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पोम्पेओ की फ़ारस की खाड़ी में आग भड़काने की धमकी

ट्रंप के प्लान बी की रणनीति के तहत अमेरिका के भीतर 3 नवंबर को होने वाले चुनावों के कुछ हफ़्तों पहले वह ईरान के साथ सैन्य टकराव को भड़का सकता है।
पोम्पेओ की फ़ारस की खाड़ी में आग भड़काने की धमकी

यूएस नेवी की फिफ्थ फ्लीट ने 18 सितंबर को घोषणा की कि यूएसएस निमित्ज में शामिल एक कैरियर स्ट्राइक ग्रुप की मिसाइलें जिसमें गाइडेड-मिसाइल क्रूजर यूएसएस प्रिंसटन और यूएसएस फिलीपीन सी और गाइडेड-मिसाइल विध्वंसक यूएसएस स्टेरेट मिसाइल शामिल हैं वे सब स्ट्रेट ऑफ होर्मुज (जोकि फारस और ओमान की खाड़ी के बीच मौजूद है) से गुजरी हैं। करीब दस महीनों के अंतराल के बाद किसी अमेरिकी विमान वाहक को फारस की खाड़ी में तैनात किया गया है।

यह खबर उन अटकलों को हवा देने का काम करेगी जो ईरान को शामिल कर सैन्य टकराव बढ़ाने की कहानी को आगे बढ़ाएगी। 16 सितंबर को वॉशिंगटन स्थित थिंक टैंक क्विंसी इंस्टीट्यूट फॉर रिस्पॉन्सिबल स्टेटक्राफ्ट के प्रमुख और ईरान पर जाने-माने विशेषज्ञ, ट्रिता पारसी ने एक लेख में लिखा है कि "ईरान के साथ अमरीका की पहला सीधा टकराव" जल्द ही हो सकता है यानि सोमवार (21 सितंबर) को।”

पारसी के अनुमान के अनुसार, यदि नवंबर में अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का अभियान मार खाने लगता है, तो वे कुछ हताश किस्म नौटंकी का सहारा ले सकते हैं जो उन्हें समाचार चक्र में बढ़ावा देगा और भोली अमेरिकी जनता के बीच अंधराष्ट्रवाद को बढ़ावा मिलेगा और वह आसानी से अपने कमांडर-इन-चीफ के पीछे खड़ी हो जाएगी, इसलिए ट्रम्प की योजना बी होगी कि वह अमेरिका में 3 नवंबर को होने वाले चुनाव से कुछ ही हफ्तों पहले ईरान और यूएस के बीच सैनिक टकराव भड़काने का काम कर सकता है।

पारसी को लगता है कि इस योजना बी के पीछे यूएस गृह सचिव माइक पोम्पिओ का दिमाग हैं और ऐसा लगता है कि वह ईरान को सेना बल का इस्तेमाल करने के किसी भी तरह से उसे उकसाएगा, जो अमेरिकी सेना को "प्रतिशोधी" हमलों को अंजाम देने का कारण बनेगा। पारसी को यहाँ के क्षेत्रीय विशेषज्ञ होने बड़ी प्रतिष्ठा हासिल है और उनकी भविष्यवाणी की अनदेखी नहीं की जा सकती है। ईरान के पानी में कैरियर स्ट्राइक ग्रुप की तैनाती ने पारसी की भविष्यवाणी को विश्वसनीयता प्रदान की है।

दरअसल, ईरान के खिलाफ "स्नैपबैक" प्रतिबंधों पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का समर्थन हासिल करने में नाकामयाब होने बाद, पोम्पिओ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के आदेश के बिना ही इस तरह के "संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंध" को लागू करने की धमकी दे रहा है। यह एक विचित्र स्थिति है। लेकिन पोम्पेओ संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंधों की सूची से बाहर के प्रतिबंधों को लागू करने के बारे में अडिग है, वह भी "20 सितंबर की मध्यरात्रि जीएमटी समय से।"

प्रस्तावित "स्नैपबैक" प्रतिबंधों के "लागू" होने से अमेरिकी युद्धपोतों को अंतर्राष्ट्रीय समुन्द्र में ईरानी मालवाहक जहाजों साथ-साथ उन गैर-ईरानी जहाजों जिन पर ईरानी सामान ले जाने का संदेह होगा पर हमला करने और माल जब्त करने का हक़ होगा। पोम्पेओ का कहना है कि ये उपाय न केवल कानून सम्मत हैं बल्कि जरूरी भी हैं और इसलिए अमेरिका संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (जो निश्चित रूप से एक सफ़ेद झूठ है) के आदेश का पालन कर रहा होगा।

जो भी इरादा नज़र आ रहा है वह ईरान की नौसेना की नाकाबंदी का इशारा है। यह ज़ाहिर है कि ईरान को उकसा कर तनाव बढ़ाने की अमेरिका की बेताब कोशिश है।

इसलिए इस निष्कर्ष को पहले ही निकाला जा सकता है कि इज़राइल किसी भी तरह के अमेरिकी-ईरानी सैन्य संघर्ष में बड़े उल्लास के साथ कूद जाएगा। चूंकि अब यूएई, बहरीन और ओमान के साथ इजरायल के रिश्ते सामान्य हैं इसलिए इज़राइल को ईरानी तट से दिखने वाले तीन महत्वपूर्ण चरणों तक पहुंच मिलती है जहां से इसके जेट आराम से मार कर सकते हैं।

वास्तव में, इस सूरत-ए-हाल में संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन और ओमान के साथ इजरायल के "शांति समझौते" पूरी तरह से अशुभ संकेत है। ये तो इजरायल का लंबे समय का सपना रहा है कि वह अमेरिका को ईरान पर सैन्य हमला करने के लिए मजबूर करे। और इजरायल के उस सपने को साकार करने के लिए यह जरूरी होगा कि ट्रम्प राष्ट्रपति बने रहे और पोम्पेओ जोकि पूर्व सीआईए निदेशक है, वह एक प्रभावशाली नीति निर्धारक। 

अब तक, ट्रम्प और इज़राइली पीएम बेंजामिन नेतन्याहू दोनों एक ही तरह के नाव में हैं क्योंकि दोनों ही अपदस्थ और बदनाम राजनेता आगामी चुनाव में अंधराष्ट्रवाद को बढ़ावा देकर उससे लाभ अर्जित करने की कोशिश करेंगे। ट्रम्प एक ऐसे चुनावी संघर्ष का सामना कर रहे हैं, जो करीबी टक्कर की लड़ाई है।

और नेतन्याहू भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे हैं; इसके अलावा इज़राइली जनता, उनकी कोविड-19 महामारी के कुप्रबंधन की व्यापक रूप से निंदा कर रही है, जो उन्हें इस्तीफा देने या उन्हे चुनाव में हराने का अहद उठा रही है। (इजरायल ने पिछले सप्ताह ही दूसरी बार राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की क्योंकि वहाँ महामारी नियंत्रण से बाहर हो गई है।)

इसकी संभावना अधिक है कि यदि अमेरिकी नौसेना ईरानी जहाजों पर रोक लगाने की कोशिश करती है, तो तेहरान को किसी न किसी रूप में जवाबी कार्रवाई करने पर मजबूर किया जाएगा या होना पड़ेगा। यह किस रूप में होगा यह तो समय ही बताएगा। इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्प्स (IRGC) के शक्तिशाली प्रमुख जनरल होसैन सलामी ने सीधे ट्रम्प को चेतावनी दी है।

जाहिर है, ट्रम्प को पता होगा कि यह एक जोखिम भरा रास्ता है। यदि ईरान ने अमेरिकी सेनाओं पर हमले से गंभीर हताहतों की संख्या बढ़ा दी तो पूरी योजना औंधे मुह गिर सकती है। ईरान की मिसाइल क्षमता बहुत अधिक है। लेकिन प्लान बी पोम्पेओ की सबसे बड़ी सोची-समझी योजना है जो एक सेवानिवृत्त अमेरिकी मरीन अधिकारी है।

पोम्पेओ की नज़र 2024 के राष्ट्रपति चुनाव पर है और वह केवल यहूदी लॉबी को लुभाने की कोशिश में है। पोम्पेओ और नेतन्याहू के बीच कोई खास बातचीत संभव नहीं है। इस सबके ऊपर, ईरान के साथ युद्ध पोम्पेओ को ईसाई निर्वाचन मतदाता का समर्थन हासिल होगा। इस प्रकार, प्लान बी जमीन को लागू किया जा सकता है, वह भी उच्च जोखिम के साथ- अर्थात, जब तक कि ट्रम्प आखिरी मिनट में खुद इस बारे में निर्णय नहीं लेते हैं।  

ऐतिहासिक रूप से, यह वियतनाम युद्ध में 1964 की घटी टोंकिन की खाड़ी की कुख्यात घटना के अनुरूप है, जो एक नकली घटना थी जिसके माध्यम से अमेरिका भारत-चीन में पहले जमीनी लड़ाकू इकाइयों का इस्तेमाल कर तैयार करता और फिर वियतनाम पर बड़े पैमाने पर बमबारी अभियान शुरू कर देता था।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

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