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अखिलेश का नफ़रत फ़ैलाने वाले संगठनों पर प्रतिबंध के बयान के बाद राजनीतिक सरगर्मी तेज़

सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का हर संभव प्रयास कर रही है। वहीं अखिलेश यादव के बयान ने सियासी गलियारों में हलचल पैदा कर दी है।
Akhilesh yadav

देश में जब “हिंदूवादी” संगठन “बजरंग दल” पर प्रतिबंध लगाने को लेकर बहस चल रही है, ऐसे समय में समाजवादी पार्टी (सपा) ने भी नफ़रत फ़ैलाने वाले संगठनों पर प्रतिबंध की वकालत की है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने उदाहरण देते हुए कहा है कि देश के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) पर प्रतिबंध लगाया था।

पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का बयान ऐसे समय में आया है जब कर्नाटक में विधानसभा और उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव चल रहे हैं। सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का हर संभव प्रयास कर रही है। वहीं अखिलेश यादव के बयान ने सियासी गलियारों में हलचल पैदा कर दी है।

हिंदू और मुस्लिम चरमपंथी संगठनों जैसे “बजरंग दल” व पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया (पीएफआई) पर प्रतिबंध की बात कांग्रेस ने कर्नाटक में घोषणा पत्र में कही है। जिसके बाद से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत सभी दक्षिणपंथी संगठन कांग्रेस पर तीव्र हमला कर रहे है।

ऐसा कहा जा रहा की कांग्रेस द्वारा उठाये गए मुद्दे को अखिलेश यादव को दिये गए समर्थन के कई अर्थ है। राजनीति के जानकर मानते है कि 2022 के उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनावों में हार के बाद सपा ने अपनी रणनीति में बदलाव किया है। अखिलेश यादव ने कई छोटे दलों जैसे राष्ट्रीय लोक दल आदि को सपा के साथ लामबंद किया। फ़िर भी केवल 403 सीटों वाली विधानसभा में केवल 111 सीटों पर क़ब्ज़ा कर सके थे।

जबकि सपा की गोलबंदी ने बीजेपी को नुक़सान किया और वह 313 सीटों से 255 सीटों पर आ गई। लेकिन बीजेपी के “हिंदुत्व की लहर” के सामने अखिलेश यादव विफल रहे। जिसके बाद सपा ने आगामी 2024 चुनावों के लिए नई रणनीति के तहत “समाजिक न्याय” के मुद्दे को उठाना शुरू कर दिया।

सपा प्रमुख लगातार “अन्य पिछड़ा वर्ग” (ओबीसी) के वोटों को संगठित करने और बीजेपी की सांप्रदायिकता को चुनौती देने के लिए “जाति आधारित जनगणना” की मांग कर रहे है। माना जाता है की प्रदेश में लगभग 40 प्रतिशत आबादी ओबीसी समुदाय से है। प्रदेश में 7-8 प्रतिशत “यादव ओबीसी समाज” है। जो पारंपरिक रूप से सपा के साथ रहा है। अखिलेश की नज़र “ग़ैर-यादव” वोटों पर है, जिसका बड़ा हिस्सा 2014 में नरेंद्र मोदी की राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश के बाद से बीजेपी के क़ब्ज़े में है।

जबकि इधर कुछ समय से सपा प्रमुख अखिलेश यादव पर यह आरोप लगा रहे है कि वह अपने सबसे मज़बूत वोट बैंक मुस्लिम समाज को नज़र अंदाज़ कर रहे हैं। जिसकी बड़ी वजह यह मानी जाती है कि अखिलेश यादव को भय है कि मुस्लिम समाज का ख़ुलकर समर्थन करने से बीजेपी के धार्मिक ध्रुवीकरण में ओबीसी वोट उनसे झटक सकता है।

जबकि देखा गया कि प्रदेश की 19-20 प्रतिशत आबादी वाला मुस्लिम समाज, मुलायम सिंह यादव द्वारा 1992 में सपा के गठन के बाद से अब तक लगभग सभी चुनावों में सपा के साथ रहा है। कहा जाता है की देश के सबसे बड़े राज्य में मुस्लिम समाज के सपा की तरफ़ झुकाव, कांग्रेस के प्रदेश में पतन का एक बड़ा कारण है। कांग्रेस तीन दशक से अधिक समय, 1989 से, प्रदेश की सत्ता से दूर है।

विधानसभा चुनाव के बाद से सपा के प्रति मुस्लिम समाज की दूरी को साफ़ देखा जा सकता है। सपा मुस्लिम बहुल आज़मगढ़ और रामपुर दोनों जगह से 202 2 में लोकसभा उप-चुनाव हार गई। जबकि रामपुर सपा के मुस्लिम चेहरा का गढ़ रहा है और आजमगढ़ से पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव संसद रहे है।

बता दें कि बीजेपी से भोजपुरी फिल्म अभिनेता दिनेश लाल यादव " निरहुआ " ने जून 2022 में हुए उप-चुनाव में जीत दर्ज की थी। उन्हें 3,12,768 वोट मिले थे। जबकि सपा उम्मीदवार व अखिलेश यादव के चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव को 3,04,089 वोट मिले। धर्मेंद्र यादव 8,679 वोटों के अंतर से आजमगढ़ सीट पर हार का सामना करना पड़ा, जहां से पहले सपा प्रमुख संसद थे।

यही हाल सपा का आज़म खां के गढ़ में हुआ। यहां भाजपा के घनश्याम सिंह लोधी ने सपा के उम्मीदवार और आज़म खां के क़रीबी कहे जाने वाले आसिम रज़ा को क़रीब 40 हजार से अधिक वोटों से हरा दिया।

मुस्लिम छात्र हम्माद शेख़ कहते हैं कि अखिलेश यादव से नाराज़गी की एक वजह आज़म खां, नाहिद हसन और इरफान सोलंकी के मुद्दों पर उनकी चुप्पी है। शेख़ आगे कहते हैं कि सपा प्रमुख की तरफ से इन मुस्लिम नेताओं जिसमें पार्टी के संस्थापक सदस्य आज़म खां भी शामिल हैं, के लिए कोई विरोध नहीं हुआ। जबकि पुष्पेंद्र यादव, जिसके ऊपर 38 मुकदमे हैं, उस पर जब मामला आया तो अखिलेश स्वयं वहां पहुंच गए। अखिलेश यादव और मुस्लिम समाज के रिश्तों पर बात करते हुए शेख़ कहते हैं कि लेकिन मुसलमानों के घर गिरे, तो उस पर भी अखिलेश यादव ख़ामोश रहे।

ऐसा भी कहा जा रहा है कि कांग्रेस के मुस्लिम मुद्दों पर मुखर होने से मुस्लिम समाज का एक बार फिर कांग्रेस की तरफ झुकाव बढ़ सकता है। क्योंकि कांग्रेस लगातार बीजेपी और आरएसएस की सांप्रदायिकता को चुनौती दे रही है। जिससे मुस्लिम समाज अगर 2024 लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के पाले में जाता है तो सपा के अस्तित्व को ख़तरा हो सकता है।

हालांकि कहा यह भी जा रहा है कि अखिलेश यादव का “बजरंग दल” पर प्रतिबंध के समर्थन में दिया गया बयान विपक्षी एकता को 80 सीटों वाले उत्तर प्रदेश में मजबूत करेगा। जिसके लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लगातार प्रयास कर रहे है। हाल में ही इस सिलसिले में नीतीश लखनऊ में अखिलेश यादव से मिले थे। क्योंकि यहां कांग्रेस कमज़ोर स्थिति में है इसलिए यहां अगर कोई गठबंधन होता है तो उसकी कमान सपा के हाथ में रह सकती है।

राजनीति के जानकर मानते है कि संभव है कि अगर कोई विपक्षी गठबंधन नहीं हुआ तो लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोटों में बिखराव होगा और जिसका फ़ायदा बीजेपी को होगा। वरिष्ठ पत्रकार डॉ उत्कर्ष सिन्हा कहते हैं कि इस चीज़ की संभावना बहुत अधिक है कि 2024 में बीजेपी के विरुद्ध सारा विपक्ष एक हो जायेगा। अखिलेश का “बजरंग दल” पर प्रतिबंध इसी का एक संकेत हो सकता है। डॉ उत्कर्ष सिन्हा मानते है कि विपक्ष लगभग एकजुट हो चुका है लेकिन स्थानीय राजनीति के चलते अभी कोई घोषणा नहीं हुई है।

उधर कांग्रेस और सपा दोनों गठबंधन की बात से इंकार कर रहे हैं। कांग्रेस अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष शाहनवाज़ आलम कहते हैं कि बाबरी मस्जिद विध्वंस में बजरंग दल की अहम भूमिका रही है। लेकिन सपा संस्थापक मुलायम सिंह के कार्यकाल में बजरंग दल के नेताओं जैसे विनय कटियार के विरुद्ध मुक़दमे कमज़ोर पड़े थे। आलम कहते हैं फिर भी अखिलेश यादव का बयान स्वागतयोग्य है। उन्होंने कहा कांग्रेस अभी तक अकेले चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है।

वहीं सपा के प्रवक्ता आई पी सिंह और अखिलेश यादव सरकार में मंत्री रहे डॉ अभिषेक मिश्र का कहना है की उनकी पार्टी समाज को बांटने वाले हर संगठन का विरोध उनकी पार्टी की नीति का हिस्सा है। डॉ अभिषेक मिश्र के अनुसार सपा का अभी किसी पार्टी के साथ हाथ मिलाने का कोई इरादा नहीं है। आई पी सिंह ने कहा कि बजरंग दल का समर्थक बताएं कि 03 दिसंबर 2018 को इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की बुलंदशहर में कथित तौर पर हत्या किसने थी?

उलेखनीय है कि जब से कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में “बजरंग दल” पर प्रतिबंध की बात कही है तब से प्रधानमंत्री मोदी समेत बीजेपी के सभी नेता “बजरंगबली” को राजनीति के केंद्र में लाने का प्रयास कर रहे हैं। क्योंकि कर्नाटक में सत्तारुढ़ बीजेपी सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रही है और हिंदू बनाम मुस्लिम होने से उसको राजनीतिक लाभ मिलने की संभावना है। 

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