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कटाक्ष: डेमोक्रेसीजीवियो इंडिया छोड़ो!

बताइए, जिस दिन से पीएम जी ने डीपी में तिरंगे की मांग की है, उसी दिन से हाथ धोकर बेचारे भागवत जी के पीछे पड़े हुए हैं--आरएसएस की सोशल मीडिया डीपी में तिरंगा क्यों नहीं है? डीपी में तिरंगा कब लगाएंगे?
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कार्टून सतीश आचार्य के ट्विटर हैंडल से साभार

लीजिए, अब इन डेमोक्रेसीजीवियों को इसमें भी आब्जेक्शन हो गया। कह रहे हैं कि सोशल मीडिया में तिरंगे की डीपी लगाने से क्या होगा? आजादी की 75वीं सालगिरह है, अच्छी बात है। खुशी का मौका है। सब के लिए खुशी का मौका है। आजादी 75 साल चल गयी और अब भी कायम है, इसमें खुश होने से भला कौन इंकार कर सकता है। और भारत की आजादी की सालगिरह का मौका है, तो इस मौके पर तिरंगा फहराना तो बनता ही है।

75 वीं सालगिरह का खास मौका है, तो तिरंगा फहराने का भी खास मौका है। तिरंगा जितना फहरा सकें फहराएं। जितनी देर तक फहरा सकें, फहराएं। गिनती में जितने ज्यादा फहरा सकें फहराएं। गली-गली, घर-घर, दफ्तर-दफ्तर, जहां फहराया जाए, तिरंगा फहराएं, उसका मौका है। अब तो खादी की बंदिश भी नहीं रही, सो पालिएस्टर से कागज तक, जिसका भी और जिस साइज का भी चाहें, फहराएं, झंडा फहराने का मौका है- बस तिरंगा होना चाहिए, बीच में अशोक चक्र वाला।

पर इस सब के बीच, सोशल मीडिया वाली डीपी में तिरंगे का क्या मतलब है और वह भी ऑन डिमांड। यानी डीपी मेें तिरंगा लगा ले वर्ना...! खुशी मनाने में भी धमकी...? क्या यही अमृतकाल है!

और हद्द तो यह है कि ऑन डिमांड डीपी में तिरंगे पर इन डेमोक्रेसीजीवियों के आब्जेक्शन में भी दुहरे पैमाने हैं। अपने लिए एक पैमाना है और आरएसएस के लिए दूसरा ही पैमाना है। भगवाधारी इनसे डीपी में तिरंगे की मांग करें तो, जोर-जबर्दस्ती है। देशभक्ति की परीक्षा लेना है। स्वतंत्रता का हनन है, वगैरह, वगैरह। और खुद आरएसएस वालों से वही मांग करें तो- देशभक्ति! बताइए, जिस दिन से पीएम जी ने डीपी में तिरंगे की मांग की है, उसी दिन से हाथ धोकर बेचारे भागवत जी के पीछे पड़े हुए हैं--आरएसएस की सोशल मीडिया डीपी में तिरंगा क्यों नहीं है? डीपी में तिरंगा कब लगाएंगे? और तो और कई डेमोक्रेसीजीवी तो सोशल मीडिया में हर सुबह, महाराष्ट्र में मंत्रिमंडल के इंतजार के दिनों की गिनती की तरह, संघ की डीपी में तिरंगे के इंतजार के दिनों की गिनती के अपडेट भी डाल रहे हैं--मोदी जी की डिमांड के बाद चौथा, पांचवां, छठा...दिन, संघ की डीपी में तिरंगा अब तक नहीं आया!

डीपी में तिरंगे के लिए जोर-जबर्दस्ती पर आब्जेक्शन और विश्व के सबसे महान संगठन के साथ डीपी में तिरंगे के लिए जोर-जबर्दस्ती के आह्वान -यह कहां का इंसाफ है। और यह कोई नहीं भूले कि संघ के साथ, केसरिया हटाकर यूनियन जैक फहरवाने जैसी ज्यादती, तो कभी अंगरेजों ने भी नहीं की थी। उनकी हिम्मत ही नहीं पड़ी। खैर! आजादी के पहले ही नहीं आजादी के बाद 75 साल तक देशभक्तों से जो किसी ने नहीं करवाया, क्या अब अमृतकाल में करवाएंगे और केसरिया हटवाकर, डीपी में तिरंगा लगवाएंगे? वह भी भारत में? वह भी मोदी जी के राज में? सोचना भी मत!

और ये तो बिल्कुल ही बेतुकी बात है कि अगर भागवत जी संघ की डीपी में केसरिया हटाकर तिरंगा नहीं लगाएंगे, तो ये तरह-तरह के डेमोक्रेसीजीवी भी डीपी में तिरंगा नहीं लगाएंगे। और कुछ डेमोक्रेसीजीवी तो इतने मगरूर हो गए हैं कि कह रहे हैं कि संघ की डीपी में भागवत जी तिरंगा लगाएं या नहीं लगाएं, बाकी किसी को भी डीपी में तिरंगा लगाने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए। देशप्रेम भीतर से पैदा होता है। देशप्रेम स्वेच्छा से दिखाए जाने की चीज है। किसी को देशप्रेम की ऐसी परीक्षा देने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए। लेकिन क्यों? अरे भाई अगर आप देशभक्त हैं, तो आप को देशभक्ति की परीक्षा देने में डर कैसा? देशभक्त हैं, तो देशभक्ति की परीक्षा में कामयाब ही होकर निकलेंगे। फिर डरना क्यों? परीक्षा से डरते वही हैं जिनके दिल में खोट हो। या देशभक्ति की तिरंगा परीक्षा पर ही आप को विश्वास नहीं है, तिरंगे से आप को प्यार नहीं है? फिर तो आपके लिए परीक्षा की भी जरूरत नहीं है। क्या परीक्षा के बिना ही आपको परीक्षा में फेल होना है!

मोदी जी तो यही चाहते हैं कि सारे देशभक्त इस परीक्षा में बैठें और कामयाब होकर निकलें। इसीलिए, तो इतनी सरल परीक्षा रखवाई है। झंडा खरीदने, लगाने, फहराने तक की जरूरत नहीं है। तिरंगे की तस्वीर उठाओ और डीपी में लगाओ। बस गूगल करते समय तिरंगे पर अशोक चक्र का ध्यान रखना। सुना है कि कई भक्तों ने तो जोश-जोश में, किसी दूसरे देश का ही तिरंगा चिपका दिया। खैर! नंबर बढ़ाने की हड़बड़ी में ऐसी छोटी-मोटी गलतियां तो हो ही जाती हैं। हम तो वैसे भी वसुधैव कुटुम्बकम में विश्वास करते हैं। तिरंगा आखिर तिरंगा है, उसमें तेरा-मेरा क्या? रही बात अशोक चक्र की, तो उसके शेरों से बदलाव तो शुरू भी हो गया है। देर-सबेर इस चक्र को तो जाना ही है। चक्र एक जगह कब तक रुका रहेगा, कभी भी इधर या उधर निकल जाएगा। चक्र जाएगा, तब न सनातन का परचम लहराएगा!

सच है कि भागवत जी और उनके संघ, दोनों की देशभक्ति की परीक्षा लेने वाला तो कोई पैदा ही नहीं हुआ। लेकिन, इसका मतलब यह तो नहीं है कि बाकी सब की भी देशभक्ति की परीक्षा नहीं ली जा जाएगी! बाकी सब की देशभक्ति की परीक्षा लेने वाले तो न सिर्फ पैदा हो चुके हैं बल्कि खूब बड़े भी हो चुके हैं। बल्कि बाकी की परीक्षा के लिए, संघ के होते हुए और किसी की जरूरत ही कहां है। सो ये डेमोक्रेसीजीवी कुछ भी कहते रहें, बाकी सब की देशभक्ति की तिरंगा परीक्षा तो होकर रहेगी। जो जितनी तेजी से डीपी में तिरंगा लगाएगा, उतना ही देशभक्त माना जाएगा। अब प्लीज कोई यह मत कहना कि घर-घर तिरंगा फहराने में ही देशभक्ति की परीक्षा ले लेते, ये डीपी वाले तिरंगे वाली परीक्षा की क्या जरूरत थी? जरूरत थी, परीक्षा की आसानी के लिए। देश भी तो इतना बड़ा है। वैसे भी जमाना डिजिटल का और परीक्षा घर-घर वाली परीक्षा--बात जंचती है क्या?

अमृतकाल है तो क्या, नया इंडिया भी तो है। होगी, इस बार घर-घर तिरंगे वाली भी परीक्षा होगी और जरूर होगी। जो घर पर तिरंगा नहीं फहराएंगेे, देशभक्त उनका भी हिसाब लगाएंगे और मौका आने पर चुकाएंगे भी। फिर भी असली परीक्षा तो डिजिटल ही होगी। रिकार्ड के लिए गिनती में भी आसानी और रिजल्ट सुनाने में भी आसानी।

बल्कि हम तो कहते हैं कि मोदी जी को डीपी में तिरंगा परीक्षा में उत्तीर्ण होने वालों के लिए, बाकायदा देशभक्ति का सार्टिफिकेट भी दिला देना चाहिए। हम तो कहेंगे कि इसमें उनका और भी ज्यादा फायदा है, जो संघ सर्टिफाइड देशभक्त नहीं हैं। कम से कम रोज-रोज देशभक्ति दिखाने के झंझट से तो जान छूटेगी। कोरोना के टीके के सार्टिफिकेट की तरह, मोदी जी की तस्वीर वाला देशभक्ति सार्टिफिकेट मिल जाएगा, तो देशभक्ति साबित करने की मांगों से पिंड तो छूट जाएगा। और निम्मो ताई चाहें तो देशभक्ति सार्टिफिकेट की फीस पर जीएसटी लगाकर, सरकारी खजाना भी भर सकती हैं। अमृतवर्ष के अंत में ज्यादा नहीं तो कम से कम अमृत की एकाध बूंद किसी पर तो टपके। 

(इस व्यंग्य स्तंभ के लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लोक लहर के संपादक हैं।)

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