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किसान मोर्चा से जुड़े ट्विटर अकाउंट समेत दर्जन अकाउंट पर केंद्र सरकार द्वारा लगाई गई पाबंदी पर संयुक्त किसान मोर्चा ने जताया कड़ा विरोध

मोर्चे ने कहा कि सरकार द्वारा इस तरह से किसान-मजदूर के पक्ष की बुलंद आवाज को दबाने के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म पर प्रतिबंध लगाना लोकतंत्र के लिए खतरनाक तो है ही, साथ ही यह आपातकाल का भी एक जीता-जागता उदाहरण है। किसान मोर्चे से जुड़े ट्विटर अकाउंट पर केंद्र सरकार द्वारा लगाई गई पाबंदी पर उसने आगे कहा कि यह सरकार द्वारा मानवाधिकारों के खिलाफ हमले के एक बड़े अभियान का हिस्सा है।
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ट्विटर द्वारा बिना किसी चेतावनी के किसान मोर्चा से जुड़े ट्विटर हैंडल @kisanektamorcha समेत करीब एक दर्जन ट्विटर अकाउंट को भारत में बंद कर दिया है।  जिसको लेकर संयुक्त किसान मोर्चा ने इसकी निंदा किया और  कड़ा विरोध जताते हुए कहा कि ये केंद्र सरकार के निर्देश पर किसान आंदोलन से संबंधित ट्विटर अकाउंटों पर  पाबंदी लगाई है। इनमें ट्रैक्टर टू ट्विटर जैसे महत्वपूर्ण एकाउंट भी है। इस संदर्भ में महत्वपूर्ण बात यह है कि केंद्र सरकार ने यह कदम उठाने के लिए आपातकाल के दिन को ही चुना। 25/26 जून 1975 की रात, जब देश में आपातकाल लगाई गई थी, भारत के लोकतंत्र में एक काला दिवस माना जाता है।

मोर्चे ने कहा आपातकाल के जन-विरोधी प्रावधान द्वारा भारत सरकार ने तानाशाही रवैया अपनाया, और सरकार की विचारधारा के खिलाफ उठ रही आवाजों को कुचला था। ठीक उसी तरह आज भाजपा ने सरकार से सवाल करने वाले इन ट्विटर अकाउंटों की आवाज बंद करने के लिए ट्विटर पर दबाव बनाया है, जिससे ट्विटर ने इन अकाउंट पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।

अपने बयाना में आगे मोर्चे ने कहा कि जब किसान आंदोलन शुरू हुआ था तो किसान आंदोलन के खिलाफ तरह-तरह के दुषप्रचार व झूठी खबर फैलाई जा रही थी। किसान आंदोलन में सक्रिय युवाओं ने किसान एकता मोर्चा, ट्रैक्टर टू ट्विटर, आदि तरह के नए उपचारों से किसानों की आवाज को दुनिया के सामने लाने का प्रयास किया। इन अकाउंटों के लाखों की संख्या में फॉलोवर्स थे। एक साल से अधिक चले किसान आंदोलन के दौरान, इन अकाउंटों ने बहादुरी और लगन से आंदोलन की गतिविधियों की सूचना दी, और सरकार द्वारा आंदोलन और प्रदर्शनकारियों के उत्पीड़न पर आवाज उठाया। इन चैनलों के द्वारा किसानों की आवाज गांव से निकलकर बड़े शहरों व दुनियाभर में आई, और असल मायनों में खेती-किसानी की आवाज ट्रैक्टर से ट्विटर पर आई।

मोर्चे ने आगे कहा कि सरकार द्वारा इस तरह से किसान-मजदूर के पक्ष की बुलंद आवाज पर डिजिटल प्लेटफॉर्म पर प्रतिबंध लगाना लोकतंत्र के लिए खतरनाक तो है ही, साथ ही यह आपातकाल का भी एक जीता-जागता उदाहरण है। किसान मोर्चा से जुड़े ट्विटर अकाउंट पर केंद्र सरकार द्वारा लगाई गई पाबंदी, इस सरकार द्वारा मानवाधिकारों के खिलाफ हमले के एक बड़े अभियान का हिस्सा है।

मोर्चे के नेताओ ने समाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी को लेकर भी सवाल उठाए और कहा कि इस कड़ी में ही  2002 के गुजरात दंगों के पीड़ितों के लिए मानवाधिकार की लड़ाई लड़ रहीं सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ व पूर्व प्रशासनिक अधिकारी आरबी श्रीकुमार को 26 जून को गिरफ्तार कर लिया गया है। वहीं पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट पर एक और केस कर दिया गया है। हम केंद्र सरकार द्वारा इस तानाशाही व्यवहार का पुरजोर तरीके से विरोध व निंदा करते हैं। यह बिल्कुल “उल्टा चोर कोतवाल को डांटे” वाली स्थिति है, जहां न्याय की मांग करने वालों को ही गिरफ्तार किया जा रहा है।

संयुक्त किसान मोर्चा मांग की कि किसान-मजदूर की बुलंद आवाज किसान एकता मोर्चा व ट्रैक्टर टू ट्विटर समेत तमाम ट्विटर अकाउंट, जिन्हें अलोकतंत्रिक व अतार्किक रूप से बंद किया गया है उन्हें पुनः बहाल किया जाए। हम यह भी मांग करते हैं कि तीस्ता सीतलवाड़, आरबी श्रीकुमार व संजीव भट्ट को बेशर्त रिहा किया जाए, और गुजरात दंगों के आरोपियों को सजा देखकर दंगा पीड़ितों को न्याय सुनिश्चित किया जाए।

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