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सियासत: अकाली-भाजपा गठबंधन में आड़े आया यूसीसी!

"यह कतई नहीं कहा जा सकता कि शिरोमणि अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी में समझौता नहीं होगा। लेकिन इसके यथाशीघ्र होने की संभावनाएं कम हैं।"
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स्वर्ण मंदिर में भाजपा नेता। फोटो साभार: दैनिक भास्कर

शिरोमणि अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी के बीच गठजोड़ की अटकलें कई दिनों से लगातार जारी थीं। दोनों पार्टियों के आला नेता इसे जमकर हवा दे रहे थे। मीडिया को बहुत भरोसे के साथ 'ब्रीफ' किया जा रहा था कि अकाली-भाजपा गठबंधन की घोषणा किसी भी वक्त संभव है। कई पहलुओं पर सहमति बन गई है। लेकिन वीरवार (गुरुवार, 6 जुलाई) की शाम फौरी तौर पर इन अटकलों पर विराम लग गया। दोनों पार्टियों की ओर से संकेत गए कि गठबंधन इतनी जल्दी संभव नहीं है।

राज्य के नामवर पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक डॉ. हरजिंदर सिंह लाल की इस बाबत सटीक टिप्पणी है कि, "यह कतई नहीं कहा जा सकता कि शिरोमणि अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी में समझौता नहीं होगा। लेकिन इसके यथाशीघ्र होने की संभावनाएं कम हैं। गठजोड़ होने में वक्त लगेगा। शिअद की ओर से सुखबीर बादल को अंतिम निर्णय लेना है तो भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा अकाली-भाजपा गठबंधन को सिरे चढ़ाने में अहम भूमिका अदा करेंगे।

18 जुलाई को अकाली रहनुमा सुखबीर सिंह बादल अपने दल की पहली कतार के नेताओं के साथ दिल्ली में होंगे और कयास लगाए जा रहे हैं कि वहां उनकी मुलाकात अमित शाह और जेपी नड्डा से होगी। उसके बाद गठबंधन की विधिवत घोषणा हो सकती है।

वीरवार को पंजाब भाजपा के नवनियुक्त प्रधान सुनील कुमार जाखड़ अमृतसर में थे। वहां उनसे अकालियों के साथ भाजपा के गठबंधन की बाबत पूछा गया तो वह यह कहकर खामोश हो गए कि वह एक किस्म की धार्मिक यात्रा पर आए हैं और राजनीति पर कोई बात नहीं करेंगे। इस सब पर बाद में बोलेंगे। अलबत्ता उनके साथ अमृतसर यात्रा में साए की तरह साथ रहे गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री और पंजाब प्रभारी विजय रुपाणी ने कथित तौर पर एक फोन कॉल सुनी और मीडिया के आगे कह दिया कि अकाली दल से अभी गठबंधन सिरे चढ़ने की संभावना नहीं है और हम अपने बूते 13 सीटों पर लोकसभा चुनाव लड़ेंगे। ठीक यही बयान मनजिंदर सिंह सिरसा ने दिया। उन्होंने भी बोलने से पहले कथित तौर पर एक फोन कॉल सुनी थी। अमृतसर के एक नामी पत्रकार वहां मौजूद थे। उनका पुरजोर कहना है कि रुपाणी और सिरसा ने जो फोन कॉल सुनीं; वे चंडीगढ़ से थीं-जहां शिरोमणि अकाली दल की कोर कमेटी की अहम बैठक चल रही थी। कोई वहां से उन्हें 'ब्रीफ' कर रहा था कि शिअद समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को लेकर पसोपेश में है।

दिग्गज अकाली नेताओं का कहना है कि अगर लोकसभा चुनाव के दौरान गठबंधन के खाते से 6 सीटें भाजपा को देनी पड़ीं तो विधानसभा चुनाव में वह 40 से 50 सीटें मांगेगी। इससे शिरोमणि अकाली दल को तगड़ा नुकसान होगा। उसकी फजीहत होगी। कहा जा रहा है कि मीटिंग की अंदरूनी खबर मिलते ही विजय रुपाणी ने आनन-फानन में अपने तईं पंजाब की तमाम लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का बयान दे दिया। इसकी खबर सुखबीर सिंह बादल को लगी तो उन्होंने भी कह दिया कि अभी भाजपा से समझौता नहीं होगा और हाथी ही उनका साथी रहेगा यानी बसपा से गठबंधन कायम रहेगा।

इसमें कोई शक नहीं कि समान नागरिक संहिता गठबंधन के आड़े आ रही है। शिरोमणि अकाली दल इसके कुछ पहलुओं पर समझौता नहीं कर सकता। मसला सिख मैरिज एक्ट और एसजीपीसी की कुछ शक्तियों में कटौती का भी है। शिरोमणि अकाली दल (एसजीपीसी) का कमजोर होना शिरोमणि अकाली दल का आर्थिक संसाधनों के लिहाज से कमजोर होना है।

विजय रुपाणी और अन्य भाजपा नेताओं को शायद यह खबर नहीं थी कि 'बीच का रास्ता' निकालने के लिए शिरोमणि अकाली दल ने समान नागरिक संहिता के मामले पर चार सदस्यीय एक विशेष समिति का गठन किया हैै। पूर्व सांसद प्रोफेसर प्रेमसिंह चंदूमाजरा, महेशइंदर सिंह ग्रेवाल, पूर्व मंत्री सिकंदर सिंह मलूका और पूर्व मंत्री तथा दल के मुख्य प्रवक्ता डॉ. दलजीत सिंह चीमा समिति के सदस्य बनाए गए हैं।

प्रोफेसर प्रेमसिंह चंदूमाजरा ने इस पत्रकार से कहा,"समिति बुद्धिजीवियों व कानून के जानकारोंं से गहन विचार विमर्श के बाद अपनी रिपोर्ट 13 जुलाई तक दे देगी।"

एक वरिष्ठ अन्य वरिष्ठ अकाली नेता ने कहा कि कुछ दिग्गज नेताओं का मानना है कि यूसीसी का मामला अल्पसंख्यकों की अस्मिता से जुड़ा हुआ है। इसमें बहुत कुछ विवादास्पद है। समान नागरिक संहिता में अपेक्षित बदलाव के बगैर भाजपा से गठबंधन करना नुकसानदेह भी साबित हो सकता है। पंजाब का व्यापक किसान आंदोलन जब दिल्ली बॉर्डर पर जम गया और चौतरफा उसका फैलाव होने लगा--शिरोमणि अकाली दल को तब खामियाजे की बाबत होश आया और उसने भाजपाा से गठबंधन तोड़ लिया। हरसिमरत कौर बादल केंद्रीय मंत्रिमंडल सेेेे बाहर हो गईं। 2022 केे विधानसभा चुनाव में शिरोमणि अकाली दल को इसीलिए इतनी बड़ी शिकस्त मिली कि प्रकाश सिंह बादल, सुखबीर सिंह बादल को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा। तबके सबक यकीनन अकाली दल भूला नहीं है। सूबे कि सियासत में फिलहाल वह हाशिए पर हैै। भारतीय जनता पार्टी फिर भी उसे अतिरिक्त तरजीह देती है। प्रकाश सिंह बादल का देहांत हुआ तो श्रद्धांजलि देने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विशेष रुप से दिल्ली से आए। बेशक आने-जाने में करोड़ों रुपए का खर्चा हुआ और वह महज दस मिनट प्रकाश सिंह बादल की अरथी के पास रुके। बादल की अंतिम रस्मों में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, भाजपा के राष्ट्रीय प्रधान जेपी नड्डा और भाजपा शासित प्रदेशों के कई मुख्यमंत्री तथा मंत्री बादल गांव गए।

बादल के देहांत के कुछ ही दिनों के बाद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने चंडीगढ़ में कहा कि अकाली-भजपा गठबंधन हो सकता है। भाजपाइयों की जबरदस्त सहानुभूति ने अकालियों का दिल जीत लिया था। बताते हैं कि प्रकाश सिंह बादल के भोग के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुखबीर सिंह बादल और हरसिमरत कौर बादल से फोनवार्ता की थी। इस सबसे जाहिर होता था कि भाजपा एकबारगी फिर शिरोमणि अकाली दल से राजनीतिक तौर पर हाथ मिलाना चाहती है। सुखबीर सिंह बादल ने भी बयान दिया था कि वह तीन कृषि कानूनों को लेकर केंद्र से खफा थे, इसलिए अलहदा हुए। अब वह अध्याय बंद है। तब छोटे बादल के कथन का मतलब साफ था कि अब शिरोमणि अकाली दल को भाजपा के साथ गठबंधन करने में कोई अड़चन या संकोच नहीं है। बल्कि अलहदगी ने विधानसभा चुनाव और लोकसभा उपचुनाव (संगरूर व जालंधर) में दोनों पार्टियों को नुकसान ही दिया। गठजोड़ के तहत मिलकर लड़ते तो समीकरण कुछ और होने थे। समान नागरिक संहिता पर कोई नया फैसला केंद्र की ओर से आ जाता है तो हवा का रुख एकदम, एक झटके में बदल जाएगा-तय मानिए!

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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