Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

पंजाब: अभी भी आसान नहीं है कांग्रेस का आगे का सफ़र

कांग्रेस हाई-कमान की मोहर से चाहे चरणजीत सिंह चन्नी को नया मुख्यमंत्री बन दिया गया हो लेकिन कांग्रेस का अगला सफ़र मुश्किल भरा होगा। अंदरूनी धड़ेबंदी से निपटना कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती होगी।
Punjab
पंजाब में सियासत ने नई करवट ली। फोटो पंजाब कांग्रेस के ट्विटर हैंडल से साभार

पंजाब में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता चरणजीत सिंह चन्नी ने आज, सोमवार को मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली। चन्नी पंजाब में मुख्यमंत्री बनने वाले दलित समुदाय के पहले व्यक्ति हैं। उनके अलावा सुखजिंदर सिंह रंधावा और ओम प्रकाश सोनी ने भी शपथ ली जो राज्य के उप मुख्यमंत्री हो सकते हैं।

पंजाब में जहाँ किसान आंदोलन ने भाजपा समेत तमाम पार्टियों को कटहरे में खड़ा किया है वहीं राज्य की राजनीतिक पार्टियों की सत्ता-भूख व अंदरूनी खींचतान उभर कर सामने आ रही है। कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू की आपसी कलह के नतीजतन 18 सितम्बर को कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपने मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफ़ा दे दिया। इस्तीफ़ा देने के बाद उन्होंने कांग्रेस हाईकमान प्रति अपनी नाराजगी प्रगट की व नवजोत सिद्धू पर गंभीर आरोप लगाये। हाईकमान के प्रति अपनी नाराजगी प्रगट करते हुए कैप्टन ने कहा कि वे अपमानित महसूस कर रहे हैं और इस ज़लालत के चलते उन्होंने अपना इस्तीफा दिया है। उन्होंने कहा कि वे अपना इस्तीफ़ा देने बारे कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी को पहले ही बता चुके हैं। उन्होंने कहा अभी तक वे कांग्रेसी हैं लेकिन उन्होंने भविष्य के सियासी राह खुले रखे हुए हैं।

कैप्टन ने नवजोत सिद्धू पर तीखा हमला करते हुए कहा, “सिद्धू एक अच्छा क्रिकेटर हो सकता है पर मुख्यमंत्री के तौर पर वह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरनाक है। उसके पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान, पाकिस्तान के थल सेना मुखिया कमर जावेद बाजवा के साथ दोस्ताना सम्बन्ध हैं और पाकिस्तान से हथियार वगैरह भी पंजाब में आ रहे हैं।” उन्होंने सिद्धू को ‘एंटी-नेशनल तत्व’ बोलते हुए कहा कि वह पंजाब का मुख्यमंत्री बनने के योग्य नहीं है और वे उसका विरोध करेंगे।

19 सितम्बर को कांग्रेस हाईकमान ने लम्बी विचार चर्चा के बाद चरणजीत सिंह चन्नी का पंजाब के मुख्यमंत्री के लिए चयन किया, वे पंजाब के पहले दलित मुख्यमंत्री हैं। इससे पहले सन् 1972 में ज्ञानी जैल सिंह (पूर्व राष्ट्रपति) पिछड़ा वर्ग के रामगढ़िया भाईचारे से पंजाब के मुख्यमंत्री बने थे।

कैप्टन अमरिंदर सिंह का अपने राजनैतिक करियर का यह पांचवा इस्तीफ़ा है। सबसे पहला इस्तीफ़ा उन्होंने 1984 में दरबार साहिब पर फौज़ी हमले के खिलाफ दिया था, उस वक्त वे कांग्रेस के पटियाला से विधायक थे। दूसरा इस्तीफ़ा उन्होंने 1986 में सुरजीत सिंह बरनाला की सरकार में मंत्री के ओहदे से ‘ऑपरेशन ब्लैक थंडर’ के विरोध में दिया था। 2014 में जब वे अमृतसर से लोकसभा सदस्य चुने गये तो उन्होंने पटियाला शहरी विधानसभा हलके से इस्तीफ़ा दिया था। लेकिन जब 2017 में वे दोबारा विधानसभा के लिए चुने गये तो उन्होंने लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफ़ा दिया था।

कैप्टन अमरिंदर सिंह का राजनैतिक सफ़र भी दिलचस्प रहा। 1963 में वे आर्मी अफसर भर्ती हो गये थे लेकिन दो साल बाद 1965 में नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया लेकिन कुछ समय बाद ही भारत-पाकिस्तान की जंग लगने के कारण वापस आर्मी ज्वाइन कर ली। जंग खत्म होने के बाद दोबारा इस्तीफ़ा दे दिया। कैप्टन अमरिंदर सिंह के स्कूली मित्र राजीव गांधी उन्हें राजनीति में लेकर आये और 1980 में लोकसभा सदस्य चुने गये। 1984 में कांग्रेस छोड़कर 1985 में अकाली दल में शामिल हो गये और विधानसभा चुनाव जीतकर सुरजीत सिंह बरनाला मंत्रिमंडल में मंत्री बन गये। 1992 में अमरिंदर सिंह अकाली दल से अलग हो गये और अपनी एक अलग पार्टी बनाई जिसका नाम था ‘अकाली दल (पंथक)’। बाद में फिर अकाली दल में शामिल हो गये। जब 1997 में अकाली दल ने उन्हें विधानसभा की टिकट नहीं दी तो उन्होंने अकाली दल को छोड़कर 1998 में कांग्रेस पार्टी ज्वाइन कर ली और बहुत जल्द ही पंजाब प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी चुन लिये गये। यहाँ कांग्रेस के पुराने नेताओं के साथ उनके तीख़े मतभेद भी चलते रहे। 2002 के विधानसभा चुनावों में जब कांग्रेस पार्टी जीती तो अमरिंदर सिंह पंजाब के मुख्यमंत्री बने।

मुख्यमंत्री होते हुए उनका उस समय की उप-मुख्यमंत्री रजिंदर कौर भट्ठल के साथ तीख़े मतभेद रहे। अपने इसी समयकाल में उन्होंने भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम चलाकर पिछली अकाली सरकार के भ्रष्टाचार को नंगा किया, किसानों के हक में प्रशंसनीय फैसले लिए, पानी के बंटवारे के मसले पर पंजाब के किसानों के हक़ में आवाज़ बुलंद की और पानी से सम्बन्धित पुराने सभी समझौते रद्द करने का विधानसभा में प्रस्ताव पास कर दिया। इन कदमों से कैप्टन अमरिंदर सिंह पंजाब में एक शक्तिशाली नेता के तौर पर उभरे। पंजाब के ग्रामीण व पंथक हलकों में कैप्टन का डंका बजने लगा। शहरी आबादी भी कैप्टन के साथ थी। हालाँकि इस समय भी कैप्टन पर आरोप लगता था कि वे अपने विधायकों को कम मिलते हैं, ज्यादातर गैरहाज़िर रहते हैं और इस समय उनके पाकिस्तानी महिला मित्र अरुसा आलम से सम्बन्धों को लेकर चर्चे छिड़े हुए थे। उनके इसी कार्यकाल के दौरान हुआ सिटी सेंटर घोटाला भी चर्चा में रहा।

नवजोत सिंह सिद्धू को पाकिस्तान के साथ मिला, ‘एंटी-नेशनल’ कहने वाले अमरिंदर सिंह के अपने सामने भी बहुत सारे सवाल हैं जिसका शायद वे जवाब न दे सकें। 1994 के `अमृतसर डिक्लेरेशन`, जिसमें सिखों के लिए आत्म-निर्णय के अधिकार की बात है, पर हस्ताक्षर करने वालों में से कैप्टन अमरिंदर सिंह एक थे। 1994 में बने अकाली दल (अमृतसर) के संस्थापकों में से अमरिंदर सिंह एक थे। अकाली दल (अमृतसर) खालिस्तानी विचारधारा वाला दल है। अपने पहले कार्यकाल में कैप्टन अमरिंदर सिंह जब कनाडा गये थे तो उन पर आरोप हैं कि उन्होंने खालिस्तानी विचारधारा वाले लोगों के साथ स्टेज शेयर की थी। टोरंटो के जिस गुरुद्वारे में उन्होंने सम्बोधन किया था उसकी स्टेज के पीछे खालिस्तानी बैनर लगे हुए थे। उस समय पंजाब में यह मुद्दा काफी गरमाया था। कैप्टन के 2002 से 2007 के कार्यकाल तक उन्हें गरम सिख धड़ों की भी सपोर्ट मिलती रही।

भारतीय मूल के कैनेडियन पत्रकार गुरप्रीत सिंह का कहना है, “कैप्टन अमरिंदर सिंह की सियासत मौकापरस्ती पर आधारित रही है, इसलिए वह कभी गरम सिख धड़ों के साथ सुर मिलाते हैं, कभी कट्टर हिन्दू संगठनों के साथ भी नरम रवैया अपनाते हैं और कभी कथित राष्ट्रवाद का राग अलापते हैं।”

सिद्धू को पाकिस्तान के साथ मिला हुआ कहने वाले अमरिंदर सिंह का पहला कार्यकाल दोनों पंजाबों की दोस्ती को बढ़ाने वाला रहा है। उनके ही कार्यकाल 2004 में पाकिस्तानी पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री चौधरी परवेज़ इलाही भारतीय पंजाब में ‘विश्व पंजाबी कांफ्रेंस’ में शिरकत करने आये थे और उस समय पंजाब सरकार द्वारा दिए जाने वाले शिरोमणि पंजाबी पुरस्कार दोनों पंजाबों के मुख्यमंत्रियों  (अमरिंदर सिंह और परवेज़ इलाही) ने दिए थे। इसी कांफ्रेंस के दौरान पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला में ‘वर्ल्ड पंजाबी सेंटर’ का नींव पत्थर भी दोनों पंजाबों के मुख्यमंत्रियों ने इकठ्ठे मिलकर रखा। पंजाब के शहरों में कैप्टन अमरिंदर और परवेज़ इलाही के इकठ्ठे बड़े-बड़े पोस्टर लगे थे। दोनों पंजाबों के लोगों ने इसका भरपूर स्वागत किया था।

पंजाबी साहित्य प्रेमी हरीश मोदगिल हैरानी प्रगट करते हुए कहते हैं, “कैप्टन ने जिस आधार पर सिद्धू के बारे में बोला है वह दुखदाई है। दोनों पंजाब एक दूसरे से दोस्ती चाहते हैं, हम पंजाबी चाहते हैं कि दोनों देशों के नेताओं के सम्बन्ध अच्छे हों ताकि लोग शांति व मुहब्बत से रह सकें। जब कैप्टन दोनों पंजाबों में सांझ की बात करते थे तो लोग उनका स्वागत करते थे। पाकिस्तानी नेताओं से सिर्फ़ दोस्ती होने के आधार पर किसी को ‘एंटी-नेशनल’ जैसे तमगे देना बेबुनियाद है, पंजाब की तहजीब इसे कबूल नहीं करती।”

2007 में कांग्रेस विधानसभा चुनाव हार गई और अकाली-भाजपा गठबंधन की सरकार सत्ता में आई व दस साल सत्ता पर काबिज़ रही। इन दस सालों के दौरान अकाली दल ने अपने राज में बहुत सारी अनियमितताएं की। उसके कार्यकाल में नशा-तस्करी, गैर-कानूनी खनन, गैंगस्टर्स की बढोत्तरी, स्थानीय अकाली नेताओं की गुंडागर्दी, बादल परिवार का ट्रांसपोर्ट पर कब्जा, गुरु ग्रन्थ साहिब की बेअदबी व बरगाड़ी गोली-कांड जैसी घटनाएँ हुईं। उधर कैप्टन को अपनी ही पार्टी में उसकी हाई-कमान और कुछ स्थानीय नेताओं द्वारा चुनौती मिलने लगी। सोनिया गांधी के विपरीत राहुल गाँधी अमरिंदर सिंह की अगुआई को पसंद नहीं करते थे।

2014 के लोकसभा चुनावों में कैप्टन को परखने के लिए अमृतसर से अरुण जेटली के खिलाफ खड़ा किया गया। कैप्टन चुनाव जीत गये। कैप्टन की मर्जी के खिलाफ कांग्रेस प्रदेश प्रधान बनाये गये प्रताप सिंह बाजवा से भी उनका मनमुटाव बढ़ता गया। एक बार तो कहानी यहाँ तक पहुँच गई कि सभी को लग रहा था कि कैप्टन कांग्रेस से अलग होकर नयी पार्टी बना लेंगे। पर आखिर में कांग्रेस ने अमरिंदर सिंह की अगुआई में 2017 के विधानसभा चुनाव लड़े और उम्मीद से भी अधिक 77 सीटें हासिल कीं।

अमरिंदर सिंह ने इन विधानसभा चुनाव में पवित्र गुटका साहिब की शपथ खाकर पंजाब के लोगों से वादा किया था कि वे गुरु ग्रन्थ साहिब की बेअदबी करने वालों को सजा दिलाएंगे, बरगाड़ी कांड की जाँच करवाएंगे, बादल काल में हुई अनियमितताओं की जाँच करवाएंगे और पंजाब के नौजवानों को रोजगार देंगे। लेकिन ये वायदे वफ़ा नहीं हो सके। पहली पारी के दौरान दिलेर माना जाने वाला मुख्यमंत्री इस बार लोगों को कमजोर और बेवफ़ा नज़र आने लगा। बादल परिवार के प्रति नरम रवैया कैप्टन को सबसे महंगा पड़ा। इस मुद्दे पर उन्हें भाजपा से कांग्रेस में शामिल हुए नवजोत सिद्धू ने लगातार घेरा। सिद्धू तो यहाँ तक कहते हैं कि 2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी पंजाब की सभी 13 सीटें जीत सकती थी लेकिन कैप्टन के बादलों के प्रति दोस्ताना झुकाव के कारण ऐसा नहीं हो सका। अब जब चुनावों में थोड़ा समय ही रह गया था तो कैप्टन के मंत्री भी खुद महसूस करने लगे थे कि वे कौन सा मुंह लेकर लोगों के बीच जायेंगे।

राजनीतिक विशेषज्ञ कहते हैं कि कैप्टन ने अपनी इस पारी दौरान जहाँ आम लोगों से दूरी बनाये रखी वहीं पार्टी के विधायकों व मंत्रियों को भी मिलने का समय नहीं देते थे। अमरिंदर सिंह की नौकरशाही पर जरूरत से अधिक निर्भरता व अफसरशाही को अधिक महत्व देना भी बड़ी भूल मानी जा रही है। अमरिंदर सिंह द्वारा अपने चीफ सेक्रेट्री को पूरी खुल दिए जाने के कारण चुने हुए प्रतिनिधि अपना अपमान महसूस करते थे।

कांग्रेस हाई-कमान का मन भी कैप्टन से तब खट्टा हो गया जब उसने ‘18-बिंदु एजेंडा’ पर कोई काम नहीं किया। अमरिंदर सिंह ने बिजली समझौतों पर भी चुप्पी साधे रखी, हर तरह के माफिये को भी खुली छुट्टी मिलती रही और नशे के मामले में भी कोई राहत नहीं मिली। हालाँकि अमरिंदर सिंह ने किसान पक्षीय कुछ फैसले लिए लेकिन कुछ दिन पहले ही किसान आंदोलन के बारे दिए गये उनके बयान की किसान नेताओं द्वारा तीख़ी आलोचना हुई।

अमरिंदर सिंह के केंद्र की भाजपा सरकार के साथ मिलते सुर की भी आलोचना होती रही है। उन्होंने कभी भी भाजपा की तीखे सुर में खुली आलोचना नहीं की। विशेषज्ञ मानते हैं कि कैप्टन को शायद केंद्र का डर सता रहा था कि कहीं केन्द्रीय जाँच एजेंसियां उनके भी पीछे न लगा दी जाएँ।

राजनीतिक विशेषज्ञ प्यारा लाल गर्ग कहते हैं, “कैप्टन की नीति भाजपा के आगे नतमस्तक होने वाली रही है। पिछले दिनों जो उन्होंने प्रधानमंत्री व गृहमंत्री के साथ मुलाकातें की हैं उससे साफ़ झलकता था कि वे पंजाब को राष्ट्रपति शासन की तरफ़ धकेलने की कोशिश कर रहे हैं, उन्होंने जानबूझकर अंधराष्ट्रवाद व पकिस्तान का हौवा खड़ा किया। यह सब बीजेपी का एजेंडा लागू करना ही तो है? कैप्टन ने आर्थिक तौर पर भी पंजाब को संकट से निकालने के लिए ठोस प्रयास नहीं किये।”

पंजाब कांग्रेस की मौजूदा स्थिति और राजनैतिक समीकरण के बारे में टिप्पणी करते हुए नामवर चिंतक प्रोफेसर बावा सिंह कहते हैं, “सियासी पार्टियाँ कुछ भी पाखंड करें, पर यह एक सच्चाई है कि पंजाब की मौजूदा सियासत को किसान आंदोलन दिशा देगा। लोग लगभग सभी पार्टियों को नकार चुके हैं। कैप्टन अमरिंदर सिंह की एक तरह से सियासी मौत हो चुकी है, मुझे नहीं लगता कि वह बीजेपी में किसी भी हालत में जायेंगे दूसरा विकल्प उनके पास नयी पार्टी बनाने का हो सकता है जिसमें एकदम कामयाबी मिलना मुश्किल है। नवजोत सिंह सिद्धू को एक गैर-गम्भीर नेता के तौर पर लिया जाता है पर उनकी छवि एक ईमानदार नेता की है। करतारपुर कोरिडोर मामले से सिद्धू ने सिख भाईचारे व आम पंजाबी अवाम में अपनी ख़ास पहचान बनाई है। सिद्धू ने पंजाब की तरक्की के लिए कुछ नुक्ते उठाये हैं पर देखना होगा कि आने वाले समय में वह इनके प्रति कितना गंभीर है। गम्भीर सियासत करने के लिए उसे अपने गैर-ज़िम्मेदाराना व्यवहार को छोड़ना पड़ेगा।”

कांग्रेस हाई-कमान की मोहर से चाहे चरणजीत सिंह चन्नी को नया मुख्यमंत्री बन दिया गया हो लेकिन कांग्रेस का अगला सफर मुश्किल भरा होगा। अंदरूनी धड़ेबंदी से निपटना कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती होगी।

(चंडीगढ़ स्थित लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

इसे भी पढ़ें: : पंजाब: कांग्रेस के दांव से बीजेपी भौंचक्की 

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest