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पेंटागन के थिंक टैंक ने अमेरिका की यूक्रेन नीति का किया पर्दाफ़ाश

अमेरिका ने यूक्रेन को हथियार देना जारी रखा हुआ है, जबकि रैंड (RAND) कॉर्पोरेशन ने चेतावनी दी है कि एक लंबा चलने वाला युद्ध परमाणु या रूस-नाटो युद्ध में तब्दील हो सकता है।
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प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार : New Statesman

संयुक्त राज्य अमेरिका ने एक और हथियार पैकेज की घोषणा की है, जिसमें 145 किलोमीटर की रेंज वाली गाइडेड मिसाइल ग्राउंड-लॉन्च्ड स्मॉल डायमीटर बम शामिल है, यूक्रेन के लिए जिसकी कीमत लगभग 2.2 बिलियन डॉलर है, और रूस के साथ युद्ध 24 फरवरी को एक साल पूरा कर रहा है।

अमेरिकी थिंक टैंक काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस (CFR) के अनुसार, 2022 में यूक्रेन को दी गई लगभग 48 बिलियन डॉलर की अमेरिकी सहायता में से 24.9 बिलियन डॉलर हथियारों पर खर्च किए गए थे। यह सहायता नाटो, यूरोपीयन यूनियन और यूक्रेन के अन्य सहयोगियों द्वारा दिए गए 13 बिलियन डॉलर के अलावा है।

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लोकतंत्र और उदार विश्व व्यवस्था की रक्षा के नाम पर यूक्रेन को अरबों के सैन्य उपकरणों की आपूर्ति की जा रही है, जिसमें युद्ध का अंत दूर तक नज़र नहीं आता है - जो परमाणु या रूस-नाटो टकराव में योगदान दे सकता है – यह अपने आप में हास्यास्पद और अकथनीय है।

रैंड कॉर्पोरेशन की एक रिपोर्ट में ठीक यही बात कही गई है- कि परमाणु या रूस-नाटो युद्ध को रोकने के लिए यूक्रेन में एक लंबे संघर्ष से बचना होगा।

आश्चर्यजनक रूप से, द वाशिंगटन पोस्ट को छोड़कर, पश्चिमी मीडिया ने कभी भी इस रिपोर्ट का उल्लेख नहीं किया है। अधिक चौंकाने वाली बात यह है कि रैंड को मुख्य रूप से अमेरिकी सरकार, विशेष रूप से पेंटागन द्वारा वित्तपोषित किया जाता है। वित्तीय वर्ष 2021 में गैर-लाभकारी वैश्विक नीति थिंक टैंक को 346 मिलियन डॉलर राजस्व से मिले जिसमें से, 19.4 प्रतिशत रक्षा सचिव और अन्य राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसियों के कार्यालय से आया, जबकि 11.3 प्रतिशत सेना से और 10.5 प्रतिशत वायु सेना से आया है।

रिपोर्ट का शीर्षक, 'एक लंबे युद्ध से बचना: अमेरिकी नीति और रूस-यूक्रेन युद्ध का प्रक्षेपवक्र' है, राष्ट्रपति जो बाइडेन और गृह सचिव एंथनी ब्लिंकेन का कहना कि "हम यूक्रेन का समर्थन तब तक करेंगे जब तक जरूरी होगा" एक कोरी बयानबाजी और भ्रम है।

ग़ैर-रणनीतिक परमाणु का इस्तेमाल

रैंड (RAND) भयावह रूप से दर्शाता है कि मास्को के गैर-रणनीतिक परमाणु हथियारों के (NSNW) इस्तेमाल की संभाव्यता को बढ़ाता है, यहां तक कि "कुछ विश्लेषकों ने एनएसएनएम के इस्तेमाल की संभावना को यह कहते हुए खारिज कर दिया है कि रूस जानता है कि परमाणु हथियारों का इस्तेमाल उसके लिए आत्म-पराजय होगा"।

विशेषज्ञों का तर्क है कि राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन "संकेंद्रित यूक्रेनी बलों की कमी" और रूसी सैनिकों को "नुकसान" पहुंचने, युद्ध में नाटो को घसीटने और वैश्विक अपमान के कारण एनएसएनडब्ल्यू का इस्तेमाल नहीं करेंगे।

हालाँकि, रिपोर्ट में परमाणु के इस्तेमाल पर विचार हुआ है "दोनों की एक संभावित आकस्मिकता है जिसके लिए वाशिंगटन को जरूरी और युद्ध के भविष्य के प्रक्षेपवक्र को निर्धारित करने में एक बेहद महत्वपूर्ण कारक है"।

रैंड का मानना हैं कि, जब युद्ध के अन्य पारंपरिक उपाय समाप्त हो जाएंगे तो मास्को परमाणु हथियारों का सहारा ले सकता है, और विशेष रूप से एनएसएनडब्ल्यू का इस्तेमाल  कर सकता है।

यह कहते हुए कि कुछ रूसी रणनीतिकारों ने "ऑपरेशन और सामरिक लक्ष्यों को पूरा करने" के लिए एनएसएनएम के इस्तेमाल की वकालत की है, रिपोर्ट में कहा गया है कि उन्होंने "नागरिक लक्ष्यों-शहरों, सैन्य-औद्योगिक केंद्रों और सरकारी सुविधाओं के खिलाफ एनएसएनएम के इस्तेमाल को पूर्व-निर्धारित तरीके से करने की भी कल्पना की है- और कम से कम नाटो के साथ युद्ध के संदर्भ में तो सेना के खिलाफ इसे इस्तेमाल किया जा सकता है।

नाटो-रूस युद्ध

यदि रूस ने परमाणु-हथियारों का इस्तेमाल किया तो अमेरिका भी जवाबी कार्रवाई करेगा, यह "नाटो-रूस युद्ध में बदल सकता है" और "रूस के साथ सीधे अमेरिकी युद्ध में बदल सकता है, जिसके परिणामस्वरूप अंततः एक रणनीतिक परमाणु युद्ध हो सकता है”।

रिपोर्ट में कहा गया है कि जब तक युद्ध जारी रहेगा परमाणु या रूस-नाटो युद्ध का जोखिम "बढ़ता रहेगा"।

पोलैंड में यूक्रेन की एस-300 मिसाइल लैंडिंग के नवंबर 2022 के उदाहरण का हवाला देते हुए, रिपोर्ट में "बेपरवाह टकराव में वृद्धि" के जोखिम पर प्रकाश डाला गया है और " अनजाने" में युद्ध पड़ोसी नाटो सदस्यों के इलाकों में फैल सकता है, भले ही रूस परमाणु का इस्तेमाल करे या न करे। 

"भविष्य में किसी भी किस्म की गलती से रूसी मिसाइल नाटो इलाके में हमला कर सकती है, जो संभावित रूप से एक क्रिया-प्रतिक्रिया को चिंगारी दे सकती है जो पूर्ण पैमाने पर युद्ध  का कारण बन सकती है।"

वास्तव में, ज्वाइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ के अध्यक्ष मार्क ए मिले ने अक्टूबर 2021 में ही बाइडेन  प्रशासन को चेतावनी दी थी कि अमरीका सबसे बड़ा उद्देश्य "रूस के साथ अमेरिकी सेना और नाटो के बीच बढ़ते संघर्ष" से बचना होना चाहिए।

मिले की चेतावनी के बावजूद, अमेरिका को डर है कि युद्ध रूस के साथ सीधे टकराव का कारण बन सकता है - कम से कम, बाल्टिक राष्ट्रों के वार्षिक नाटो शीतकालीन अभ्यास में रूस के साथ युद्ध की नकल करने का संकेत मिलता है।

एस्टोनिया में बड़े पैमाने का सैनिक अभ्यास, रूसी सीमा से केवल 100 मील की दूरी पर जिसमें लड़ाई के लिए एस्टोनियाई, फ्रांसीसी, ब्रिटिश, डेनिश और अमेरिकी सैनिकों को मिलाने का इरादा है, और इसमें डेनिश लेपार्ड 2 और ब्रिटिश चैलेंजर 2 टैंक को शामिल किया गया है। 

कम होता अमेरिकी हथियारों का भंडार 

रैंड रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि यदि अमेरिकी हथियारों के भंडार के कथित तौर पर कम होने से युद्ध को लम्बा खींच दिया जाता है तो एक निश्चित अवधि के बाद सैन्य सहायता "अस्थिर" हो सकती है।

उदाहरण के लिए, अमेरिका ने अब तक लगभग 1,600 स्टिंगर मिसाइलों की आपूर्ति की है, जिनके निर्माता रेथियॉन ने 2003 में उत्पादन बंद करने के बाद अब उनका निर्माण फिर से शुरू कर दिया है। पिछले साल रक्षा विभाग द्वारा जारी एक रिपोर्ट से पता चलता है कि अमेरिका 1990 के दशक में 51 के मुकाबले अब केवल पांच प्रमुख हथियार ठेकेदारों पर निर्भर है। 

सीएफआर के अनुसार, 20 नवंबर, 2022 तक यूक्रेन को शीर्ष 20 प्रदाताओं में से, अमेरिका शीर्ष पर था, उसके बाद यूरोपीयन यूनियन के संस्थान, यूके, जर्मनी, कनाडा और पोलैंड थे जो आपूर्ति कर रहे हैं।

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"यह एक ऐसा युद्ध है जिसे हमने सोचा था कि यह चंद दिनों में खत्म हो जाएगा, लेकिन अब इसे एक साल बीत गया है। ऐसे समय में जब वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाएं पिघल रही हैं, पश्चिम के लिए इस उच्च स्तर पर मांगों को पूरा करना बहुत कठिन होने जा रहा है, "हाउस इंटेलिजेंस कमेटी के एक सदस्य, इलिनोइस के प्रतिनिधि माइक क्विगले ने पिछले नवंबर में सीएनएन को उक्त बातें बताई थीं। 

एक लंबा संघर्ष अमेरिका-रूस संबंधों को भी नुकसान पहुंचाएगा और सहयोग में बाधा डालेगा- (जिसका कारण रणनीतिक आक्रामक हथियारों की और कमी और सीमा होगी), जो फरवरी 2026 में समाप्त हो जाएगी और यूएनएससी और अप्रसार प्रयासों को "अपंग" कर देगा।

वैश्विक आर्थिक प्रभाव

रैंड का यह भी तर्क है कि यदि युद्ध जारी रहता है तो युद्ध के कारण वैश्विक आर्थिक व्यवधान "जारी रहेगा और संभवत: बढ़ जाएगा।" "युद्ध के प्रकोप से ऊर्जा की कीमतों में तेजी आएगी, जिससे मुद्रास्फीति में इजाफा होगा और विश्व स्तर पर आर्थिक विकास धीमा होगा। इन रुझानों से यूरोप को सबसे ज्यादा नुकसान होने की उम्मीद है।"

खराब मौसम और महामारी के कारण बढ़ती खाद्य असुरक्षा पर प्रकाश डालते हुए, रिपोर्ट में कहा गया है कि यूक्रेन का अनाज और तिलहन का निर्यात "मार्च और नवंबर 2022 के बीच युद्ध पूर्व स्तर के 50 प्रतिशत से 70 प्रतिशत तक गिर गया है, जो आंशिक रूप से रूस की नौसैनिक नाकाबंदी के कारण और ऊर्जा के बुनियादी ढांचे पर हमले से हुआ है।” और इसलिए "रूस ने अपने खुद के उर्वरक के निर्यात को भी प्रतिबंधित कर दिया है", जिसके परिणामस्वरूप विश्व स्तर पर खाद्य और उर्वरक की कीमतों में भारी वृद्धि हुई है।

आईएमएफ की प्रबंध निदेशक क्रिस्टालिना जॉर्जीवा ने जनवरी में चेतावनी दी थी कि इस साल "दुनिया की एक तिहाई अर्थव्यवस्था मंदी में चली जाएगी"।

सीबीएस के फेस द फेस नेशन क्रायक्रम में उन्होने कहा कि "आधी यूरोपीयन यूनियन मंदी में फंस जाएगी। यहां तक कि ऐसे देश जो मंदी में नहीं हैं, वे भी लाखों लोगों को मंदी जैसा एहसास कारांगी, "युद्ध के दबाव और बढ़ती ब्याज दरों और कीमतों के कारण, जो अमेरिका, यूरोप और चीन को प्रभावित करेगा।

सीएफआर के अनुसार, पूर्वी यूरोपीय राष्ट्र जीडीपी के तौर पर यूक्रेन को सबसे अधिक दान कर रहे हैं, एस्टोनिया इसके शीर्ष पर है, इसके बाद लातविया, पोलैंड, लिथुआनिया और नॉर्वे शामिल हैं- जो अमेरिका के बाद 9वें स्थान पर है। स्पष्ट रूप से, यूरोप के लिए यह संभव नहीं होगा कि वह यूक्रेन को मंदी के दौर में मदद करना जारी रखेगा।

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पूर्ण विजय नहीं, केवल समझौता

रिपोर्ट में मिले के नवंबर 2022 के प्रेस कॉन्फ्रेंस का जिक्र करते हुए कहा अहै कि यूक्रेन की जीत संभव नहीं है, जहां उन्होंने कहा कि किसी भी "निकट-अवधि, एकमुश्त सैन्य जीत की संभावना और रूसियों को पूरे यूक्रेन से बाहर निकालना" कठिन होगा।"  

तार्किक रूप से, ऐसी जीत तभी संभव है जब पूरी रूसी सेना ध्वस्त हो जाए- जिसकी संभावना नहीं है। खार्किव और खेरसॉन में यूक्रेन की सफलता मामूली है क्योंकि वे भौगोलिक रूप से विशाल देश का छोटा सा हिस्सा है। 

यहां तक कि रूस ने स्पष्ट रूप से यूक्रेन में नया शासन स्थापित करने, उसका विसैन्यीकरण करने और कीव को पीछे हटाने की योजना को छोड़ दिया है। "मास्को का प्राथमिक लक्ष्य चार यूक्रेनी क्षेत्रों में कब्जा करना लगता है जहां रूस अब अपना दावा कर रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक, भले ही रूस ने उन क्षेत्रों को अपने कब्जे में ले लिया हो, यह शायद ही उसकी एक पूर्ण जीत होगी।” 

"चूंकि किसी भी पक्ष के पास पूर्ण जीत हासिल करने का इरादा या क्षमता नहीं है, इसलिए युद्ध की की समाप्ति की अधिक संभावना बातचीत के परिणाम के साथ ही होगी।"

रैंड के अनुसार, एक राजनीतिक समाधान या शांति संधि में "एक टिकाऊ युद्धविराम और कम से कम कुछ विवादों का समाधान शामिल होगा, जो युद्ध को चिंगारी या उसके दौरान उभरे" विवादों से जुड़े हैं। रूस की मुख्य मांग यूक्रेन की "गुटनिरपेक्षता" होगी, जबकि रूस अपनी सुरक्षा के लिए पश्चिमी प्रतिबद्धताओं पर बल देगा।

कुछ क्षेत्रों की स्थिति के बारे में असहमति के बावजूद इस तरह के समझौते का सार एक हद तक रूस और यूक्रेन के बीच सामान्य संबंधों की बहाली होगी। चूंकि एक राजनीतिक समझौता एक युद्धविराम की तुलना में अधिक "अधिक टिकाऊ" है, इसलिए यह "दोनों पक्षों की शिकायतों और उनके बीच विवाद में मुख्य मुद्दों को संबोधित कर सकता है", यह भविष्य में रूस-नाटो संकट की संभावना को कम कर सकता है।

"रूस-यूक्रेन युद्ध के मामले में, एक समझौता भी क्षेत्रीय स्थिरता के नियमों की व्यापक बातचीत का द्वार खोल सकता है जो रूस के साथ कहीं और युद्ध की संभावनाओं को कम कर सकता है।"

दूसरी ओर, युद्धविराम रूस के साथ सक्रिय युद्ध को समाप्त कर देगा और अधिक यूक्रेनी क्षेत्र पर कब्जा करने की कोशिश को भी कम कर देगा और मिसाइल हमलों को रोक देगा  और इससे यूक्रेन की जवाबी कार्रवाई भी बंद हो जाएगी। 

चल रहे क्षेत्रीय विवाद जारी रहेंगे लेकिन इनका समाधान "राजनीतिक और आर्थिक रूप से निकाला जाएगा न कि सैन्य तरीके से।" रिपोर्ट में कहा गया है, "शीत युद्ध के दौरान नियंत्रण रेखा आंतरिक जर्मन सीमा की तरह अत्यधिक सैन्यीकृत हो जाएगी।"

ऐसे परिदृश्य में, अमेरिका को यूक्रेन और रूस को राजनीतिक संधि और युद्धविराम के बीच कहीं "बातचीत समझौता" स्वीकार करने के लिए मनाने की कोशिश करनी चाहिए।

संक्षेप में, रैंड का तर्क है कि, " एक लंबे युद्ध के परिणाम - लगातार बढ़े हुए जोखिम से लेकर आर्थिक क्षति तक - संभावित लाभों से कहीं अधिक है।"

युद्ध की अवधि को बढ़ते टकराव से जोड़ते हुए, रिपोर्ट का तर्क है कि हालांकि इस तरह के टकराव की संभावना "बड़ी नहीं" है, यह "युद्ध से उत्पन्न परिस्थितियों के कारण ऐसा है।"

"एक लंबे युद्ध के नकारात्मक परिणाम गंभीर होंगे। जब तक युद्ध चल रहा है, जोखिम ऊंचा बना रहेगा। युद्ध की अवधि और टकराव जोखिम इस प्रकार सीधे जुड़े हुए हैं," कि "उनसे बचना अमेरिका की सर्वोच्च प्राथमिकता बनी रहनी चाहिए"।

रिपोर्ट "अमेरिकी नीति में नाटकीय, रातों-रात बदलाव" की असंभवता को स्वीकार करती है, लेकिन अंततः "एक ऐसी प्रक्रिया शुरू करने का आह्वान करती है जो इस युद्ध को एक समय सीमा में बातचीत तक ला सके जो अमेरिकी हितों में हो"। इसका विकल्प एक "लंबा युद्ध है जो संयुक्त राज्य अमेरिका, यूक्रेन और बाकी दुनिया के लिए बड़ी चुनौतियां पेश करता है।"

दोषपूर्ण अमेरिकी तर्क

भले ही वाशिंगटन ने रिपोर्ट की तार्किकता को खारिज कर दिया है - रूस के साथ शांति वार्ता के बिना यूक्रेन को युद्ध से लैस करने का सिद्धांत त्रुटिपूर्ण है।

सबसे पहले, रूस ने कभी भी पश्चिमी सीमा पर नाटो सदस्यों पोलैंड, स्लोवाकिया, हंगरी और रोमानिया के साथ यूक्रेन में पश्चिम की ओर विस्तार करने का इरादा नहीं किया- गठबंधन की पारंपरिक ताकतों को भी लेना आत्मघाती होगा। इसके अलावा, मास्को यूक्रेन में अपनी सीमित सफलता को देखते हुए भविष्य में किसी भी अन्य यूरोपीय राष्ट्र के खिलाफ इसी तरह की आक्रामकता का प्रयास कर सकता है। 

इसके बजाय, नाटो ने तत्कालीन सोवियत संघ के राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचेव को बर्लिन की दीवार के ढहने और बाद, वारसा संधि के विघटन के बाद पूर्व की ओर विस्तार नहीं करने के अपने मौखिक आश्वासन से मुकर गया था।

अमेरिका और रूस के सैन्य खर्च में भारी अंतर है। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार, अमेरिका ने 2021 में चौंका देने वाला 801 बिलियन डॉलर का खर्च किया, जो कि 2020 से 1.4 प्रतिशत कम है, जबकि रूस का केवल 65.9 बिलियन डॉलर है, जो 2020 से 2.9 प्रतशत की वृद्धि है।

दूसरा, कमजोर देशों के खिलाफ शक्तिशाली राष्ट्रों द्वारा आक्रामकता को रोकने के लिए यूक्रेन का समर्थन करने का अमेरिकी तर्क भी त्रुटिपूर्ण है। इसी तर्क से अमेरिका वैश्विक पुलिस की भूमिका में है जिसके बहाने वह हर युद्ध में हस्तक्षेप करता है। अमेरिकी मकसद स्पष्ट है: रूस को लहूलुहान करना और नाटो गठबंधन को पूर्व की ओर बढ़ाना।

तीसरा, ब्लिंकेन का यह तर्क कि रूस तथाकथित "उदार अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था" का इम्तिहान ले  रहा है और लोकतंत्र के लिए खतरा है, हास्यास्पद है।

अमेरिका ने वर्षों तक इराक और अफगानिस्तान पर आक्रमण किया और कब्जा कर लिया और उन्हें स्थायी रूप से क्षतिग्रस्त कर दिया, ईरान, चिली और कई अन्य देशों में लोकतांत्रिक रूप से चुने गए नेताओं को पदच्युत कर दिया और पोलैंड, हंगरी, तुर्की और पाकिस्तान में लोकतांत्रिक अधिकारों के उल्लंघन पर आंखें मूंद लीं। अमेरिका केवल अपने हितों को आगे बढ़ाने के लिए ही किसी भी देश की रक्षा क नाम पर ऐसा करता है।

यहां तक कि उन अमेरिकियों की संख्या भी बढ़ गई है जो सोचते हैं कि अमेरिका यूक्रेन को बहुत अधिक सहायता प्रदान कर रहा है। 5,152 वयस्कों के बीच 18 से 24 जनवरी तक किए गए प्यू रिसर्च सेंटर के सर्वेक्षण के अनुसार, 26 प्रतिशत को लगता है कि अमेरिका बहुत अधिक समर्थन कर रहा है, पिछले सितंबर से 6 प्रतिशत अंक और रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण करने के बाद यह 19 अंक पर पहुँच गया हैं।

इसके अलावा, रूसी आक्रमण अमेरिका के लिए एक बड़ा खतरा है या नहीं, इस पर पक्षपातपूर्ण खाई चौड़ी हो गई है। मार्च में 51 प्रतिशत रिपब्लिकन और 50 प्रतिशत डेमोक्रेट से, अंतर बढ़कर 29 प्रतिशत बनाम 43 प्रतिशत हो गया है।

1,500 अमेरिकियों के बीच 22 से 26 अक्टूबर तक किए गए वॉल स्ट्रीट जर्नल के सर्वेक्षण से पता चला है कि लगभग 30 प्रतिशत सोचते हैं कि अमेरिका यूक्रेन का समर्थन करने के लिए बहुत कुछ कर रहा है, जो कि मार्च में 6 प्रतिशत था।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिये गए लिंक पर क्लिक करें।

Pentagon-Funded Think Tank Red-Flags America’s Ukraine Policy

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