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राजस्थान : धमाकों की दहलीज़ पर बसा गांव जोधपुरा

इस गांव में कंपनी द्वारा लगाए जा रहे नए क्रेशर के लिए जो ब्लास्टिंग की जा रही है उसके धमाकों से लोगों के घरों में दरारें आ गई हैं और छतें भी टूट रही हैं।
rajasthan

सीमेंट कम्पनी द्वारा पत्थर तोड़ने के लिए किये जाने वाले बारूद के धमाकों और दम घोटने वाले प्रदूषण से तंग आकर 216 दिनों से धरने पर बैठे ग्रामीण इस तेज़ गर्मी में भी न्याय की उम्मीद रखते हैं। यह राजस्थान की कोटपूतली तहसील का जोधपुरा गाँव है जहाँ पर अल्ट्राटेक सीमेंट कम्पनी अपना नया क्रेशर लगा रही है जो गाँव की बसावट से करीब 70 मीटर दूरी से भी कम पर है। इसी के विरोध में और गाँव के पुनर्वास के लिए ग्रामीण महिला-पुरुष करीब छह महीने से जोधपुरा-मोहनपुरा में सत्याग्रह कर रहे हैं। गाँव के महिला-पुरुष रोज़ नियमित रूप से धरना स्थल पर सुबह 10 बजे आते हैं और शाम को 6 बजे तक रहते हैं, उन्होंने एक उपस्थिति रजिस्टर भी डाल रखा है जिसमें हर दिन का रिकॉर्ड है। पहले ग्रामीण आम रस्ते पर धरने पर बैठे थे लेकिन पिछले दिनों पुलिस ने लोगों को वहाँ से हटाया तो ग्रामीण कुछ दूरी पर स्थित मंदिर के सामने जाकर बैठ गए हैं।

कंपनी द्वारा लगाए जा रहे नए क्रेशर के लिए जो ब्लास्टिंग की जा रही है उसके धमाकों से लोगों के घरों में दरारें आ गई हैं और छतें भी टूट रही हैं। ग्रामीण कैलाश यादव का कहना है, "एक धमाके के लिए पाँच कट्टों तक बारुद इस्तेमाल की जाती है। आप अंदज़ा लगा सकते हैं कि धमाका कितने जोर से होता होगा। मकान हिलने लगते हैं। बच्चे इतने डर जाते हैं कि रातभर रोते हैं। हमारे लिए रातें भयानक डरावनी हो गई हैं।"

गाँव वहीं, काग़ज़ों में पुनर्वास 

अल्ट्राटेक सीमेंट ने 2003 में प्लांट के लिए भूमि अधिग्रहण शुरू किया था जिसमें जोधपुरा, मोहनपुरा, कुजाता, कंवरपुरा, अजीतपुरा और मेहरमपुर गाँवों से ज़मीन अधिग्रहित की थी। मोहनपुरा गाँव का पुनर्वास हो गया था लेकिन जोधपुरा का पुनर्वास नहीं किया। जोधपुरा की आबादी प्लांट से सटी हुई है, जहाँ नए खनन की साइट बनाई जा रही है उसके सबसे नजदीक घर 20 मीटर की दूरी पर है। गाँव और नए लगाए जा रहे क्रेशर के बीच मात्र एक सड़क और ज़मीन का छोटा-सा टुकड़ा है।

ग्रामीण हजारी लाल सरोल का कहना है, "इस बारे में सरकार से जब सूचना के अधिकार के तहत जानकारी माँगी तो काफी भ्रामक जानकारियाँ दी जा रही हैं। 2015 राजस्थान अनुसूचित जाति आयोग को जयपुर जिला कलेक्टर ने तथ्यात्मक रिपोर्ट भेजी जिसमें कहा गया है कि कम्पनी ने सभी गाँवों का पुनर्वास कर दिया। हकीकत में जोधपुरा वहीं है जहाँ बरसों से था। ग्रामीणों का यह भी आरोप है कि कंपनी के पास 548 हैक्टेयर पर खनन करने की लीज है लेकिन उसने आसपास के श्मशान, नाले, जोहड़े, स्कूल का मैदान और मंदिर माफ़ी की ज़मीन पर कब्ज़ा कर लिया है।"

बिन पानी सब सून 

प्रशासन ने यह भी जानकारी दी कि इन गाँवों में कम्पनी बिजली, पानी, सड़क और मेडिकल की सुविधाएँ दे रही है लेकिन गाँव वाले बताते हैं कि जोधपुरा में कुल 1200 के करीब परिवार और 3 हज़ार के आसपास जनसंख्या है जिसके लिए रोज़ कम्पनी सिर्फ 6 टेंकर पानी डलवाती है जो बहुत ही कम है। लोगों को अपने पैसे से पानी के टेंकर डलवाने पड़ते हैं, एक परिवार के दो दिन का पानी का खर्चा ही करीब 400 रुपए है। धरातल पर यह भी देखा गया कि सड़क के किनारे एक प्याऊ जरूर लगी है जिस पर कम्पनी का बोर्ड लगा हुआ है और एक बुजुर्ग महिला राहगीरों के पानी पिलाती है। पशुओं के पाने पीने की तो कोई व्यवस्था ही नहीं है।

अरावली के वादियों में बसे इस इलाके के बारे में ग्रामीणों ने बताया कि प्लांट लगने से पहले सन 2003 में यहाँ हैंडपम्प लगाने पर भूजल 100 फिट पर था। पूरा इलाका हरा-भरा था। गेंहू, बाजरा, चना, मूंग  और मोठ की फसलें होती थीं लेकिन अब पूरा इलाका सूख गया है। जमीन के नीचे 1200 फिट तक पानी नहीं है, सारे का प्लांट ने दोहन कर लिया।

गाँव में वैसे तो मुस्लिम आबादी नहीं है लेकिन पास की पहाड़ी पर पीर बाबा की दरगाह है जिसे पूरा गाँव अपना कुल देवता मानता है। इसकी स्थापना को भी लोग गाँव की स्थापना के साथ ही जोड़ते हैं। कंपनी जो अभी तक खनन कर रही थी वह खान पीर बाबा की पहाड़ी से सटी हुई है, जहाँ से आसानी से देखा जा सकता है कि खनन करके नीचे से भूजल को भी निकाल लिया गया है।

बीमारियों का प्रकोप

ग्रामीण शीला देवी ने बताया कि गाँव में कम्पनी ने मेडिकल की कोई सुविधा उपलब्ध नहीं कराई बल्कि घर-घर में बीमारियाँ जरूर बाँट दी हैं। गाँव में ऐसा कोई घर नहीं है जिसमें गंभीर बीमारी का मरीज़ न हो। गाँव वालों का अनुमान है कि गाँव के 30 प्रतिशत लोग दमा के मरीज़ हो गए हैं। 10 साल की उम्र के बच्चे साँस के लिए पंप ले रहे हैं। बहरापन और घुटनों में दर्द तो आम बात हो गई है। 80 प्रतिशत लोग स्किन एलर्जी से पीड़ित हैं। 

एक तरफ लोगों की आमदनी घटी है तो दूसरी तरफ दवाइयों का खर्चा बढ़ा है। कम्पनी यह भी दावा करती है कि स्थानीय लोगों से खूब रोजगार दिया गया है लेकिन सच्चाई यह है कि इस गाँव से केवल 6 लोगों को काम मिला है।

सबसे आश्चर्यजनक बात तो यह है कि तीन हज़ार लोगों के गाँव में केवल पांच बुजुर्ग ही बचे हैं। लोगों की औसत आयु कम हो गई है। मेवा देवी ने बताया कि बहुत लोगों में कैंसर फैल रहा है। हार्ट अटैक के मामले तो इतने बढ़ गए हैं कि 22 साल के जवानों को स्टंट डलवाने पड़ रहे हैं। बहुत लोगों की आँखों की रौशनी जा रही है।

पशुधन भी सिमटा

इलाके की अर्थव्यवस्था में पशुधन की बहुत बड़ी भूमिका है। इस गाँव में भी प्लांट लगने से पहले हर घर में पशु रहते थे क्योंकि पहाड़ी की तलहटी में खूब घास होती थी। सन 2012 की पशुगणना में मोहनपुरा-जोधपुर में 640 भैसें और 53 गायें थीं लेकिन 2019 की  पशुगणना में 553 भैसें और 37 गायें बची। पशुओं की संख्या की इस गिरावट के साथ ही उनके दूध की पैदावार में भी गिरावट आई है। बिमला देवी का कहना है कि पहले भैंस 13 लीटर प्रतिदिन का दूध देती थी, आज एक भैंस 8 लीटर प्रतिदिन दूध दे रही है।

गाँव वालों ने की पेड़गणना

आंदोलन की सत्याग्रह की तकनीक ने गाँव वालों को कम्पनी की हर बात की तह तक जाना सीखा दिया है। वे बिना किसी तथ्य और आधार के कोई बात नहीं कहते, उदाहरण के लिए कम्पनी ने दावा किया कि उसने पर्यावरण की सुरक्षा के लिए गाँव में 73 हजार पेड़ लगाए। इन पेड़ों में से 66 हजार पेड़ अभी भी जीवित हैं। यह बात गाँव वालों के गले नहीं उतरी और उन्होंने शुरू कर दी पेड़गणना। गाँव के लोगों ने समूह में कागज़ और कलम लेकर हर पेड़ की गणना शुरू कर दी। उनकी गणना में कुल 18 हजार ही जीवित पेड़ मिले। यह संख्या कम्पनी द्वारा बताए गए पेड़ों से 30 से भी कम है। ग्रामीणों ने यह भी बताया कि सरे पेड़ सामिया केसिया के हैं जो इस इलाके की पारिस्थितिकी से मेल नहीं खाता है, इस पेड़ के नीचे घास तो बिल्कुल भी नहीं उगती। पशु या इंसान के शरीर को अगर पेड़ छू जाए तो खुजली हो जाती है और फिर दाद भी बन जाता है।

कंपनी वाले समझौते से मुकरे

इस सत्याग्रह को कई सामाजिक कार्यकर्ताओं और संगठनों का समर्थन मिला। प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटेकर भी आन्दोलनकारियों को समर्थन देने आई। उसी समय कोटपूतली एसडीएम, मेधा पाटेकर, ग्रामीण और प्लांट प्रशासन के बीच समझौता हुआ कि कम्पनी वाले नजदीक में कोई ब्लास्टिंग नहीं करेंगे और अभी तक के तोड़े हुए पत्त्थर उठा लेंगे लेकिन कम्पनी वाले समझौते से मुकर गए। वे लगातार नए क्रेशर का काम कर रहे हैं, गाँव वाले अपने सत्याग्रह पर अडिग हैं और प्रशासन कम्पनी के साथ है।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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