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कटाक्ष: मणिपुर करे पुकार, बुलडोज़र लाओ सरकार!

घाटी में तो घाटी में, पहाड़ों तक में बुलडोज़र नहीं आया। सौ पचास की छोड़ो, एक बुलडोज़र नहीं आया। एक बुलडोज़र भी नहीं। ऊपर चढ़कर सीएम के लिए फोटो खिंचाने की ही ख़ातिर बिना इंजन का बुलडोज़र तक नहीं।
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फ़ोटो : PTI

मणिपुर वालों के साथ तो वाकई बड़ी नाइंसाफी हो रही है। बताइए, मारा-मारी चलते पूरे तीन महीने हो गए। पौने दो सौ या उससे भी ज्यादा लोगों का इस दुनिया से उस दुनिया में तबादला भी हो गया। हजार से ऊपर घायल हो गए। सत्तर-अस्सी हजार बेघर होकर कैंपों में पहुंच गए। हजारों बंदूकें लुट गयीं या लुटा दी गयीं और लाखों गोली-कारतूस। सड़कें बंद हो गयीं। इलाके बंट गए। बार्डर लग गए। मैतेई इलाके में कूकी यानी जान का खतरा। कूकी इलाके में मैतेई यानी जान का खतरा। कूकी-मैतेई की जोड़ी यानी इधर भी और उधर भी, सब तरफ जान का खतरा। और तो और औरतों के साथ दरिंदगी ने तो मोदी जी तक का ढाई महीने पुराना मौन व्रत तुड़वा दिया। यह दूसरी बात है कि संसद के अंदर मणिपुर के मामले में उनका मौन व्रत फिर भी नहीं टूटा, उल्टे उनका मौन व्रत तुड़वाने के चक्कर में सुनते हैं कि बिना चर्चा कानून बनाने का संसद का रिकार्ड जरूर टूट गया। यानी सब कुछ हो गया, जो हो सकता था। और ऐसा भी बहुत कुछ हो गया जो नहीं हो सकता लगता था। पर बुलडोजर नहीं आया। घाटी में तो घाटी में, पहाड़ों तक में बुलडोजर नहीं आया। सौ पचास की छोड़ो, एक बुलडोजर नहीं आया। एक बुलडोजर भी नहीं। ऊपर चढ़कर सीएम के लिए फोटो खिंचाने की ही खातिर बिना इंजन का बुलडोजर तक नहीं।

बताइए, मणिपुर वालों को शिकायत नहीं हो तो कैसे? हरियाणा में नूंह में, गुरुग्राम में क्या हो रहा है, मणिपुर वालों को क्या दिखाई नहीं देता है! सोमवार को बवाल हुआ। और इतवार तक यानी छ: दिन में ही बुलडोजरों की फौज न सिर्फ पहुंच चुकी थी बल्कि उसे घर, दुकान, होटल वगैरह ढहाने का अपना काम करते हुए पूरे चार दिन हो भी चुके थे। सैकड़ों झोपडिय़ां, दर्जनों दुकानें वगैरह, कई बहुमंजिला इमारतें तो पूरी तरह से जमींदोज भी की जा चुकी थी। और यह सब तब जबकि संघियों और मुसंघियों के सारा जोर लगाने के बाद भी, यहां कुल छ: लोगों का इस दुनिया से उस दुनिया में तबादला हुआ था। बताइए, इतना भेदभाव! और ऐसी दुभांत और वह भी तब जबकि अगर हरियाणा में डबल इंजन की सरकार है, तो मणिपुर में भी डबल इंजन की ही सरकार है। उल्टे हरियाणा में तो फिर भी, डबल इंजन के साथ, पराया डीजल इंजन जोड़कर खट्टर की सरकार खड़ी है, जबकि बीरेन सिंह की तो बिना रत्तीभर मिलावट के, शुद्ध डबल इंजन की सरकार है। मणिपुर वाले इससे क्या समझें? उनके साथ ही ये सौतेला बरताव क्यों? बीरेन सिंह की सरकार इतना सब कराने के बाद भी, बुलडोजरहीन सरकार क्यों?

अब प्लीज ये बहाना कोई नहीं बनाए कि मणिपुर का भूगोल ही ऐसा है कि वहां बुलडोजर चला ही नहीं सकते हैं। कुकी पहाड़ी इलाकों में रहते हैं और पहाड़ी इलाकों में बुलडोजर काम नहीं आता है। बची घाटी, तो वहां ज्यादातर मैतेई रहते हैं, वहां बुलडोजर चलाना कौन चाहेगा? घाटी में बुलडोजर चलाएंगे, तो भगवा झंडा उठाने कौन आएगा? यानी बुलडोजर आ भी जाए, तो भी मणिपुर में किसी का काम का नहीं होगा। लेकिन, ऐसी झूठी दलीलों से उत्तर-पूर्व वालों को कब तक बहलाया जाएगा? उत्तर-पूर्व वालों से ऐसी दुभांत सत्तर-पचहत्तर साल बहुत हुई, अब और नहीं। सोचने की बात है, उत्तराखंड भी तो पहाड़ी राज्य है। वहां डबल इंजन की सरकार है, तो वहां बुलडोजर भी है। माना कि पहाड़ में बुलडोजर उतना काम नहीं आता है, जितना मैदान में आता है। माना कि धामी जी के राज में बुलडोजर उतने घर-दुकान-मज़ार नहीं ढहाता है, जितना योगी जी के राज में ढहाता है। माना कि उत्तराखंड में बुलडोजर, उस तरह धामी जी का वैकल्पिक चुनाव चिह्न नहीं माना जाता है, जैसे यूपी में योगी जी का या मप्र में मामा जी का बुलडोजर माना जाता है और उम्मीद है कि जल्द ही खट्टर जी का बुलडोजर भी जाना जाने लगेगा। फिर भी अगर उत्तराखंड की डबल इंजन सरकार, बुलडोजर पर सवार होने की हकदार है, तो मणिपुर की डबल इंजन सरकार क्यों नहीं? बुलडोजर ज्यादा नहीं चलेगा, तो नहीं चले, पर कम से कम संदेश देने के तो काम आएगा कि जो हिंदुत्व का काम खराब करेगा, उसकी खबर बुलडोजर लेगा। बुलडोजर जहां चलता भी है, वहां भी बहुत हुआ तब भी सौ-दो सौ झोपड़ियों, दुकानों, एकाध दर्जन पक्के मकानों पर ही चलता है। पर दूर तक चलती है बुलडोजर की धमक। दूर तक चलता है उसका संदेश। पर मणिपुर के लिए तो वह संदेश भी कहां है?

सच पूछिए तो मणिपुर वालों को तकलीफ सिर्फ गऊ-पट्टी वालों के मुकाबले भेदभाव की ही नहीं है। डबल इंजनियों के लिए तो गऊ पट्टी ही उनकी मदर इंडिया है। मौसी इंडिया को भी पता है कि वह कुछ भी कर ले, पर मदर इंडिया नहीं बन सकती। पर जब उनके ऐन बगल में, हिमांता बिश्वा शर्मा आए दिन बुलडोजर पर सवार होकर फोटो खिंचाता है और गरीब बंगाली मुसलमानों की झोंपडिय़ां गिराता है, तो उन्हें और भी तकलीफ होती है। क्या सिर्फ इसलिए कि बिश्व शर्मा का राज बड़ा है, उसकी सवारी के लिए दर्जनों बुलडोजर और बीरेन सिंह के लिए एक बुलडोजर तक नहीं। इतना भारी अंतर क्यों? क्या मणिपुर वालों ने भी पिछले ही दिनों चुनाव में डबल इंजन पर ही ठप्पा नहीं लगाया था। साइज में छोटे सही, शर्मा की दिल्ली तक ज्यादा पहुंच सही, पर बीरेन सिंह भी मणिपुर के स्वाभिमान से अब और कम्प्रोमाइज नहीं करेंगे। बुलडोजर मंगवा के रहेेंगे, कहीं न कहीं बुलडोजर चलवा कर रहेेेंगे। मणिपुर में भी भगवा करेे पुकार, बुलडोजर लाओ सरकार।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लोक लहर के संपादक हैं।)

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