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दो टूक: इस 15 अगस्त हम क्या संकल्प लें, यही कि...

सचमुच अगर मोदी को तीसरा कार्यकाल मिल गया तो उस नये भारत को पहचानना भी मुश्किल हो जाएगा। वह निश्चय ही आज़ादी की लड़ाई के सभी महान मूल्यों तथा भारत के  संवैधानिक लोकतन्त्र के अंत की घोषणा होगा।
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प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार: नई दुनिया

देश को इंतज़ार है कि लाल किले से 15 अगस्त के अपने अंतिम सम्बोधन में प्रधानमंत्री क्या कहने जा रहे हैं ! ( हालांकि तीसरे कार्यकाल के सपने देखते वे खुद अभी इसे अंतिम मानने को तैयार नहीं हैं ! )

वैसे अविश्वास प्रस्ताव पर 2 घण्टे से ऊपर के उनके वक्तव्य से इसका संकेत तो मिल ही गया है कि 2024 तक उनके propaganda की दिशा क्या रहने वाली है।

यह साफ हो गया है कि देश के ज्वलंत सवालों पर कहने और दिखाने के लिए कुछ भी ठोस उनके पास नहीं है, सिवाय कोरी लफ्फाजी के। देश के सामने मौजूद भीषण चुनौतियों तथा अपने सवा नौ साल के लंबे कार्यकाल की विराट विफलताओं पर कुछ भी बोलने की बजाय वे आज की समस्याओं के लिए विपक्ष की पिछले 76 साल की पुरानी सरकारों को कोसते रहे तथा 2014 और 19 की तरह एक बार फिर अपने सपनों के तीसरे कार्यकाल में अच्छे दिन का ख्याली पुलाव परोसते रहे।

बिना एक भी सार्थक बात बोले आप घण्टों खोखली लफ्फाजी कैसे कर सकते हैं, लोकसभा में मोदी का 2 घण्टे से ऊपर का भाषण इसका नमूना था, जो इतना उबाऊ था कि स्वयं उनके दल के तमाम सांसदों के ऊँघते, जम्हाई लेते फ़ोटो वायरल हो चुके हैं। 

इसके बावजूद गोदी मीडिया और तमाम सत्ता समर्थक विश्लेषकों ने मोदी और अमित शाह की शान में कसीदे काढ़ने में कुछ भी उठा नहीं रखा है। अमित शाह, किरण रिजिजू  में बेहतरीन सांसद के गुण तलाश लिए गए तो मोदी जी की  'वक्तृता के  चमत्कार ' पर वे लहालोट हैं। देश आज जिन विस्फोटक हालात में घिरा है, उस पर प्रधानमंत्री की गैरजिम्मेदाराना चुप्पी और अनर्गल खोखली लफ्फाजी के लिए उन्हें कटघरे में खड़ा करने की बजाय, इस भाषण के आधार पर चाटुकार विश्लेषकों ने मोदी को भविष्यद्रष्टा और करीब करीब 2024 का विजेता घोषित कर दिया !

कोई यह बताने को तैयार नहीं है कि मणिपुर की जनता की त्रासदी पर उनकी लफ्फाजी से कौन सा मलहम लगा ? आसमान छूती महंगाई और रेकॉर्ड बेकारी से बदहाल देश की जनता को उनकी जुमलेबाजी से बेहतरी का कौन सा आश्वासन मिला ?

अल्पसंख्यकों, हाशिये के तबकों, जनान्दोलनों, नागरिक अधिकारों, असहमत शख्सियतों पर बढ़ते हमलों तथा हमारे लोकतन्त्र, सामाजिक न्याय, राष्ट्रीय एकता के लिए बढ़ते खतरों पर मोदी-शाह की नीम खामोशी, calculated चुप्पी, से फिर इसकी पुष्टि हुई कि यह सब सरकार की सचेत design का हिस्सा है और आने वाले दिनों में यह और बढ़ने वाला है।

गोदी मीडिया के चैनल खुद जो भी  तस्वीर गढ़ रहे हों, जब वे अपने सोशल मीडिया पेज पर  लोगों से पूछ रहे हैं कि किसका भाषण अच्छा लगा तो लोगों की प्रतिक्रियाओं से  उल्टी ही तस्वीर बन रही है।

दरअसल, मोदी के पूरे भाषण में एकजुट होते विपक्ष का फोबिया छाया रहा। उन्होंने अपने भाषण का बड़ा हिस्सा विपक्षी गठबंधन, मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस और उसके केन्द्रक राहुल गांधी पर हमला करने में लगा दिया।

कारण साफ है, हितों के तमाम टकरावों -आपसी रिश्तों के बेहद तल्ख अतीत और प्रधानमंत्री पद के लिए भविष्य में तीखी प्रतिद्वन्द्विता की संभावना के बावजूद जिस तरह विपक्षी दल एकजुट हुए हैं, उसकी लगता है भाजपा और मोदी-शाह को उम्मीद नहीं थी। इस नए डेवलपमेंट से उनके मिशन 2024 को तगड़ा झटका लगा है और पहली बार हर ओर यह धारणा बनने लगी है कि 2024 में मोदी की विदाई होने वाली है। इसे खारिज करने के लिए ही वे बारम्बार अपने तीसरे कार्यकाल की खुद ही घोषणा कर रहे थे। पर वस्तुगत यथार्थ से निकलती सच्चाई की काट किसी आत्मगत सदिच्छा से नहीं होने वाली !

सच्चाई यह है कि मोदी के जुमलों और नारों के अंदर अब कोई novelty और appeal नहीं बची है। अभी मोदी ने ऐतिहासिक भारत छोड़ो आंदोलन के दिन 9 अगस्त को नारा उछाला-भ्रष्टाचार भारत छोड़ो, परिवारवाद भारत छोड़ो, तुष्टिकरण भारत छोड़ो ! नई बोतल में पुरानी शराब जैसे ये घिस चुके नारे अब शायद ही किसी को आकर्षित करें। सर्वोपरि इसलिए कि 9 साल में भाजपा स्वयं उक्त मुद्दों पर अपनी साख और credibility पूरी तरह खो चुकी है। सभी दलों के भ्रष्ट नेताओं को धमकाकर अपने पाले में लाने और सत्ता के शीर्ष पदों पर स्थापित करने वाली भाजपा के बारे में भक्तों को छोड़ अब शायद ही किसी को यह मुगालता हो कि भ्रष्टाचार पर उसकी जीरो टॉलरेंस की नीति है। लोग समझ गए हैं कि उसके नारों का असल मतलब है-भ्रष्टाचारियों, परिवरवादियों, वोटबैंक के ठेकेदारों भाजपा में आओ, सत्ता-सुख पाओ !

एकजुट होते विपक्षी गठबंधन के INDIA नाम ने उनके लिए और बड़ी समस्या खड़ी कर दी है। सारी कवायद के बाद भी वे उसकी कोई काट नहीं कर पा रहे। दरअसल इस नाम से सबसे बड़ा संकट उनके छद्म-राष्ट्रवाद के नैरेटिव के लिए खड़ा हो गया है। इसी की झलक  अविश्वास प्रस्ताव पर हुई बहस के दौरान भी दिखी। जब राहुल गांधी ने मणिपुर के जनसंहार और हिंसा को भारत माता पर प्रहार करार देते हुए भाजपा को देशद्रोही घोषित किया। जाहिर है विपक्ष अगर यह नैरेटिव बनाने में सफल होता है कि 140 करोड़ जनता ही भारत है और उसके दुःख दर्द का समाधान ही सच्चा राष्ट्रवाद और देशभक्ति है, उस कसौटी पर मोदी-भाजपा के छद्म-राष्ट्रवाद का पूरा मुखौटा उतर जाएगा। 

25 साल बाद 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का मोदी जी का नया  जुमला, अंधभक्तों को छोड़कर, महंगाई, बेकारी से तबाह लुटी पिटी आम जनता को शायद ही कोई सांत्वना दे सके। विपक्षी गठबंधन INDIA से भाजपा इसीलिये बेहद परेशान है और उसके निषेध में वह बेहद आपत्तिजनक हदों तक चली जा रही है- ईस्ट इंडिया कम्पनी से लेकर इंडियन मुजाहिदीन तक ! सम्भव है आने वाले दिनों में न्यायालय और चुनाव आयोग के माध्यम से इस नाम को छीनने की कोशिश हो।

प्रलोभन और एजेंसियों के दबाव द्वारा विपक्षी एकता को छिन्न भिन्न करने में मोदी-शाह जोड़ी कोई कसर नहीं छोड़ रही है। महाराष्ट्र में एनसीपी को तोड़ने के बाद बिहार, UP समेत तमाम राज्यों में INDIA गठबंधन के तमाम नेताओं/दलों पर उनकी निगाह लगी हुई है।

दरअसल 2024 में पराजय की वास्तविक संभावना से डरी भाजपा की तैयारी एक साथ अनेक स्तरों पर चल रही है। 

मणिपुर के बाद मेवात को जलाने का शातिर खेल भी साफ है इसी तैयारी का हिस्सा है। किसान आंदोलन, अग्निवीर और महिला पहलवानों के प्रकरण के बाद हरियाणा हाथ से निकलता देख और पड़ोसी राज्य राजस्थान के आसन्न चुनाव में ध्रुवीकरण के लिए वहां खुले आम साम्प्रदायिक हिंसा को प्रोत्साहन तथा अल्पसंख्यकों का दमन जारी है। आने वाले दिनों में देश के कई अन्य इलाकों में इसके विस्तार की आशंका है।

चुनाव आयोग को पूरी तरह अपनी जेबी संस्था बना लेने के लिये अब CEC तथा अन्य चुनाव आयुक्तों का चयन करने वाली कमेटी से सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को बाहर किया जा रहा है। शायद इसलिए कि वे सरकार के मनपसंद नामों पर बिना विवेक के मुहर लगाने को तैयार न होंगे। जाहिर है इससे free and fair मतदान तथा जनता के जनादेश का अनुपालन संदिग्ध हो जाएगा।

दिल्ली सेवा कानून के माध्यम से संघीय ढांचे पर मरणांतक प्रहार करने के बाद औपनिवेशिक युग के कानूनों को खत्म करने के नाम पर सरकार भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) नाम से IPC और CrPC में  खतरनाक बदलाव की तैयारी में है। वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल के अनुसार, " ऐसे कानून वास्तविकता बन जाते हैं तो वे देश का भविष्य खतरे में डाल देंगे। सरकार ऐसे कानूनों के माध्यम से 'तानाशाही लाना' चाहती है! वह ऐसे कानून बनाना चाहती है, जिनके तहत सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों, मजिस्ट्रेट, लोक सेवकों, CAG ( नियंत्रक और महालेखा परीक्षक) और अन्य सरकारी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जा सके। " सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश, अब  राज्य-सभा सांसद रंजन गोगोई के माध्यम से संविधान के मूल ढांचे को चुनौती देकर मोदी सरकार ने भविष्य के लिए अपने इरादों के बारे में कोई शक नहीं छोड़ा है।

सचमुच अगर मोदी को तीसरा कार्यकाल मिल गया तो उस नये भारत को पहचानना भी मुश्किल हो जाएगा। वह निश्चय ही आज़ादी की लड़ाई के सभी महान मूल्यों तथा भारत के  संवैधानिक लोकतन्त्र के अंत की घोषणा होगा। इस महाविपदा को रोकना स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर आज हर देशभक्त का संकल्प बने।

(लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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