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पेगासस प्रोजेक्ट: बीएसएफ़ के पूर्व प्रमुख, रॉ और ईडी के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ केजरीवाल के क़रीबी का नाम निगरानी सूची में

रिपोर्ट के मुताबिक़, आरएसएस के एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने के बाद बीएसएफ के पूर्व प्रमुख शर्मा राडार में आए थे। आधिकारिक वर्दी में आरएसएस के कार्यक्रम में शर्मा के हिस्सा लेने के चलते विवाद भी खड़ा हुआ था।
पेगासस प्रोजेक्ट: बीएसएफ़ के पूर्व प्रमुख, रॉ और ईडी के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ केजरीवाल के क़रीबी का नाम निगरानी सूची में
Image Credit: Aman Khatri

पेगासस प्रोजेक्ट से हुए खुलासों में हाल में पता चला है कि ED के एक अहम पूर्व अधिकारी के अलावा, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के करीबी, PMO और नीति आयोग के अधिकारी, सुरक्षा प्रतिष्ठानों के सदस्यों जिसमें पूर्व बीएसएफ प्रमुख और रॉ के पूर्व वरिष्ठ अधिकारी भी इस स्पाईवेयर के संभावित निशाने हो सकते हैं।

फ्रांस आधारित गैर-लाभकारी पत्रकारीय संगठन फॉरबिडन स्टोरीज़ और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकारों के क्षेत्र में काम करने वाले संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल ने 50,000 फोन नंबरों की एक बड़ी सूची हासिल की है, यह नंबर दस देशों में सर्विलांस के संभावित लक्ष्य हो सकते हैं। इस रिकॉर्ड को फिर दुनिया के 16 मीडिया घरानों के साथ साझा किया गया, जिसमें भारत का द वायर भी शामिल था। द वायर ने इस निगरानी के विस्तार पर दूसरे मीडिया संगठनों के साथ मिलकर पेगासस प्रोजेक्ट के तहत काम किया है। 

सोमवार सुबह द वायर द्वारा प्रकाशित की गई ताजा रिपोर्ट में बताया गया है कि 2018 के फरवरी-मार्च महीने में बीएसएफ के प्रमुख के के शर्मा का फोन नंबर पेगासस की एक ग्राहक एजेंसी की संभावित लक्ष्यों की सूची में जोड़ा गया था। अब तक इस एजेंसी की पहचान नहीं हो पाई है। वहीं भारत सरकार अपने नागरिकों की जासूसी की बात से इंकार कर रही है। 

रिपोर्ट के मुताबिक़, शर्मा तब राडार में आए, जब उन्होंने फरवरी, 2018 में आरएसएस के एक कार्यक्रम में हिस्सा लिया। इस कार्यक्रम में शर्मा ने अपनी आधिकारिक वर्दी में हिस्सा लिया था, जिससे विवाद भी खड़ा हो गया था। शर्मा के फोन की फॉरेंसिक जांच नहीं हो पाई है, लेकिन उनके तीन नबंरों को पेगासस की जासूसी सूची में पाया गया है। इन तीन में से दो नंबर, 2018 में शर्मा के रिटायर होने के बाद अब भी चालू हैं। रिटायरमेंट के बाद शर्मा को चुनाव आयोग ने पश्चिम बंगाल और झारखंड में विशेष पर्यवेक्षक नियुक्त किया था, इस कदम का टीएमसी और सीपीएम ने विरोध किया था। 

सुरक्षा प्रतिष्ठानों से एक और नाम जो निकलकर सामने आया है, वो भारत की जासूसी एजेंसी रॉ के सेवानिवृत्त अधिकारी रहे जितेंद्र कुमार ओझा का है। ओझा और उनकी पत्नी का फोन नंबर सूची में पाया गया है। ओझा ने 2013 से 2015 के बीच भारतीय जासूसों को प्रशिक्षण दिया था। 2018 में नौकरी छोड़ने के बाद वे केंद्रीय प्रशासनिक प्राधिकरण (CAT) में शामिल हो गए थे। ठीक इसी वक़्त उनका नंबर सूची में जोड़ा गया था। ओझा ने द वायर से कहा, "यह खुल्ला अपराध है।।।"

सेना के दो पूर्व अधिकारी, कर्नल मुकुल देव और कर्नल अमित कुमार का नंबर भी सूची में पाया गया है। बताया गया है कि दोनों की 2019 में जासूसी की गई। देव सरकार के खिलाफ़ मुकदमेबाजी में शामिल थे। दूसरी तरफ कुमार ने जम्मू-कश्मीर में आर्म्ड फोर्सेज़ (स्पेशल फोर्सेज़) एक्ट (AFSPA) को कमजोर किए जाने के खिलाफ़ याचिका लगाई थी। 

इन दोनों के अलावा प्रवर्तन निदेशालय के वरिष्ठ अधिकारी राजेश्वर सिंह का नंबर भी सूची में पाया गया है, राजेश्वर टू जी स्कैम, एयरसेल-मैक्सिस और आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी, सहारा समूह से जुड़ी बड़ी जांचों में शामिल रहे हैं।

सिंह का नंबर 2017 के आखिर से लेकर 2019 के मध्य तक सर्विलांस पर लगाया गया था। उनके नाम पर पंजीकृत एक और नंबर को 2018 में जोड़ा गया, ठीक उसी दौरान उनकी पत्नी और उनकी दोनों बहनों के फोन नंबर भी निगरानी सूची में जोड़ दिए गए। 

सिंह अपने ऊपर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों का कड़ा प्रतिकार करते हुए कहते हैं कि केंद्रीय राजस्व सचिव हसमुख अधिया "घोटालेबाजों और उनके सहयोगियों का साथ दे रहे हैं।" जून, 2018 में उन्होंने अधिया को एक ख़त लिखा और कहा कि वह ED में उनकी पदोन्नति में बाधा पहुंचा रहे हैं। बताया जा रहा है कि सिंह, सीबीआई के पूर्व निदेशक आलोक वर्मा के करीबी रहे हैं। आलोक वर्मा का नाम भी सूची में शामिल है। 

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के कार्यालय में मुख्य सलाहकार वी के जैन के नाम पर पंजीकृत एक नंबर को भी निगरानी सूची में पाया गया है। बताया जा रहा है ऐसा तब किया गया, जब वे राज्य सरकार की कुछ बेहद अहम फाइलों को संभाल रहे थे। लीक हुए रिकॉर्ड से पता चला है कि नीति आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी और PMO में एक कनिष्ठ अधिकारी के नंबर को भी सूची में जोड़ा गया था। 

द वायर ने शुक्रवार को बताया कि दिल्ली में रहने वाले कुछ कश्मीरी पत्रकारों और कश्मीर घाटी के 25 लोगों को 2017 से 2019 के मध्य में एक सरकारी एजेंसी द्वारा संभावित लक्ष्यों के तहत सूची में जोड़ा गया था। यह एजेंसी भी इज़रायली कंपनी NSO समूह की ग्राहक बताई जा रही है।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

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