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रुपये पर क़ायम रह सकता है दबाव : आर्थिक समीक्षा

आर्थिक समीक्षा 2022-23 में कहा गया है कि निर्यात में स्थिरता तथा चालू खाते का घाटा (कैड) और बढ़ने से रुपया और कमज़ोर हो सकता है।
ECONOMIC
PTI

संसद में मंगलवार को पेश आर्थिक समीक्षा 2022-23 में कहा गया है कि निर्यात में स्थिरता तथा चालू खाते का घाटा (कैड) और बढ़ने से रुपया और कमजोर हो सकता है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के आंकड़ों के अनुसार, ऊंचे व्यापार घाटे की वजह से देश का चालू खाते का घाटा जुलाई-सितंबर तिमाही में बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 4.4 प्रतिशत हो गया। यह अप्रैल-जून तिमाही में जीडीपी का 2.2 प्रतिशत था।

उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (डीपीआईआईटी) के आंकड़ों के मुताबिक, चालू वित्त वर्ष में अप्रैल-सितंबर के दौरान भारत में एफडीआई प्रवाह 14 प्रतिशत घटकर 26.9 अरब डॉलर रह गया।

कुल एफडीआई प्रवाह चालू वित्त वर्ष के पहले छह महीनों में सालाना आधार पर 42.86 अरब डॉलर से घटकर 39 अरब डॉलर रह गया।

मंगलवार के शुरुआती कारोबार में विदेशी मुद्रा की निकासी और घरेलू शेयरों में सुस्ती के रुख के चलते अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 12 पैसे गिरकर 81.64 प्रति डॉलर पर आ गया।

भू-राजनीतिक तनाव और अमेरिका के केंद्रीय बैंक की मौद्रिक नीति को कड़ा करने से रुपये पर दबाव पड़ा है। रुपया 83 प्रति डॉलर के स्तर को भी पार कर चुका है। आर्थिक समीक्षा के अनुसार, जिंसों की कीमतें रिकॉर्ड ऊंचाई से नीचे आ गई हैं।

हालांकि, ये अब भी रूस-यूक्रेन युद्ध से पहले के स्तर से ऊंची हैं।

इसमें कहा गया है कि उच्च जिंस कीमतों के बीच मजबूत घरेलू मांग भारत के कुल आयात बिल को बढ़ाएगी। इससे देश का चालू खाते का शेष प्रभावित होगा।

आर्थिक समीक्षा की मुख्य बातें:-

संसद में मंगलवार को वित्त वर्ष 2022-23 की आर्थिक समीक्षा पेश की गयी। इसकी मुख्य बातें निम्नलिखित हैं।

देश की आर्थिक वृद्धि दर 2023-24 में 6.5 प्रतिशत रहेगी। जबकि चालू वित्त वर्ष में यह सात प्रतिशत और बीते वित्त वर्ष 2021-22 में 8.7 प्रतिशत रही।

भारत दुनिया में तीव्र आर्थिक वृद्धि वाली अर्थव्यवस्था बना रहेगा।

वर्तमान मूल्य पर जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) वृद्धि दर अगले वित्त वर्ष 11 प्रतिशत रहने का अनुमान।

क्रय शक्ति समता (पीपीपी) आधार पर भारत तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है।

महामारी के दौरान और यूरोप में संघर्ष के बाद से अर्थव्यवस्था ने जो गंवाया था, उसे लगभग फिर से प्राप्त कर लिया गया है, जो थम गया था उसमें नई जान आ गयी है और जो मंद पड़ गया था, उसमें नई ऊर्जा आई है।

स्थिर मूल्य पर जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) अगले वित्त वर्ष में छह प्रतिशत से 6.8 प्रतिशत रहने का अनुमान। यह वैश्विक आर्थिक और राजनीतिक घटनाक्रमों पर निर्भर।

देश ने महामारी के बाद जो पुनरुद्धार हासिल किया, वह अपेक्षाकृत तेज था। अगले वित्त वर्ष वृद्धि को घरेलू मांग और पूंजी निवेश में तेजी से समर्थन मिलने की उम्मीद।

आरबीआई का चालू वित्त वर्ष में मुद्रास्फीति 6.8 प्रतिशत रहने का अनुमान संतोषजनक सीमा से ऊपर है। यह न तो इतना अधिक है कि निजी खपत को रोके और न ही इतनी कम है कि निवेश के लिये प्रोत्साहन को कमजोर करे।

कर्ज की लागत लंबे समय तक ऊंची बनी रह सकती है, मुद्रास्फीति के लगातार उच्चस्तर पर रहने से ब्याज दर में तेजी का रख का लंबा चल सकता है।

रुपये की विनिमय दर में गिरावट को लेकर चुनौती बरकरार। अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ब्याज दर में और वृद्धि कर सकता है।

चालू खाते का घाटा अभी बढ़ सकता है। इसका कारण जिंसों की कीमत ऊंची बनी हुई है। आर्थिक वृद्धि की गति मजबूत बनी हुई है।

अगर चालू खाते का घाटा आगे बढ़ता है तो रुपये की विनिमय दर पर और दबाव आ सकता है।

बाह्य मोर्चे पर स्थिति अभी काबू करने लायक।

देश के पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार। इससे चालू खाते के घाटे की भरपाई हो सकती है और रुपये में उतार-चढ़ाव को रोकने के लिये विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में हस्तक्षेप किया जा सकता है।

वैश्विक आर्थिक परिदृश्य को लेकर जोखिम बढ़ा हुआ है। इसका कारण विकसित देशों में मुद्रास्फीति का बना होना है और विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंकों ने नीतिगत दरों में वृद्धि का और संकेत दिया है।

अन्य विकसित देशों की तुलना में भारत में मुद्रास्फीति अभी बहुत ऊंची नहीं है।

निर्यात क्षेत्र में वृद्धि चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में नरम हुई है।

वैश्विक स्तर पर वृद्धि दर धीमी होने, वैश्विक व्यापार में नरमी से निर्यात वृद्धि की रफ्तार कम हुई है।

पीएम किसान, पीएम गरीब कल्याण योजना जैसी योजनाओं ने गरीबी कम करने में योगदान दिया है।

कर्ज वितरण, पूंजी निवेश चक्र, सार्वजनिक डिजिटल मंच का विस्तार और उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजनाएं (पीएलआई), राष्ट्रीय लॉजिस्टिक नीति और पीएम गतिशक्ति जैसी योजनाएं अर्थव्यवस्था को गति देंगी।

मुद्रास्फीति में नरमी, कर्ज लागत कम होने से बैंक ऋण में वृद्धि वित्त वर्ष 2023-24 में तेज रह सकती है।

छोटे कारोबारियों को कर्ज वृद्धि पिछले साल जनवरी से नवंबर के दौरान 30.5 प्रतिशत रही।

पुरानी मांग के सामने आने और बिना बिके मकानों की संख्या कम होने के साथ घरों के दाम बढ़ रहे हैं।

केंद्र सरकार का पूंजीगत व्यय चालू वित्त वर्ष में अप्रैल-नवंबर के दौरान 63.4 प्रतिशत बढ़ा।

भारत की आर्थिक मजबूती से वृद्धि की गति खोए बिना रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण बाह्य मोर्चे पर उत्पन्न असंतुलन को दूर करने में मदद मिली है।

विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों के बाजार से लगातार पैसा निकालने के बावजूद शेयर बाजार ने 2022 में सकारात्मक रिटर्न दिया।

भारत ज्यादातर अर्थव्यवस्था के मुकाबले चुनौतियों से बखूबी निपटा है।

वित्त वर्ष 2020-21 में गिरावट के बाद छोटे व्यापारियों के जीएसटी भुगतान में वृद्धि हुई है और यह अब महामारी पूर्व स्तर को पार कर गया है। यह सरकार के लक्षित हस्तक्षेप के सकारात्मक असर को बताता है।

चालू वित्त वर्ष में आर्थिक वृद्धि की अगुवाई में निजी खपत और पूंजी निर्माण से रोजगार सृजन में मदद मिली है।

न्यूज़ एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ

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