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रोहिंग्या विरासत का संरक्षण: भाषा को आगे बढ़ाने का संघर्ष!

1980 के दशक तक रोहिंग्या भाषा मुख्य रूप से मौखिक थी। बोले जाने वाली भाषा और इसके शब्दों ने इसके समृद्ध साहित्यिक इतिहास को आगे बढ़ाने का काम किया।

1980 के दशक तक रोहिंग्या भाषा मुख्य रूप से मौखिक थी। बोले जाने वाली भाषा और इसके शब्दों ने इसके समृद्ध साहित्यिक इतिहास को आगे बढ़ाने का काम किया। मोहम्मद हनीफ ने 1980 में, रोहिंग्या हनफ़ी भाषा प्रणाली के रूप में विख्यात, स्क्रिप्ट पेश की। जल्द ही यह भाषा को संरक्षित करने और बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में लोकप्रिय हो गई। उत्पीड़न से भागकर आए और अब गरीबी का जीवन जी रहे, अधिकांश विस्थापित रोहिंग्या शरणार्थी पढ़े-लिखे नहीं हैं। मौलवी इस्माइल एक ऐसे शरणार्थी है जो निर्वासन में रह रही युवा पीढ़ी को रोहिंग्या भाषा प्रदान करने के लिए सभी बाधाओं से लड़ रहे हैं। इस्माइल, भारत की राजधानी, नई दिल्ली से सटे फरीदाबाद के एक शरणार्थी कैंप में बच्चों को पढ़ाते हैं।

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