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भारत के लिए 100 साल तक रशियन गैस का इंतज़ाम

ऐसे समय में जब दुनिया भर के देश एलएनजी शिपमेंट के लिए प्रतिस्पर्धा करते नज़र आ रहे हैं, तब भारत के लिए रूस से गैस पाइपलाइन परियोजना पर काम करने का वक़्त बहुत ही अनुकूल है।
Yamal LNG Project in Siberia

भारत ने ग्लासगो जलवायु शिखर सम्मेलन में कई महत्वाकांक्षी प्रतिबद्धताएं की हैं और उनमें से दो प्रमुख प्रतिज्ञाएं थीं कि भारत की गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता 2030 तक 500 गीगावॉट तक पहुंच जाएगी और देश 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन में परिवर्तित हो जाएगा। संशयवादियों को संदेह है कि क्या ऐसी समय-सीमा यथार्थवादी है।

इस बीच, यूक्रेन युद्ध के चलते जलवायु एजेंडा खुद ही हवा में उड़ गया है, जो ऊर्जा सुरक्षा को इस तरह से हथियार बना रहा है जो अकल्पनीय था। सभी संभावनाओं को देखते हुए, हरित ऊर्जा और शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को पाने के लिए एक विस्तारित समयरेखा की आवश्यकता होगी, क्योंकि प्रमुख औद्योगिक देश आर्थिक मंदी और उच्च मुद्रास्फीति से जूझ रहे हैं। गति खो गई है और ऊर्जा सुरक्षा की भू-राजनीति अनिवार्य रूप किन तरीकों से प्रभावित करेगी, उसे देखा पाना अभी मुश्किल हैं। जब रूस जैसी ऊर्जा महाशक्ति को पश्चिम देश एक बाहरी के रूप में देखते हैं, और चीन ताइवान मुद्दे पर तनाव बढ़ाकर अमेरिका जलवायु वार्ता को टाल देता है, तो यहाँ सभी रास्ते बंद हो जाते हैं।

इस बीच, प्राकृतिक गैस, एक ईंधन के पुल के रूप में काम कर रहा है, जिसके द्वारा ग्लोबल वार्मिंग के युग में कोयले और तेल को पछाड़ने की संभावना है। कोयले की तुलना में गैस अधिक स्वच्छ जलती है और यह वातावरण में उत्सर्जित होने वाली ग्रीनहाउस गैसों की महत्वपूर्ण मात्रा को बचाती है। यूरोप गैस को "हरित ऊर्जा" कहता है! प्राकृतिक गैस वास्तव में कार्बन-मुक्त भविष्य के लिए एक सेतु हो सकती है, बशर्ते विश्वसनीय माप उपकरण स्थापित करके मीथेन रिसाव को नियंत्रण में रखा जाए।

वास्तव में, बीपी (ब्रिटिश पेट्रोलियम) ने प्राकृतिक गैस के मामले में बहुत मजबूत भविष्य की भविष्यवाणी की है, कि 2050 तक यह अपने "रैपिड" भविष्य के परिदृश्य में 22 प्रतिशत  प्राथमिक ऊर्जा प्रदान करेगा, जबकि नवीकरणीय ऊर्जा के मामले में यह 45 प्रतिशत की तुलना में अधिक होगी। इन सबके ऊपर, प्राकृतिक गैस भी इस भू-राजनीतिक स्थिति में जीवित रहने का प्रयास कर रही है, जैसा कि छह महीने लंबे यूक्रेन युद्ध से स्पष्ट है। सीधे शब्दों में कहें तो यह एक सुरक्षित भविष्यवाणी है कि 2020 और 2050 के बीच गैस काफी स्थिर रहेगी, जबकि तेल और कोयले में 2025 या उसके आसपास गिरावट शुरू हो जाएगी।

अब हम कीमतों में बड़ा उछाल देख रहे हैं क्योंकि दुनिया भर के देश एलएनजी शिपमेंट खरीदने में प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। एशिया-प्रशांत क्षेत्र में 2025 तक वैश्विक गैस मांग में  अनुमानित वृद्धि कुल उत्पादन का आधा हिस्सा होने की उम्मीद है। हालांकि, रूस से गैस आयात को चरणबद्ध रूप से समाप्त करने की यूरोपीयन यूनियन की प्रतिबद्धता – जो ऐतिहासिक रूप से, इसका सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है – इसका पूरे विश्व बड़ा भारी असर पड़ रहा है, जैसा कि एलएनजी के लिए यूरोप की बढ़ती मांग शुरू में अन्य क्षेत्रों से डिलीवरी में आकर्षित हो रही है।

दूसरी ओर, अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी द्वारा जुलाई में हाल के एक अनुमान के अनुसार, यूरोपीयन यूनियन का रूसी पाइपलाइन गैस निर्यात 2021 और 2025 के बीच 55 प्रतिशत  से अधिक गिर जाएगा- शायद, एक त्वरित मामले में, 75 प्रतिशत से अधिक भी हो सकता है।

भारत के लिए रूस से गैस पाइपलाइन परियोजना पर काम करने का बहुत बेहतरीन वक़्त है। गौरतलब है कि पिछले मंगलवार को प्रमुख रूसी दैनिक नेजाविसिमाया गजेटा ने रूसी गैस लेविथान गज़प्रोम के सीईओ एलेक्सी मिलर की अश्गाबात की यात्रा और तुर्कमेनिस्तान के राष्ट्रपति सर्दार बर्दीमुहामेदोव के साथ उनकी बैठक पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ रूसी गैस भेजने के लिए एक पाइपलाइन परियोजना को हरी झंडी दिखाई गई थी। मास्को में दक्षिण एशियाई क्षेत्र पर भी विचार किया जाएगा।

वैसे, मार्च में तुर्कमेनिस्तान में नेतृत्व में परिवर्तन के बाद, निर्विवाद लाभ के लिए, मास्को-अश्गाबात रणनीतिक धुरी में एक अभूतपूर्व बदलाव आया है। सोमवार को, मॉस्को में, राष्ट्रपति पुतिन ने एक प्रतीकात्मक इशारे देते हुए बर्दीमुहामेदोव को, रूस के ऑर्डर ऑफ मेरिट ऑफ द फादरलैंड के शीर्ष सम्मान से सम्मानित किया, क्योंकि तुर्कमेनिस्तान ने ब्रसेल्स के उस ऑफर को ठुकरा दिया था जिसमें अज़रबैजान और तुर्की के माध्यम से यूरोपीयन यूनियन को अतिरिक्त गैस आपूर्ति की बात काही गई थी ताकि रूसी गैस से छुटकारा पाया जा सके!

गज़प्रोम के प्रमुख मिलर ने एक साक्षात्कार में तुर्कमेन टेलीविजन को बताया कि रूस "दीर्घकालिक आधार पर तुर्कमेन गैस की बड़े पैमाने पर खरीद जारी रखना चाहता है।" जाहिर है, रूस के खिलाफ यूरोपीयन यूनियन या अन्य तीसरे पक्षों को इसके साथ राजनीति करने से रोकने के लिए मास्को अधिशेष तुर्कमेन गैस (चीन को निर्यात के बाद) को हटा रहा है। वास्तव में, यह मास्को द्वारा एक राजनीतिक इशारा है जो दोनों देशों की सुरक्षा एजेंसियों के बीच मजबूत सहयोग को भी मजबूत करता है, जो आज के कलर क्रांति के युग में दोनों पक्षों के लिए एक महत्वपूर्ण भाईचारा है। (अश्गाबात न केवल एक कैस्पियन राज्य है, बल्कि अफगानिस्तान के साथ 800 किलोमीटर लंबी सीमा भी है (जो ईरान से चलकर उज्बेकिस्तान ताक जाती है)

रूसी दैनिक अखबार ने संकेत दिया है कि अश्गाबात में राष्ट्रपति बर्दीमुहामेदोव के साथ मिलर की वार्ता अतिरिक्त रूसी गैस के मामले में "एशियाई बाजार के उस भूमिगत मार्ग" को छू सकती है, जो पहले यूरोप को गैस उपलब्ध कराती थी में पहुंचाई जाती थी। जैसा कि अखबार कहता है: “और हिंदुस्तान का रास्ता तुर्कमेनिस्तान से होकर गुजरता है। इसके (तुर्कमेनिस्तान) और रूस के बीच एक विकसित गैस परिवहन बुनियादी ढांचा मौजूद है।

दैनिक ने एक विशेषज्ञ राय का हवाला दिया कि चूंकि रूस का घरेलू बाजार पहले से ही ओवरस्टॉक है और यूरोपीय बाजार रूसी गैस को "धीरे-धीरे बंद" का रहा है, और चीन को आपूर्ति वैसे भी तुर्कमेनिस्तान और रूस दोनों द्वारा की जा रही है, इसलिए "गैस आपूर्ति के मामले में समन्वय और संयुक्त गतिविधियां" पाकिस्तान और भारत को आपूर्ति अब कुछ शानदार नहीं लगती हैं। आर्थिक मुद्दों पर रूसी संघ और अफगानिस्तान के अधिकारियों के बीच हालिया संपर्कों को देखते हुए, टीएपीआई (तुर्कमेनिस्तान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान-भारत पाइपलाइन) के लागू करने पर तुर्कमेनिस्तान के साथ गज़प्रोम के संयुक्त कार्य में कहीं अधिक तर्क नज़र आते हैं।

दैनिक अखबार ने यह भी कहा है की तुइस विचार के लिए खुला है कि उसकी धरती का सीतेमाल रूस की गैस पाइपलाइन के निर्माण में किया ताकि रूसी गैस को दक्षिण की तरफ बिक्री की जा सके। यह जताता है कि, न केवल काबुल न केवल इसके लिए तैयार है लेकिन बात-चीत पहले से ही रूस और तालिबन अधिकारियों के बीच उक्त पाइपलाइन के निर्माण को लेकर हो चुकी है – यानि हस्ताक्षर के लिए सौदा तैयार है। 

यह सब लगता उस बैठक से संबंधित लगता है जिसमें कॉमर्स मंत्रालय का एक प्रतिनिधिमण्डल मास्को में सप्ताह तक चर्चा करता रहा जिसमें अफ़गानिस्तान के लिए गेंहू, गैस और तेल की आपूर्ति मुदा था। रीउटर ने अलग से रिपोर्ट किया है कि, अफगानिस्तान के लिए रूस से गैस और बेंज़ीन की आपूर्ति के लिए बातचीत आखरी पड़ाव में है।“ 

बेशक़, टीएपीआई की जगह, रूस की गैस पाइपलाइन की परियोजना एक अलग ही खेल लगता है। गज़्प्रोम को पाइपलाइन बनाने और उन्हे चलाने का बेहतरीन तजुरबा है। इस प्रभाव से यह विचार पुख्ता होता है कि तुर्कमेनिस्तान एक उर्ज़ा हब बनाने जा रहा है जो रूस गैस ग्रिड के जरिए पूरे दक्षिण एशिया बाज़ार को आपूर्ति करेगा। 

गज़्प्रोम के प्रमुख, मिल्लर ने बुधवार को  तास एजेंसी को बताया कि रूस के पास अगले 100 साल के लिए गौ प्रचुर मात्र में उपलब्ध है, और कुछ भंडार सिर्फ 2120 तक ही चालू किए जा सकते हैं। मिल्लर ने बताय कि इस किस्म का विशाल पैमाने का अंदाज़ा केवल रूस के गैस उत्पादन की सुविधा से लगाया जा सकता है जो यमल गैस फील्ड के नाम से दक्षिण-पश्चिम साइबेरिया में मौजूद है और जहां सबसे अधिक गैस का भंडार मौजूद है और अनुमान है कि रूस के पास प्राकृतिक गैस का 550 मिलयन बैरल का घनीभूत भंडार है। 

(मूल लेख को थोड़ा संशोधित किया गया है) 

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिये गए लिंक पर क्लिक करें।

100 Years of Russian Gas For India

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