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केंद्र ने आयुष-64 के वितरण के लिए आरएसएस से जुड़े संगठन सेवा भारती को नोडल एजेंसी बनाया

आरएसएस के सेवा भारती जैसे संगठन को कोविड-19 दवा के वितरण का काम सौंपे जाने को लेकर जो सबसे गंभीर आपत्ति है, वह यह कि इससे अल्पसंख्यक आबादी के बड़े हिस्से के साथ-साथ आरएसएस के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी भी इसके दायरे से बाहर हो जाते हैं।
Ayush 64

विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल की तरह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े संगठन, सेवा भारती को आयुष मंत्रालय की बहुप्रचारित आयुष-64 आयुर्वेदिक दवा के वितरण के लिए नोडल एजेंसी के तौर पर मुकर्रर किया गया है। हालांकि, आयुष मंत्रालय ने 7 मई को एक बयान में सेवा भारती को 'ज़रूरतमंदों तक दवाइयां पहुंचाने वाले मुख्य सहयोगी' के रूप में उल्लेख तो किया था, लेकिन मंत्रालय ने इस सौदे को लेकर कोई खुलासा नहीं किया है।

इसे लेकर हमारे पास केरल, जम्मू-कश्मीर, लखनऊ, रांची और गुवाहाटी जैसे दूर-दराज़ के राज्यों से बहुत सारे उड़ती-उड़ती ख़बरें हैं। सरकार के सुर में सुर मिलाने वाले मुख्यधारा के मीडिया आरएसएस के इस संगठन को सौंपी गयी इस ख़ास भूमिका को लेकर तक़रीबन ख़ामोश रहा। हालांकि, सेवा भारती के राज्य प्रभारी केंद्र की तरफ़ से दी गयी इस अप्रत्याशित भूमिका को लेकर गर्व से बातें करते हैं।

अवध प्रांत सेवा प्रमुख, देवेंद्र अस्थाना ने संवाददाताओं को बताया कि वितरण के लिए 1.5 लाख टैबलेट पहले ही मिल हो चुके हैं। उन्होंने लखनऊ में कहा, "अगर आवश्यकता पड़ी, तो और टैबलेट उपलब्ध कराये जायेंगे।" जम्मू से इक्सेलसियर की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि आरएसएस से जुड़ा यह संगठन इस केंद्र शासित प्रदेश में 29 वितरण केंद्र खोलेगा। आयुष मंत्रालय के अधिकारी भी वहां मौजूद थे। रांची स्थित प्रांतीय सचिव, ऋषि पांडे ने ख़ुलासा किया कि आयुष मंत्रालय ने सेवा भारती कार्यकर्ताओं को आयुष-64 किट के प्रबंधन का प्रशिक्षण दिया है। उन्होंने कहा कि उनके ज़िला पदाधिकारी अपने-अपने क्षेत्रों में वितरण केंद्र स्थापित कर रहे हैं।

केरल में आरएसएस कार्यकर्ताओं को इस सरकारी दवा के वितरण के काम ने भगवा कार्यकर्ताओं और स्थानीय सरकारी अधिकारियों के बीच बहुत कड़वाहट पैदा कर दी है। कई जगहों पर तो पंचायत अधिकारियों ने आधिकारिक कोविड-19 रजिस्टर देने से ही इनकार कर दिया है, क्योंकि सेवा भारती के पास ऐसा काम करने का कोई अधिकार नहीं है। केरल सरकार या किसी राज्य प्राधिकरण ने ऐसे काम के लिए सेवा भारती को मान्यता नहीं दी है और इस बाबत न ही राज्य सरकार को केंद्र से कोई सूचना ही मिली है। कई जगहों पर तो लोगों ने सेवा भारती कार्यकर्ताओं को हस्ताक्षर किये हुए काग़ज़ात और निजी दस्तावेज़ उपलब्ध कराने से इनकार कर दिया है।

केरल में इस टैबलेट का वितरण कौन करेगा, इसे लेकर भी बहुत ज़्यादा भ्रम बना हुआ है। आयुष मंत्रालय ने आयुष-64 की खेप राष्ट्रीय आयुर्वेदिक संस्थान, चेरुथुरुथी और तिरुवनंतपुरम को भेजी थी। साथ ही साथ सेवा भारती को भी इसकी एक खेप सीधे केंद्र से मिली थी। राज्य के आयुर्वेदिक डॉक्टरों ने इस वितरण को लेकर एक राजनीतिक संगठन को अधिकृत करने के मंत्रालय के इस फ़ैसले की निंदा की है। उन्होंने कहा कि इस तरह के किसी राजनीतिक संगठन के बजाय सिर्फ़ योग्य आयुर्वेदिक डॉक्टरों को ही इस काम की अनुमति दी जानी चाहिए।

इस फ़ैसले को लेकर केरल का सत्तारूढ़ गठबंधन, एलडीएफ़ ने भी नाराज़गी जतायी है। मुख्यमंत्री, पिनाराई विजयन ने कहा कि इस काम के लिए आरएसएस कार्यकर्ताओं वाली सेवा भारती नहीं, बल्कि राज्य में अनगिनत आउटलेट्स के नेटवर्क वाली केरल सरकार की पहल, ’औषधी’ सही एजेंसी थी। वामपंथी सांसद, एलामारम करीम ने स्वास्थ्य मंत्री को चिट्ठी लिखकर आरएसएस को इस अप्रत्याशि सरकारी 'काम' के सौंपे जाने का विरोध किया है। पीएम मोदी को लिखे पत्र में सांसद, जॉन ब्रिटास ने कहा है कि केंद्र राजनीति को कोविड-19 की लड़ाई के साथ मिला रहा है।

लोकतांत्रिक जनता दल के सांसद, एम.वी. श्रेयंस कुमार ने टिप्पणी करते हुए कहा कि राजनीतिक कार्यकर्ताओं के बजाय आयुर्वेदिक डॉक्टरों को आयुष-64 जैसी कोविड-19 दवा के संचालन का काम सौंपा जाना चाहिए था। इसका कारण यह है कि जब रोगी अपने घर में आइसोलेशन में होता है, तब इस दवा को इस बीमारी के हल्के स्तर से से मध्यम स्तर तक ले जाने के लिए मानक देखभाल ((SoC)) की सहायक दवा के रूप में लिया जाना चाहिए। इसका इस्तेमाल दिशानिर्देशों के तहत सिर्फ़ किसी योग्य आयुष पेशेवर की सलाह के मुताबिक़ ही किया जाना चाहिए।

आरएसएस के सेवा भारती जैसे संगठन को कोविड-19 दवा के वितरण का काम सौंपे जाने को लेकर जो सबसे गंभीर आपत्ति रही है, वह यह है कि कि यह अल्पसंख्यक आबादी के बड़े हिस्से के साथ-साथ आरएसएस के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को भी अपने दायरे से बाहर कर देता है।

जब सेवा भारती के कार्यकर्ता अपने भगवा बैनर और प्रचार सामग्री के साथ अल्पसंख्यक क्षेत्रों में जाते हैं, तो स्थानीय लोग उन्हें विरोधी भावनाओं के साथ देखते हैं। उन्हें इस बात की भी आशंका होती है कि जो लोग सालों से उनसे नफ़रत करते रहे हैं, उनकी तरफ़ से दी जा रही यह मुफ़्त दवा उनकी सेहत के लिए नुकसानदेह तो नहीं है। राजनीतिक रूप से विभाजित व्यवस्था में बार-बार होते चुनाव से विरोधी भावनायें बढ़ती है, ऐसे में प्रतिद्वंद्वी समूहों को आरएसएस की तरफ़ से सहायता पहुंचाये जाने की इस तरह की गतिविधि पर आपत्ति हो सकती है। हालांकि, ऐसा कई बार हुआ है कि सेवा भारती कार्यकर्ताओं ने पहले भी प्राकृतिक आपदाओं के दौरान राहत सामग्री बांटी है।

दूसरी आपत्ति सत्ताधारी दल की तरफ़ से संचालित किसी संगठन को सरकारी धन और सामग्री मुहैया कराने को भी लेकर है। यह राजनीतिक उद्देश्यों के लिए सरकारी मशीनरी और सरकारी धन का दुरुपयोग है और इसका इस्तेमाल अपनी राजनीतिक पहुंच बढ़ाने जैसा भी है। सवाल है कि आख़िर सेवा भारती को इस बड़े काम के लिए क्यों चुना गया ? बेहतर ट्रैक रिकॉर्ड वाले कई सारे ग़ैर सरकारी संगठन और नागरिक संगठन भी तो हैं।

आरोप यह भी रहा है कि कई जगहों पर सेवा भारती कार्यकर्ता यह दावा करते हुए आयुष-64 बांट रहे हैं कि यह पहल उनकी अपनी है। केरल में ऐसी शिकायतें भी की जाती रही हैं कि भगवा कार्यकर्ताओं ने मरीजों से कहा कि उन्हें यह दवा 'मोदी' ने भेजी है।

सेवा भारती की क़िस्मत कैसे परवान चढ़ी

आरएसएस के अन्य सहयोगियों की तरह सेवा भारती की क़िस्मत नरेंद्र मोदी के प्रधान मंत्री बनने के तुरंत बाद ही चमक उठी। लॉकडाउन के दौरान सरकार ने राहत और बचाव को लेकर सेवा भारती की अगुवाई में 736 ग़ैर सरकारी संगठनों को सूचीबद्ध किया था।मोदी सरकार के तहत आरएसएस के संगठनों को इस तरह का सरकारी संरक्षण दिया गया।

इस एकमात्र क़दम ने सेवा भारती के सहयोगियों को राज्य आपदा राहत कोष से पैसा पाने का पात्र बना दिया है। साथ ही साथ इस क़दम ने उन्हें वितरण के लिए भारतीय खाद्य निगम से रियायती दर पर खाद्यान्न पाने की भी उसे पात्रता दे दी है। पिछले साल 25 अप्रैल को सपा अध्यक्ष, अखिलेश यादव ने आरएसएस पर सरकार से खाना लेने और उसे अपना बताकर बांटने का आरोप लगाया था। उन्होंने आरोप लगाया था कि कई जगहों पर तो राहत सामग्री ‘मोदी बैग’ में भकर बांटी गयी है।

लॉकडाउन के दौरान सेवा भारती ने एक और सोने की खदान पर धावा बोल दिया था। मोदी सरकार ने सभी सेवा भारती सहयोगियों को आकर्षक कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी(CSR) फ़ंड का पात्र बना दिया। लॉकडाउन के दौरान नीति आयोग के अध्यक्ष ने निजी कंपनियों से ‘एनजीओ-दर्पण’ पोर्टल पर पंजीकृत एनजीओ को सीएसआर फ़ंड मुहैया कराने की विशेष अपील की थी। सेवा भारती और उसके सहयोगी बजाप्ता पंजीकृत हैं। जल्द ही उन्हें कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय से भी औपचारिक मंजूरी मिल गयी।

आरएसएस परिवार के भीतर कहीं ज़्यादा आकर्षक सेवा भारती की ओर जाने की होड़ सी मची हुई है। मज़दूर आंदोलन के मंद पड़ने के बाद भारतीय मज़दूर संघ (आरएसएस से जुड़े ट्रेड यूनियन) के अधिकारी उस सेवा भारती में शामिल होने की कोशिश कर रहे हैं, जो राहत सामग्री से भरे बड़े गोदामों का संचालन करता है। केरल में आयी बाढ़ के दौरान कई सेवा भारती वितरण केंद्रों का दौरा करने वाले इस रिपोर्टर ने दुकानों से ग़ायब पैकेट और राहत सामग्री को लेकर फुसफुसाहटें सुनी थीं। लेकिन, वह एक अलग कहानी है।

(पी.रमन एक वरिष्ठ पत्रकार हैं और 'ट्राइस्ट विद स्ट्रॉन्ग लीडर पॉपुलिज़्म: हाउ मोदीज़ हाइब्रिड रिजीम मॉडल इज़ चेंजिंग पॉलिटिकल नैरेटिव्स, इकोसिस्टम एंड सिंबल' के लेखक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें।

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