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साक्षात्कार: 'परंपरा के साथ खिलवाड़ करने से सैनिकों के मनोबल और उनके लड़ाई की भावना को ठेस पहुंचेगी'

पूर्व उप-प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल ज़मीर उद्दीन शाह साक्षात्कार में बताते हैं कि नई सैन्य भर्ती प्रणाली एक अनावश्यक परिवर्तन क्यों है ? उन्होंने आरएसएस प्रमुख से मुलाक़ात को लेकर भी चर्चा की।
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केंद्र की 'अग्निपथ' योजना के विरोध में एसएफ़आई और डीवाईएफ़आई का प्रदर्शन

भारतीय सेना के पूर्व उप-प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल ज़मीर उद्दीन शाह का मानना है कि नई अग्निवीर भर्ती योजना सशस्त्र बलों पर बिना विचार-विमर्श के थोपी गई और इससे सेना के मनोबल और उनके प्रदर्शन को नुक़सान होगा। जनरल शाह ने हाल ही में मुस्लिम समुदाय की चिंताओं को उठाने के लिए आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत से मुलाक़ात की थी। रश्मि सहगल ने मोहन भागवत से उनके मुलाक़ात और सरकार की सैन्य परंपराओं के साथ लगातार छेड़छाड़ पर उनके विचार जानने के लिए बात की।

लागू की गई नई योजना अग्निवीर स्कीम के तहत सेना में शामिल होने के लिए युवाओं के लिए भर्ती रैलियां देश भर में की गई हैं। इसमें कई लाख युवाओं ने भाग लिया है। अग्निवीर योजना के तहत 3,000 नौकरियों के लिए भारतीय वायु सेना को 7.5 लाख आवेदन प्राप्त हुए। भर्ती व्यवस्था में बदलाव के बावजूद ऐसा क्यों?

देश में बेरोज़गारी है, हमारे केवल पांच प्रतिशत युवाओं के पास मुकम्मल रोज़गार है। इसलिए, किसी को जिस तरह की भी नौकरी मिल सकती है, वह उसके लिए जाएंगे।

आप किस तरह सोचते हैं कि भर्ती किए गए ये युवा सशस्त्र बलों से संबद्ध किए जाएंगे? आख़िरकार, अधिकांश अग्निवीरों के लिए यह चार साल की नौकरी है, और वे इस समय का कुछ हिस्सा प्रशिक्षण में लगाएंगे।

सामान्य भर्ती पैटर्न के तहत, एक जवान के लिए प्रशिक्षण एक साल के लिए बढ़ाया जाता है, लेकिन अग्निवीर योजना के तहत इसे छह महीने तक कर दिया गया है। मेरा मानना है कि इन भर्तियों को किसी इकाई में सेवा देने के लिए अपर्याप्त रूप से प्रशिक्षित किया जाएगा।एक अग्निवीर के चार साल के कार्यकाल के दौरान छह महीने प्रशिक्षण में लगाए जाएंगे; आठ महीने का वार्षिक अवकाश होगा और फिर आठ महीने की सेवानिवृत्ति के पहले की औपचारिकताएं होंगी। किसी बटालियन में सेवा करने के लिए उनके पास वास्तविक समय दो साल और दो महीना होगा, जिसमें से अधिकांश समय फील्ड में गुज़रेंगे।

क्या युद्ध की फिटनेस के लिए भर्ती होने वाले युवा को तैयार करने में छह महीने की प्रशिक्षण अवधि पर्याप्त होगी?

बड़ी संख्या में (अग्निवर) पैदल सेना की बटालियनों में आएंगे। ऐसे में इसका बड़ा नुक़सान गोला बारूद और बख्तरबंद सैन्य दल के रूप में होगा क्योंकि उसे तकनीकी प्रशिक्षण वाले लोगों की आवश्यकता होती है।

लेकिन इस योजना के और भी कई नुक़सान हैं। 16 या 17 वर्ष की आयु के आसपास के युवा इस योजना के लिए आवेदन करेंगे और उनमें से 75% युवा 21 वर्ष की उम्र तक निकल जाएंगे। वे शारीरिक रूप से स्वस्थ हो सकते हैं लेकिन उस उम्र में पर्याप्त परिपक्व नहीं हो सकते हैं। एक सैनिक 25 से 35 वर्ष की आयु के बीच में परिपक्व होता है। सेवा मुक्त होने वाले ये लड़के शारीरिक रूप से स्वस्थ हो सकते हैं लेकिन कोई नौकरी नहीं पा सकेंगे। उन्हें नौकरी कौन देगा? वे बेहद निराश महसूस करेंगे, जो समाज के लिए अच्छा नहीं होगा। सरकार का दावा है कि अर्धसैनिक बल और उद्योग उन्हें रख लेंगे लेकिन अनुभव से पता चलता है कि इस क्षेत्र में अधिकांश रिक्तियां नहीं भरी जाती हैं।एक कमांडिंग ऑफिसर के लिए एक और नुक़सान यह है कि उसकी कमान के अधीन 25% लोग हर साल बदल जाएंगे। मुझे (मेरी रेजिमेंट के) लोगों को जानने में बीस साल लगे और उस दौरान मैंने उन्हें उनकी पृष्ठभूमि से जाना, जिसमें उनका पारिवारिक इतिहास और अन्य विवरण शामिल थे। अधिकारी और उसके अधीनस्थों के बीच गहरी जानकारी होती है क्योंकि सेना एक मज़बूत परिवार के रूप में काम करता है।

सेना के शीर्ष अधिकारियों के साथ-साथ सेवानिवृत्त अधिकारियों ने इसके ख़िलाफ़ क्यों नहीं बोला?

सेना के अधिकारी बोलते रहे हैं और उन्होंने चेतावनी दी है कि यह एक अवांछित योजना है और अगर सरकार रोज़गार देना चाहती है तो और भी तरीक़े हैं। इन लड़कों को सीधे अर्धसैनिक बलों में रोज़गार दें। दुर्भाग्य से उनकी बात नहीं सुनी जा रही है। सेना प्रमुखों को बोलना है। यह सब उन पर निर्भर करता है। जनरल [केएम] करियप्पा और जनरल [सैम] मानेकशॉ जैसे प्रमुखों ने उन मामलों पर अपनी राय देने में संकोच नहीं किया, जिन पर उनका सरकार के साथ मतभेद था। इसलिए मैंने हमेशा अपने लोगों से कहा कि यद्यपि हम अधीनस्थ हैं, हम राजनीतिक सत्ता के अधीन नहीं हैं।

सरकार सेना की कई परंपराओं और रीति-रिवाजों की समीक्षा करने की योजना बना रही है जिसमें रेजिमेंटल सिस्टम भी शामिल है जो तीन सदी पीछे जा सकता है।

एक कहावत है कि अगर कुछ काम हो रहा है, तो उसमें दख़ल न दें। यह एक आदर्श व्यवस्था है और इसमें हस्तक्षेप करना हानिकारक होगा। मैं अमेरिकी सेना का उदाहरण देता हूं, जिसने 1951 में रेजिमेंटल सिस्टम को समाप्त कर दिया था। ये परिवर्तन तेज़ी से व्यापक तकनीकी परिवर्तनों से प्रेरित थे और इसलिए उनका मानना था कि वे इसे दूर कर सकते हैं। देखिए वियतनाम युद्ध में अमेरिकी सेना का क्या हुआ और फिर अफ़ग़ानिस्तान में! देखिए यूक्रेन में रूसी सेना के साथ क्या हो रहा है जहां उनके सैनिक पिछड़ रहे हैं। भारतीय सेना पूरी तरह से जांच-परख के बाद तैयार की गई व्यवस्था है, जिनमें हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए।

क्या सरकार भी सेना द्वारा पहनी जाने वाली औपचारिक ब्लू पेट्रोल वर्दी और डोरी को बदलना चाहती है?

फिर से मैं जापानी सेना का उदाहरण दूंगा जो द्वितीय विश्व युद्ध में संयुक्त राज्य की सेना से पराजित हुई थी। जापान के विसैन्यीकरण की प्रक्रिया में, संयुक्त राज्य अमेरिका ने जापानी सेना को अनुपयुक्त और ढीली वर्दी पहनने का आदेश दिया था ताकि उनके कर्मी निराशा और हीन महसूस करें। मैं समझ रहा हूं कि इस प्रक्रिया को उलट दिया गया है। वर्दी एक सैनिक को अलग दिखने में मदद करती है।भारतीय सेना पर इस बदलाव के आदेश बेहद अदूरदर्शी हैं। ब्लू पेट्रोल एक अद्भुत वर्दी है। मैंने अपनी रेजिमेंट को अपनी ब्लू पेट्रोल वर्दी भेंट की और इसे क्वार्टर गार्ड में प्रदर्शित किया गया है।

मैं समझता हूं कि बीटिंग ऑफ द रिट्रीट समारोह के ख़र्च में कटौती के कारण समीक्षा की जा रही है।

यह एक और बहुत ही अदूरदर्शी क़दम होगा क्योंकि यह ख़ूबसूरत समारोह हर किसी को हैरत में डालता है। हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि संगीत एक सैनिक की आत्मा का बैरोमीटर होता है। ख़र्च कम करने के और भी कई तरीक़े हैं। वे उन सांसदों और विधायकों की पेंशन में कटौती कर सकते हैं जो एक कार्यकाल के लिए चुने जाने पर भी आजीवन पेंशन के हक़दार हैं।

यह सब तब हो रहा है जब भारत को अपनी उत्तरपूर्वी और उत्तर-पश्चिमी सीमाओं से शत्रुतापूर्ण ख़तरों का सामना करना पड़ रहा है?

बिल्कुल। भारतीय सेना के आधुनिकीकरण पर ज़रूर ज़ोर दिया जाना चाहिए, न कि अपने सदियों पुराने रीति-रिवाजों और परंपराओं पर जो सैनिकों के मनोबल और लड़ाई की भावना या एक अप्रशिक्षित भर्ती प्रणाली शुरू करने पर हानिकारक प्रभाव डालेगा होगा।

सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा पर श्वेत पत्र लाने में विफल क्यों रही है?

हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा नीति की व्याख्या करने वाले श्वेत पत्र के लिए सेना ख़ुद कहती रही है। अफसोस की बात है कि जो नीति तय कर रहे हैं, वे सैनिकों के बारे में बहुत कम समझ रखते हैं। हमें राष्ट्रीय सुरक्षा दस्तावेज़ तैयार करने का काम देने के लिए सेवानिवृत्त पेशेवर सैनिकों के एक निकाय की आवश्यकता है।

भारत में जिस तरह बहुसंख्यकवादी प्रवृत्ति बढ़ रही है ऐसे में क्या सेना के भीतर इन परिवर्तनों को महसूस किया जा रहा है? क्या भारतीय सेना में मुस्लिम-विरोधी प्रवृत्ति बढ़ रही है?

सेना में जो हो रहा है उसके लिए मैं कुछ नहीं कह सकता। लेकिन मैं सेवानिवृत्त सेना के दिग्गजों वाले सेना के कई व्हाट्सएप ग्रुप का हिस्सा हूं। अगर मैं सरकार के ख़िलाफ़ टिप्पणी करता हूं, तो मुझ पर विश्वासघात करने का आरोप लगाया जाता है और मुझे पाकिस्तान जाने के लिए कहा जाता है।मैं यह बताना चाहता हूं कि 1971 के युद्ध के दौरान मेरी रेजिमेंट ने लोंगेवाला के युद्ध में हिस्सा लिया था। हमारे पास तीन सिख अधिकारी, दो मुस्लिम अधिकारी, एक ईसाई अधिकारी और एक यहूदी अधिकारी थे, जबकि बाक़ी हिंदू थे। हमारे पास अधिकारियों का एक मिला जुला निकाय था जबकि हमारे सभी सैनिक राजपूत थे। हम सब एक साथ लड़े और हमारा एकमात्र उद्देश्य देश की सेवा करना था।

आप उस पांच सदस्यीय टीम का हिस्सा थे जिसने हाल ही में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत से मुलाक़ात की थी। उद्देश्य क्या था?

यह शांति-स्थापित करने की चर्चा के लिए की गई बैठक थी। हम हिंदुओं और मुसलमानों के बीच संबंधों में सौहार्द क़ायम करना चाहते थे।

लेकिन आपने मुस्लिम समुदाय का आर्थिक रूप से बहिष्कार करने, मुसलमानों की लिंचिंग करने या क़ानूनी मानदंडों को पूरा किए बिना उनके घरों को ध्वस्त करने जैसे प्रमुख मुद्दों को नहीं उठाया?

यह हमारी पहली मुलाक़ात थी। हम बातचीत शुरू करना चाहते थे और इसलिए बेहद सतर्क रुख अपनाने का फैसला किया था। आरएसएस के सदस्यों के साथ इसके बाद होने वाली अपनी बैठकों में हम इन सभी मुद्दों को उठाने की योजना बना रहे हैं।

आपके इस मुलाक़ात को लेकर मुसलमानों के साथ साथ अन्य लोगों ने काफ़ी आलोचना की है।

हां, हम पर कुछ लोगों ने अपनी आत्मा बेचने का आरोप लगाया था। लेकिन हमारे सामने सवाल यह है कि हम इन समुदायों के बीच शांति और एकता बनाने की कोशिश कैसे करते हैं। ग़लतफ़हमियों को दूर करने का सबसे अच्छा तरीक़ा है बात करते रहना। क्या कोई वैकल्पिक तरीक़ा बता सकता है? आरएसएस ने पांच सदस्यों की नियुक्ति की है जिनके साथ हम कुछ समान बिंदु पर पहुंचने की कोशिश करने के लिए बाद में बैठकें करेंगे।

मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित साक्षात्कार को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करेंः

Interview: 'Fiddling With Tradition Will Hurt Soldier Morale and Fighting Spirit'

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