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कोरोना का 14 घंटे में ख़ात्मा करने वाले लोग वायरस के बारे में कुछ नहीं जानते हैं

चौदह घंटे में सब ठीक हो जाने वाली बात फ़ैलाने से अच्छा है कि लोग अलग थलग रहें। जिन्हें बुखार या साँस से जुड़ी खांसी है। वह समाज से कुछ दिनों के लिए बिल्कुल कट जाएं। ताकि पहले से कम संख्या में मौजूद अस्पतालों पर अधिक बोझ न पड़े। जरूतमंदों का इलाज हो पाए।
कोरोना
Image courtesy: SlashGear

कोरोना एक तरह का वायरस है। संक्रमण इसके जीने का चरित्र है और इसका अभी तक कोई सटीक इलाज नहीं ढूंढा जा सका है। यही इसकी सबसे बड़ी परेशानी है। इसलिए सभी तरह के जानकार यह राय दे रहे हैं कि जितना हो सके इस वायरस के फैलाव को कम करने की कोशिश की जाए। सोशल डिस्टेंसिंग अपनाई जाए। आम भाषा में कहा जाए तो सामाजिकता कम की जाए। भीड़-भाड़ वाले इलाके में जाने से बचा जाए और इकठ्ठे होकर भीड़ भी नहीं बनाई जाए। जितना हो सके उतना अलग थलग रहा जाए। इसलिए प्रधानमंत्री ने कोरोना वायरस को लेकर देश को दिए अपने संबोधन में 'जनता कर्फ़्यू' की बात कही।  

प्रधानमंत्री ने रविवार यानी 22 मार्च को सुबह 7 बजे से रात 9 बजे तक जनता कर्फ़्यू लगाने की अपील की। यह जनता के लिए, जनता द्वारा खुद पर लगाया गया कर्फ़्यू होगा। उन्होंने कहा कि इस 14 घंटे के दौरान कोई भी व्यक्ति अपने घर से बाहर न निकले।

प्रधानमंत्री ने कोई अनोखी बात नहीं की। पर ज़रूरी बात कही। सोशल डिस्टेंसिंग, क्वारंटाइन और लॉकडाउन जैसे शब्दों को छोड़कर एक नया शब्द ‘जनता कर्फ़्यू’ निकला और आम जनता के बीच इस तरह से बोल दिया गया कि वह इसे अपना पाए। एक नेता के तौर पर यह काबिले तारीफ़ बात थी। जनता से जुड़ने के लिए उन्होंने सही जुमले का इस्तेमाल किया।

जानकरों का कहना है कि इस समय प्रधानमंत्री द्वारा जनता कर्फ़्यू की बात करना एक तरह से ठीक है। एक दिन के कर्फ़्यू के बहाने सरकार शायद यह देखने की कोशिश कर रही है कि आने वाले दिनों में अगर वुहान की तरह लॉकडाउन किया जाए तो कैसी परेशानियां आएँगी?

लेकिन एक परेशानी तो साफ तौर पर दिखने लगी है। प्रधानमंत्री ने कहा कि सामान की जमाखोरी मत कीजिएगा। लेकिन लोग इसके उलट सामान जमा करने में लग गए हैं। बाज़ार जाकर देखिये तीन-तीन महीने का सामान एक साथ लिया जा रहा है। इसके चलते ज़रूरी सामान की किल्लत हो रही है और दाम बढ़ गए हैं। आज शनिवार के दिन तो आलू-टमाटर तक के दाम भी एकदम से बढ़ गए।    

इन सब बातों के साथ हर बार की तरह सोशल मीडिया की दुनिया में एक अलग किस्म का नाटक शुरू हो गया है। संभवतया आईटी सेल की तरफ से मैसेज सर्कुलेट किया जा रहा है। मैसेज में कहा जा रहा है कि रविवार को मोदी की अपील के अनुसार "जनता कर्फ़्यू" लगेगा तो लोग बाहर नहीं निकलेंगे। कोरोना वायरस जो कि बाहर सतहों पर हो सकता है तो वह 14 घंटे के कर्फ़्यू के दौरान नष्ट हो जाएगा और चेन ऑफ रिएक्शन टूट जाएगी। हमारा देश सुरक्षित हो जाएगा। इसे मोदी जी का मास्टर स्ट्रोक समझा जाए।

इस मैसेज को तोड़कर समझिए। आपको साफ़ दिखेगा कि एक व्यक्ति का महिमामंडन किया जा रहा है। ये भारतीय राजनीति में भाजपा की उसी रणनीति का हिस्सा  है जिसमें नरेंद्र मोदी को मसीहा बनाकर आम लोगों के बीच भुनाने की कोशिश की जाती है। एक हद तक राजनीति में हावी हो चुकी चुनावी राजनीति के लिए ऐसी बातें चलती हैं। लेकिन जब परेशानी बहुत गहरी हो तब ऐसी बातें बहुत ही ओछी हरकत लगती हैं। जैसे कोरोना वायरस को लेकर प्रधानमंत्री का भाषण कंटेंट में बहुत कमज़ोर था। देश की आम जनता को उनसे ज्यादा की उम्मीद थी लेकिन फिर भी आगे आने वाली गहरी समस्या को भांपते हुए प्रधानमंत्री के भाषण की कम आलोचना हुई। ऐसे समय में भाजपा समर्थकों की तरफ़ से फ़िज़ूल की बातों का फैलाव भाजपा के गैर जिम्मेदराना व्यवहार को ही दिखाता है।  

साथ में यह दिखाता है कि ऐसे लोगों को वायरस के बारें में तनिक भी बेसिक जानकरी नहीं है और अगर है भी तो वे जानबूझकर अपने फायदे के लिए लोगों को गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे लोग समझें या न समझें लेकिन आइए आप और हम गुमराह होने से बचने और बचाने के लिए विज्ञान की रौशनी में वायरस की बेसिक समझ बनाते हैं:-  

वायरस यानी विषाणु हर जगह होते हैं। दुनिया के हर कोने में होते हैं। आपको जानकर हैरत होगी कि वायरस सारी दुनिया की जीवित प्राणियों से ज्यादा मात्रा में मौजूद हैं। सारे पेड़-पौधे, इंसान, जानवरों को मिलाकर बनी कुल संख्या भी वायरसों के सामने कुछ भी नहीं है। नंगी आँखों से न दिखने वाले प्रोटीन में लिपटे हुए डीएनए और आरएनए के जेनटिक कोड यानी वायरसों से मिलकर ही यह पूरी दुनिया बनी है। हमारे शरीर के दस फीसदी जीनोम कोड में वायरसों का हिस्सा होता है। इसलिए इस दुनिया को अगर आप वायरस प्लानेट यानी वायरस का ग्रह कहें तो कोई गलत बात नहीं।  

जब हम एक बार खाँसते हैं तो तकरीबन एक अरब से अधिक वायरस हमारे मुँह से निकलते हैं। कोरोना वायरस के एक सिरे में तकरीबन दस करोड़ से अधिक वायरस होते हैं। कुछ जानकारों का कहना है कि रसोई के चौके पर यह वायरस तकरीबन नौ दिन तक रह सकता है। हालांकि अभी तक इसके बारे में कोई पुख्ता जानकारी सामने नहीं आयी है। इसलिए यह कहना गलत होगा कि चौदह घंटे के कर्फ़्यू में वायरस नष्ट हो जाएंगे।  

वायरस परजीवी होते हैं। यानी दूसरों के जीवन पर आश्रित होते हैं। दुनिया के शुरू होने से लेकर अब तक वायरस ऐसे ही जीते आ रहे हैं।  इसलिए यह कहा जाता है कि उन्हीं वायरसों से इंसानों को परेशानी होती है, जिनसे इंसानी शरीर संतुलन नहीं बिठा पाता है। जैसे एचआईवी का वायरस और मौजूदा समय में कोरोना वायरस। दुनिया में अरबों किस्म के वायरस हैं लेकिन इनमे से कुछ सौ वायरस ही हानिकारक होते हैं।

सबसे बेसिक और ज़रूरी बात यह है कि वैक्सीन यानी टीका वायरस को नहीं मारता है। वायरस को हमारा शरीर ही मारता है। वैक्सीन हमारे शरीर को इस लड़ाई के लिए तैयार करता है। सिंपल सी बात है वैक्सीन वायरस को भला कैसे मारेगी क्योंकि वैक्सीन खुद वायरस ही होती है।
दरअसल, हमारे शरीर में वायरस से लड़ने वाली फौज यानी एंटीबॉडीज़ पहले से होते हैं। एंटीबॉडी को चाहिए तो बस थोड़ी-सी इन्फॉर्मेशन और थोड़ी सी गाइडेंस। एन्टीबॉडीज़ को ये दोनों चीज़ें उसी वायरस से मिलती हैं।

किसी भी वायरस की वैक्सीन उसी वायरस के मरे हुए या कमज़ोर वायरस होते हैं। इन वायरसों से हमारे शरीर को अंदाज़ा लगता है कि वायरस कैसा है और इससे कैसे लड़ना चाहिए। लेकिन बहुत अधिक खतरा भी होता है। अगर मरा हुआ यह वायरस अंदर फैलने लगा, तो बहुत बड़ी दिक्कत जायेगी। इसलिए वैक्सीन बनाना बहुत अधिक संतुलन का काम है। वायरस का मरा हुआ ऐसा होना चाहिए कि शरीर में उसकी पहचान भी हो जाए और वो खतरनाक भी साबित न हो। साथ ही ये भी देखना होता है कि इसका कोई साइड इफेक्ट न हो। यही सब देखने में बहुत अधिक समय लग जाता है।  

दूसरे वायरसों की तरह कोरोना वायरस भी हमारी कोशिकाओं से भोजन लेता है, प्रजनन करता है, एक से अनेक और अनेक से अनंत में बदल जाता है। इसलिए कोरोना वायरस से संक्रिमत व्यक्ति अपने साथ इतनी बड़ी संख्या में वायरस लेकर चल रहा होता है, जिससे चौदह घंटे में छूटकारा पा लेना बेवकूफी भरी बात है।  

यह समझना ज़रूरी है कि कोरोना वायरस से संक्रमण और इससे हुई मौत दो अलग-अलग चीजें हैं। कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों में से तकरीबन 98 फीसदी लोग ठीक हो जा रहे हैं। लंदन स्कूल ऑफ़ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के पीटर पायट का अंग्रेजी की टेलीग्राफ पत्रिका में इंटरव्यू छपा है। पीटर पायट कहते हैं कि चिंता वाली बात यह है कि यह वायरस नया है। वैज्ञानिक शब्दों में कहें तो नोवेल है। इसके बारे में बहुत अधिक जानकारी नहीं है। वैज्ञानिकों को यह तक पता नहीं कि इसका उत्परिवर्तन (Mutation) कैसे हो रहा है। संक्रमित व्यक्ति के ठीक हो जाने के बाद क्या यह वायरस उसे फिर से प्रभावित कर सकता है या नहीं। यही सारी डराने वाली बात है। इसलिए वे सोशल डिस्टेंसिंग की बात कर रहे हैं।

यह एड्स के वायरस तरह नहीं है जो मुश्किल से फैलता है। यह सामान्य फ्लू की तरफ फ़ैल रहा है। तेजी से फ़ैल रहा है। सड़क, ट्रेन, हवाई जहाज सब इसे फ़ैलाने का काम कर रहे हैं। यही चिंता वाली बात है कि इलाज नहीं है, जानकारी कम है और फैलता जा रहा है।

खसरा कोरोना वायरस से तेजी से फैलता है। लेकिन हमारे पास इसका टीका मौजूद है। हम इसके बारे में जानते हैं, इसलिए चिंता नहीं होती है। हम इसके फैलाव को रोक पाने में कामयाब होते हैं। ठीक ऐसे ही बात एड्स के लिए है। एड्स का फैलाव मुश्किल से होता हैं। इससे अब तक तकरीबन 3 करोड़ से ज्यादा लोग मर चुके हैं। लेकिन हमारे पास इसकी जानकरी है कि इसे फैलने से कैसे रोका जाए।

कोरोना वायरस के लिए हमारे शरीर तैयार नहीं हैं। हमारे शरीर में वह इम्यून सिस्टम यानी वह प्रतिरोधक क्षमता या प्रतिरक्षा प्रणाली डेवेलप नहीं हुई है, जिसके साथ इस वायरस से लड़ा जाए। जिसका इम्यून सिस्टम कमजोर होगा, उसे इस वायरस से परेशानी होगी। और हो सकता है कि उसकी मौत भी हो जाए। यह तब चलेगा जब तक इसका इलाज नहीं ढूंढ लिया जाता है। ऐसे में हो सकता है कि आपको कोरोना वायरस है लेकिन आपके इम्यून सिस्टम की मजबूती की वजह से आप बच जाएं।

लेकिन आपकी वजह से आपके बगल वाले के पास कोरोना वायरस चला जाए और उसका इम्यून सिस्टम कमजोर हो तो वह मर जाए। यानी अगर इलाज नहीं है तो इसके फैलाव को रोकना सबसे ज़रूरी उपाय है और अभी तक यह 2 लाख से अधिक लोगों को संक्रमित कर चुका है। वहाँ उसने प्रजनन किया है और खुद को दूसरे जगहों तक पहुँचाया है। यह खेल चौदह घंटे में खत्म नहीं होने वाला। तब तक जारी रहेगा, जब तक इसका इलाज नहीं मिल जाता या इंसानों की जमात इसके प्रति खुद ही इम्यून सिस्टम डेवलप नहीं कर लेती।  

आपने अंग्रेजी में इस वायरस को लेकर 'एसिम्पटोमेटिक (Asymptomatic)' शब्द जरूर सुना होगा। इसका मतलब है कि कई दिनों तक इसके लक्षण पता ही नहीं चलते है। हो  सकता है कि लोग इससे प्रभावित और उन्हें पता ही न हो। जब तक टेस्ट न हो तब तक अनजाने में रहें। अनजाने में वे इस वायरस का कैरियर यानी वाहक बनकर काम रहे हैं। दुर्भाग्य से दूसरी जगह तक इस वायरस को पहुंचा रहे हैं। चीन में कोरोना वायरस के तकरीबन 30 फीसदी ऐसे मामले थे, जिन्हें किसी तरह का बुखार नहीं था। चौदह घंटे के अंदर इन्हीं को नहीं पता चल सकता कि वे कोरोना वायरस से प्रभावित हैं। ऐसे लोगों की वजह से कोरोना वायरस को रोक पाना और भी मुश्किल हुआ है।  

पीटर कहते हैं कि आम जनता बहुत सावधानी बरत कर इसके फैलाव को कम करने का काम कर सकती है लेकिन खत्म नहीं कर सकती है। इसे कम करने के लिए वैक्सीन की बहुत अधिक ज़रूरत है। यह वैक्सीन तभी कारगर होगा, जब वायरस स्थायी रहे अपने चरित्र में बहुत अधिक बदलाव न करे। विज्ञान के शब्दों में कहा जाए तो वायरस में ऐसा उत्परिवर्तन यानी हेरफेर न हो कि इसके लिए बनाया जाने वाला वैक्सीन कारगर न हो पाए। और अभी भी वैक्सीन बनने और उसके बाद बड़ी मात्रा में उत्पादन में साल भर का समय लग जाएगा। ऐसे में चौदह घंटे वाली बात गोमूत्र पीने की तरह लगती है।  

अगर सरकार एयरपोर्ट से लेकर स्कूल तक बंद कर रही है और जनता कर्फ़्यू का निवेदन कर रही है तो इसका मतलब ही है कि स्थिति गंभीर है। पीड़ित लोगों की संख्या बहुत अधिक है। चौदह घंटे में सब ठीक हो जाने वाली बात फ़ैलाने से अच्छा है कि लोग अलग थलग रहें। जिन्हें बुखार या साँस से जुड़ी खांसी है। वह समाज से कुछ दिनों के लिए बिल्कुल कट जाएं। ताकि पहले से कम मात्रा में मौजूद हॉस्पिटलों पर अधिक बोझ न पड़े। जरूतमंदों का इलाज हो पाए। तकरीबन 150 से अधिक देशों में फ़ैल चुके इस वायरस का सबसे अधिक प्रभाव उन्हीं देशों को पड़ेगा जहां साफ-सफाई की परेशानी अधिक है, जहां स्वास्थ्य का बुनियादी ढाँचा बहुत कमजोर है।

हम वायरस प्लानेट पर रहते हैं। इसके साथ हमारी चलने वाली लड़ाई तब से हैं जब से यह दुनिया बनी है और तब तक रहेगी जब तक यह दुनिया रहेगी। कोई अगर कह रहा है कि चौदह घंटे में वायरस से छुटकारा मिल जाएगा तो इसका साफ़ मतलब है कि वह इंसानों और वायरसों के बीच के सम्बन्ध को नहीं जानता है। वायरस के साथ रहते हुए भी उसे नकारते हुए जी रहा है। वैसे इंसान को वायरस से जुड़ाव के बारें में बताइये ताकि वह अपने लाइफ स्टाइल में जरूरी बदलाव कर सके। ऐसी जिंदगी जी सके कि बुरे वाले वायरस से लड़ने के लिए हमेशा तैयार रहे। जैसे कि कोरोना वायरस से लड़ने की तैयारी की जरूरत है।  

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