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पंजाब: 'इलेक्टेड' बनाम 'सलेक्टेड'; कहां पहुंचेगी सत्ता की लड़ाई!

राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच के विवाद को लेकर राज्य में मिलीजुली प्रतिक्रिया है। हालांकि भाजपा को छोड़कर अन्य सभी विपक्षी दल भी पंजाब में राष्ट्रपति शासन के ख़िलाफ़ हैं।
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पंजाब के राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित और मुख्यमंत्री भगवंत मान। (फाइल फ़ोटो : PTI)

पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित के उस पत्र पर तीखी प्रतिक्रिया वक्त की है, और जिसमें उन्होंने कहा था कि मुख्यमंत्री उनके पत्रों का तत्काल जवाब दें, नहीं तो वह अनुच्छेद-356 के तहत राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश कर सकते हैं। इस पर भगवंत मान ने अप्रत्याशित मौखिक जवाब दिया है। राज्यपाल ने अपने 'अंतिम पत्र' में लिखा था कि धारा-167 के प्रावधानों के तहत राज्य के प्रशासनिक मामलों के बारे में मांगी गई जानकारी उपलब्ध कराना अनिवार्य है।                           

पहले-पहल तो मुख्यमंत्री खामोश रहे लेकिन बढ़तीं सरगोशियों के बीच वह सामने आए और बेहद तीखे तेवरों के साथ राज्यपाल पर जुबानी हमला बोला। उन्होंने कहा कि बनवारी लाल पुरोहित ने पंजाब में राष्ट्रपति शासन लगाने की चेतावनी देकर सूबे के तीन करोड़ पंजाबियों का अपमान किया है। भगवंत मान ने कड़े तेवरों के साथ कहा कि वह ऐसी धमकियों से डरने वाले नहीं हैं। साथ ही उन्होंने आरोप लगाया कि राज्यपाल के पत्रों में 'सत्ता की भूख' की बू आती है। जो भी पत्र उन्होंने भेजे हैं, लगता है उन पर राज्यपाल ने केवल हस्ताक्षर किए हैं। मजमून किसी और ने लिखा है।

उन्होंने यह आरोप भी लगाया कि राज्यपाल केंद्र के इशारे पर काम कर रहे हैं। बेशक वह राजस्थान के हैं लेकिन वह उन्हें नागपुर का कहते हैं। भगवंत मान यहां तक चले गए कि उन्होंने कहा कि कुछ समय बाद राजस्थान में विधानसभा चुनाव हैं। वह भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री का चेहरा बनकर राजनीतिक शक्ति ले लें। मुख्यमंत्री ने कहा कि अब तक उन्हें राज्यपाल के 16 पत्र मिले हैं, जिनमें से नौ पत्रों का जवाब दिया जा चुका है। बाकी का जवाब भी जल्दी दे देंगे। राज्य सरकार ने छह बिल डेढ़ साल में विधानसभा में पास किए हैं, राज्यपाल ने उन पर अब तक हस्ताक्षर नहीं किए हैं। मान ने कहा कि राज्यपाल को लोगों के चुने प्रतिनिधियों को हटाने की धमकियां देने का कोई हक नहीं है।

मुख्यमंत्री यहां तक बोल गए कि अब 'इलेक्टेड' और 'सलेक्टेड' के बीच की लड़ाई है। हम किसी की धौंस में नहीं आएंगे। भगवंत मान ने कहा कि पंजाब में कानून- व्यवस्था पूरी तरह से काबू में है। उन्होंने कहा कि राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित केंद्रीय सरकार की हिदायत पर कम कर रहे हैं।   

मुख्यमंत्री भगवंत मान के रुख से साफ है कि वह राज्यपाल से टकराव के हालात यथावत रखना चाहते हैं। आने वाले दिनों में जंग तेज होगी। हैरानी की बात है कि इतने बड़े मसले पर भगवंत मान के सिवा आम आदमी पार्टी का कोई भी मंत्री या वरिष्ठ नेता इस प्रकरण पर बोलने को तैयार नहीं। क्षेत्रीय अखबारी खबरों का रुझान भी कमोबेश सरकार की ओर है।

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता एडवोकेट एचसी अरोड़ा के अनुसार, "राज्यपाल को हक है कि वह धारा-167 के तहत राज्य सरकार से कोई भी जानकारी तलब कर सकते हैं। मुख्यमंत्री ने जो अपमानजनक टिप्पणियां विधानसभा या सार्वजनिक रूप से राज्यपाल के खिलाफ कीं, उसके लिए निश्चित तौर पर उन पर मुकदमा दायर हो सकता है और कम से कम सात साल की सजा। मुख्यमंत्री भगवंत मान अभी भी संविधान की कुछ सीमाओं से बाहर जाकर बात कर रहे हैं। अनुच्छेद-167 के मुताबिक वह राज्यपाल की ओर से मांगी गई जानकारियां देने के लिए बाध्य हैं। अगर राज्यपाल के पत्रों के जवाब में जवाबी पत्र तैयार हैं तो उन्हें तत्काल राजभवन भेज दिया जाना चाहिए। मुख्यमंत्री की चालकी उन्हें बड़ी दुविधा में डाल सकती है।"

एडवोकेट भूपेंद्र सिंह कालड़ा कहते हैं कि, "राजभवन का कानूनी पक्ष बेहद मजबूत है।"

वरिष्ठ एडवोकेट गुरिंदर प्रताप सिंह के अनुसार, "अपनी चेतावनी के मुताबिक अगर राज्यपाल 356 के तहत पंजाब में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश करते हैं तो सुप्रीम कोर्ट में यह मामला ठहरेगा नहीं। कई पहलू निर्वाचित सरकार के हक में जाएंगे।"

पंजाब के पूर्व एडवोकेट जनरल अनमोल रतन सिद्धू से इस बाबत बात की गई तो उन्होंने कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया और कहा कि उनके सरीखे बहुत लोग हैं जो इस विवाद में सामने नहीं आना चाहते। 

पंजाब के दिग्गज पत्रकार जतिंदर पन्नू इस प्रकरण पर कहते हैं कि, "मुख्यमंत्री भगवंत मान बचकानी हरकतें कर रहे हैं। उन्होंने राज्यपाल का अपमान किया है। पंजाब में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। वह बनवारी लाल पुरोहित से कहते हैं कि राजस्थान से जाकर चुनाव लड़ लीजिए और कल को कोई कह देगा की जस्टिस ऑफ सुप्रीम कोर्ट भी कहीं से चुनाव लड़ लें। यह क्या कहलाएगा? नौसिखियापन। मुख्यमंत्री को चाहिए था कि वह समाधान की ओर कदम बढ़ाते लेकिन वह तो उल्टे पांव चल रहे हैं। इससे सिर्फ और सिर्फ पंजाब का अहित होगा। अभी भी मौका है कि हालात संभल सकते हैं। मुख्यमंत्री का कहना है कि राज्यपाल दिल्ली के इशारे पर कम कर रहे हैं लेकिन मुझे लगता है कि खुद भगवंत मान अपने आलाकमान के इशारे पर कम कर रहे हैं।" 

सूबे के सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले और प्रसार संख्या वाले पंजाबी दैनिक 'अजीत' के संपादक बरजिंदर सिंह हमदर्द का दो-टूक कहना है कि, "आजादी के बाद पंजाब के आज तक के इतिहास में किसी भी मुख्यमंत्री द्वारा राज्यपाल के साथ इस तरह का व्यवहार नहीं किया गया और न ही संविधान की भावना की इस तरह धज्जियां उड़ाईं गईं हैं। राज्यपाल के इस पत्र के बाद मुख्यमंत्री की ओर से यह प्रभाव देना कि वह इन धमकियों की चिंता नहीं करते तथा यह भी कि राज्यपाल राजनीतिक शक्ति के भूखे हैं तथा यह भी कि वह सियासी तौर पर अप्रासंगिक हो चुके हैं तथा उन्हें भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री पद के लिए राजस्थान में चुनाव लड़ना चाहिए, को भी इस पद का अपमान कहा जा सकता है। इसे किसी भी तरह जायज नहीं ठहराया जा सकता। विधानसभा अधिवेशन को लेकर जो विवाद उठे थे, उसके संबंध में सर्वोच्च न्यायालय ने यह फैसला दिया था कि अधिवेशन बड़े अंतराल के बाद बुलाया जाना चाहिए तथा मुख्यमंत्री को राज्यपाल के पत्रों के प्रति उत्तरदायी होना चाहिए। आगामी समय में उठे इस विवाद का क्या परिणाम निकलेगा, फिलहाल कुछ कहना कठिन है लेकिन इससे पहले ही डूब चुके पंजाब को एक और बड़ा गोता लगा सकता है, जो प्रदेश के लिए हानिकारक होगा।"                 

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील विराग गुप्ता कहते हैं कि, "राज्य सरकार के मुख्यमंत्री, मंत्री और राज्य के संवैधानिक मुखिया राज्यपाल--सभी लोग संविधान की शपथ लेकर कानून के शासन के प्रति प्रतिबद्ध रहते हैं। पंजाब सीमावर्ती राज्य है, जहां राष्ट्रीय सुरक्षा और आतंकवादियों पर लगाम किया मामला सबसे अहम है। ड्रग माफिया भी बड़े पैमाने पर सक्रिय है। इसके अतिरिक्त पंजाब की बाबत राज्य सरकार की संवैधानिक जिम्मेदारियां को अलग तरीके से आकलन करने की यदि कोशिश की गई तो उन मापदंडों को अन्य राज्यों पर भी लागू करना पड़ेगा।"

विराग गुप्ता के मुताबिक वर्तमान राज्य सरकार के अफसर या मंत्रियों की ड्रग्स या शराब के कारोबारियों के साथ मिलीभगत है तो राज्यपाल को इस बारे में केंद्र सरकार को सुबूतों के साथ जानकारी देनी चाहिए। विराग गुप्ता जोर देकर कहते हैं कि महज आरोपों के आधार पर केंद्रीय एजेंसी एनसीबी, एनडीपीसीएस एक्ट के तहत संबंधित अधिकारियों और मंत्रियों के के खिलाफ मामले दर्ज कर सकती है, लेकिन ऐसे आरोपों के आधार पर पूरी राज्य सरकार के खिलाफ कार्रवाई करना या धमकी देना संविधान सम्मत नहीं है।       

आम आदमी पार्टी (आप) के राजनीतिक प्रतिद्वंदी भी पंजाब में राष्ट्रपति शासन लागू करने के खिलाफ हैं। सांसद सुखबीर सिंह बादल की अगुवाई वाले अकाली दल ने पंजाब में राष्ट्रपति शासन लागू करने की राज्यपाल की सिफारिश का विरोध किया है। सुखबीर सिंह बादल कहते हैं, "हम पंजाब में राष्ट्रपति शासन लगाने के सख्त खिलाफ हैं। यह भी कहना चाहते हैं कि मुख्यमंत्री भगवंत मान की अनुभवहीनता और घमंड से ऐसे हालात पैदा हुए कि पंजाब में अफरातफरी मची हुई है। राज्यपाल ने जो सवाल पूछे हैं, वे सही हैं और उनका तार्किक जवाब दिया जाना चाहिए।"

वरिष्ठ कांग्रेसी नेता सुखपाल सिंह खैहरा कहते हैं कि राष्ट्रपति शासन लगाने की चेतावनी देना गलत है लेकिन राज्यपाल की ओर से पूछे गए सवालों से मुंह चुराना भी जायज नहीं है।

पंजाब कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष राजा वडिंग अमरिंदर सिंह और सदन में नेता प्रतिपक्ष प्रताप सिंह बाजवा का मानना है कि मुख्यमंत्री भगवंत मान बौखलाहट में हैं गोया खुद चोर हों। इस आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता कि किसी बड़ी साजिश के तहत राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो जाए लेकिन हम उसका पुरजोर विरोध करेंगे।

पंजाब भाजपा के अध्यक्ष सुनील कुमार जाखड़ का कहना है कि, "मुख्यमंत्री भगवंत मान का राज्यपाल के प्रति व्यवहार बेहद बचकाना है और एतराज योग्य भी। राज्यपाल ने स्वाभाविक सख्ती बरती तो मुख्यमंत्री प्रोटोकॉल से बाहर जाकर व्यवहार करने लगे। यह सरकार हर मोर्चे पर असफल है। विज्ञापनबाजी पर बेहिसाब पैसा बहाया जा रहा है। राज्य के संसाधनों का दिल्ली में दुरुपयोग हो रहा है। बाढ़ से त्रस्त जनता मुआवजा मांग रही है और राज्य सरकार एक जगह मुआवजा देकर यह भूल जाती है कि बेशुमार इलाके हैं जिन्हें बाढ़ ने तबाह कर दिया। मेरा मानना है कि अभी राष्ट्रपति शासन की जरूरत नहीं लेकिन सरकार का ढर्रा यही रहा तो वह दिन भी आ जाएगा। यह पंजाब के लिए बेहद बदनसीब दिन होगा।"                   

पंजाब की नामवर हस्ती जस्टिस निर्मल सिंह के मुताबिक मुख्यमंत्री को राज्यपाल क्या, राज्य के आम आदमी के सवालों के भी जवाब देने चाहिए। जस्टिस निर्मल सिंह को नहीं लगता कि पंजाब में शीघ्र राष्ट्रपति शासन लग जाएगा। फौरन राष्ट्रपति शासन लागू होता है तो केंद्र को दुनिया भर में जवाब देना पड़ेगा की मणिपुर और हरियाणा में सरकारें भंग क्यों नहीं की जा रहीं। जबकि वहां जंगल राज स्थापित हो चुका है। 

पंजाब तीन दिन से अफवाहों की धुंध में है। मुख्यमंत्री की प्रेस कांफ्रेंस के बाद भी स्थिति साफ नहीं हुई कि आगे क्या होगा? अनुच्छेद-356 के तहत राज्यपाल को अनेक विशेष अधिकार हासिल हैं। राज्यपाल की रिपोर्ट के आधार पर और केंद्रीय मंत्रिमंडल की सिफारिश पर राष्ट्रपति अनुच्छेद-356 के तहत राष्ट्रपति शासन लगाने को मंजूरी दे सकते हैं। इसे संसद के दोनों सदनों की मंजूरी लेनी होती है। उत्तराखंड समेत कई राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाने के आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने निरस्त कर दिया था। इसलिए पंजाब के संभावित मामले में ऐसे किसी भी आदेश को हाईकोर्ट या सुप्रीमकोर्ट में सीधी चुनौती दी जा सकती है।

सूबे का अवाम इसे किसी नतीजे पर न पहुंचने वाली लड़ाई मानता है। तमाम लोगों का मानना है कि राष्ट्रपति शासन का एक मतलब उनके जम्हूरी हक छीनना है। सरकार उन्होंने चुनी है तो हटाने का हक भी उन्हें ही है, लोग ऐसा मानते हैं। मुख्यमंत्री भगवंत मान और राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित क्या मानते हैं; यह रोज सामने आता रहता है। अब आगे क्या होना है या हो सकता है, इसपर सबकी नज़र है।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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