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एसकेएम की केंद्र को चेतावनी : 31 जनवरी तक वादें पूरे नहीं हुए तो 1 फरवरी से ‘मिशन उत्तर प्रदेश’

संयुक्त किसान मोर्चा के फ़ैसले- 31 जनवरी को देशभर में किसान मनाएंगे "विश्वासघात दिवस"। लखीमपुर खीरी मामले में लगाया जाएगा पक्का मोर्चा। मज़दूर आंदोलन के साथ एकजुटता। 23-24 फरवरी की हड़ताल का समर्थन।
एसकेएम की केंद्र को चेतावनी : 31 जनवरी तक वादें पूरे नहीं हुए तो 1 फरवरी से ‘मिशन उत्तर प्रदेश’

शनिवार 15 जनवरी 2022 को दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पर हुई संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक में मोर्चे के कार्यक्रम व भविष्य की दिशा पर कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए। बैठक के बादसंयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएमने घोषणा की कि अगर नरेंद्र मोदी सरकार 31 जनवरी तक अपने वादों को पूरा नहीं करती है तो वह फरवरी से मिशन उत्तर प्रदेश शुरू करेगी।

एक साल के लंबे आंदोलन के बादकिसानों के संगठनों ने राष्ट्रीय राजधानी की सीमाओं से अपने विरोध प्रदर्शन हटा लिया था क्योंकि सरकार ने उन्हें आश्वासन दिया था कि वह राज्य सरकारों से आंदोलन के दौरान किसानों के खिलाफ दर्ज मामलों को वापस लेनेपरिजनों को मुआवजा प्रदान करने के लिए कहेगी।

प्रधानमंत्री मोदी ने 19 नवंबर, 2021 को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में घोषणा की थी कि सरकार तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को निरस्त करेगी।

अखिल भारतीय किसान सभा (एआईकेएसके अध्यक्ष अशोक धवले ने सिंघु बॉर्डर पर संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि एसकेएम ने किसानों से किए गए वादों पर केंद्र सरकार की निष्क्रियता पर ध्यान दिलवाया है और हम 31 जनवरी तक इंतज़ार करेंगे।

धवले ने कहा "अगर यह (बीजेपी सरकार कुछ पहल नहीं करते हैंतो हम अपना मिशन उत्तर प्रदेश और मिशन उत्तराखंड शुरू करेंगे जिसमें हम लोगों से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपीको वोट न देने के लिए कहेंगे।"

किसानों ने कई महत्वपूर्ण एलान भी किए है। एकबार उनपर नज़र डालते हैं -

31 जनवरी को देशव्यापी "विश्वासघात दिवसमनाएँगे किसान एसकेएम

मोर्चे ने घोर निराशा और रोष व्यक्त किया कि भारत सरकार के दिसंबर के जिस पत्र के आधार पर हमने मोर्चे उठाने का फैसला किया थासरकार ने उनमें से कोई वादा पूरा नहीं किया है।

किसान मोर्चा ने कहा कि आंदोलन के दौरान हुए केस को तत्काल वापस लेने के वादे पर हरियाणा सरकार ने कुछ कागजी कार्यवाही की है लेकिन केंद्र सरकारमध्य प्रदेशउत्तर प्रदेशउत्तराखंड और हिमाचल सरकार की तरफ से नाममात्र की भी कोई भी कार्यवाही नहीं हुई है। बाकी राज्य सरकारों को केंद्र सरकार की तरफ से चिट्ठी भी नहीं गई है। शहीद किसान परिवारों को मुआवजा देने पर उत्तर प्रदेश सरकार ने कोई कार्यवाही शुरू नहीं की है। हरियाणा सरकार की तरफ से मुआवजे की राशि और स्वरूप के बारे में कोई घोषणा नहीं की गई है। MSP के मुद्दे पर सरकार ने न तो कमेटी के गठन की घोषणा की हैऔर न ही कमेटी के स्वरूप और उसकी मैंडेट के बारे में कोई जानकारी दी है।

किसानों के साथ हुए इस धोखे का विरोध करने के लिए संयुक्त किसान मोर्चा ने फैसला किया है कि आगामी 31 जनवरी को देश भर में "विश्वासघात दिवसमनाया जाएगा और जिला और तहसील स्तर पर बड़े रोष प्रदर्शन आयोजित किए जाएंगे।

"लखीमपुर खीरी हत्याकांड में बीजेपी की बेशर्मी और संवेदनहीनता के विरुद्ध किसान मोर्चा लगाएगा पक्का मोर्चा"

किसान मोर्चे ने ने अपने बयान में कहा कि लखीमपुर खीरी हत्याकांड में सरकार और भारतीय जनता पार्टी के बेशर्म रवैया से स्पष्ट है कि उसे सार्वजनिक जीवन की मर्यादा की कोई परवाह नहीं है। एसआईटी की रिपोर्ट में षड्यंत्र की बात स्वीकार करने के बावजूद भी इस कांड के प्रमुख षड्यंत्रकारी अजय मिश्र टेनी का केंद्रीय मंत्रिमंडल में बना रहना किसानों के घाव पर नमक छिड़कने का काम है। दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश पुलिस इस घटना में नामजद किसानों को केसों में फंसाने और गिरफ्तार करने का काम मुस्तैदी से कर रही है। इसका विरोध करने के लिए संयुक्त किसान मोर्चा लखीमपुर खेरी में एक पक्के मोर्चे की घोषणा करेगा। संयुक्त किसान मोर्चा ने यह स्पष्ट किया है कि "मिशन उत्तर प्रदेशजारी रहेगाजिसके जरिए इस किसान विरोधी राजनीति को सबक सिखाया जाएगा।

धवले ने कहा कि भारतीय किसान यूनियन (अराजनैतिकके प्रवक्ता राकेश टिकैत 23 जनवरी से तीन दिवसीय दौरे पर लखीमपुर खीरी हिंसा के पीड़ितों के परिवारों से मिलेंगे।

वरिष्ठ नेता ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार ने पीड़ितों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की है। लखीमपुर खीरी हत्याकांड का ममाले में सरकार आरोपी को "बचा रही थीजिसमें केंद्रीय कैबिनेट मंत्री अजय मिश्रा टेनी का बेटा शामिल था।

उन्होंने कहा "विशेष जांच दल (एसआईटीद्वारा चार्जशीट से साफ हो गया है कि केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष मिश्रा ने न केवल उन्होंने नरसंहार की योजना बनाई थीबल्कि घटनास्थल पर भी मौजूद था।"

एसआईटी लखीमपुर खीरी हिंसा की जांच कर रही हैजिसमें चार किसानों और एक पत्रकार सहित आठ लोगों की मौत हो गई थीजिन्हें कथित तौर पर मंत्री के बेटे और अन्य स्थानीय भाजपा सदस्यों द्वारा गाड़ियों से कुचल दिया गया था।

एसआईटी ने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट से मामले में धाराओं को जोड़ने का आग्रह किया था।

एसआईटी ने 13 आरोपियों के वारंट में आईपीसी 326 (स्वेच्छा से खतरनाक हथियारों से चोट पहुंचाना), 34 (सामान्य इरादों वाले कई व्यक्तियों द्वारा कार्यऔर आर्म्स एक्ट की धारा 3/25/30 को लागू करने की भी सिफारिश की।

आरोपियों को प्राथमिकी संख्या 219 के संबंध में गिरफ्तार किया गया है जो तिकुनिया में चार किसानों और एक स्थानीय पत्रकार की मौत से संबंधित है।

शनिवार कोटिकैत ने कहा कि वह पीड़ितों से मिलेंगे और "जब तक संबंधित मंत्री को बर्खास्त नहीं किया जाता और किसानों के विरुद्ध प्राथमिकी वापस नहीं ली जातीतब तक एक स्थायी आंदोलन शुरू करेंगे।"

मज़दूर आंदोलन के साथ एकजुटता

आगामी 23 और 24 फरवरी को देश की केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने मजदूर विरोधी चार लेबर कोड को वापस लेने के साथ-साथ किसानों को एमएसपी और प्राइवेटाइजेशन के विरोध जैसे मुद्दों पर राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वान किया है। बीकेयू (अराजनैतिकके युद्धवीर सिंह ने कहा कि एसकेएम केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के हड़ताल के समर्थन में देश भर में ग्रामीण हड़ताल आयोजित कर इस हड़ताल का समर्थन और सहयोग करेगा।

चुनाव में भाग लेने वाले किसान संगठन और नेता संयुक्त किसान मोर्चा में नहीं एसकेएम

भारतीय किसान यूनियन (एकता उगराहन) के अध्यक्ष जोगिंदर सिंह उगराहन ने कहा कि मोर्चा ने पंजाब के घटनाक्रम पर भी ध्यान दिया जहां कुछ किसान यूनियनों ने चुनाव लड़ने के लिए संयुक्त समाज मोर्चा का गठन किया।

उन्होंने कहा, "इस मुद्दे पर विचार करने के बादहम अप्रैल में इन यूनियनों के साथ संबंधों पर फैसला लेंगे।"

एसकेएम ने अपनी लिखित बयान में साफतौर पर स्पष्ट किया कि कुछ घटक संगठनों द्वारा पंजाब के चुनाव में पार्टियां बनाकर उम्मीदवार उतारने की घोषणा के बारे में मोर्चे ने स्पष्ट किया कि शुरुआत से ही संयुक्त किसान मोर्चा ने यह मर्यादा बनाए है कि उसके नामबैनर या मंच का इस्तेमाल कोई राजनैतिक दल न कर सके। यही मर्यादा चुनाव में भी लागू होती है। चुनाव में किसी पार्टी या उम्मीदवार द्वारा संयुक्त किसान मोर्चा के नाम या बैनर या मंच का कोई इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। संयुक्त किसान मोर्चा से जुड़ा जो भी किसान संगठन या नेता चुनाव लड़ता हैया जो चुनाव में किसी पार्टी के लिए मुख्य भूमिका निभाता हैवह संयुक्त किसान मोर्चा में नहीं रहेगा। जरूरत होने पर इस निर्णय की समीक्षा इन विधानसभा चुनावों के बाद अप्रैल माह में की जाएगी।

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