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SSC GD 2018: सरकारी परीक्षा व्यवस्था की मार से जूझ रहे युवाओं की कहानी उनकी ज़ुबानी

"हम में कमी क्या थी? लिखित और शारीरिक परीक्षा में पास थे, मेडिकली फिट थे, लेकिन फिर भी यह सरकार और व्यवस्था हमारे सपने और नौकरी ‘खा’ गई, हम तो आंदोलन में पुलिस के डंडे खा कर इतना सीख गए थे कि शायद जॉइनिंग के बाद ट्रेनिंग की भी ज़रूरत न पड़ती।”
SSC GD 2018
फाइल फोटो।

SSC ने जुलाई 2018 में जर्नल ड्यूटी (GD) पद के लिए 54993 भर्तियाँ निकालीं, जिसके लिए लाखों अभ्यर्थियों ने फॉर्म भरे, जो इस भर्ती की न्यूनतम पात्रता से कहीं अधिक पढ़े लिखे थे। इसके बाद 11 फ़रवरी से 11 मार्च 2019 के बीच लिखित परीक्षा हुई जिसका रिजल्ट 20 जुलाई 2019 को आया, जिसमें 6 लाख अभ्यर्थी पास हुए। 13 जुलाई से 25 सितंबर 2019 के बीच शारीरिक परीक्षा हुई और इस सब के बाद करीब 1 लाख 52 हज़ार अभ्यर्थी चुन लिए गए। लेकिन 16 दिसंबर 2019 को SSC की ओर से एक नया नोटिफ़िकेशन आया, जो कहता था कि SSC GD 2018 भर्ती परीक्षा में पदों की संख्या बढ़ा कर, 54993 से 60210 की जा रहीं हैं। इस सब के बाद फरवरी 2020 में अतिरिक्त 19101 अभ्यर्थियों को शारीरिक परीक्षा के लिए बुलाया गया, जिनमें से करीब 1700 अभ्यर्थी पास हुए। यह सब प्रक्रिया पूरी हो जाने के बाद 1 लाख 9 हज़ार अभ्यर्थियों को मेडिकली फिट घोषित किया गया, लेकिन जॉइनिंग लेटर मिले केवल "54993" अभ्यर्थियों को। आप सोच रहे होंगे कि हमने इस आर्टिकल की पहली ही पंक्ति में लिखा, कि "नहीं आए जॉइनिंग लेटर" और अब कह रहे हैं कि 54993 को जॉइनिंग लेटर मिल चुके हैं, यह तो विरोधाभास हुआ। हाँ, 54993 अभ्यर्थियों को जॉइनिंग लेटर मिल चुके हैं और अधिकतर अभ्यर्थि ड्यूटी जॉइन भी कर चुके हैं, लेकिन यहाँ सवाल बाकि बचे "5217" पदों का है जो दूसरी नोटिफ़िकेशन में बढ़ाए गए थे। SSC GD आंदोलन का कारण भी यही 5217 न भरे गए पद हैं।

इसके बारे में और जानने के लिए हमने बात की जबलपुर मध्य प्रदेश के रहने वाले प्रदीप पटेल से, प्रदीप ने खुद भी यह परीक्षा दी थी, लिखित और शारीरिक परीक्षा में पास भी हुए थे, मेडिकली फिट भी थे, पर नौकरी नहीं मिली। प्रदीप बताते हैं कि यह पूरी कहानी सरकारी अव्यवस्था और देरी की है। वे बताते हैं, “लिखित और शारीरिक परीक्षा तक फिर भी सब ठीक चल रहा था, देरी का यह सिलसिला शुरू हुआ जब शारीरिक परीक्षा के बाद मेडिकल की SSC की ओर से कोई खबर नहीं आई। काफ़ी इंतज़ार के बाद 12 और 13 नवंबर 2019 को हमने और हमारे कई साथियों ने राजघाट पर प्रदर्शन किया, वह सफल भी रहा। ठीक दो महीने बाद 13 फ़रवरी 2020 को मेडिकल फिट अभ्यर्थियों की लिस्ट भी आ गई। 1 लाख 52 हज़ार अभ्यर्थी मेडिकली फिट हैं यह तो बताया, पर जॉइनिंग लेटर अभी भी नदारद थे। काफ़ी सब्र करने के बाद लगा कि जॉइनिंग लेटर लेने के लिए भी आंदोलन ज़रूरी हो गया है, लेकिन तब तक कोरोना के चलते देश भर में तालाबंदी हो चुकी थी, तो हमने घर बैठे ही ट्विटर ट्रेंड्स के ज़रिये अपनी मांगें जनता और प्रशासन के सामने रखीं।” 

प्रदीप फिर यह भी बताते हैं की हमारे ट्विटर ट्रेंड्स पर ढाई से तीन लाख ट्वीट्स होने के बाद भी वे ट्विटर के ट्रेंडिंग पेज पर नहीं आता था। हमें ट्विटर पर समर्थन तो बहुत मिला, लेकिन मदद करने वाला कोई सही व्यक्ति नहीं मिला। आखिर में यही समझ आया कि ट्विटर पर लोग दो दिन बातें करते हैं, तीसरे दिन भूल जाते है, तो बिना सड़क पर उतरे तो कुछ नहीं होने वाला।” 

फिर आती है तारीख 21 जनवरी 2021; इस दिन SSC द्वारा अंतिम लिस्ट निकली गई जिस में बताया गया कि 1 लाख 9 हज़ार अभ्यर्थी मेडिकली फ़िट पाए गए हैं, जिन में से 54993 अभ्यर्थियों का चयन कर लिया गया है, जिन्हें जॉइनिंग लेटर मिलेगा। यह लिस्ट पढ़ने के बाद प्रदीप बताते हैं कि उन्हें ऐसा लगा कि मानो इसके बाद कुछ नहीं हो सकता। लेकिन फिर एक बार हिम्मत जुटा कर प्रदीप और उनके कई साथियों में 14 फ़रवरी 2021 को जंतर-मंतर पर आंदोलन करने का फैसला किया। बातचीत के दौरान हमने प्रदीप से सवाल किया कि वे यह छोड़ कर किसी और परीक्षा की तैयारी कर सकते थे तो ऐसा क्यों नहीं किया? वे इस पर कहते हैं कि हम कुछ गलत तो नहीं कर रहे, हमारी मांग केवल इतनी है कि "SSC ने जो 60210 भर्तियाँ निकाली थीं उन्हें पूरा करें, बचे 5217 पदों और उन पदों पर जिन पर किसी भी अभ्यर्थी ने ज्वाइनिंग नहीं ली है, उन पर मेडिकली फिट अभ्यर्थियों को जॉइनिंग दें"। 

प्रदीप और उनके साथियों को एक बार फिर आपने आंदोलन रोकना पड़ा, इस बार कारण था कोरोना की दूसरी लहर। प्रदीप ने इस बारे में बताया कि हमें दिल्ली से वापस इसलिए आना पड़ा क्योंकि हमारे दिल्ली में खाने-पीने तक के लाले हो गए थे। लेकिन वे दिल्ली लौटे, आंदोलन फिर खड़ा किया गया। इसके बाद तारीख थी 17 अगस्त 2021। इस बार अभ्यर्थियों के पास प्रदर्शन करने की अनुमति नहीं थी। हुआ वही जो अपेक्षित था।  पुलिस ने सभी आंदोलनकारियों को ज़ोर ज़बरदस्ती के साथ जंतर-मंतर से बाहर निकाला। इसके चलते कई लोग डिटेन किये गए, कई घायल भी हुए, जिनमें से युवा हल्ला बोल के जर्नल सेक्रटरी रजत यादव भी थे। प्रदीप इस बारे में बात करते हुए कुछ भावुक हो जाते हैं। वे कहते हैं, “ऐसा कोई अफ़सर नहीं है जिसके दफ़्तर में हमने अर्ज़ी न दी हो, केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय से लेकर, गृह सचिव अजय कुमार भल्ला तक। जब हमने अजय कुमार भल्ला के दफ़्तर फ़ोन किया, तो हमारी बात एक सिक्योरटी गार्ड से यह कह कर करवा दी गई कि ये आपकी समस्या का समाधान कर सकतें हैं। प्रदीप से हमारी बात के अंत में वे बस यह कहते हैं कि "यह गोली खाने वाली नौकरी है, कोई पैसे वाला इसके लिए क्यों एप्लाई करेगा। यह नौकरी हमने चुनी नहीं है, यह हमारी मज़बूरी है।” यह बात इस आंदोलन से जुड़े और लोगों से बात करने के लिए हमें उत्सुक कर गई।

इसके बाद हमने बात की नक्सल प्रभावित क्षेत्र बालाघाट मध्य प्रदेश की रहने वाली मेघा देहरवाल से। जैसा हमने आपको पहले बताया है कि इस परीक्षा और ऐसी कई सरकारी परीक्षाओं के फॉर्म भरने वाले अभ्यर्थी इन परीक्षाओं की न्यूनतम पात्रता से कहीं ज़्यादा पढ़े लिखे हैं। तो ऐसा ही कुछ मेघा के साथ भी है। इस परीक्षा की न्यूनतम पात्रता 10वीं पास थी। हमें ने मेघा से बातचीत में जाना कि उन्होंने MSc. की हुई है। मेघा बतातीं हैं कि उन्होंने सुरक्षा बालों में जाने का मन आपनी ग्रेजुएशन के तीसरे साल में ही बना लिया था। इसके लिए उन्होंने NCC भी ली। हालांकि NCC ग्रेजुएशन के तीसरे साल में नहीं मिलती। लेकिन उन्होंने कॉलेज प्रशासन को यह वादा किया कि वे पोस्ट ग्रेजुएशन भी उस ही कॉलेज से करेंगी, तब जा कर उन्हें NCC मिली। मेघा नौकरी करना तो ऊंचे पद पर चाहतीं थीं, लेकिन वे बतातीं हैं कि उनके पास बड़े पद की परीक्षा की तैयारी करने का वक्त नहीं था। वे नौकरी कर आपने परिवार की आर्थिक मदद भी करना चाहतीं थीं। 

वे कहतीं हैं कि एक बार नौकरी मिल जाती, तो वे पदोन्नति परीक्षा की तैयारी करतीं, पर किस्मत उतनी अच्छी न रही। मेघा लिखित और शारीरिक परीक्षा में पास थीं। मेडिकली फिट भी थीं, पर SSC की अंतिम लिस्ट में जगह न बना पाईं। अंत में जैसा अधिकतर भारतीय लड़कियों के सपनों के साथ होता है, उनका सदी नाम की तलवार से गला काट दिया जाता है। मेघा बतातीं है कि उनके पास जितने मौके थे, वे सभी ख़त्म हो चुके हैं। घर पर लड़के वालों के रिश्ते आ रहे हैं और शायद जल्द ही शादी भी हो जाएगी। पर एक गिला मन में रह जाएगा, "मैं अपने घर का बेटा बनना चाहती थी अपने घर के हालातों को सुधारना चाहती थी, वो न कर सकी"। 

मेघा दिल्ली में हुए आंदोलनों में भी शामिल हुईं थीं। करीब चार से पाँच महीने दिल्ली में भी रहीं, दिल्ली की सड़कें पैदल नापीं, दिल्ली पुलिस से डंडे भी खाए, पर अंत में मेघा यही कहतीं हैं कि हाथ कुछ न आया। मिला तो केवल सरकार की ओर से धोखा, जो नारे गाए गए थे, वे खोखले साबित हुए। बालाघाट की ही रहने वाली एक और अभ्यर्थी हैं सत्यपाल शिवहरे। इस भर्ती प्रक्रिया में बहुत देरी होने के कारण बहुत से अभ्यर्थी ऐसे हैं, जो न्यनतम पात्रता की उम्र से अधिक हो चुके हैं। SSC GD के लिए एप्लाई करने की न्यूनतम उम्र है 23 वर्ष+5 से 3 अधिक आरक्षित वर्ग के लिए। सत्यपाल से बात करते समय पता चला कि इस वर्ष वे 28 के हो चुके हैं, यानी वे अब किसी भी तरह की सुरक्षा बलों की नौकरी के लिए एप्लाई नहीं कर सकते हैं। सत्यपाल ने ऐसे ही कई उनके साथी गिनवाए, जिनकी नौकरी के लिए एप्लाई करने की उम्र निकल चुकी है। 

सत्यपाल आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग से आते हैं, उनके पिता मज़दूरी करते हैं और सत्यपाल घर के सबसे बड़े बेटे हैं, तो बात ज़ाहिर है कि पिता की ज़िम्मेदारियां अब उन्हें उठानी हैं। सत्यपाल अपनी तैयारी के दिनों में आपने साथ-साथ आपने कई दोस्तों की मदद करते थे, या यूँ कहें उन्हें गाइड करते थे। एक बड़े भाई की तरह, शारीरिक कसरत और खान-पान के बारे में सलाह देना, लगता था कि सत्यपाल की नौकरी तो पक्की है, पर ऐसा नहीं हुआ। यह सब सत्यपाल के साथी बताते हैं, जो इस वक़्त सुरक्षा बलों में कार्यरथ हैं। सत्यपाल को नौकरी नहीं मिली इसलिए अब घर चलाने के लिए वे एक बैंक में अस्थाई तौर पर नौकरी कर रहे हैं।

सत्यपाल को नौकरी न मिलने का कारण सिर्फ़ भर्ती प्रक्रिया में हुई "देरी" है। अगर SSC यह भर्ती प्रक्रीया 2 साल के भीतर पूरी कर लेता, तो सत्यपाल और उन जैसे कई ओवर ऐज हो चुके अभ्यर्थियों को नौकरी मिल जाती। अंत में सत्यपाल हमसे एक सीधा सा सवाल पूछते हैं, “हममें कमी क्या थी?” लिखित और शारीरिक परीक्षा में हम पास थे, मेडिकली फिट थे, लेकिन फिर भी यह सरकार और व्यवस्था हमारे सपने और नौकरी "खा" गई, हम तो आंदोलन में पुलिस के डंडे खा कर इतना सीख गए थे कि शायद जॉइनिंग के बाद ट्रेनिंग की भी ज़रूरत न पड़ती। हम में कमी क्या थी? सत्यपाल का यह सवाल अगर प्रशासन की आँखों में आँखें डाल कर पूछ लिया जाए, तो शायद उनसे जवाब देते न बने। 

इस आंदोलन में कुछ लोग ऐसे भी थे, जिनके लिए यह ज़िंदगी और मौत का सवाल बन गया था। 17 अगस्त 2021 को पुलिस की ओर से हुई हिंसा में कई लोग घायल हुए, कइयों के कपड़े तक फाड़े गए और कुछ गंभीर रूप से घायल हुए जिसके बाद उन्हें ICU तक में भर्ती करवाना पड़ा। 

महाराष्ट्र के सांगली जिले की रहने वाली दीक्षा कांबले (बदला हुआ नाम) भी 1 दिन ICU में रहीं, उन्होंने बताय कि जंतरमंतर पर हो रहे प्रदर्शन के दौरान पुलिस की द्वारा की जा रही हिंसा में उनकी एक पुलिस कांस्टेबल के साथ बहस हुई, बहस तब ज़्यादा बढ़ गई जब कांस्टेबल ने तिरंगे को पैरों से रोंद दिया, बहस के जवाब में कांस्टेबल ने दीक्षा को धक्का दे दिया।  जिससे उनका सर पुलिस जीप में लगे लोहे के बम्पर गार्ड पर लगा और वे बेहोश हो गईं। 

दीक्षा बतातीं हैं, “गिरने के बाद आगे क्या हुआ उन्हें कुछ याद नहीं, होश आने के बाद सीधा उन्हें और उनकी कुछ और महिला साथियों को संसद भवन पुलिस थाना ले जाया गया। पुलिस ने दीक्षा और उनकी साथियों को डराने धमकाने की कोशिश भी की, कि अगर वे दिल्ली नहीं छोड़ेंगी, तो उनके ख़िलाफ़ FIR दर्ज की जाएगी।  दीक्षा पूछतीं हैं  कि क्या हम दिल्ली में रह कर आपने हक़ भी नहीं मांग सकते?”

वे आगे हमें अपना दर्द बयां करते हुए कहती हैं, “ हमने 6 महीना दिल्ली में रह कर दिल्ली की सड़कें पैदल नापीं हैं। लड़कियों का दिल्ली की DTC बसों में  किराया नहीं लगता, लेकिन हम पैदल इसलिए चलते थे क्योंकि हमारे साथी लड़कों के पास बस की टिकट खरीदने के पैसे नहीं होते थे। अगर बांग्ला साहेब गुरुद्वार प्रशासन हमारे रहने खाने की व्यवस्था न करता, तो हम दिल्ली की सड़कों पर ही भूखे मर जाते। घर से पैसे ले नहीं सकते, लेते भी कैसे घर वालों पास खुद नहीं थे। घर में हम 3 बहने और 1 भाई हैं, भाई सब से छोटा है, मम्मी और पापा दोनों मज़दूरी करते हैं। पापा पेंटर हैं और मम्मी घर-घर काम करतीं हैं। वे दोनों हम चारों भाई-बहनों को पढ़ा पा रहे हैं, यही बहुत है। उन्होंने हमारे लिए अपनी जेब से ज़्यादा ही किया है। जब सामने कुछ नहीं दिख रहा था, तो अपनी जान देने का भी सोचा, लेकिन उसमें भी सफल न हो सकी।”  

युवाओं की समस्याओं और बेरोज़गारी पर मुखर रूप से बोलने और काम करने वाला एक संगठन है, युवा हल्ला बोल, जिसका नाम इस रिपर्ट की तैयारी करते वक्त कई बार आया, हमने उनके जर्नल सेक्रेटरी रजत यादव से बात की, उन्होंने बताया कि हमने पहला प्रदर्शन 27 जुलाई 2021 को जंतर-मंतर के पास बैंक ऑफ़ बड़ोदा के सामने किया था, उस वक़्त संसद सत्र में भी था और 15 अगस्त भी आने को था। इसीलिए पूरी दिल्ली हाई अलर्ट पर थी। इस बात का हवाला देते हुए पुलिस वालों ने हमसे प्रदर्शन बंद कर उठने को कहा, SHO अजय शर्मा ने कहा कि आप अभी यह प्रदर्शन बंद कर देंगे, तो 15 अगस्त निकलने के बाद हम आपकी मुलाकात गृह मंत्रालय में करवाएंगे, मैं आपको यह आश्वासन देता हूँ। क्योंकि इतने वरिष्ठ पुलिस अधिकारी यह बोल रहे थे, तो हमने उनकी बात का मान रखा और अभ्यर्थियों से उठने को कहा। वे इस शर्त पर मान भी गए कि यदि 15 अगस्त के बाद हमारी मुलाकात गृह मंत्रालय के किसी अधिकारी से नहीं करवाई जाती है, तो हम फिर आंदोलन पर बैठेंगे। 

15 अगस्त बीत गया। प्रशासन की ओर के कोई जवाब नहीं आया। हम फिर एक बार 17 अगस्त 2021 को धरने पर बैठे, इस बार पहले से भी कहीं ज़्यादा अभ्यर्थी इकट्ठा हुए, पर पुलिस ने हमें प्रदर्शन नहीं करने दिया। कुछ अभ्यर्थियों  के साथ रजत भी 17 अगस्त की पुलिस हिंसा के बाद गिरफ्तार किया गया था। रजत बताते हैं, “पुलिस थाने में उन्हें बाकी अभ्यर्थियों से अलग रखा गया था और बार-बार अलग-अलग मामलों में फ़साने की धमकी दी जा रही थी। पुलिस का कहना था कि युवा हल्ला बोल ने ही अभ्यर्थियों को प्रशासन के ख़िलाफ़ भड़काया है। वहीं दूसरी तरफ़ गिरफ्तार किये गए अभ्यर्थियों को रजत के ख़िलाफ़ भड़काया जा रहा था कि उनका राजनैतिक इस्तेमाल किया जा रहा है।” 

रजत आगे कहते हैं, “यह भारतीय राजनीति के लिए अफ़सोस की बात है कि आज के समय में भी बेरोज़गारी राजनैतिक मुद्दा नहीं है। हम इस बात पर वोट क्यों की नहीं देते कि हमारे बच्चों को "सुयोग्य" रोज़गार मिले, युवा हल्ला बोल बस इस ही राजनैतिक जागरूकता के लिए काम कर रहा है।”

एक पत्रकार के रूप में यह सब जानने के बाद हम महज़ यही पूछ सकते हैं कि हमारी सरकारें यह क्यों नहीं समझतीं कि देश के एक युवा के मन में आत्महत्या जैसा ख्याल भी आना एक देश के लिए इतना घातक है? कब तक सरकारी लचरता और अवयव्था के चलते हम ऐसी कहानियां लिकजते रहेंगे? आज आपको यह सवाल किसी और की ज़िंदगी का लग सकता है, पर वह दिन दूर नहीं जब सरकारें निहत्थी और आप प्राइवेट हो चुके होंगे।

धारण गौर दिल्ली के रहने वाले एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। वे सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक मुद्दों पर लिखते हैं।   

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