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संसद में किसानों की मांग उठाने के लिए सांसदों को 'पीपल्स व्हिप' जारी किया गया : एसकेएम

22 जुलाई से मानसून सत्र के अंत तक हर दिन 200 किसान संसद के बाहर विरोध प्रदर्शन करेंगे।
संसद में किसानों की मांग उठाने के लिए सांसदों को 'पीपल्स व्हिप' जारी किया गया : एसकेएम
फ़ोटो साभार: सोशल मीडिया

नयी दिल्ली: देश के किसान पिछले 231 दिनों से दिल्ली की सीमाओं पर अपना डेरा डाल हुआ है। वो लगातार सरकार से विवादित तीन कृषि कानूनों को रद्द करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी देने की मांग कर रहे है। लेकिन सरकार उनकी मांग को पूरी तरह नज़रअंदाज़ कर रही है।  इसको देखते हुए किसानों ने आने वाले संसद सत्र में सरकार पर दबाव बनाने के लिए संसद घेराव करने और विपक्षी सांसदों को सरकार को सदन के अंदर घेरने की बात कही है।  वहीं इस बीच किसान लगातार हरियाणा और पंजाब में बीजेपी और उसके सहयोगियों के ख़िलाफ़ मोर्चा खोले हुए हैं। जबकि किसानों के संयुक्त मंच संयुक्त किसान मोर्चा ने अनुशासनहीनता के आरोप में अपने बड़े नेता गुरुनाम सिंह चढूनी पर कार्रवाई भी की है।  

भारत के सभी किसानों की ओर से संयुक्त किसान मोर्चा ने आज एक पीपल्स व्हिप जारी किया। पीपल्स व्हिप लोक-सभा और राज्य-सभा के सभी सांसदों को जाएगा। सांसदों को सूचित किया जाता है कि सरकार के काम से संबंधित आम जनहित के किसी भी मामले को संसद और सांसदों के समक्ष लाने के नागरिकों के लंबे समय से स्थापित संवैधानिक अधिकार के अनुसार पीपुल्स व्हिप जारी किया गया है। इस संबंध में, सांसदों को उस पर ध्यान देने और उस पर कार्रवाई करने का निर्देश दिया जाता है। और इसे उन मतदाताओं के प्रत्यक्ष निर्देश के रूप में माना जाना चाहिए जिन्होंने उन्हें संसद सदस्य के रूप में चुना है और जिनके प्रति वे संवैधानिक रूप से जवाबदेह हैं।

पीपुल्स व्हिप ने संसद के दोनों सदनों में सांसदों को किसान आंदोलन की मांगों, अर्थात कोविड के समय में केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए 3 काले कृषि कानूनों को निरस्त करने और किसानों की सभी फसलों के एमएसपी पर कानूनी गारंटी के लिए कानून बनाने का निर्देश दिया है। और जब तक केंद्र सरकार संसद के पटल पर किसानों की मांगों को स्वीकार करने का आश्वासन नहीं देती तब तक सदन में कोई अन्य कार्य करने की अनुमति नहीं देने का निर्देश दिया। सांसदों को सदनों से वॉकआउट न करने का भी निर्देश दिया गया, जिससे सत्ताधारी दल बिना किसी बाधा के अपना काम कर सके। और यदि सांसदों को सदनों के अध्यक्ष/सभापति द्वारा निलंबित भी किया जाता है, तो भी उन्हें सदन में जाकर केंद्र सरकार का विरोध करने का निर्देश दिया गया। पीपल्स व्हिप यह स्पष्ट करता है कि यदि संबंधित सांसद व्हिप के निर्देशों को स्वीकार करने और उसके कार्यान्वयन में विफल रहते हैं, तो भारत के किसान हर पटल पर उनका विरोध करने के लिए बाध्य होंगे।

आंदोलनकारी किसानों ने कहा कि 22 जुलाई से मानसून सत्र के अंत तक संसद के बाहर उनका विरोध शांतिपूर्ण होगा। अगला लक्ष्य उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में आंदोलन को मजबूत करने का बताते हुए प्रदर्शनकारियों ने कहा कि इन दोनों राज्यों के जिलों में एक से 25 अगस्त तक बैठकें होंगी और उसके बाद पांच सितंबर को मुजफ्फरनगर में 'महापंचायत' होगी।

बलवीर सिंह राजेवाल ने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि एसकेएम ने एक 'पीपल्स व्हिप' जारी किया है जो लोकसभा और राज्यसभा के सभी सांसदों को दिया जाएगा।

एक अन्य किसान नेता ने कहा, ‘‘22 जुलाई से मानसून सत्र के अंत तक हर दिन 200 किसान संसद के बाहर विरोध प्रदर्शन करेंगे। अगर सरकार हमें गिरफ्तार कराती है, तो वह कर ले, और अगर ऐसा नहीं हुआ तो हम शाम को दिल्ली की सीमाओं पर लौटे जाएंगे और अगले दिन फिर आएंगे।’’

नेताओं ने अपने साथी प्रदर्शनकारियों, विशेष रूप से जो संसद के बाहर प्रदर्शन करने जाएंगे उनसे "शांतिपूर्ण विरोध" सुनिश्चित करने के लिए फोटो और आधार कार्ड सहित अपनी पहचान का विवरण प्रस्तुत करने का आग्रह किया।

एसकेएम ने बुधवार को  संसद विरोध मार्च की विस्तृत योजनाओं की घोषणा की। किसान कार्यकर्ता और नेता एसकेएम द्वारा निर्धारित दिशानिर्देशों के अनुरूप शांतिपूर्ण तरीके से संसद भवन की ओर मार्च करेंगे। प्रदर्शनकारियों के दैनिक जत्थे में दिल्ली की सीमाओं के साथ-साथ देश के अन्य हिस्सों से, विभिन्न संगठनों से चुने गए किसान नेता और कार्यकर्ता शामिल होंगे।

26 जुलाई और 9 अगस्त को महिला किसान नेताओं और कार्यकर्ताओं द्वारा विशेष संसद विरोध मार्च निकाला जायेगा। महिलाएं किसानों की आजीविका और भविष्य के लिए इस लंबे और ऐतिहासिक संघर्ष में सबसे आगे रहीं हैं और इन दो दिनों के विशेष मार्च में महिलाओं की अद्वितीय और यादगार भूमिका को याद किया जाएगा।

एसकेएम ने विदेशों में स्थित “सिख फॉर जस्टिस” नामक एक संगठन द्वारा किए गए एक कथित बयान को संज्ञान में लिया है। एक अलगाववादी संगठन द्वारा जारी किया गया ऐसा आह्वान किसान विरोधी और किसान आंदोलन के हित के खिलाफ है, और एसकेएम इसकी कड़ी निंदा करता है। न तो एसकेएम और न ही किसान आंदोलन का ऐसे संगठनों से कोई लेना-देना है और एसकेएम उन्हें किसान, जो अपनी आय सुरक्षा और भारत के किसानों की भावी पीढ़ी के साथ-साथ 140 करोड़ भारतीयों की खाद्य सुरक्षा के लिए लंबे और कठिन लेकिन शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक संघर्ष में लगे हुए हैं, के न्यायोचित कारणों को भटकाने और पटरी से उतारने के प्रयासों से दूर रहने का निर्देश देता है।

किसान नेता हरचरण सिंह और प्रहलाद सिंह के साथ लगभग 100 किसानों पर सिरसा पुलिस द्वारा झूठे मामलों में देशद्रोह का गंभीर आरोप लगाया गया है। केवल इसलिए कि वे सिरसा में हरियाणा के उपाध्यक्ष के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। एसकेएम हरियाणा की किसान विरोधी भाजपा सरकार के निर्देशों के तहत किसानों और किसान नेताओं के खिलाफ झूठे, तुच्छ और मनगढ़ंत राजद्रोह के आरोपों और अन्य सभी आरोपों की कड़ी निंदा करता है। यह याद किया जाए कि जबकि नवंबर 2020 में किसानों की हरियाणा में कोई विरोध प्रदर्शन करने की योजना नहीं थी, लेकिन इसी हरियाणा सरकार ने उन्हें दिल्ली की ओर मार्च करने से रोकने की असफल कोशिश की थी। किसानों के खिलाफ पानी की बौछारों, आंसू गैस, बैरिकेड्स, कंटीले तारों और सड़कों की खुदाई कर हरियाणा सरकार की बर्बरता का देश गवाह था। वही सरकार अब देशद्रोह के झूठे और गंभीर आरोपों के साथ ऐसे मामले दर्ज करके किसानों के खिलाफ आतंक और अत्याचार के हथकंडे अपना रही है। सिर्फ इसलिए कि किसानों ने सिरसा में भाजपा नेताओं को काले झंडे दिखाए थे। एसकेएम इन आरोपों को अदालत में चुनौती देने में सभी किसानों और नेताओं की सहायता करेगा और हरियाणा सरकार को आश्वस्त करता है कि उसके अत्याचार के खिलाफ किसानों के संघर्ष और विरोध को तेज करेगा।

हरियाणा के भाजपा नेता मनीष ग्रोवर ने अभद्र और अक्षम्य भाषा का इस्तेमाल कर महिला किसानों और प्रदर्शनकारियों का अपमान किया था। इसके जवाब में किसानों ने हरियाणा के रोहतक स्थित उनके आवास के बाहर अनिश्चितकालीन धरना दिया। पुलिस ने आवास पर बैरिकेडिंग कर दी है और मनीष ग्रोवर अपने ही घर में नजरबंद हैं। धरना तब तक जारी रहेगा जब तक कि दोषी भाजपा नेता बिना शर्त माफी नहीं मांगते।

संयुक्त किसान मोर्चा ने हरियाणा के किसान नेता को एक सप्ताह के लिए निलंबित किया

संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने बुधवार को हरियाणा भारतीय किसान यूनियन (चढूनी) के प्रमुख गुरनाम सिंह चढूनी को यह सुझाव देने के लिए सात दिनों के लिए निलंबित कर दिया कि केंद्र के कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन में शामिल पंजाब के किसान संगठनों को अगले साल राज्य विधानसभा चुनाव लड़ना चाहिए।

सिंघू बॉर्डर आंदोलन स्थल के पास संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए मोर्चा के वरिष्ठ नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने कहा कि चढूनी कई बार ऐसा नहीं करने के लिए कहे जाने के बावजूद अपने ‘‘मिशन पंजाब’’ के बारे में बयान दे रहे हैं। राजेवाल ने कहा, ‘‘फिलहाल हम (केंद्र के कृषि कानूनों के खिलाफ) लड़ रहे हैं। हम कोई राजनीति नहीं कर रहे हैं।’’

भाकियू (राजेवाल) के अध्यक्ष राजेवाल ने कहा, ‘‘इसके लिए आज हमने उन्हें सात दिन के लिए निलंबित करने का फैसला किया। वह कोई बयान जारी नहीं कर पाएंगे या मंच साझा नहीं कर पाएंगे। उन पर ये प्रतिबंध लगाए गए हैं।’’ एक सवाल के जवाब में राजेवाल ने कहा कि चढूनी पंजाब किसान संघों के नेताओं को राजनीतिक रास्ता अपनाने के लिए कह रहे हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘हम उनसे कह रहे थे कि हमारा ऐसा कोई कार्यक्रम नहीं है। बाद में पंजाब के नेताओं ने उनके बयानों के संबंध में शिकायत की और मंगलवार को बैठक की। आज मोर्चा ने उन्हें सात दिनों के लिए निलंबित कर दिया।’’

हालांकि  चढूनी ने कहा उनके ख़िलाफ़ ये प्रस्ताव बहुमत का नहीं है बल्कि कुछ किसान संगठनों ने लिया है।

(समाचार एजेंसी भाषा इनपुट के साथ )

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