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अगले हफ़्ते पुतिन के शिखर सम्मेलन से ईरान, तुर्की के साथ रिश्तें होंगे मज़बूत

रूसी राष्ट्रपति का यह दौरा उस समय हो रहा है, जब तुर्की और ईरान दोनों को लेकर अमेरिकी नज़रिये में ज़बरदस्त बदलाव देखने को मिल रहा है।
Iran
एक अज्ञात स्थान पर स्थित ईरानी भूमिगत सैन्य अड्डे में मानव रहित हवाई वाहन (जिसे ड्रोन के रूप में भी जाना जाता है) (फ़ाइल फ़ोटो)

क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेसकोव ने मंगलवार को मास्को में ऐलान किया कि सीरिया में युद्ध को ख़त्म करने के लिए अस्ताना शांति प्रक्रिया के हिस्से के रूप में अपने ईरानी और तुर्की समकक्षों के साथ त्रिपक्षीय बैठक में भाग लेने के साथ-साथ तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप एर्दोगन के साथ द्विपक्षीय बैठक में भाग लेने के लिए राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन 19 जुलाई को तेहरान का दौरा करेंगे।

इस तरह के शिखर सम्मेलन की उम्मीद लंबे समय से जतायी जा रही थी, लेकिन महामारी और यूक्रेन संघर्ष के चलते इन मामलों में देरी हुई। सीरिया में मौजूदा गतिरोध जोखिमों से भरा हुआ है। तुर्की की सीरिया के उस उत्तरी सीमा क्षेत्रों में एक और सैन्य घुसपैठ शुरू करने की योजना है, जो कि उन कुर्द समूहों के नियंत्रण में हैं, जिन्हें लेकर अंकारा का आरोप है कि ये समूह अलगाववादी पीकेके से जुड़े हुए हैं और पेंटागन के अटूट सहयोगी भी हैं।

दमिश्क, मॉस्को और तेहरान के साथ-साथ वाशिंगटन भी तुर्की के इस क़दम को संभावित रूप से अस्थिर करने वाले क़दम के रूप में नापसंद करते हैं, लेकिन एर्दोगन जड़ता की इस स्थिति में भी इन योजनाओं को जारी रखे हुए हैं, जबकि धमकी भरे बयानबाज़ी के स्तर में चतुराई से कमी ला रहे हैं और स्वीकार करते हैं कि वह किसी भी तरह की "जल्दबाज़ी में नहीं हैं।"

अपने अस्ताना भागीदारों की ओर से हरी बत्ती नहीं मिल पाने के चलते संभवतः एर्दोगन के इस सैन्य घुसपैठ को शुरू कर पाने की संभावना नहीं है, लेकिन रूस और ईरान इस बात से सावधान हैं कि इस तरह की घुसपैठ सीरिया में उनकी मौजूदगी और राजनीतिक असर, दोनों को जटिल बना सकती है और तुर्की सैनिकों और सीरियाई सरकारी सैन्य बलों के बीच के होने वाले टकराव का जोखिम उठना पड़ सकता है।

हालांकि, सीरिया के अलावा, पुतिन के इस दौरे के बहुत व्यापक असर हैं। एर्दोगन और ईरानी नेताओं के साथ उनके बीच की इस द्विपक्षीय बैठकों में जो कुछ होता है, यह निश्चित रूप से एक ऐसी अहम आदर्श स्थिति होगी,जिस पर नज़र रहेगी। साफ़ तौर पर तुर्की और ईरान रूसी विदेश नीतियों और कूटनीति के दो सबसे अहम रिश्तों के तौर पर उभर रहे हैं। इसके साथ ही रूसी राष्ट्रपति का यह दौरा उस समय हो रहा है,जब तुर्की और ईरान दोनों को लेकर अमेरिकी नज़रिये में ज़बरदस्त बदलाव देखने को मिल रहा है।

अमेरिका के साथ घनिष्ठ रिश्ता बनाने की एर्दोगन की उम्मीदें इसलिए धराशायी हो गयी हैं, क्योंकि ग्रीक प्रधानमंत्री क्यारीकोस मित्सोटाकिस ने 30 जून को संवाददाताओं से कहा था कि एथेंस ने "हाल के दिनों में" अमेरिकी सरकार को 20 एफ़ -35 के एक स्क्वाड्रन के लिए अनुरोध पत्र दिया था, जिसमें एक अतिरिक्त स्क्वाड्रन ख़रीदने के विकल्प भी था। ग्रीक के इस ऐलान के ठीक एक दिन बाद राष्ट्रपति जो बाइडेन ने मैड्रिड में नाटो शिखर सम्मेलन के मौक़े पर एर्दोगन को  इस बात के लिए तुर्की को भरोसा दिलाया था कि उन्होंने एफ़ -16 के लंबित अनुरोध का समर्थन किया है।

एर्दोगन को यह पता होना चाहिए था कि बाइडेन का लंबा, सफल करियर अमेरिका में उस मज़बूत ग्रीक लॉबी के साथ जुड़ा हुआ है, जो महत्वाकांक्षी राजनेताओं के लिए चुनावी फ़ंडिंग का एक बड़ा स्रोत है। इसलिए, ग्रीस के F-35 सौदे को मंज़ूरी मिलना तय है और इससे अमेरिका और तुर्की के पहले से ही चल रहे तनावपूर्ण रिश्तों के बीच एक और दरार पैदा कर सकता है और इससे अंकारा का वह संदेह मज़बूत होगा कि वाशिंगटन तुर्की को क़ाबू में करने के लिए ग्रीस को मोहरे के तौर पर इस्तेमाल कर रहा है। इसमें कोई शक नहीं कि ग्रीस के साइप्रस और इज़राइल के साथ गठबंधन को ध्यान में रखते हुए यह सौदा पूर्वी भूमध्य सागर में सैन्य संतुलन को बदल सकता है।

यह कहना ग़लत नहीं होगा एर्दोगन के साथ पुतिन की बातचीत तुर्की-अमेरिकी रिश्तों में आयी अनिश्चितता के समय में हुई है। इसलिए, तात्कालिक रूप से यूक्रेन से अनाज निर्यात करने को लेकर काला सागर नौसैनिक गलियारा स्थापित करने की परिस्थितियां सबसे अनुकूल हैं। मॉस्को की उत्सुकता के बीच का यह एक ऐसा रणनीतिक मेल-मिलाप है,जिसका मक़सद यह साबित करना है कि यह वैश्विक अनाज संकट, और तुर्की की अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को प्रोजेक्ट करने की इच्छा के कारण नहीं है,जबकि तुर्की नाटो का सदस्य देश है।

तुर्की के रक्षा मंत्री अकार ने 13 जुलाई को ऐलान किया था कि इस्तांबुल में सभी पक्षों की भागीदारी वाले एक समन्वय केंद्र की स्थापना को लेकर सहमति बन गयी है, और रूसी और यूक्रेनी पक्ष भी बंदरगाहों में दाखिल होने और बाहर निकलने के साथ-साथ समुद्री सुरक्षा में जहाजों के संयुक्त नियंत्रण को लेकर सहमत हो गये हैं। यह तुर्की की मध्यस्थता की एक सांकेतिक जीत है। इस प्रक्रिया में हम तुर्की-रूसी राजनीतिक-आर्थिक रिश्तों को गहरा करने वाली नयी ऊर्जा का दोहन करने के सिलसिले में एर्दोगन और पुतिन के बीच के इस मज़बूत रिश्ते पर भरोसा कर सकते हैं। तुर्की की एक अनूठी भूमिका इसलिए है, क्योंकि मास्को पश्चिमी प्रतिबंधों के आसपास अपना रास्ता निकालने में लगा हुआ है।

इसी तरह, ईरानी नेतृत्व के साथ पुतिन की बातचीत की भी एक बड़ी भू-राजनीतिक परिस्थिति है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन सऊदी अरब की अपनी यात्रा को अभी-अभी पूरा कर लिया होता, और यह एक ऐसी घटना होती,जो ईरान के मूल हितों को एक ऐसे अहम मोड़ पर प्रभावित करती, जब परमाणु वार्ता विफल हो गयी है और तेहरान-रियाद के बीच के रिश्तों के सामान्य किये जाने की वार्ता प्रगति पर है।

सोमवार को ईरान की ओर से "कई सौ यूएवी की आपूर्ति, जिसमें तत्काल हथियार-सक्षम यूएवी शामिल हैं" और इस सिलसिले में ईरान में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे रूसी कर्मियों आदि पर अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैक सुलिवन का नाटकीय ख़ुलासा सावधानी के साथ किया गया समयबद्ध ख़ुलासा दिखता है।

यहां ग़ौर करने वाली अहम बात यह है कि सुलिवन की यह कहानी रक्षा प्रौद्योगिकी आदान-प्रदान पर रियाद और यरुशलम के बीच उस गुप्त बातचीत को नज़रअंदाज़ कर देती है, जो ख़ासकर ईरानी ड्रोन को लेकर सऊदी चिंताओं से जुड़ी हुई है ! 

इसके अलावा, सुलिवन की ये ढीली-ढाली बातें पिछले महीने इज़रायल की ओर से एक पारस्परिक वायु रक्षा गठबंधन के गठन के ऐलान की उस पृष्ठभूमि के ख़िलाफ़ आती है, जिसमें अन्य देशों के बीच संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब के शामिल होने की उम्मीद है।

कोई शक नहीं कि बाइडेन की रियाद यात्रा से ठीक पहले सुलिवन का यह ख़ुलासा एक राजनीतिक पहलू के साथ इसलिए आता है, क्योंकि यह सऊदी अरब पर रूस के साथ अपने खिलते रिश्तों के साथ-साथ ईरान के साथ अपने रिश्ते को सामान्य करने की वार्ता, दोनों ही पर फिर से विचार किये जाने का दबाव डालता है।

मास्को समझता है कि पश्चिम एशियाई दौरे से बाइडेन का मुख्य उद्देश्य रूस और चीन के ख़िलाफ़ मोर्चा बनाना है। दरअसल, बाइडेन ने पिछले हफ़्ते अपने पश्चिम एशिया दौरे पर वाशिंगटन पोस्ट में एक ऑप-एड में लिखा था, “हमें रूसी हमले का मुक़ाबला करने, चीन के साथ प्रतिस्पर्धा में जीत हासिल करने की बेहतर स्थिति में होने और दुनिया के एक अहम इलाक़े में स्थिरता को मज़बूती देने के लिए काम करने की ज़रूरत है। ऐसा करने के लिए हमें उन देशों के साथ सीधे बातचीत करने की ज़रूरत है, जो इस तरह के काम के नतीजों पर असर डाल सकते हैं। सऊदी अरब एक ऐसा ही देश है।”

बाइडेन को इस बात की उम्मीद है कि सऊदी अरब को इज़रायल के साथ भी किसी तरह के प्रारूप में एक ऐसे व्यापक बाध्यकारी रणनीतिक रक्षा सहयोग समझौते के तहत लाया जा सकेगा, जो कि अमेरिका की ओर से पहले से सहमत किसी भी चीज़ से परे हो। ज़ाहिर सी बात है कि ऐसा करने के पीछे का मक़सद ईरान को एक आम ख़तरे के तौर पर दिखाना है। सीधे शब्दों में कहा जाये, तो बाइडेन एक ऐसी अमिरीकी रणनीति को फिर से ज़िंदा करने में लगे हुए हैं,जो पिट चुकी है, और वह नाकाम हो चुकी रणनीति है-ईरान को अलग-थलग करना और उसे नियंत्रित करने के मक़सद से आसपास के क्षेत्र को व्यवस्थित करना।     

अगर सही मायने में इतिहास हक़ीक़त को सामने रख देता है,तो सामूहिक सुरक्षा प्रणाली बनाने का बाइडेन के इस विचार का विफल होना तय है। इस तरह की कोशिशों को पहले भी क्षेत्रीय देशों के उग्र प्रतिरोध का सामना करना पड़ा था। इसके अलावा, यहां रूस के भी कुछ फ़ायदे हैं, जो कि क्षेत्रीय देशों के साथ उस कूटनीति का अनुसरण करना है, जो पारस्परिक सम्मान और पारस्परिक लाभ, पहले से तय और विश्वसनीयता के साथ मज़बूती से जुड़ा हुआ है। विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव की हाल की सऊदी अरब यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच एक निश्चित समझ विकसित हुई थी, जिसे रियाद की ओर से नामंज़ूर किये जाने की संभावना नहीं है।

सच तो यही है कि तेल बाज़ार के सिलसिले में सऊदी अरब और रूस के हित मिलते-जुलते हैं। कम से कम जानकारों की राय तो यही है कि सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात दोनों ही के पास बहुत सीमित अतिरिक्त क्षमता है। उम्मीद यही है कि इस बात की संभावना सबसे ज़्यादा हो कि सऊदी अरब बाइडेन के इस दौरे के बाद तेल के उत्पादन को और बढ़ाये जाने को लेकर सहमति हो जाये, लेकिन नेतृत्व अब भी मौजूदा ओपेक प्लस समझौते (रूस के साथ) के ढांचे में ही इस बात का ध्यान रखते हुए ऐसा करने का एक तरीक़ा खोजने की कोशिश करेगा, जो कि नाइजीरिया और अंगोला जैसे संघर्षरत ओपेक राज्यों के उत्पादन की निम्न स्थिति की भरपाई की समय सीमा दिसंबर तक है। (ओपेक प्लस क्षमता पहले से ही समझौते में निहित स्तर से काफ़ी नीचे है।)

जैसा कि क्विंसी इंस्टीट्यूट के कार्यकारी अध्यक्ष ट्रिस्टा पारसी ने हाल ही में उल्लेख किया है कि बुनियादी तौर पर "सऊदी अरब और ईरान के बीच के तनाव में आने वाली किसी भी तरह की कमी अब्राहम समझौते के स्थायित्व के लिए ख़तरा है ... इसका मतलब यह है कि इसराइल और सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के लिए आपसी सहयोग और रिश्ते बनाने के लिए पर्याप्त रणनीतिक प्रोत्साहन को जारी रखने की ज़रूरत है और फ़िलिस्तीनी पीड़ा को नज़रअंदाज़ कर देना है, ऐसे में ईरान की तरफ़ से ख़तरे के संकेत का होना ज़रूरी हो जाता है। अगर ऐसा नहीं होता है, तो ताश का सारा घर बिखर जायेगा।”

ईरान समझता है कि संयुक्त व्यापक कार्य योजना(JCPOA) वार्ता न तो मृत है और न ही जीवित है, बल्कि एक ऐसी बेहोशी की हालत में है, जो जल्द ही ख़त्म हो सकती है, जब तक कि उसे वैसे ही नहीं रखा जाये और यह सऊदी अरब में बाइडेन की वार्ता की कामयाबी या नाकामी के स्तर पर निर्भर करता है। लेकिन, इन तमाम बातों के यही संकेत हैं कि तेहरान मास्को के साथ रिश्तों को मजडबूत करने पर ज़ोर दे रहा है। इसकी शंघाई सहयोग संगठन (SCO)सदस्यता मिलने की प्रक्रिया में है, जबकि यह अब ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ़्रीका) की सदस्यता की मांग कर रहा है। ईरान की विदेश नीति की सूई की दिशा तय है। कोई शक नहीं कि इस तरह के नज़रिये से पुतिन के पास तेहरान में ईरानी नेतृत्व के साथ चर्चा करने के लिहाज़ से बहुत कुछ है, क्योंकि नयी विश्व व्यवस्था आकार ले रही है।

सुलिवन की ड्रोन वाली ख़बर के सिलसिले में हालांकि ईरान ने हमेशा की तरह खंडन जारी कर दिया है, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि जो कुछ सुना गया हो,वह आख़िरी शब्द हों। हक़ीक़त यही है कि ईरान यूएवी के विकास और उत्पादन में शीर्ष पांच वैश्विक देशों में से एक है, जिसमें,यानी शहीद स्ट्राइक सिस्टम, मोहजेर सामरिक ड्रोन, करार टोही के विभिन्न संस्करण और 500-1000 किलोमीटर की सीमा तक मार करने वाले यूएवी, अराश कामिकेज़ ड्रोन, आदि में रूस की दिलचस्पी हो सकती है। दिलचस्प बात यह है कि ईरान के एमएफ़ए प्रवक्ता ने ईरान-रूस सैन्य-तकनीकी सहयोग के उस मौजूदा ढांचे की ओर इशारा किया है, जो यूक्रेन में चल रहे युद्ध से पहले का है।

एम.के. भद्रकुमार एक पूर्व राजनयिक हैं। वह उज़्बेकिस्तान और तुर्की में भारत के राजदूत रह चुके हैं। इनके व्यक्त विचार निजी हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Putin’s Summits Next Week Will Strengthen Ties With Iran, Turkey

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