निजीकरण पर सवाल: कैग की रिपोर्ट से कई अहम बातों का खुलासा, सरकारी कंपनियों ने दिया 36,709 करोड़ का मुनाफ़ा
नयी दिल्ली: अभी पहली फरवरी को देश का आम बजट संसद के पटल पर रखा गया। जिसमें सरकार का पूरा जोर सरकारी कंपनियों के विनिवेश या आसान शब्दों में कहें तो निजी हाथों में सौंपने का था। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने कहा है कि सौ सरकारी कंपनियों और निगमों ने 2018-19 के दौरान केंद्र को 36,709 करोड़ रुपये के लाभांश दिये। अब कई लोग सवाल कर रहे हैं कि फिर सरकार इनको क्यों बेच रही है। इस रिपोर्ट में सरकार द्वारा सार्वजनिक उपक्रम एनटीपीसी-सेल के संयुक्त उद्यम के रख-रखाव का ठेका देने में भी अनियमितता के आरोप लगाए गए हैं।
सरकारी कंपनियों क्या रहा लेखा-जोखा
संसद में मंगलवार को पेश कैग रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘सौ सरकारी कंपनियों और निगमों ने 2018-19 के दौरान कुल 71,857 करोड़ रुपये के लाभांश की घोषणा की है।’’ ‘‘इसमें से केंद्र सरकार को 36,709 करोड़ रुपये का लाभांश मिला। यह सभी सरकारी कंपनियों और निगमों में किये गये भारत सरकार के 4,00,909 करोड़ रुपये के कुल निवेश पर 9.16 प्रतिशत प्रतिफल के बराबर है।’’
इसके अनुसार पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के अधीन आने वाली 13 सरकारी कंपनियों ने 29,272 करोड़ रुपये का योगदान दिया जो सरकारी कंपनियों और निगमों द्वारा घोषित कुल लाभांश का 40.74 प्रतिशत है।
कैग ने कहा कि 36 केंद्रीय लोक उपक्रमों (सीपीएसई) ने लाभांश घोषणा को लेकर केंद्र सरकार के निर्देश का अनुपालन नहीं किया। इससे 2018-19 में लाभांश भुगतान में 8,011.33 करोड़ रुपये की कमी रही।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 157 केंद्रीय लोक उपक्रमों को 2018-19 के दौरान घाटा हुआ। कुल घाटा 37,310 करोड़ रुपये रहा जो 2017-18 में 41,180 करोड़ रुपये था।
कैग के अनुसार 189 सरकारी कंपनियों और निगमों का 31 मार्च, 2019 को संचित घाटा 1,40,307.55 करोड़ रुपये रहा। इनमें से 77 कंपनियों का संचित घाटा नेटवर्थ को पार कर गया था। यानी उनका नेटवर्थ समाप्त हो गया था।
इसके कारण, 31 मार्च, 2019 की स्थिति के अनुसार इन कंपनियों की शुद्ध परिसम्पत्ति शुद्ध देनदारी से 83,394.28 करोड़ रुपये कम रही। इन 77 कंपनियों में से 15 ने 2018-19 के दौरान कुल मिला कर 662.45 करोड़ रुपये का लाभ कमाया।
कैग रिपोर्ट की माने तो सरकारी कंपनियां जो घाटे में भी है उनका प्रदर्शन पिछले सालों के मुकाबले बेहतर ही हुआ है। जबकि सरकार ने जिन पेट्रोलियम और गैस कंपनी के विनिवेश की योजना बनाई है वो सरकार को लगातार मुनाफ़ा दे रही हैं।
एनटीपीसी-सेल के संयुक्त उद्यम ने रख-रखाव का ठेका देने में किया सीवीसी दिशानिर्देशों का उल्लंघन: कैग
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने कहा है कि सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी एनटीपीसी और सेल के संयुक्त उद्यम एनटीपीसी सेल पावर कंपनी लि. (एनएसपीसी) ने 129.76 करोड़ रुपये के नियमित रखरखाव के काम का ठेका प्रतिस्पर्धी बोली के बिना सीधे देते हुए एक निजी इकाई को अनुचित लाभ पहुंचाया। कैग ने कहा है कि इस तरह ठेका देना केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) के दिशानिर्देशों का उल्लंघन है।
कैग की 18वीं रिपोर्ट के अनुसार इस कार्य का आबंटन 2013-14 से 2018-19 के दौरान किया गया। रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘एनटीपीसी सेल पावर कंपनी लि. ने 2013-14 से 2018-19 के दौरान एक निजी इकाई को 129.76 करोड़ रुपये मूल्य का नियमित रखरखाव का काम सौंपा। यह कार्य सीवीसी के दिशानिर्देशों/सार्वजनिक खरीद नियमन की अनदेखी कर अनुबंध मूल्य के 10 प्रतिशत लाभ के मार्जिन के आधार पर सीधे सौंपा।’’
एनटीपीसी और भारतीय इस्पात प्राधिकरण की संयुक्त उद्यम एनटीपीसी सेल पावर कंपनी लि. (एनएसपीसीएल) बिजली उत्पादक कंपनी है। कंपनी के बिजलीघर भिलाई,दुर्गापुर और राऊरकेला में हैं।
रिपोर्ट के अनुसार एनएसपीसीएल निदेशक मंडल ने अगस्त 2007 में यूटिलिटी पावरटेक लि. (यूपीएल) के साथ एनटीपीसी के समझौतों की तर्ज पर बिजलीघर रखरखाव समझौता किया।
यूपीएल के रखरखाव समझौते को जनवरी 2008 में 10 साल के लिये मंजूरी दी गयी। लेकिन दोनों पक्षों की आपसी सहमति से समझौता मई 2016 में समाप्त कर दिया गया।
उसके बाद कंपनी ने यूपीएल के साथ मई 2016 में पांच साल के लिये नया रखरखाव समझौता किया।
एनएसपीसीएल भिलाई, राऊरकेला और दुर्गापुर में यूपीएल ने 2013-19 के दौरान कुल 346 कार्य किये। इसमें उप-ठेके पर किये गये कार्य शामिल थे। इसके लिये कंपनी को 129.76 करोड़ रुपये के भुगतान किये गये। इसमें 11.53 करोड़ रुपये का लाभ मार्जिन शामिल था।
इनमें से 4.58 करोड़ रुपये के 75 कार्य यूपीएल ने स्वयं किये जबकि 125.18 करोड़ रुपये का 271 कार्य उप-ठके पर कराये गये।
सीवीसी के जुलाई 2007 के आदेश के तहत किसी भी सरकारी एजेंसी के लिये काम का ठेका देने के लिये निविदा प्रक्रिया या सार्वजनिक नीलामी जरूरी है। कोई भी दूसरा तरीका खासकर नामांकन आधार पर कार्य का ठेका देना संविधान के अनुच्छे 14 में प्रदत्त समानता के अधिकार , सार्वजनिक खरीद अधिनियम, सीवीसी दिशानिर्देश और उच्चतम न्यायालय के 2006 के आदेश का उल्लंघन है। साथ ही यह कंपनी के हित के भी खिलाफ है।
सरकार द्वारा सरकारी कंपनियों को निजी हाथों में सौंपने के फैसले के ख़िलाफ़ माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने हमला बोलते हुए कहा कि यह ‘राष्ट्रीय संपत्तियों की लूट’ है।
येचुरी ने ट्वीट किया, ‘‘भारत की जनता सरकारी क्षेत्र की मालिक है। सरकारें आती हैं और जाती हैं। कोई भी जनता की अनुमति के बिना संपत्तियों को नहीं बेच सकती।’’
उन्होंने कहा, ‘‘लोग राष्ट्रीय संपत्तियों की लूट की अनुमति नहीं दे सकते हैं। हम इसका कड़ा विरोध करते हैं।’’
जबकि सरकार के इस फैसले के ख़िलाफ़ देशभर में कर्मचारी और मज़दूर संघ भी इसका विरोध कर रहे है। बजट के तुरंत बाद 3 फरवरी को मज़दूर और कर्मचारियों ने देशभर में प्रदर्शन किया। जबकि बैंक कर्मचारियों ने मार्च में दो दिन के हड़ताल पर जाने का ऐलान किया है।
इन कर्मचारियों का कहना है सरकार जानबूझकर सरकारी कंपनियों को बेचकर अपने पूंजीपति दोस्तों की मदद करना चाहती है।
(समाचार एजेंसी भाषा इनपुट के साथ)
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