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कोरोना की वजह से डर के माहौल में जी रहा ग्रामीण बिहार!

ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी संख्या में लोग स्थानीय स्व-घोषित डाक्टरों से परामर्श ले रहे हैं, जो कोविड-19 मरीजों को टाइफाइड या वायरल फ्लू से पीड़ित बता रहे हैं।
कोरोना की वजह से डर के माहौल में जी रहा ग्रामीण बिहार!
मात्र प्रतीकात्मक उपयोग। चित्र साभार: द इंडियन एक्सप्रेस 

पटना: पिछले साल वाली पहली लहर के उलट इस साल बिहार में शुक्रवार तक एक लाख से अधिक सक्रिय कोविड-19 मामलों के साथ ग्रामीण क्षेत्र पूरी तरह से नोवेल कोरोनावायरस की चपेट में आ चुका है। कोरोनावायरस ने पहले से ही रोजाना के हिसाब से सैकड़ों गांवों में जिंदगियों को छीनने का काम शुरू कर दिया है, लेकिन इन खबरों को या तो दबा दिया जा रहा है या शायद ही इन्हें कोई जगह मिल पा रही है।

मीडिया का सारा ध्यान शहरी क्षेत्रों, उसमें भी विशेषकर पटना पर बना हुआ है, इस तथ्य के बावजूद कि ऑक्सीजन आपूर्ति का संकट लगातार बना हुआ है और अस्पतालों में बेड की कमी के कारण गंभीर हालत वाले मरीजों तक को अपनी जान बचाने के लिए एक जगह से दूसरी जगह भटकने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। हालाँकि, कुछ ही लोग हैं जो इस मामले में खुशकिस्मत हैं।

इस सप्ताह की शुरुआत से ही बिहार के ग्रामीण हिस्सों में वायरस के तेजी से फैलने से भय का माहौल व्याप्त होता जा रहा था, क्योंकि दिन-ब-दिन कोविड-19 के मामलों में ज्यादा से ज्यादा बढ़ोतरी देखने मिल रही है। राज्य भर के गाँवों में लोग भय के साए में जकड़े हुए हैं और उन्हें अप्रत्याशित परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि सिवाय कुछ मामलों को छोड़कर पिछले वर्ष वायरस ने व्यापक स्तर पर ग्रामीण इलाकों को अछूता छोड़ रखा था।

ग्रामीण क्षेत्रों में परीक्षण सुविधाओं की कमी और बुनियादी स्वास्थ्य ढाँचे के अभाव के कारण ज्यादातर लोग, जिन्हें कोविड-19 के स्पष्ट लक्षण (तेज बुखार, खांसी, कमजोरी और सांस फूलने) की शिकायत है, को लगभग सभी गाँवों में लोकल झोला-छाप डाक्टरों द्वारा टाइफाइड या वायरल फ्लू से पीड़ित बताया जा रहा है।

यही वजह है कि सैकड़ों की संख्या में कोविड-19 मरीज बिना कोई समुचित उपचार को अपनाए, अपने गांवों में कई दिन बर्बाद कर दे रहे हैं। इसका नतीजा यह हो रहा है कि उनकी स्थिति दिन-प्रतिदिन ख़राब होती चली जा रही है और जब तक उन्हें पटना या आसपास के जिला मुख्यालयों के अस्पतालों में पहुंचाया जा रहा है, तब तक उनका ऑक्सीजन सेचुरेसन लेवल गिरकर 70 या 60 तक पहुँच जा रहा है। 

पटना से करीब 95 किमी दूरी पर स्थित, रघुनाथपुर गाँव की निवासी नगमा खातून, जो कि औरंगाबाद के हसपुरा ब्लॉक के अंतर्गत पड़ता है, ने बताया “हम सहमे हुए हैं। गाँव के गाँव में लोगों के घरों में एक से अधिक व्यक्ति बीमार पड़े हैं। डॉक्टर इसे टाइफाइड बता रहे हैं, लेकिन पिछले एक हफ्ते से कई लोगों की मौत हो चुकी है। पिछले साल ऐसी स्थिति नहीं थी। आसपास के दर्जनों गाँवों में इसी प्रकार की स्थिति बनी हुई है। हम सभी डर के माहौल में जी रहे हैं, क्योंकि ऑक्सीजन आपूर्ति की तो बात ही छोड़ दीजिये, यहाँ पर कोई डॉक्टर या दवाएं तक नहीं हैं।”
उनकी आवाज में जो डर झलक रहा था, वह इन क्षेत्रों में महसूस की जा रही दुखद भावनाओं को प्रतिबम्बित करता है।

वैशाली जिले के एक गाँव में रहने वाले विकास चौधरी का शुरू में एक स्थानीय डॉक्टर द्वारा इलाज कराया जा रहा था, जिसने उन्हें टाइफाइड से पीड़ित बताया था। लेकिन जब उनकी हालत अचानक से बिगड़ने लगी और बुधवार की रात को उन्हें सांस लेने में तकलीफ होने लगी तो उनकी पत्नी, युवा बेटे और एक नजदीकी रिश्तेदार ने उन्हें आनन-फानन में वैशाली जिला मुख्यालय हाजीपुर के एक प्राइवेट अस्पताल में भर्ती करा दिया। कुछ घंटों के उपचार के बाद अस्पताल प्रशासन ने उन्हें पटना मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (पीएमसीएच) में भर्ती कराने के लिए निर्देशित कर दिया, क्योंकि उन्हें वेंटीलेटर पर रखे जाने की जरूरत थी। चौधरी को अंततः गुरुवार को पीएमसीएच में भर्ती कर लिया गया था, लेकिन वे अभी तक अपने जीवन के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

एक अन्य मामले में औरंगाबाद जिले के एक गाँव में रहने वाले वरिष्ठ नागरिक, जैनुल हक़ की जब हालत बिगड़ने लगी तो उन्हें शुक्रवार को तत्काल पटना के एक प्राइवेट अस्पताल में ले जाया गया। वे पिछले पांच दिनों से बुखार, खांसी और कमजोरी के शिकार थे। उनका भी अभी तक टाइफाइड और वायरल फ्लू का इलाज चल रहा था।
बिहार में 29 अप्रैल को कोविड-19 के कुल 13,098 मामले दर्ज किये गए थे, और राज्य में कुल सक्रिय मामलों की संख्या एक लाख से अधिक जा पहुंची है। 28 अप्रैल तक राज्य में कुल 98,747 सक्रिय मामले थे। इस साल राज्य में 30 मार्च को सिर्फ 74 मामले दर्ज किये गए थे, लेकिन पिछले एक महीने से इसमें कई गुना इजाफा हो चुका है।

29 अप्रैल को कोरोनावायरस संक्रमण से तकरीबन 89 लोगों की मौत हुई हैं, जो राज्य में एक दिन में सर्वाधिक आधिकारिक मौतें हैं।

आने वाले समय में और भी अधिक चुनौतीपूर्ण समय को भांपते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अब अधिकारियों को परीक्षण की संख्या को बढ़ाने, रैपिड एंटीजन टेस्ट्स के बजाय आरटी-पीसीआर टेस्ट पर जोर दिए जाने के निर्देश दिए हैं, ताकि उचित उपचार के लिए मामलों का पता लगाया जा सके। 

वहीँ स्वास्थ्य अधिकारियों के अनुसार, जिला मुख्यालयों में आरटी-पीसीआर सुविधायें काफी सीमित हैं और कई जगहों पर तो खराब पड़ी हैं। सभी टेस्टिंग की तुलना करें तो 60% से 70% के बीच में रैपिड एंटीजन टेस्टिंग की जा रही हैं, जबकि आरटी-पीसीआर के जरिये मात्र 25% से 30% के बीच टेस्टिंग ही हो पा रही है।

चिंताजनक पहलू यह है कि ऐसे समय में जब कोविड-19 के मामले ग्रामीण क्षेत्रों में लगातार बढ़ते जा रहे हैं और इसका लगातार विस्तार होता जा रहा है, राज्य सरकार ने उन हजारों की संख्या में अपने-अपने पैतृक गाँवों में लौटकर आने वाले प्रवासी श्रमिकों के लिए विशेष उपायों को शुरू नहीं किया है। 

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Rural Bihar Lives in Fear as COVID-19 Spreads to Villages, Claiming Lives

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