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ख़बरों के आगे-पीछे: पंजाब में राघव चड्ढा की भूमिका से लेकर सोनिया गांधी की चुनौतियों तक..

हर हफ़्ते की प्रमुख ख़बरों को लेकर एकबार फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन…
Raghav Chadha
आप पार्टी ने राघव चड्ढा को राज्यसभा भेज दिया है

आम आदमी पार्टी ने दिल्ली के अपने विधायक राघव चड्ढा को पंजाब से राज्यसभा भेजने का फैसला किया है। राघव चड्ढा ने राज्यसभा सदस्य चुने जाने के बाद अब दिल्ली विधानसभा से इस्तीफ़ा दे दिया है। सवाल है कि दिल्ली के विधायक को पंजाब से राज्यसभा भेजने का क्या मकसद है? कई तरह की अटकलें और अफवाहें भी सुनने को मिल रही हैं। उनको छोड़ें तब भी यह तय है कि पंजाब में भगवंत मान की सरकार चलाने में चड्ढा की भूमिका बढ़ेगी। वैसे मान के मुख्यमंत्री बनने के साथ ही यह कहा जाने लगा है कि उनकी सरकार दिल्ली से चलेगी। पंजाब में दिल्ली सरकार के मॉडल को लागू करने के जो निर्देश दिल्ली से जाएंगे उस पर अमल का काम राघव चड्ढा संभालेंगे। वे सरकार के साथ-साथ प्रदेश की राजनीति पर भी नजर रखेंगे। ध्यान रहे दिल्ली में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के पास बहुत कम अधिकार हैं, जबकि पंजाब एक पूर्ण राज्य है और मुख्यमंत्री के पास पुलिस से लेकर जमीन तक हर चीज का अधिकार है। इसलिए मान ज्यादा शक्तिशाली हो सकते हैं और पार्टी में राजनीतिक संतुलन बिगड़ सकता है। संतुलन बनाए रखने का काम राघव चड्ढा को करना है। यानी वे सुनिश्चित करेंगे कि मान सरकार चलाएं लेकिन पार्टी और विधायकों पर नियंत्रण दिल्ली का रहे। ध्यान रहे राजनीतिक नियंत्रण के प्रयासों की वजह से ही दिल्ली और पंजाब में कोई बड़ा नेता पार्टी में नहीं रहा। नवजोत सिद्धू को इसी वजह से पार्टी में नहीं लिया गया और सुखपाल खैरा को पार्टी छोड़नी पड़ी। राष्ट्रीय कमेटी के भी सारे नेता पार्टी से निकाल दिए गए।

नाराज नेताओं को कैसे मनाएंगी सोनिया?

कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी पार्टी के नाराज नेताओं को मनाने की कोशिश कर रही हैं। हालांकि कांग्रेस नेताओं पर मान-मनौव्वल का कोई असर नहीं होता है। अगर पार्टी आलाकमान उनको कुछ देने की स्थिति में नहीं है या उनकी बात मानने को राजी नहीं है तो उनके प्रति सद्भाव दिखाने से कुछ नहीं होगा। आखिर ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रति सोनिया, राहुल और प्रियंका ने क्या कम सद्भाव दिखाया था? इसलिए सोनिया गांधी चाहें गुलाम नबी आजाद से मिलें या आनंद शर्मा और मनीष तिवारी से मिलें, इनके ऊपर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। हां, अगर सोनिया इनकी बात मानने को राजी होती हैं और इन्हें तत्काल कुछ पद वगैरह देती हैं तो फिर सब ठीक हो जाएगा। इसीलिए यह अटकल लगाई जा रही है कि वे क्या फॉर्मूला अपना सकती हैं। एक फॉर्मूला तो यह है कि जून-जुलाई तक गुलाम नबी आजाद, कपिल सिब्बल, आनंद शर्मा और मुकुल वासनिक को कहीं न कहीं से राज्यसभा भेजा जाए। राजस्थान, हरियाणा, तमिलनाडु, बिहार और झारखंड से इनके लिए संभावना तलाशी जा सकती हैं। दूसरा फॉर्मूला यह है कि राहुल गांधी के कुछ करीबी नेताओं की बलि चढ़ा कर नाराज नेताओं को संतुष्ट किया जाए। अगर इस फॉर्मूले पर अमल होता है तो सबसे ज्यादा खतरा रणदीप सुरजेवाला और उनकी मीडिया टीम पर होगा। भूपेंदर सिंह हुड्डा से लेकर मनीष तिवारी तक सब उनसे खफा हैं। केसी वेणुगोपाल और अजय माकन भी नाराज नेताओं के निशाने पर हैं। देखना दिलचस्प होगा कि इस खींचतान में संतुलन कैसे बनता है।

गुजरात जैसा प्रयोग केंद्र में भी संभव!

भाजपा के शीर्ष नेता चार राज्यों में सरकार बनाने की प्रक्रिया से फारिग हो चुके हैं। अब इसके बाद क्या होगा, इसे लेकर कई तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं। सबसे ज्यादा अटकल केंद्र में फेरबदल को लेकर है। केंद्र सरकार के कई मंत्री आशंकित है कि कहीं गुजरात जैसा प्रयोग केंद्र में भी दोहराया गया तो क्या होगा! गौरतलब है कि गुजरात में भाजपा ने एक झटके मे पूरी सरकार बदल दी थी। जानकार सूत्रों के मुताबिक केंद्र में बड़ा फ़ेरबदल हो सकता है। हालांकि इसकी टाइमिंग को लेकर अभी कुछ नहीं कहा जा रहा है। लेकिन चार राज्यों में भाजपा की जीत के बाद माना जा रहा है कि केंद्रीय मंत्रिपरिषद से कई मंत्रियों की विदाई हो सकती है। कुछ मंत्रियों को छोड़ कर बाकी सारे मंत्री हटाए जा सकते हैं और उनकी जगह राज्यों से बिल्कुल नए चेहरे लाए जा सकते हैं। हो सकता है कि इसमें कुछ समय लगे लेकिन यह तय बताया जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मौजूदा टीम को लेकर अगले चुनाव में नहीं जाएंगे। ध्यान रहे अगले चुनाव तक केंद्र सरकार के खिलाफ 10 साल की एंटी इन्कम्बैंसी हो जाएगी। कई राज्यों में भी भाजपा की सरकारों का दूसरा कार्यकाल चल रहा होगा। इसलिए लोग उब चुके होंगे और उनमें बदलाव की सोच होगी। यह स्वाभाविक सोच होती है। अगर किसी सरकार के खिलाफ बहुत नाराजगी नहीं भी होती तब भी बदलाव की भावना रहती है, जैसा 2018 के चुनाव में मध्य प्रदेश में देखने को मिला था। इसलिए केंद्र के खिलाफ एंटी इन्कम्बैंसी को कम करने के लिए बड़े बदलाव होंगे। उससे पहले भाजपा संगठन में भी बदलाव हो सकता है। पार्टी के मौजूदा अध्यक्ष जेपी नड्डा का तीन साल का कार्यकाल वैसे तो अगले साल जनवरी मे पूरा होगा, लेकिन इस साल के अंत में उनके गृह राज्य हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। संभावना है कि उनको चुनाव से पहले या बाद में हिमाचल भेजा जा सकता है। 

केंद्रीय मंत्री के हारने पर कोई शर्मिंदा नहीं

उत्तर प्रदेश में भाजपा की जीत के बीच कई बातों की चर्चा दब गई। एक चर्चा यह होनी चाहिए थी कि कथित तौर पर दुनिया के सर्वाधिक लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के एक केंद्रीय मंत्री विधानसभा का चुनाव हार गए। एसपी सिंह बघेल लोकसभा के सदस्य और केंद्र सरकार में मंत्री हैं। वे विधानसभा चुनाव में करहल सीट पर अखिलेश यादव के खिलाफ 60 हजार वोट से हार गए। क्या यह मंत्री महोदय और वे जिस सरकार के मंत्री हैं उसके मुखिया और सत्तारूढ़ पार्टी के लिए शर्मिंदगी की बात नहीं होनी चाहिए? क्या विधानसभा का चुनाव हारा हुआ आदमी केंद्र में मंत्री बना रह सकता है? हालांकि इसमें कानूनी रूप से कुछ भी गलत नहीं है लेकिन राजनीतिक नैतिकता नाम की भी कोई चीज होती है। कायदे से केंद्रीय मंत्री को विधानसभा का चुनाव लड़ने से पहले मंत्री पद और लोकसभा दोनों से इस्तीफा देना चाहिए था। लेकिन एकाध अपवाद को छोड़ दें तो कोई ऐसा नहीं करता है। लेकिन हारने के बाद तो कुछ शर्मिंदगी दिखनी चाहिए थी या नहीं? 

डीजल के दाम बढ़ने से किसका फायदा? 

वैसे तो अब डीजल और पेट्रोल की खुदरा कीमतें भी बढ़ने लगी हैं लेकिन इससे पहले जब थोक कीमत में एक साथ 25 रुपए प्रति लीटर की बढ़ोतरी हुई तो मीडिया में इस तरह की खबर जारी कराई गई और मीडिया ने खुद भी दिखाया कि इसका असर आम आदमी पर नहीं पड़ेगा। लेकिन ऐसा नहीं है। इसका सीधा असर आम आदमी पर पड़ेगा। रेलवे हो या विमानन कंपनियां हों या मॉल्स और फैक्टरियां हों अगर वे ज्यादा कीमत पर तेल खरीदेंगी तो उनके उत्पादों या सेवाओं की कीमत बढ़ेगी, जिसे अंततः आम आदमी को ही चुकाना होगा। लेकिन इसके साथ ही एक और पहलू है। भारत में डीजल का सबसे बड़ा खरीदार भारतीय रेलवे है। हर साल उसे 2.7 अरब लीटर डीजल की जरूरत होती है, जिसकी कीमत मोटे तौर पर 25 हजार करोड़ रुपए है। सोचें, एक लीटर पर 25 रुपए कीमत बढ़ने के बाद रेलवे का बिल कितना बढ़ेगा? 2.7 अरब में 25 रुपए गुणा करना होगा। इसका मतलब है कि करीब साढ़े सात हजार करोड़ रुपए का बिल बढ़ेगा। इसका एक बड़ा हिस्सा निजी पेट्रोलियम कंपनी रिलायंस के पास भी जाएगा। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने 2015 में सरकारी पेट्रोलियम कंपनियों के साथ साथ निजी कंपनियों रिलायंस और एस्सार को भी रेलवे को डीजल बेचने की मंजूरी दी थी। उस समय थोक में डीजल का भाव 49 रुपए लीटर था, जो अब 122 रुपए लीटर हो गया है।

कांग्रेस के विधायकों पर खतरा

पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस बुरी तरह हारी और पार्टी नेतृत्व पर सवाल खड़े होने शुरू हुए, विपक्ष की दूसरी पार्टियां आक्रामक हुईं तो पार्टी के नेताओं और शुभचिंतकों की ओर से सोशल मीडिया में एक पोस्ट वायरल की गई, जिसमें बताया गया कि कांग्रेस के पास अब भी 753 विधायक हैं। भाजपा के पास 1,443, कांग्रेस के पास 753 और तीसरे नंबर पर ममता बनर्जी की पार्टी है, जिसके पास 236 विधायक हैं। लेकिन चुनाव के बाद से ही कांग्रेस पर विधायकों के टूटने का खतरा मंडरा रहा है। कई राज्यों में कांग्रेस विधायकों के भाजपा के संपर्क में होने की खबर है और मीडिया में ऐसी खबरें चल रही हैं कि कांग्रेस विधायक टूट सकते हैं। कांग्रेस को ज्यादा चिंता इसी बात की है। पार्टी के बड़े नेताओं के अलग होने की भी खबरें हैं, लेकिन उनसे कांग्रेस ज्यादा चिंतित नहीं है क्योंकि उसके ज्यादातर बड़े नेताओं का कोई आधार नहीं है। गुजरात को लेकर तो कांग्रेस नेताओं ने ही आशंका जताई है। राजस्थान के मुख्यमंत्री के सलाहकार और निर्दलीय विधायक संयम लोढ़ा ने कहा है कि गुजरात के 10 या उससे ज्यादा विधायक टूट सकते हैं। गुजरात में भाजपा और आप दोनों सक्रिय हैं। इसी तरह झारखंड को लेकर मीडिया में खबर आ रही है और भाजपा के नेता खुलेआम दावा कर रहे हैं कि कांग्रेस के 12 विधायक टूटेंगे और अलग पार्टी बनाएंगे या भाजपा के साथ जाएंगे। बिहार में कांग्रेस के विधायकों पर भाजपा और जद(यू) दोनों की नजर है। दोनों की तरफ से कांग्रेस के विधायकों पर डोरे डाले जा रहे हैं। कर्नाटक में कमान डीके शिवकुमार के हाथ में है, जो हर तरह से सक्षम नेता हैं लेकिन वहां भी अगले साल होने वाले चुनाव से पहले कांग्रेस के कुछ और नेता पाला बदल सकते हैं।

बिहार में शराबबंदी और रहस्यमय मौतें

बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपनी जिद में जब से शराबबंदी की है तब से सूबे में रहस्यमयी मौतों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। हर त्योहार के मौके पर या ऐसे भी बिहार के अलग-अलग जिलों में लोगों की रहस्यमय बीमारी से मौतें होती हैं। मरने वालों के परिजन कहते हैं कि मौतें शराब पीने से हुई है लेकिन हैरानी की बात है कि मरने वालों का पोस्टमार्टम होने से पहले ही कलेक्टर से लेकर मंत्री और सत्तारूढ़ जनता दल (यू) के प्रवक्ता तक ऐलान कर देते हैं कि रहस्यमय बीमारी से मौत हुई है। अभी होली के मौके पर तीन जिलों- बांका, भागलपुर और मधेपुरा में रहस्यमय बीमारी से करीब 35 लोगों की मौत हुई। मीडिया में खबर आई और परिजनों ने भी कहा कि जहरीली शराब पीने से मौत हुई है लेकिन सरकार ने कहा कि रहस्यमय बीमारी से मौत हुई। मरने वालों में से सिर्फ दो का पोस्टमार्टम हुआ लेकिन उसकी भी रिपोर्ट आने से पहले ही जिला कलेक्टरों ने ऐलान कर दिया कि रहस्यमय बीमारी से मौत हुई है। दिवाली के समय भी ऐसी ही रहस्यमय बीमारी से चार जिलों में करीब 40 लोगों की मौत हुईं थीं। सवाल है कि क्या एक राष्ट्रीय टास्क फोर्स बना कर इसका पता नहीं लगाया जाना चाहिए कि आखिर शराबबंदी के बाद ऐसी कौन सी रहस्यमय बीमारी बिहार में फैल रही है, जिससे इतनी संख्या में लोग मर रहे हैं?

एक एफबीआई महाराष्ट्र में भी

अमेरिका की घरेलू खुफिया एजेंसी का नाम है-एफबीआई। जैसे भारत में सीबीआई है। एफबीआई का मतलब होता है- फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन। लेकिन महाराष्ट्र में एक अलग एफबीआई है, जिसका मतलब होता है- फड़नवीस ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन। यह बात राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता देवेंद्र फड़नवीस ने खुद मानी है। उन्होंने खुद बताया है कि उनके पास एक तंत्र है, जिसके पास सारी सूचनाएं होती हैं और जरूरत पड़ने पर छानबीन करके उसकी मदद से सारी सूचनाएं जुटा ली जाती हैं। महाराष्ट्र की इस एफबीआई से सत्तारूढ़ गठबंधन की तीनों पार्टियां हैरान-परेशान हैं। महाराष्ट्र में पहले यह काम भाजपा नेता किरीट सोमैया किया करते थे। वे अक्सर किसी न किसी विरोधी पार्टी के नेता की फाइल लेकर घूमते थे। लेकिन अब फड़नवीस ने उनको पीछे छोड़ दिया है। फड़नवीस कई बार विधानसभा के अंदर नेताओं, अधिकारियों की कॉल डिटेल रिपोर्ट यानी सीडीआर पेश कर चुके हैं और अनेक लोगों की बातचीत की सैकड़ों घंटों की रिकॉर्डिंग पेन ड्राइव में डाल कर राज्यपाल को सौंप चुके हैं। मुकेश अंबानी के घर के बाहर मिली गाड़ी से जुड़े अधिकारी सचिन वाजे के बारे में भी उन्होंने ही विधानसभा को बताया और गाड़ी मालिक मनसुख हिरन के बारे में भी सबसे पहले सूचना उन्होंने ही दी। विपक्षी पार्टियों का मानना है कि केंद्र सरकार की एजेंसियां महाराष्ट्र में सक्रिय हैं और उनके जरिए सारी सूचनाएं फड़नवीस को मिल रही हैं और इसीलिए वे खुद के एफबीआई होने का दावा कर रहे हैं।

आजम खान के परिवार में म्यूजिकल चेयर का खेल

उत्तर प्रदेश में आजम खान के परिवार का म्यूजिकल चेयर चल रहा है। राज्यसभा से लेकर लोकसभा और विधानसभा तक उनके परिवार के सदस्य चक्कर लगा रहे हैं। आजम खान की पत्नी तंजिम फातिमा को समाजवादी पार्टी ने राज्यसभा में भेजा था और खुद आजम खान विधानसभा के सदस्य थे। 2019 में आजम खान लोकसभा का चुनाव लड़े और जीत गए तो उन्होंने विधानसभा की सीट से इस्तीफा दे दिया। अक्टूबर 2019 में इस सीट से उनकी पत्नी उपचुनाव लड़ीं और जीत गईं तो उन्होंने कार्यकाल पूरा होने के एक साल पहले राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया। उनकी खाली की हुई सीट से भाजपा के अरुण सिंह उच्च सदन में गए। इस बार वे चुनाव नहीं लड़ीं और उसी रामपुर सीट से आजम खान चुनाव लड़े। चुनाव जीतने के बाद उन्होंने लोकसभा सीट से इस्तीफा दे दिया। अब फिर चर्चा है कि उनकी खाली की हुई रामपुर सीट से उनकी पत्नी चुनाव लड़ सकती हैं। यह भी कहा जा रहा है कि जाली जन्म प्रमाणपत्र सहित कई विवादों में फंसे उनके विधायक बेटे अब्दुल्ला आजम को भी टिकट दिया जा सकता है। जो भी हो लेकिन यह म्यूजिकल चेयर जैसा खेल है। पूरा परिवार बारी-बारी से रामपुर लोकसभा व विधानसभा सीट और राज्यसभा सीट का म्यूजिकल चेयर खेल रहा है।

(लेखक अनिल जैन स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं, विचार निजी हैं)

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