों को सुनने के लिए उनके पास आ रहे हैं।
सतनाम सिंह ने कहा, ‘‘पहले दिन हमने उन्हें फलों के रस और स्नैक्स देकर यहां आने और पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित किया था लेकिन पिछले दो दिनों से वे खुद ही आ रहे हैं और अपने दोस्तों को भी लेकर आए हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘शिक्षक उनसे पूछते हैं कि वे किस कक्षा में पढ़ रहे हैं और अपेक्षित पाठ्यक्रम के अनुसार उन्हें पढ़ाते हैं।’’ उन्होंने कहा कि उन्होंने टिकरी बॉर्डर पर भी इसी तरह की व्यवस्था की है।
उन्होंने कहा कि जैसा कि स्थानीय बच्चे हिंदी बोलते हैं, कहानी की किताबें उन्हें इसी भाषा में उपलब्ध कराई गई हैं।
(समाचार एजेंसी भाषा इनपुट के साथ)
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