मोदी सरकार की नीतियों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर मनाया भारत छोड़ो दिवस
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सोमवार को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ देश भर में हजारों श्रमिकों, किसानों और खेत मज़दूरों ने देशव्यापी विरोध प्रदर्शन में भाग लिया।
सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन (सीटू), अखिल भारतीय किसान सभा (एआईकेएस) और ऑल इंडिया ऐग्रिकल्चरल वर्कर्स यूनियन (एआईएडब्ल्यूयू) के आह्वान पर, श्रमिकों ने देश भर के जिला मुख्यालयों पर एकत्रित होकर धरना और प्रदर्शन किया।
इस दिन विरोध के लिए इसलिए चुना क्योंकि 8 अगस्त को "भारत छोड़ो" का नारा दिया गया था। CITU, AIKS और AIAWU ने पिछले कुछ वर्षों में इसी तरह के साझा विरोध प्रदर्शन के मध्यम से मेहनतकश वर्ग से जुड़े सवालों को उठाया है।
यूनियनों का कहना है कि यह वर्ष विशेष रूप से प्रासंगिक है क्योंकि भारत अपनी स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ मनाने जा रहा है। उस संदर्भ में, इस सरकार का पर्दाफाश करना और भी अधिक प्रासंगिक है कि जनता महंगाई , बेरोजगारी, खाद्य सुरक्षा, आवास, न्यूनतम मजदूरी आदि जैसे मुद्दों से परेशान है । इसके अलावा सार्वजनिक क्षेत्र के निजीकरण पर केंद्र सरकार का जोर निजी उद्योगों को बढ़ावा देने, चार श्रम संहिताओं को लाने , मनरेगा के लिए बजट मे कटौती आदि से मेहनतकशों का कोई लाभ नहीं अपितु उनका नुकसान ही हुआ है।
अपने विरोध के माध्यम से, मजदूरों और किसानों के निकायों ने इस बात पर प्रकाश डाला कि मोदी सरकार अपने देश विरासत को खत्म करने पर आमादा है।
बयान में कहा गया है कि मोदी सरकार के पचहत्तर वर्षों के दौरान अर्थव्यवस्था, लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था और सामाजिक विकास में जो कुछ भी विकसित और निर्मित किया जा सकता है, उन सबको मिटा देना चाहती है ।
तीनों संगठनों ने "जन-विरोधी" बिजली बिल 2020 को वापस लेने की मांग की और विरोध के एक हिस्से के रूप में, बिल की प्रतियां जलाईं।"
देशव्यापी विरोध की एकजुटता में, सीटू, एआईकेएस और एआईएडब्ल्यूयू द्वारा जंतर-मंतर, नई दिल्ली में संयुक्त रूप से एक प्रतीकात्मक कार्यक्रम को आयोजित किया गया था, जिसे सीटू महासचिव तपेन सेन, एआईकेएस महासचिव हन्नान मोल्ला, एआईएडब्ल्यूयू महासचिव बी वेंकट और सीटू दिल्ली के प्रदेश अध्यक्ष वीरेंद्र गौर द्वारा संबोधित किया गया था। प्रदर्शन में बिजली बिल की एक प्रति भी जलाई गई। हालांकि आज ही लोकसभा में बिजली संसोधन विधेयक को रखा गया और बिल को एक संसदीय स्थायी समिति को भेज दिया गया है। यह श्रमिकों द्वारा बनाए गए दबाव को दर्शाता है। किसानों का आंदोलन भी इस बिल को वापस लेने की मांग कर रहा है।
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