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सुप्रीम कोर्ट से डॉ. कफ़ील ख़ान मामले में योगी सरकार को झटका क्यों लगा?

एनएसए के तहत डॉक्टर कफ़ील ख़ान को जेल में बंद करने के फ़ैसले को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निरस्त कर दिया था। हाईकोर्ट के इसी फ़ैसले के ख़िलाफ़ उत्तर प्रदेश सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी।
kafeel khan
Image Courtesy: The Logical Indian

उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार को डॉक्टर कफ़ील ख़ान की रिहाई मामले में सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने डॉक्टर कफ़ील ख़ान के ख़िलाफ़ राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून यानी एनएसए की धाराएं हटाए जाने को चुनौती देने वाली यूपी सरकार की अपील में दख़ल देने से इनकार कर दिया है।

आपको बता दें कि एनएसए के तहत डॉक्टर कफ़ील ख़ान को जेल में बंद करने के फ़ैसले को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निरस्त कर दिया था। जिसके बाद 2 सितंबर को डॉक्टर खान को मथुरा जेल से रिहा किया गया था। हाईकोर्ट के इसी फ़ैसले के खिलाफ उत्तर प्रदेश सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई थी।

क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले में?

इस मामले पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व वाली जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी. रमासुब्रमण्यन की पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट के फ़ैसले में दख़ल देने का हमें कोई कारण नहीं दिखता है। यह ‘एक अच्छा फैसला’ है।

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ किया है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश आपराधिक मामलों में हिरासत में लिए जाने को प्रभावित नहीं करेगा और मेरिट के आधार पर फ़ैसला किया जाएगा।

राज्य की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ से कहा कि हाईकोर्ट द्वारा की गई टिप्पणी से खान को आपराधिक कार्यवाही से छूट मिलती है।

इस पर पीठ ने कहा कि आपराधिक मामलों का फैसला उनके गुण-दोष के आधार पर किया जाएगा।

क्या था इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला?

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 1 सितंबर को अपने फ़ैसले में कहा था कि कफ़ील ख़ान को एनएसए के तहत गिरफ़्तार किया जाना 'ग़ैर-क़ानूनी' है। अदालत ने डॉक्टर कफ़ील ख़ान को तुरंत रिहा करने का आदेश दिया था।

अदालत ने अपने फ़ैसले में कहा था, "डॉक्टर कफ़ील ख़ान का भाषण किसी भी तरह की नफरत या हिंसा को बढ़ावा देने वाला नहीं था। इससे अलीगढ़ शहर की शांति और अमन को कोई खतरा नहीं है। उनका भाषण नागरिकों के बीच राष्ट्रीय अखंडता और एकता को लेकर है। भाषण किसी भी तरह की हिंसा को नहीं दर्शाता है।”

चीफ जस्टिस गोविंद माथुर और जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह ने इस केस पर फैसला देते हुए कहा  था, “हमें ये कहने में ज़रा भी झिझक नहीं है कि एनएसए ऐक्ट के तहत कफ़ील ख़ान को हिरासत में लिया जाना और उनके हिरासत की अवधि को बढ़ाना कानून की नज़र में सही नहीं है।”

कोर्ट ने इस बात का भी नोटिस लिया था कि डॉक्टर कफ़ील ख़ान को हिरासत में लिए जाने के खिलाफ़ अपनी बात रखने का मौका नहीं दिया गया।

हाईकोर्ट में कफ़ील की मां नुज़हत परवीन ने इस मामले को लेकर एक याचिका दायर की थी, जिसमें कहा था कि उनके बेटे को गैरकानूनी तरीके से हिरासत में लिया गया है, इसलिए उसे जल्द रिहा करें।

क्या है डॉ. कफ़ील खान का पूरा मामला?

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में बीते साल दिसंबर के महीने में डॉक्टर कफ़ील ख़ान ने नागरिकता संशोधन क़ानून यानी सीएए के ख़िलाफ़ एक भाषण दिया था। इसे कथित तौर पर भड़काऊ भाषण कहा गया था।

इस आरोप में कफ़ील के ख़िलाफ़ अलीगढ़ के सिविल लाइंस थाने में केस दर्ज किया गया था। 29 जनवरी को यूपी एसटीएफ़ ने उन्हें मुंबई से गिरफ़्तार किया था।

इसके बाद मथुरा जेल में बंद डॉक्टर कफ़ील को 10 फ़रवरी को ज़मानत मिल गई थी, लेकिन तीन दिन तक जेल से उनकी रिहाई नहीं हो सकी। कफ़ील के परिजन ने अलीगढ़ की मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में अवमानना याचिका दायर की थी। अदालत ने 13 फरवरी को फिर से रिहाई आदेश जारी किया था, मगर अगली सुबह ज़िला प्रशासन ने उन पर राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून (रासुका) लगा दिया।  

कफ़ील ख़ान 2 सितंबर तक राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) के तहत मथुरा जेल में बंद थे। समय-समय पर उनकी हिरासत की अवधि बढ़ाई जा रही थी। इसके खिलाफ डॉक्टर कफ़ील हाईकोर्ट पहुंच गए थे, जहां से उन्हें राहत मिली थी।

सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद डॉक्टर कफ़ील ने कहा, मुझे न्याय मिला

सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद डॉक्टर कफ़ील ख़ान ने ट्वीट किया, "मेरे इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के ख़िलाफ़ यूपी सरकार की याचिका सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दी है। मुझे न्यायालय पर पूरा भरोसा था मुझे न्याय मिला। अल्लाह शुक्र, जय हिंद जय भारत। बेंच का मानना है कि यह अच्छा फ़ैसला है और इसमें दख़ल देने का कोई कारण नहीं है।"

इसके साथ ही उनहोंने एक वीडियो जारी कर कहा, “मैं 138 करोड़ अपने देशवासियों का, दुनिया के सभी लोगों का बहुत-बहुत शुक्रगुज़ार हूं। मैं आपसे वादा करता हूं कि मैं चिकित्सा के क्षेत्र में अव्यवस्था के सुधार के लिए काम करता रहूंगा। इसके साथ ही नाइंसाफी के खिलाफ आवाज़ उठाता रहूंगा। जो लोग मुझे टारगेट कर रहे हैं बार-बार, उनके लिए यही संदेश है कि बच्चों के हत्यारों के जाने का समय आ गया है। आब 2022 बहुत दूर नहीं है।”

विपक्ष ने सरकार से माफ़ी मांगने को कहा

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद योगी सरकार पर कांग्रेस ने निशाना साधा है। कांग्रेस ने कहा कि बीजेपी और योगी सरकार को सुप्रीम कोर्ट में मुंह की खानी पड़ी। अब योगी सरकार को डॉ. कफ़ील से माफी मांग लेनी चाहिए।

उत्तर प्रदेश अल्पसंख्यक कांग्रेस के चेयरमैन शाहनवाज़ आलम ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबड़े ने डॉ. कफ़ील से जुड़े इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को अच्छा बताया।

कांग्रेस नेता आलम ने कहा, “सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। ये बीजेपी और योगी सरकार की सुप्रीम बेइज्जती है। साथ ही यह सीएम की कार्यप्रणाली पर भी गंभीर सवाल उठाता है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी के बावजूद तथ्यों को तोड़मरोड़ कर अदालत को गुमराह करने वाले अलीगढ़ के तत्कालीन डीएम को अब तक उन्होंने निलंबित क्यों नहीं किया।”

कांग्रेस नेता शाहनवाज़ आलम ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी के बाद अगर मुख्यमंत्री में थोड़ी भी शर्म बची हो तो उन्हें डॉ कफ़ील खान और उनके पूरे परिवार से माफ़ी मांग लेनी चाहिए।

सालों से हैं योगी सरकार और डॉ. कफ़ील खान आमने-सामने

गौरतलब है कि तीन साल पहले गोरखपुर में बीआरडी मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन की कमी से बच्चों की मौत के मामले के बाद डॉक्टर कफ़ील चर्चा में आए थे। कथित तौर पर उन्होंने ऑक्सीजन की कमी होने के बाद ख़ुद से अस्पताल में इसका प्रबंध कराया था और मीडिया में वे एक दरियादिल डॉक्टर और हीरो की तरह सामने आए थे। लेकिन बाद में अनियमितता के मामले में राज्य सरकार ने उनको बर्ख़ास्त कर दिया था।

इस घटना के बाद उन्हें इंसेफलाइटिस वार्ड में अपने कर्तव्यों का निर्वहन और एक निजी प्रैक्टिस चलाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। सितंबर 2017 में गिरफ्तार होने के बाद अप्रैल, 2018 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह कहते हुए उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया था कि डॉ. खान पर व्यक्तिगत तौर पर चिकित्सीय लापरवाही के आरोपों को साबित करने के लिए कोई सामग्री मौजूद नहीं है।

इसके साथ ही सितंबर 2019 में विभागीय जांच की एक रिपोर्ट में उन्हें कर्तव्यों का निर्वहन न करने के आरोपों से भी बरी कर दिया गया था। हालांकि इसके बावजूद यूपी सरकार ने डॉ. कफ़ील का निलंबन रद्द नहीं किया है। इस मामले के बाद से ही योगी सरकार और डॉ. कफ़ील आमने-सामने हैं।

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