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यूपी-बिहार बॉर्डर पर शराब की मांग के बीच बह रही है बदलाव की हवा

बिहार और उत्तर प्रदेश को जोड़ने वाले सीमावर्ती गांवों की हालिया यात्रा पर जो बातें निकल कर सामने आईं वह पेश हैं।
alcohol
प्रतीकात्मक तस्वीर। PTI

बिहार की सीमा से सटे उत्तर प्रदेश के मेहरौना में लोग सावन का पवित्र महीना पारंपरिक सौहार्द के साथ मना रहे हैं। जिधर देखो, भगवा वस्त्र पहने, पैदल चलते या मोटरसाइकिल, जीप और ट्रैक्टर पर सवार कांवडि़ए ही नजर आ रहे हैं। उत्तर प्रदेश के इस इलाके में अधिकतर घरों और दुकानों पर 'जय श्री राम-भगवान राम अमर रहें' के उद्घोष के साथ झंडे फहराए हुए हैं। यहां तक कि ज्यादतर निजी वाहनों पर भी गर्व करने वाले भगवान राम की प्रशंसा के स्टिकर लगे हुए हैं। 

उत्तर प्रदेश के मेहरौना, लार, देवरिया और गोरखपुर से बिहार की ओर जाने वाली सड़कों पर, कई कांवरिया बड़े जोश के साथ जय श्री राम के नारे लगाते हुए नज़र आते हैं। जब भी वे किसी मस्जिद के पास से गुजरते हैं या उसके सामने रुकते हैं तो उनका जोश और बढ़ जाता है।

लेकिन जीवन नई या पुरानी परंपराओं को मनाने से कहीं अधिक है आगे की बात है। यह उन लोगों के बारे में भी हक़ीक़त है जो उन मुद्दों से निपटने के तरीके ढूंढ रहे हैं जो मुद्दे उन्हें, राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय राजनीति को परेशान कर रहे हैं। इस लेखक ने पाया कि उत्तर प्रदेश की सड़कों पर धार्मिक उन्माद काफी स्पष्ट था,जबकि बिहार में, आम निवासी बढ़ती कीमतों और अन्य स्थानीय और राष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा करने में अधिक रुचि दिखाते नज़र आए।

बिहार में शराब की बिक्री और सेवन पर प्रतिबंध को ही लीजिए, जो प्रतिबंध उत्तर प्रदेश में लागू नहीं है। हाल ही में बिहार के सीवान जिले के सुदूर करनई गांव के धान के खेतों के बीच एक अलग स्थान तेतरीपार की यात्रा के दौरान, इस लेखक ने देखा कि लोग बिहार के शराबबंदी को धता बताते हुए खुलेआम शराब की तस्करी कर रहे हैं।

उत्तर प्रदेश से शराब की सप्लाई करने वालों तक पहुंचने के लिए स्थानीय युवा खाली बोरियां लेकर पानी से भरे खेतों में चल रहे थे। उन्होंने शराब के कार्टन को पॉलिथीन और कपड़े में छुपाया हुआ था और उन्हे नावों में बैठकर गंडक नदी से पार करा रहे थे, यह वह नदी है जो दोनों राज्यों को अलग करती है। एक बार जब स्थानीय युवा अपनी सारी बोरियां भर लेते हैं तो वे शराब की बोतलों को बेचने निकलते हैं और इच्छुक ग्राहकों से अतिरिक्त चार्ज लेते हैं। इसी बीच तस्कर नाव को वापस उत्तर प्रदेश ले जाता है। 

शहरवासी जो न तो बिहार में रहे हैं और न ही जिन्होने वहां शराबबंदी लागू होते देखी है, उन्हें ये घटनाक्रम अजीब लग सकता है। लेकिन, स्थानीय लोगों का कहना है कि बिहार-उत्तर प्रदेश सीमा पर दूर-दराज के गांवों में ये आम बात है। “शराब तस्कर उत्तर प्रदेश के मेहरौना और लार बाजारों में स्टॉक करते हैं और नावों से गंडक नदी पार करते हैं। बिहार के सीवान जिले के दरौली ब्लॉक के गांव मठिया के निवासी 35 वर्षीय पतरू यादव ने कहा कि, कुछ लोग बिहार पुलिस को चकमा देने के लिए कांवरियों का भेष भी भरते हैं।''


चकरी, जटौर, सेलौर, करनई - जो बिहार में गंडक नदी के किनारे स्थित गाँव हैं - के निवासियों ने इस लेखक को बताया कि शराब ज्यादातर उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले से आती है, जिसके किनारे गंडक नदी बहती है।


मक्का बेचने वाला पवन हर रोज एक पुल के पश्चिमी छोर पर अपना ठेला लगाता है, जो उत्तर प्रदेश में पड़ता है। इस पुल का पूर्वी छोर गुठनी बाज़ार को रास्ता देता है, जो बिहार में है। वह हर दिन दोनों तरफ की गतिविधियों पर नजर रखता है। पवन ने बताया कि, ''जबकि राज्य पुलिस पुल पार कर रहे कांवरियों के पैरों और तलवों की मालिश करती है, और तस्कर नदी के नीचे से शराब की तस्करी कर रहे होते हैं।''

बिहार की तरफ, राज्य के उत्पाद शुल्क विभाग में काम करने वाले एक सिपाही हैं, जिनका काम पुल के ऊपर से उत्तर प्रदेश से प्रवेश करने वाले वाहनों की जाँच करना है। तस्करों की तलाश में कांस्टेबल भी गांवों में गश्त करते हैं, लेकिन बिहार की नदी किनारे बसी प्यासी बस्तियों में होने वाली हर चीज पर नजर रखने के लिए कांस्टेबल की संख्या बहुत कम हैं। इसके अलावा, उनके पास उत्तर प्रदेश की तरफ पड़ने वाले गांवों में गश्त करने का भी अधिकार नहीं है।

इस इलाके में तस्करी बड़े पैमाने पर होती है। यह कहने की बात नहीं कि शराब के धंधे में मुनाफा बहुत अधिक है। बिहार के बूटलेगर्स प्रत्येक 180 मिलीलीटर शराब की बोतल, जिसकी कीमत उत्तर प्रदेश में 50 रुपये है, को 75 रुपये में खरीदते हैं, और बिहार में जनता को 100 रुपये में बेचते हैं - सीमा पार करने के पर 100 प्रतिशत का मुनाफा। 

टमाटर और आशा वर्कर 

गुठनी बाजार में बिहार की ओर सजी सब्जी की दुकानों पर काफी भीड़ नज़र आती है। एक खरीदार 50 रुपये में 250 ग्राम टमाटर बेचने पर दुकानदार से झगड़ता करता नज़र आता है। विक्रेता 200 रुपये प्रति किलो से कीमत कम करने से इनकार कर देता है खरीदार अपने खरीदे हुए टमाटर वापस कर देता है। ग्राहक आगे लौकी खोजता है, लेकिन लौकी भी 20 रुपये में एक पीस बिक रही थी। जनता के लिए भिंडी, करेला और अन्य सभी सब्जियाँ बहुत महंगी थीं, जिससे खरीदार और विक्रेताओं के बीच सौदेबाजी को लेकर अंतहीन शोर-शराबा चलता रहता है।

तीन किलोमीटर दूर दरैली मठिया, जो बिहार में ही है, में एक युवा महिला पारो को प्रसव पीड़ा होती है। उसके पति, रिंकू, एक मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता से संपर्क करते हैं - जिन्हें आमतौर पर आशा दीदी के नाम से जाना जाता है। कर्मचारी एक एम्बुलेंस सेवा को डायल करता है, जो पारो को मैरवा सरकारी अस्पताल ले जाती है, जहाँ वह एक लड़के को जन्म देती है। अस्पताल माँ को 5,000 रुपये का भुगतान करता है। जश्न शुरू हो जाता है। 

आशा वर्कर, जो बिहार के लगभग सभी गांवों में माताओं और अस्पतालों के बीच की कड़ी हैं, इन हिस्सों में काफी लोकप्रिय हैं। आशा कार्यकर्ताओं के नेटवर्क और ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत किए गए कार्यों के लिए लोग बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की प्रशंसा करते हैं।

वे बिहार के उपमुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री तेजस्वी यादव के बारे में भी चर्चा करते हैं, जिनके पिता, पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव का जन्म दरैली मठिया से बमुश्किल 15 किमी दूर फुलवरिया गांव में हुआ था।

बिहार में नेहरू-गांधी परिवार के वंशज कांग्रेस नेता राहुल गांधी के प्रति सहानुभूति बढ़ रही है। देश के दूरदराज के हिस्सों में लोग अब अपने स्मार्ट फोन और टीवी का इस्तेमाल करके नवीनतम जानकारी हासिल कर सकते हैं। इससे वे राजनीतिक घटनाक्रम के प्रति अधिक सचेत हो गए हैं। उदाहरण के लिए, बिहार के किसान यह टिप्पणी करते नज़र आए कि राहुल ने हाल ही में मध्य प्रदेश में किसानों के साथ धान की बुआई की थी।

दरैली मठिया के प्रभावशाली संभ्रांत जाति के 65 वर्षीय निवासी रमेश गिरी कहते हैं कि, ''लोग कांग्रेस पार्टी को बहुत पहले ही भूल चुके हैं, लेकिन राहुल गांधी के प्रति सहानुभूति बढ़ी है।'' वह राहुल-मोदी नेरेटिव का अपने तरीके से विश्लेषण करते हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर गांधी को "पीड़ित" करने का आरोप लगाते हैं। गुजरात की एक अदालत द्वारा मानहानि का दोषी ठहराए जाने के बाद कांग्रेस नेता से उनकी लोकसभा सदस्यता छीन ली गई थी। उन्हें दिल्ली में अपना घर तुरंत खाली करने को भी कहा गया था। गिरि कहते हैं कि, ''लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने राहुल की सदस्यता और बंगला बहाल कर दिया है।'' 

अस्सी और नब्बे के दशक तक ब्राह्मण कांग्रेस पार्टी की रीढ़ थे, लेकिन उसके बाद वे सामूहिक रूप से भारतीय जनता पार्टी के प्रति वफादार हो गए। वे तीन दशकों से बड़े पैमाने पर भाजपा का समर्थन कर रहे हैं।

“हमें नहीं पता कि 2024 के लोकसभा चुनाव में समुदाय कांग्रेस को समर्थन कर पाएगा या नहीं, लेकिन वे राहुल गांधी के प्रति बहुत सहानुभूति रखते हैं। गिरि कहते हैं कि, ''प्रधानमंत्री अपनी लोकप्रियता खो रहे हैं क्योंकि वे बार-बार झूठ बोलते हैं और बिना किसी वजह के गांधी को निशाना बनाते हैं।''

लेखक एक वरिष्ठ पत्रकार, मीडिया शिक्षक और लोककथाओं के शोधकर्ता हैं। विचार निजी हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

On UP-Bihar Border, Winds of Change Amid Thirst for Alcohol

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