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कॉरपोरेट घरानों की पेटेंट व्यवस्था से आवश्यक दवाओं का संरक्षण ज़रूरी!

साल 2005 में ट्रिप्स समझौते के तहत जीवन रक्षक दवाओं के क्षेत्र में विकासशील देशों को पेटेंट व्यवस्था से छूट मिली जिसके बाद से ही कॉरपोरेट घराने इस छूट को ख़त्म करने की पैरवी कर रहे हैं।
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फ़ोटो साभार : Getty Images

विश्व व्यापार संगठन (WTO) व्यापार और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर सालाना वर्कशॉप आयोजित करता है। इस साल WTO, 6 से 10 नवंबर, 2023 तक जिनेवा में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (WIPO) के सहयोग से 17 वीं 'विश्व व्यापार और सार्वजनिक स्वास्थ्य' वर्कशॉप का आयोजन करेगा। वर्कशॉप में केवल सदस्य देशों के वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों को भाग लेने की अनुमति होगी, जो नीति-निर्धारण या निर्णय लेने वाले पदों पर हैं।

वर्कशॉप का एजेंडा क्या है?

WTO मुख्यालय द्वारा प्रसारित वर्कशॉप-कार्यक्रम से यह देखा जा सकता है कि वर्कशॉप में "स्वास्थ्य प्रौद्योगिकियों में इनोवेशन के अर्थशास्त्र" (फार्मास्युटिकल उत्पादों सहित) और "स्वास्थ्य प्रौद्योगिकियों में इनोवेशन के निर्धारक के रूप में बौद्धिक संपदा संरक्षण प्रणाली" पर विचार-विमर्श किया जाएगा। दूसरे शब्दों में, वर्कशॉप नई दवाओं के विकास समेत स्वास्थ्य प्रौद्योगिकियों में इनोवेशन को प्रोत्साहित करने के लिए एक प्रभावी बौद्धिक संपदा संरक्षण प्रणाली स्थापित करने के मुद्दे को संबोधित करेगी।

दवाओं का निर्माण करने वाली बहुराष्ट्रीय फार्मास्युटिकल कंपनियां व अन्य हेल्थकेयर उपकरणों का निर्माण/विपणन करने वाले कॉरपोरेट घराने, अपनी सरकारों के माध्यम से WTO के साथ लगातार पैरवी कर रहे हैं-ताकि विकासशील देशों को पेटेंट व्यवस्था से जो भी छूट मिली है, उसे पलट दिया जाए। इससे इन कॉरपोरेट घरानों को आवश्यक दवाओं और चिकित्सा उपकरण पर एकाधिकार नियंत्रण प्राप्त हो सकेगा। और उनके एकाधिकार मूल्य निर्धारण के माध्यम से वे अत्यधिक मुनाफा कमा सकेंगे। सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता अब आशंका व्यक्त कर रहे हैं कि यह कॉरपोरेट एजेंडा WTO का एजेंडा बनता जा रहा है।

सख्त पेटेंट व्यवस्था से विकासशील देशों को दी गई छूट को ख़त्म करने के लिए तेज़ हो रही कॉरपोरेट लॉबिंग

कॉरपोरेट अभियान ने अब तक मुख्य रूप से दो क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया है:

1) एक, ट्रिप्स समझौते में विकासशील देशों को कॉरपोरेट जगत के पेटेंट व्यवस्था से छूट की पेशकश की गई है, खासकर जीवन रक्षक आवश्यक दवाओं से जुड़े मामले में।

2) महामारी के दौरान विकासशील देशों को टीकों और अन्य कोविड-19 संबंधित स्वास्थ्य उत्पादों पर कॉरपोरेट्स को पेटेंट संरक्षण तक से आंशिक छूट दी गई।

बड़ी फार्मा कंपनियां 'सभी के लिए स्वास्थ्य सेवा' के लक्ष्य को पूरा करने के लिए विकासशील देशों को दी गई इन छूटों का लगातार विरोध कर रही हैं। आइए दोनों को विस्तार से समझाते हैं :

WTO के तहत ट्रिप्स पेटेंट संरक्षण व्यवस्था: दुनिया भर में अपने उत्पादों के साथ सीमा पार अंतरराष्ट्रीय व्यापार में लगे पूंजीवादी उद्यम यह तर्क दे रहे थे कि सभी देशों को अपने उत्पादों को पेटेंट सुरक्षा प्रदान करने के लिए WTO के तहत एक बहुपक्षीय पेटेंट संरक्षण व्यवस्था के लिए सहमत होना चाहिए। इससे यह होगा कि कोई अन्य कंपनी उनकी तकनीक चुरा नहीं सकेगी और ऐसी प्रौद्योगिकियों को विकसित करने के लिए पहले स्थान पर पैसा निवेश किए बिना शॉर्टकट में उनका उत्पादन भी दोहरा नहीं सकेगी। उनका तर्क है कि उन्होंने अपने उत्पादों और प्रौद्योगिकियों को विकसित करने के लिए अनुसंधान और विकास में भारी मात्रा में धन का निवेश किया है। इसलिए यह उनकी बौद्धिक संपदा है, जिसका दूसरे लोग शोषण नहीं कर सकते। पूंजीवादी उद्यम सख्त तौर पर WTO के तहत एक अंतरराष्ट्रीय कानूनी व्यवस्था चाहते थे, जिसपर सभी सदस्य देश सहमत हों। इसके तहत वे इन उद्यमों के उत्पादों को पेटेंट संरक्षण प्रदान करेंगे, जब उन्हें इन देशों में निर्यात किया और बेचा जाएगा। इसलिए WTO की दोहा (Doha) मंत्रिस्तरीय बैठक ने 2001 में बौद्धिक संपदा अधिकारों में व्यापार (ट्रिप्स) व्यवस्था को अपनाया था।

प्रथम दृष्टया, यह एक उचित तर्क लग सकता है। लेकिन इस तर्क के नाम पर ये कंपनियां अपने उत्पादों के लिए कानून के तहत पेटेंट संरक्षण प्राप्त कर लेती थीं, ताकि किसी अन्य को उसी उत्पाद के डिज़ाइन और तकनीक का उपयोग करने से रोका जा सके। एक समय, जब उनके पास अपने उत्पादों और प्रौद्योगिकियों पर एकाधिकार नियंत्रण था-चूंकि कोई प्रतिस्पर्धा नहीं थी-तो वे अपने उत्पादों की कीमतों को उत्पादन लागत की तुलना में कई गुना बढ़ा देते थे, और अपने पेटेंट अधिकारों के कारण उपभोक्ताओं को लूटते थे। जीवन-रक्षक आवश्यक दवाओं के मामले में, क्योंकि मरीज़ उनके बिना नहीं रह सकते और जीवित रहने के लिए कोई भी कीमत चुकाने को तैयार होंगे, दवाओं के पेटेंट को नियंत्रित करने वाली बहुराष्ट्रीय फार्मा कंपनियां दवाओं के उत्पादन लागत से कई सौ गुना अधिक कीमत वसूलती थीं। इसलिए जीवन रक्षक दवाओं को ऐसे पेटेंट नियंत्रण शासन से मुक्त करने के लिए उपभोक्ताओं की ओर से शक्तिशाली सामाजिक दबाव था।

2005 में ट्रिप्स पेटेंट संरक्षण व्यवस्था से छूट: भारत, दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील जैसे कई विकासशील देश बहुराष्ट्रीय निगमों से अत्यधिक कीमत पर जीवन रक्षक दवाओं का आयात नहीं कर सकते थे। न ही उनके पास इनके निर्माण के लिए प्रौद्योगिकी विकसित करने की तकनीकी क्षमता थी। वे कम-से-कम जीवन रक्षक दवाओं के क्षेत्र में इन बहुराष्ट्रीय निगमों- जैसे वैश्विक फार्मा कंपनियों और स्टेंट सरीखे चिकित्सा उपकरणों के निर्माताओं की पेटेंट नियंत्रण पावर से मुक्ति चाहते थे, ताकि वे अपने देश में अपनी पब्लिक या प्राइवेट कंपनियों के माध्यम से इनका निर्माण कर सकें। इसलिए, 2005 में, WTO के सदस्य देश ट्रिप्स समझौते में संशोधन करने वाले प्रोटोकॉल पर सहमत हुए। जिससे जीवन रक्षक दवाओं के क्षेत्र में विकासशील देशों को पेटेंट व्यवस्था से छूट मिल सके। इसने 'अनिवार्य लाइसेंसिंग' नामक एक प्रणाली शुरू की। इस प्रणाली के तहत एक विकासशील देश की सरकार इन दवाओं के मूल मालिकों और उत्पादकों के पेटेंट अधिकारों से मुक्ति लेते हुए किसी आवश्यक दवा के निर्माण के लिए एक नए निर्माता को लाइसेंस दे सकती है। 2005 से ही कॉरपोरेट घराने इस छूट को ख़त्म करने या इसे कुछ ही दवाओं तक सीमित करने की पैरवी कर रहे हैं।

कोविड-19 टीकों और दवाओं के लिए ट्रिप्स छूट: इसके अतिरिक्त, कोविड-19 महामारी के दौरान, भारत और दक्षिण अफ्रीका ने WTO के तहत पेटेंट संरक्षण से कोविड-19 टीकों और अन्य स्वास्थ्य उत्पादों को छूट देने का प्रस्ताव रखा, ताकि उनके मुक्त व्यापार में कोई एकाधिकार प्रतिबंध न हो। कई यूरोपीय देशों और अमेरिका ने इसका विरोध किया, लेकिन बाकी दुनिया ने इसका समर्थन किया। आख़िरकार, वैश्विक दबाव में, संयुक्त राज्य- अमेरिका में नए बाइडेन प्रशासन ने भी मान लिया कि वे इस पर सहमत होंगे। लेकिन लंबी बातचीत के बाद कोविड-19 टीकों और अन्य दवाओं और चिकित्सा उपकरणों पर केवल सीमित ट्रिप्स छूट की पेशकश की गई।

12वें WTO मंत्रिस्तरीय सम्मेलन ने 17 जून 2022 को ट्रिप्स समझौते पर एक मंत्रिस्तरीय निर्णय अपनाया। भारत और दक्षिण अफ्रीका ने प्रस्ताव रखा था कि स्वास्थ्य उत्पादों और COVID-19 की रोकथाम, उपचार और नियंत्रण के लिए प्रौद्योगिकियों के लिए ट्रिप्स समझौते के तहत कुछ दायित्वों से छूट मिले। इसके जवाब में लगभग दो साल की लंबी चर्चा चली थी, जिसका अंत आंशिक सफलता में हुआ। अपनाया गया निर्णय केवल ट्रिप्स समझौते के अनुच्छेद 31 (एफ) के तहत दायित्व को माफ करता है। WTO के विकासशील देश सदस्यों को अब किसी भी अनुपात में टीकों का निर्यात करने की अनुमति है, जिसमें सामग्री और प्रक्रियाएं शामिल हैं, जो कि COVID -19 महामारी के लिए आवश्यक हैं, जो अनिवार्य लाइसेंस या सरकारी उपयोग प्राधिकरण के तहत अन्य विकासशील देशों में निर्मित होते हैं।

वैश्विक फार्मा कंपनियां अब यह तर्क दे रही हैं कि चूंकि महामारी ख़त्म हो गई है, इसलिए इस छूट को वापस ले लिया जाना चाहिए।

कॉरपोरेट अब WTO एजेंडे पर छूट को कम करने की मांग कर रहे हैं:

आवश्यक दवाओं और वैक्सीन तथा चिकित्सा उपकरणों पर भी सख्त पेटेंट नियंत्रण व्यवस्था की बहाली की यह मांग अब 'व्यापार और सार्वजनिक स्वास्थ्य' पर WTO वर्कशॉप के एजेंडे में है। ऐसा वे स्वास्थ्य प्रौद्योगिकियों में इनोवेशन को प्रोत्साहित करने के नाम पर कर रहे हैं। वास्तव में, WTO ने स्वयं आधिकारिक तौर पर घोषणा की है कि नवंबर 2023 में वर्कशॉप संयुक्त WHO-WIPO-WTO रिपोर्ट पर आधारित होगी, जिसका शीर्षक 'चिकित्सा प्रौद्योगिकियों और इनोवेशन तक पहुंच को बढ़ावा देना: सार्वजनिक स्वास्थ्य, बौद्धिक संपदा और व्यापार के बीच अंतर्संबंध' है। लेकिन यह रिपोर्ट कॉरपोरेट मांगों पर आधारित थी। आइए इस रिपोर्ट के मुख्य प्रस्तावों को संक्षेप में प्रस्तुत करें ।

संयुक्त WHO-WIPO-WTO रिपोर्ट के मुख्य प्रस्ताव:

WTO ने WIPO और दुर्भाग्य से, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के साथ मिलकर एक गठबंधन बनाया है। जहां WHO को वैश्विक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं को अपने प्राथमिक एजेंडे के रूप में रखना चाहिए था, वहां वह भी इसमें शामिल हो गया। इस प्रकार कॉरपोरेट एजेंडा अब संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों का एजेंडा बन गया है! ट्रिप्स और कोविड-19 छूट के बावजूद वैश्विक बहुराष्ट्रीय फार्मास्युटिकल्स द्वारा अपने औषधीय व्यापार में अत्यधिक मुनाफाखोरी का एकाधिकार दुनिया भर में एक बहुपरिचित समस्या है। लेकिन संयुक्त राष्ट्र एजेंसियां कभी भी इसे अपने एजेंडे में लाने और विकासशील दुनिया की गरीब आबादी के हित में मूल्य नियंत्रण उपायों पर चर्चा करने और उन्हें प्रस्तावित करने की ज़हमत नहीं उठाती हैं। यह इन एजेंसियों के बदलते चरित्र को दर्शाता है, जिन पर कॉरपोरेट-समर्थक हितों ने कब्ज़ा कर लिया है जैसा कि 2020 की उनकी संयुक्त रिपोर्ट के प्रस्तावों से देखा जा सकता है। यह दूसरा संस्करण था, जो पहले संस्करण की तुलना में एक बदला हुआ संस्करण है, और कॉरपोरेट घरानों के पक्ष में और अधिक स्पष्ट रूप से बदल गया है।

WHO-WIPO-WTO संयुक्त रिपोर्ट का मुख्य विषय-वस्तु इस प्रकार है:

रिपोर्ट स्वीकार करती है कि:

1) एड्स पर अंकुश लगाने का वैश्विक संघर्ष प्रभावित हो रहा है क्योंकि कई एंटीरेट्रोवाइरल (एआरवी), जो एड्स रोगियों के लिए मुख्य दवा हैं, अभी भी कई देशों में पेटेंट संरक्षित हैं और उनकी कीमत बहुत अधिक है।

2) भारत में उत्पाद पेटेंटिंग शुरू होने के बाद, कई पेटेंट दवाओं के जेनेरिक संस्करण भी पेटेंट व्यवस्था के तहत आ गए हैं और इसलिए महंगे हो गए हैं।

3) रोगाणुरोधी प्रतिरोध (Antimicrobial Resistance) को प्रभावी ढंग से रोका नहीं जा सका क्योंकि मुख्य एंटीबायोटिक्स अब सस्ती कीमत पर व्यापक रूप से उपलब्ध हैं क्योंकि उनका पेटेंट कराया गया है।

4) दवा-प्रतिरोधी (Drug-Resistant) टीबी के खिलाफ लड़ाई, दवाओं की ऊंची कीमतों और गैर-पेटेंट जेनेरिक संस्करणों की अनुपस्थिति के कारण प्रभावित होती है।

5) जबकि कैंसर जैसी गैर-संचारी (Non-Communicable) बीमारियां वैश्विक स्तर पर अधिकांश मौतों के लिए ज़िम्मेदार हैं, उनसे निपटने के लिए पेटेंट दवाओं की उच्च लागत - उदाहरण के लिए, कैंसर की दवाएं - विश्व स्तर पर एक चुनौती पेश कर रही हैं।

6) हेपेटाइटिस-बी (Hepatitis-B), बाल चिकित्सा फॉर्मूलेशन (Paediatric Formulations), संपूर्ण टीकाकरण के लिए टीके जैसी पेटेंट दवाओं के साथ-साथ चिकित्सा उपकरणों की उच्च लागत विकसित देशों सहित दुनिया भर में इनकी सामर्थ्य और पहुंच के लिए गंभीर चुनौतियां पैदा करती है और उनके मूल्य नियंत्रण की मांग को मजबूत करती है।

ऐसी समस्याओं को स्वीकार करने के बावजूद, रिपोर्ट का तर्क है कि, “बौद्धिक संपदा (आईपी) अधिकार और उनका प्रबंधन, प्रोडक्शन लाइफ सर्कल के विभिन्न चरणों के लिए महत्वपूर्ण हैं। उदाहरण के लिए, अनुसंधान एवं विकास (R&D) और विपणन चरण अक्सर गैर-प्रकटीकरण समझौतों, पेटेंट, डिज़ाइन, ट्रेडमार्क और कॉपीराइट सुरक्षा पर निर्भर करते हैं।

आगे रिपोर्ट दावा करती है कि, "पेटेंट योग्य विषय वस्तु की परिभाषा और पेटेंट योग्यता से बहिष्करण, साथ ही पेटेंट योग्यता मानदंड और व्यवहार में उनके आवेदन, स्वास्थ्य प्रौद्योगिकियों तक पहुंच पर काफी प्रभाव डाल सकते हैं।"

मनुष्यों या जानवरों के उपचार के लिए डायग्नोस्टिक, शल्य चिकित्सीय (Surgical) या चिकित्सीय (therapeutic) तरीकों को अक्सर राष्ट्रीय/क्षेत्रीय पेटेंट कानूनों के तहत पेटेंट योग्यता से बाहर रखा जाता है। यह सदस्यों के लिए ट्रिप्स समझौते के अनुच्छेद 27.3 (ए) में प्रदान किए गए पेटेंट योग्यता से बाहर करने के विकल्प के अनुरूप है। इस संदर्भ में, संयुक्त रिपोर्ट ब्रिटेन के एक फैसले का हवाला देती है- जो इन क्षेत्रों को पेटेंट से बाहर करने की पुष्टि करते हुए कहती है - "इसका इरादा, पेटेंट कानून को केवल डॉक्टर द्वारा वास्तव में मरीज़ पर किए जाने वाले कार्यों में सीधे हस्तक्षेप करने से रोकना था।" लेकिन तुरंत ही रिपोर्ट में यूके की अन्य अदालतों की टिप्पणियों का भी हवाला दिया गया है, जैसे "यदि पेटेंट अधिकार अतिरिक्त शोध प्रोत्साहन की उचित कीमत है, तो निदान और उपचार विधियों के लिए पेटेंट संरक्षण क्यों नहीं होना चाहिए, जो एक नई उपचार विधि में अनुसंधान के लिए प्रोत्साहन की पेशकश कर सकता है?"

रिपोर्ट इस बहाने से उपचार के लिए डायग्नोस्टिक, शल्य चिकित्सीय या चिकित्सीय प्रक्रियाओं के पेटेंट संरक्षण को उचित ठहराती है- कि उच्च तकनीक वाली ‘सटीक दवा’ या ‘व्यक्तिगत दवा’ के लिए ऐसे पेटेंट संरक्षण की आवश्यकता होगी।

इस प्रकार रिपोर्ट स्वास्थ्य उत्पादों की पूरी श्रृंखला के लिए पूर्ण पेटेंट संरक्षण बहाल करने के लिए सूक्ष्म तर्क लेकर आती है, जो भारत समेत कई देशों में वर्तमान में प्रचलित कई अपवादों को वापस लेने के समान होगा। WTO ने घोषणा की है कि यह रिपोर्ट नवंबर 2023 की वर्कशॉप का आधार होगी, जो महज़ अकैडमिक वर्कशॉप नहीं रहेगी बल्कि यह सदस्यों के लिए बाध्यकारी नीतिगत निर्णय लेगी।

भारत ने कई स्थानीय कंपनियों द्वारा जेनेरिक दवाओं के उत्पादन के लिए 'अनिवार्य लाइसेंसिंग' के माध्यम से फार्मा एकाधिकार की पकड़ को तोड़ने में एक बड़ी कामयाबी हासिल की है। वे अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में जेनेरिक दवाओं में बड़ी सफलता दर्ज कर रहे हैं। इनोवेशन को बढ़ावा देने के नाम पर WTO द्वारा बौद्धिक संपदा नियंत्रण के लिए लाए जा रहे नए प्रस्तावों से भारतीय फार्मा क्षेत्र के ऐसे अव्वल प्रदर्शन को धक्का लगना तय है। इसलिए भारत को बहुराष्ट्रीय फार्मा कंपनियों के पेटेंट नियंत्रण से आवश्यक दवाओं, विशेष रूप से जेनेरिक दवाओं को छूट देने के अपने अधिकार की रक्षा हेतु नवंबर 2023 की WTO बैठक में सख्त रुख अपनाना होगा।

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