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गरीबी, बेरोजगारी और बढ़ती आर्थिक-सामाजिक असमानता पर RSS ने भी गडकरी के सुर में सुर मिलाया

देश में गरीबी, बेरोजगारी और बढ़ती आर्थिक सामाजिक असमानता पर आरएसएस ने भी केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के सुर में सुर मिलाया है। केंद्रीय मंत्री के साथ गरीबी, बेरोजगारी और आय में बढ़ती असमानता पर RSS महासचिव दत्तात्रेय होसबोले ने भी चिंता जताई है जिसे मोदी सरकार के लिए मुश्किल बढ़ाने वाले बयान के तौर पर देखा जा रहा है। 
poverty

देश में ग़रीबी, बेरोजगारी और असमानता बढ़ रही है। देश के बड़े हिस्से को अभी भी न तो साफ़ पानी मिलता है और न ही पौष्टिक भोजन। देश की ऐसी स्थिति का आकलन किसी विपक्षी नेता ने नहीं, बल्कि बीजेपी के मातृ संगठन आरएसएस के ही नेता का है। आरएसएस के ये नेता भी कोई ऐसे वैसे नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले हैं। जी हां, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ RSS के महासचिव दत्तात्रेय होसबोले ने देश में गरीबी, बेरोजगारी और आय में बढ़ती असमानता पर चिंता जताई है। इससे पहले केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी भी इस सब पर चिंता जाहिर कर चुके हैं।

होसबोले ने कहा कि गरीबी देश के सामने एक राक्षस जैसी चुनौती के रूप में सामने आ रही है। गरीबी के अलावा असमानता और बेरोजगारी, दो चुनौतियां हैं जिनसे भी निपटने की आवश्यकता है। होसबोले का यह बयान ऐसे समय में आया है जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी 'भारत जोड़ो यात्रा' पर हैं। राहुल बेरोजगारी, महंगाई और आर्थिक असमानता के मुद्दों को उठाते रहे हैं। राहुल लगातार इस मुद्दे को उठाते रहे हैं जिसमें वह कहते हैं कि दो भारत बन गए है जिसमें एक दिन ब दिन अमीर होता जा रहा है और दूसरा गरीबी रेखा से नीचे धकेला जा रहा है।

बहरहाल, होसबोले आरएसएस से जुड़े स्वदेशी जागरण मंच द्वारा आयोजित एक वेबिनार में बोल रहे थे। यह वेबिनार स्वावलंबी भारत अभियान के तहत आयोजित किया गया था। होसबले ने देश में ग़रीबी पर चिंता जताते हुए कहा, 'देश में गरीबी हमारे सामने दानव की तरह खड़ी है। यह महत्वपूर्ण है कि हम इस राक्षस का वध करें। 20 करोड़ लोग अभी भी गरीबी रेखा से नीचे हैं, यह एक ऐसा आंकड़ा है जो हमें बहुत दुखी करता है। 23 करोड़ लोगों की प्रतिदिन की आय 375 रुपये से कम है।'

उन्होंने कहा, ‘देश में चार करोड़ बेरोजगार हैं, जिनमें ग्रामीण क्षेत्रों में 2.2 करोड़ और शहरी क्षेत्रों में 1.8 करोड़ बेरोजगार हैं। श्रम बल सर्वेक्षण में बेरोजगारी दर 7.6 प्रतिशत आंकी गई है। हमें रोजगार पैदा करने के लिए न केवल अखिल भारतीय योजनाओं की आवश्यकता है बल्कि स्थानीय योजनाओं की भी आवश्यकता है।’ यही नहीं, इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार, होसबोले ने कहा कि एक और बड़ा मुद्दा बढ़ती आर्थिक असमानता भी है। 

होसबोले ने कहा, “एक आँकड़ा कहता है कि भारत दुनिया की शीर्ष छह अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। लेकिन क्या यह अच्छी स्थिति है? भारत की शीर्ष 1% आबादी के पास देश की आय का पांचवां (20%) हिस्सा है। साथ ही देश की 50% आबादी के पास देश की आय का केवल 13% है।

होसबोले ने कहा कि 'देश के एक बड़े हिस्से में अभी भी स्वच्छ पानी और पौष्टिक भोजन नहीं है। नागरिक संघर्ष और शिक्षा का ख़राब स्तर भी गरीबी का एक कारण है। इसीलिए एक नई शिक्षा नीति की शुरुआत की गई है। यहाँ तक ​​कि जलवायु परिवर्तन भी ग़रीबी का एक कारण है। और कई जगहों पर सरकार की अक्षमता गरीबी का कारण है।'

होसबोले के अनुसार यह विचार कि केवल शहरी क्षेत्रों में ही रोजगार होगा, इससे गांव खाली हो गए हैं और शहरी जीवन नरक बन गया है। उन्होंने यह भी कहा, 'हमें केवल अखिल भारतीय स्तर की योजनाओं की ही नहीं, बल्कि स्थानीय योजनाओं की भी ज़रूरत है। यह कृषि, कौशल विकास, विपणन आदि के क्षेत्र में किया जा सकता है। हम कुटीर उद्योग को पुनर्जीवित कर सकते हैं। इसी प्रकार चिकित्सा के क्षेत्र में भी स्थानीय स्तर पर बहुत सी आयुर्वेदिक औषधियों का निर्माण किया जा सकता है। हमें स्वरोजगार और उद्यमिता में रुचि रखने वाले लोगों को खोजने की जरूरत है।'

उधर, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी भी इसी सुर में देश की दशा व दिशा पर चिंता जता चुके हैं। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने देश में बेरोजगारी, भूखमरी और महंगाई के मुद्दे पर बात करते हुए कहा कि हम मातृ भूमि को सुखी, समृद्ध और शक्तिशाली बनाना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि देश तो धनवान हो गया पर जनता गरीब है, इसलिए देश के विकास के लिए गंभीरता से सोचना होगा कि किस रास्ते जाना है? 

एक कार्यक्रम में बोलते हुए केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा, “हमारा देश धनवान है पर जनता गरीब है, आज भी भारत की जनता भूखमरी, गरीबी, महंगाई, बेरोजगारी से त्रस्त है। भारत विश्व की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था है। इसके बावजूद देश की जनसंख्या भुखमरी, गरीबी, महंगाई, बेरोजगारी, जातिवाद और अपृश्यता का सामना कर रही है, जो कि देश की प्रगति के लिए ठीक नहीं है।”

गडकरी ने आगे कहा कि देश में गरीब और अमीर के बीच गहरी खाई है, जिसे पाटने और समाज के बीच सामाजिक व आर्थिक समानता पैदा करना जरूरी है। समाज के इन दो हिस्सों के बीच खाई बढ़ने से आर्थिक विषमता और सामाजिक असामनता की तरह है।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार उन्होंने कहा, “हमारे समाज मे दो विशेषरूप से वर्गों का अंतर बहुत ज्यादा है। जिससे सामाजिक विषमता है वैसे आर्थिक विषमता भी बढ़ी है। हमारे देश में 124 जिले ऐसे हैं, जो सामाजिक आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े हुए हैं। वहां, स्कूल, अस्पताल नहीं हैं, युवाओं के लिए रोजगार नहीं हैं और गांव जाने के लिए रास्त नहीं हैं, किसानों को फसलों के सही दाम नहीं मिल रहे।”

केंद्रीय मंत्री ने कहा, “हमारे देश में शहरी क्षेत्र में ज्यादातर हम काम करते हैं इसलिए वहां ज्यादा विकास हुआ है, लेकिन 1947 में 90% आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती थी। अब 25-30% माइग्रेशन हुआ है। ये लोग जो गांव छोड़कर बड़े शहरों दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, चेन्नई में शिफ्ट हुए हैं। ये खुशी से नहीं मजबूरी से आए हैं क्योंकि गांवों में अच्छी शिक्षा, रोजगार नहीं हैं इस कारण लोग गांव छोड़कर शहरों में आए हैं, जिससे शहरों में भी समस्याओं का निर्माण हुआ है इसलिए भारत का विकास करने के लिए गंभीरता से सोचना होगा कि हमें किस मार्ग से जाना है।”
केंद्रीय मंत्री के साथ गरीबी, बेरोजगारी और आय में बढ़ती असमानता पर RSS महासचिव दत्तात्रेय होसबोले ने भी चिंता जताई है जिसे मोदी सरकार के लिए मुश्किल बढ़ाने वाले बयान के तौर पर देखा जा रहा है। 

देश में ग़रीबी, बेरोजगारी और असमानता बढ़ रही है। देश के बड़े हिस्से को अभी भी न तो साफ़ पानी मिलता है और न ही पौष्टिक भोजन। देश की ऐसी स्थिति का आकलन किसी विपक्षी नेता ने नहीं, बल्कि बीजेपी के मातृ संगठन आरएसएस के ही नेता का है। आरएसएस के ये नेता भी कोई ऐसे वैसे नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले हैं। जी हां, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ RSS के महासचिव दत्तात्रेय होसबोले ने देश में गरीबी, बेरोजगारी और आय में बढ़ती असमानता पर चिंता जताई है। इससे पहले केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी भी इस सब पर चिंता जाहिर कर चुके हैं।

होसबोले ने कहा कि गरीबी देश के सामने एक राक्षस जैसी चुनौती के रूप में सामने आ रही है। गरीबी के अलावा असमानता और बेरोजगारी, दो चुनौतियां हैं जिनसे भी निपटने की आवश्यकता है। होसबोले का यह बयान ऐसे समय में आया है जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी 'भारत जोड़ो यात्रा' पर हैं। राहुल बेरोजगारी, महंगाई और आर्थिक असमानता के मुद्दों को उठाते रहे हैं। राहुल लगातार इस मुद्दे को उठाते रहे हैं जिसमें वह कहते हैं कि दो भारत बन गए है जिसमें एक दिन ब दिन अमीर होता जा रहा है और दूसरा गरीबी रेखा से नीचे धकेला जा रहा है।

बहरहाल, होसबोले आरएसएस से जुड़े स्वदेशी जागरण मंच द्वारा आयोजित एक वेबिनार में बोल रहे थे। यह वेबिनार स्वावलंबी भारत अभियान के तहत आयोजित किया गया था। होसबले ने देश में ग़रीबी पर चिंता जताते हुए कहा, 'देश में गरीबी हमारे सामने दानव की तरह खड़ी है। यह महत्वपूर्ण है कि हम इस राक्षस का वध करें। 20 करोड़ लोग अभी भी गरीबी रेखा से नीचे हैं, यह एक ऐसा आंकड़ा है जो हमें बहुत दुखी करता है। 23 करोड़ लोगों की प्रतिदिन की आय 375 रुपये से कम है।'

उन्होंने कहा, ‘देश में चार करोड़ बेरोजगार हैं, जिनमें ग्रामीण क्षेत्रों में 2.2 करोड़ और शहरी क्षेत्रों में 1.8 करोड़ बेरोजगार हैं। श्रम बल सर्वेक्षण में बेरोजगारी दर 7.6 प्रतिशत आंकी गई है। हमें रोजगार पैदा करने के लिए न केवल अखिल भारतीय योजनाओं की आवश्यकता है बल्कि स्थानीय योजनाओं की भी आवश्यकता है।’ यही नहीं, इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार, होसबोले ने कहा कि एक और बड़ा मुद्दा बढ़ती आर्थिक असमानता भी है। 

होसबोले ने कहा, “एक आँकड़ा कहता है कि भारत दुनिया की शीर्ष छह अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। लेकिन क्या यह अच्छी स्थिति है? भारत की शीर्ष 1% आबादी के पास देश की आय का पांचवां (20%) हिस्सा है। साथ ही देश की 50% आबादी के पास देश की आय का केवल 13% है।

होसबोले ने कहा कि 'देश के एक बड़े हिस्से में अभी भी स्वच्छ पानी और पौष्टिक भोजन नहीं है। नागरिक संघर्ष और शिक्षा का ख़राब स्तर भी गरीबी का एक कारण है। इसीलिए एक नई शिक्षा नीति की शुरुआत की गई है। यहाँ तक ​​कि जलवायु परिवर्तन भी ग़रीबी का एक कारण है। और कई जगहों पर सरकार की अक्षमता गरीबी का कारण है।'

होसबोले के अनुसार यह विचार कि केवल शहरी क्षेत्रों में ही रोजगार होगा, इससे गांव खाली हो गए हैं और शहरी जीवन नरक बन गया है। उन्होंने यह भी कहा, 'हमें केवल अखिल भारतीय स्तर की योजनाओं की ही नहीं, बल्कि स्थानीय योजनाओं की भी ज़रूरत है। यह कृषि, कौशल विकास, विपणन आदि के क्षेत्र में किया जा सकता है। हम कुटीर उद्योग को पुनर्जीवित कर सकते हैं। इसी प्रकार चिकित्सा के क्षेत्र में भी स्थानीय स्तर पर बहुत सी आयुर्वेदिक औषधियों का निर्माण किया जा सकता है। हमें स्वरोजगार और उद्यमिता में रुचि रखने वाले लोगों को खोजने की जरूरत है।'

उधर, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी भी इसी सुर में देश की दशा व दिशा पर चिंता जता चुके हैं। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने देश में बेरोजगारी, भूखमरी और महंगाई के मुद्दे पर बात करते हुए कहा कि हम मातृ भूमि को सुखी, समृद्ध और शक्तिशाली बनाना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि देश तो धनवान हो गया पर जनता गरीब है, इसलिए देश के विकास के लिए गंभीरता से सोचना होगा कि किस रास्ते जाना है? 

एक कार्यक्रम में बोलते हुए केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा, “हमारा देश धनवान है पर जनता गरीब है, आज भी भारत की जनता भूखमरी, गरीबी, महंगाई, बेरोजगारी से त्रस्त है। भारत विश्व की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था है। इसके बावजूद देश की जनसंख्या भुखमरी, गरीबी, महंगाई, बेरोजगारी, जातिवाद और अपृश्यता का सामना कर रही है, जो कि देश की प्रगति के लिए ठीक नहीं है।”

गडकरी ने आगे कहा कि देश में गरीब और अमीर के बीच गहरी खाई है, जिसे पाटने और समाज के बीच सामाजिक व आर्थिक समानता पैदा करना जरूरी है। समाज के इन दो हिस्सों के बीच खाई बढ़ने से आर्थिक विषमता और सामाजिक असामनता की तरह है।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार उन्होंने कहा, “हमारे समाज मे दो विशेषरूप से वर्गों का अंतर बहुत ज्यादा है। जिससे सामाजिक विषमता है वैसे आर्थिक विषमता भी बढ़ी है। हमारे देश में 124 जिले ऐसे हैं, जो सामाजिक आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े हुए हैं। वहां, स्कूल, अस्पताल नहीं हैं, युवाओं के लिए रोजगार नहीं हैं और गांव जाने के लिए रास्त नहीं हैं, किसानों को फसलों के सही दाम नहीं मिल रहे।”

केंद्रीय मंत्री ने कहा, “हमारे देश में शहरी क्षेत्र में ज्यादातर हम काम करते हैं इसलिए वहां ज्यादा विकास हुआ है, लेकिन 1947 में 90% आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती थी। अब 25-30% माइग्रेशन हुआ है। ये लोग जो गांव छोड़कर बड़े शहरों दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, चेन्नई में शिफ्ट हुए हैं। ये खुशी से नहीं मजबूरी से आए हैं क्योंकि गांवों में अच्छी शिक्षा, रोजगार नहीं हैं इस कारण लोग गांव छोड़कर शहरों में आए हैं, जिससे शहरों में भी समस्याओं का निर्माण हुआ है इसलिए भारत का विकास करने के लिए गंभीरता से सोचना होगा कि हमें किस मार्ग से जाना है।”

साभार : सबरंग 

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