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हरियाणा के बजट पर लोगों की प्रतिक्रिया 

सरकार बजट को आंकड़ों की लफ़्फ़ाज़ी के साथ पेश तो कर देती है। मगर अधिकतर पढ़े लिखे और आम लोग बजट के बारे में ढंग से जानते नहीं है। क्योंकि उन्हें लगता है कि बजट का उन्हें सीधे तौर पर कोई वाजिब लाभ नहीं मिलता।
khattar
फाइल फोटो

केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष (2022-23) के लिए 1 फरवरी को संसद में बजट पेश किया था। जिसमें वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 39.44 लाख करोड़ रुपये की राशि रखी। लेकिन इस बजट में हरियाणा जैसे राज्य (आबादी 2.89 करोड़) को मिलने वाले बजट की हिस्सेदारी पिछले बजट के मुक़ाबले इस बजट में 1.8 प्रतिशत से घटाकर 1.093 प्रतिशत तय कर दी गयी है।

ऐसे में केंद्रीय बजट से क़रीब एक माह बाद हरियाणा की गठबंधन सरकार ने महिला दिवस (8 मार्च) को विधानसभा में राज्य का बजट पेश किया। जो गठबंधन सरकार में तीसरी बार वित्त वर्ष 2022-23 के लिए मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने 1.77 लाख करोड़ रुपए राशि के रूप में रखा है। यह बजट चालू वित्त वर्ष 2021-22 के 1.53 लाख करोड़ रुपए के बजट से 15.6 प्रतिशत अधिक है।

बजट में शिक्षा क्षेत्र के लिए 20250.70 करोड़ रुपए, स्वास्थ्य पर 8925.52 करोड़ रुपए, कौशल विकास एंव रोजगार हेतु 1671.37 करोड़ रुपए, महिला एंव बाल विकास के लिए 2017. 24 करोड़ रुपए, समाजिक सशक्तिकरण पर 10229.93 करोड़ रुपए, ग्रामीण क्षेत्र पर 6827.13 करोड़ रुपए और कृषि क्षेत्र लिए 5988.70 करोड़ रुपए आवंटित किया गया। इसके अलावा पर्यावरण क्षेत्र सहित अन्य क्षेत्रों के लिए भी करोड़ों रुपए का बजट रखा गया। जिसमें पिछले वर्ष के मुक़ाबले इस वर्ष कई फ़ीसदी वृद्धि की गयी।

जिससे यह प्रतीत हो रहा है कि यह काफ़ी आशावादी बजट है। लेकिन सच्चाई यह है कि सरकार की घोषणाओं और विकास कार्यों में ज़मीन-आसमान का अंतर है। जैसे उदाहरण के तौर पर, पिछली दफ़ा 2021-22 के बजट मेेें सरकार ने प्रदेश के हर जिले में मेडिकल कॉलेज खोलने की घोषणा की थी, मगर एक भी मेडिकल कॉलेज की नींव अब तक नहीं रखी गयी। जबकि इस बार भी शिक्षा बजट के मुक़ाबले स्वास्थ्य बजट आधे से कम रखा गया है।

वहीं बजट में हर साल सतलुुज युमना लिंक नहर के लिए 100 करोड़ रुपए का आवंटन किया जाता था। मगर अबकी बार ऐसा कोई प्रावधान नहीं रखा गया है। इसके बावजूद यह बजट तोहफों की भरमार लग रहा है। जिससे यह भी विदित होता है कि इस बजट के सहारे प्रदेश में होने वाले निकाय और पंचायत चुनाव में आवाम को साधने का प्रयास किया गया है।

ऐसे में इस बजट के प्रति आवाम का नज़रिया क्या है? और असली मायनों में बजट कैसा होना चाहिए? इसके बारे में हमने हरियाणा की जनता से बातचीत की। जिससे पता चला कि अशिक्षित लोगों से लेकर अच्छे ख़ासे पढ़े लिखे लोगों में ज्यादातर को यह पता नहीं की हरियाणा सरकार ने बजट पेश किया है। और कुछ तो यह भी नहीं जानते की बजट होता क्या है।

जब हम हरियाणा के कुछ कामगारों से मिले और उनसे सवाल किया कि सरकार ने जो बजट पेश किया है उसमें आपको क्या लाभ देने की घोषणा की गई है और उससे आप कितने खुश है? तब ज्यादातर कामगार कहते है कि हमें नहीं पता कि बजट क्या होता है, और सरकार ने कब पेश किया है। ऐसे कामगारों के पास बजट से संबंधित किसी भी सवाल का कोई भी जवाब नहीं था।

इसके बाद हमने हरियाणा के लॉ कॉलेज के कुछ विद्यर्थियों से बजट को लेकर वार्तालाप किया। तब उनकी तरफ़ से उत्तर आया कि, बजट के बारे हमें कोई ख़ास जानकारी नहीं है।

फिर हमने इसके आगे सचिन और प्रवीन से मुलाक़ात की। जो सेलर है। इन से बजट के बारे में जब हमने यह पूछा कि अब के बजट में मध्यम वर्ग के लिए क्या मिला है? तब सचिन बताते है कि मध्यम वर्ग की महिलाओं के लिए बजट में जो 3 लाख रुपये का लोन देने की जिक्र किया गया है। यदि उसे छोड़ दिया जाए, तब एकदम सरकार ने मध्यम वर्ग को बजट में नज़रअंदाज़ ही किया है।

आगे हमने प्रवीन से जानना चाहा कि बेरोजगारी और महंगाई के लिहाज़ से बजट कैसा रहा है? तब प्रवीन कहते है कि बेरोजगारी मेें हरियाणा शीर्ष पर है। जिसके लिए बजट में 200 रोजगार मेले लगाने का हवाला दिया गया है। लेकिन एक रोजगार मेले में हजारों बेरोजगारों की जमघट लग जाती हैै। जिसमेें 200-300 बेरोजगारों को ही रोजगार मिल पाता है। ऐसे में रोजगार संबंधी नीतियां और सुदृढ़ बनाने की जरूरत है। वहीं आगे वह महंगाई के विषय में कहते है कि महंगाई पर लगाम कसने के लिए बजट में कोई व्यवस्था नहीं की गयी। जिससे स्पष्ट है कि सरकार ने महंगाई के मुद्दे को जानबूझकर अनदेखा किया हैै।

आगे हमने वहीं मौजूद राजीव से पूछा कि सार्वजनिक कार्यों जैसे, परिवहन, सड़कों सहित अन्य के लिए करीब 4 हजार करोड़ का बजट रखा गया, इससे सार्वजनिक कार्य कितने सफल होगें? तब राजीव कहते है कि सालाना सार्वजनिक बजट के आवंटन से सड़क निर्माण जैसे कार्य हुए है। जिससे प्रदेश की सड़के कुछ हद तक ठीक है। लेकिन हरियाणा के बड़े-बड़े नगरों में सड़कों के इर्द-गिर्द से लेकर भीतर तक कचरे के ढेर लगते जा रहे है। जिसके प्रबंधन के लिए कहीं सार्वजनिक कचरे के डिब्बे तक नहीं है।

इसके आगे वहीं उपस्थित बबीता बताती है कि प्रदेश में सरकारी सार्वजनिक शौचालयों की व्यवस्था नहीं है। इसके लिए बजट में कोई राशि क्यों नहीं रखी जाती? फिर आगे वह कहती है हरियाणा में सरकारी अस्पतालों की भी कमीं है। कहीं-कहीं सरकारी अस्पताल  हैं। जहाँ सुबह से लाइन में लगे-लगे शाम हो जाती है, पर इलाज नहीं हो पाता है। ऐसे में सरकार के द्वारा बजट में दावे किए जाते है, पर ढंग के काम नहीं होते।
 
फिर इसके उपरांत हमारी मुलाक़ात मनिषा और रजनी से हुयी। जो हरियाणा के द्रोणाचार्य कॉलेज में बीबीए प्रथम वर्ष में अध्ययनरत् है।

उनसे हमने सवाल पूछा कि पिछले वर्ष साढ़े 18 हजार करोड़ और इस वर्ष 20 हजार करोड़ से ज्यादा शिक्षा क्षेत्र के लिए बजट रखा गया, ऐसे में शिक्षा और शैक्षणिक संस्थानों का आधार कितना मजबूत हो रहा है? तब मनीषा कहती है कि शिक्षा बजट के सहारे यहाँ के कॉलेज का स्तर तो ठीक-ठाक है। लेकिन स्कूली शिक्षा की दशा बहुत बेकार है। राज्य के सरकारी स्कूलों में ढंग की पढ़ाई नहीं होती। जिससे आलम यह कि लोग अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाना नहीं चाहते है। और जिनके बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ते है। वह मजबूरीबस उन्हें पढ़ाते है, क्योंकि वह प्राइवेट स्कूल की तगड़ी फीस नहीं भर सकते।

आगे रजनी कहती है कि गांव और शहरों में कुछ सरकारी स्कूलों की हालत तो किरकिरा हो गयी है। किसी स्कूल का छप्पर गिर रहा है, तो किसी की दीवार खस्ता है। ऐसी स्थिति में स्कूल भी लग रहे है।

आगे वह कहती है कि हमारे शहर गुरुग्राम में सदर बाजार के नज़दीकी जैकमपुरा गर्ल्स स्कूल में आज में भी छात्राएं धरती में बिछी दरी पर बैठकर पढ़ाई करती है। जिससे यह हालत देखकर दिमाग़ में यही सवाल पैदा होता है कि जब सरकार शिक्षा के लिए इतना भारी बजट आवंटित करती है तो इन शैक्षणिक संस्थानों की दशा बदलती क्यों नहीं?
 
ध्यान देने योग्य है कि हरियाणा सरकार द्वारा वर्ष 2022-23 के लिए जो 1.77 लाख करोड़ रुपये का बजट पेश किया गया। उससे अधिक यानी 2.29 लाख करोड़ रुपये हरियाणा राज्य पर कर्ज़ है। वहीं बजट में बेरोजगारी पर लगाम कसने के लिए कोई पुख़्ता कदम नहीं उठाया गया है। जबकि महंगाई को तो सरासर किनारे ही कर दिया गया है।

जिससे यह समझा जा सकता है कि कैसे सरकार बजट के आंकड़ो की लफ़्फ़ाज़ी तले जनता के महत्वपूर्ण मुद्दे दबा देती है। जिसके नतीजतन आवाम की उम्मीदों पर पानी फिर जाता है।

(सतीश भारतीय स्वतंत्र पत्रकार है)

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