कटाक्ष: मुंह तोड़ जवाब आया है!

अब बोलें क्या कहेंगे मोदी पर मीडिया के सवालों से भागने की तोहमत लगाने वाले!
बेचारे मोदी जी ने जरा सा प्रेस कॉन्फ्रेंस वगैरह से दूर ही रहने का प्रण क्या कर लिया था, भाई लोगों ने उन पर स्वतंत्र मीडिया से डरने-डराने के इल्जाम ही लगाने शुरू कर दिए।
इसकी बतकहियां शुरू हो गयी थीं कि छप्पन इंच की छाती की सारी शेखियां इस मामले में धरी की धरी रह जाती हैं; जब मीडिया के सवालों की बारी आती है तो मोदी जी की घिग्घी ही बंध जाती है।
छांट-छांटकर गोदीकृत मीडिया वालों के लिए इंटरव्यू के नाम से प्रायोजित शो में एक्टिंग की या मीडिया घरानों के मालिकों को उपकारों से या विज्ञापनों से या दोनों से ही खरीदे जाने की बात दूसरी है, वर्ना मोदी जी मीडिया वालों के लिए आम तौर पर अपने दरवाजे बंद ही रखते हैं। और भी न जाने क्या-क्या।
आखिरकार, मोदी जी ने इस बार के अपने अमेरिका के दौरे में ऐसी बातें कहने वालों का मुंहतोड़ जवाब दे ही दिया। ट्रम्प के साथ व्हाइट हाउस में प्रेस के सवालों के जवाब देकर, उन्होंने न सिर्फ अपने प्रेस से डरने-डराने के सारे इल्जामों को जोरदार तरीके से झूठा साबित कर दिया है, सवालों के अपने जवाबों से यह भी साबित कर दिया है कि मोदी का कोई जवाब नहीं है!
और उन्होंने जवाब भी कोई ऐसे-वैसे सवालों के ही नहीं दिए हैं, सीधे राष्ट्र सेठ से संबंधित सवालों के भी जवाब दिए हैं। एक अमेरिकी पत्रकार ने जब ट्रम्प के साथ, राष्ट्र सेठ के केस पर बात-चीत पर सवाल पूछ डाला, मोदी जी न रुके न झुके और डरने का तो सवाल ही नहीं था। सीधे पूछने वाले की बोलती ही बंद करने वाला जवाब पकड़ा दिया। उसे भारत की महानता के बारे में बताया, जिससे समझ जाए कि किस के बारे में उसने सवाल कर दिया था! फिर बताया कि कैसे भारत के लोग वसुधैव कुटुम्बकम में विश्वास करते हैं। सारी दुनिया को अपना कुटुम्ब मानते हैं। इस समय भी भारत में प्रयागराज में महाकुंभ चल रहा है, जिसमें सारी दुनिया जुटती है। यह दुनिया का अतुलनीय आयोजन है, जिसका जैसा दूसरा कोई आयोजन, न अब तक हुआ है और न आगे कोई होगा। हम हर रोज विश्व रिकार्ड बना रहे हैं। बल्कि यहां तक कि इतने सारे विश्व रिकार्ड हमने बना लिए हैं, कि अब और विश्व रिकार्ड दर्ज कराने तक से हमें अरुचि सी हो गयी है। तभी तो कुंभ में भगदड़ से मौतों का आंकड़ा हमने जान-बूझकर कम से कम गिनवाया और तीस की संख्या पर फुल स्टॉप लगा दिया। वर्ना डुबकियों के विश्व रिकार्डों के साथ-साथ, भगदड़ में मौतों का विश्व रिकार्ड भी हमारे हाथ से कहीं गया नहीं था। और यह भी कि हम हरेक भारतीय को अपने परिवार का हिस्सा मानते हैं। हम परिवार के हरेक सदस्य की हिफाजत करते हैं, आदि, आदि।
सवाल पूछने वाला अमेरिकी पत्रकार था यानी उसका मुंह ईडी-सीबीआई-आईटी से तो बंद करा नहीं सकते थे, इसलिए भारत की महानता के शाब्दिक बखान से ही मुंह बंद कराया। और आखिर में हाथ नचाकर बता दिया कि राष्ट्र सेठ का केस, एक पर्सनल मामला है जबकि वह और ट्रम्प, दोनों हैड ऑफ स्टेट हैं; और दो हैड ऑफ स्टेट जब मिलते हैं, बैठते हैं, बात करते हैं, तो ऐसे पर्सनल मामलों पर बात नहीं करते हैं। बड़े-बड़े लोगों की बड़ी-बड़ी बातों में, ऐसे छोटे मामले नहीं आया करते हैं।
राष्ट्र सेठ के केस को इस तरह छोटा करते-करते उन्होंने इतना छोटा कर दिया कि इसका जिक्र तक नहीं आने दिया कि ट्रम्प जी ने तो पहले ही छ: महीने के लिए अमेरिका के उस विदेशी भ्रष्टाचार कानून को ही सस्पेंड कर दिया था, जिसके तहत भारत के राष्ट्र सेठ पर, भारत में घूस देने का केस बना था। यानी छ: महीने की मोहलत तो मोदी जी के फोन कॉल के बाद ही मिल गयी थी, मुलाकात के बाद क्या होगा, इसका आगे-आगे पता चलेगा।
कम से कम अब तो मोदी जी के जवाबदेही से भागने के इल्जाम लगने बंद हो जाने चाहिए। यह भी कोई नहीं भूले की यह कोई पहला मौका नहीं था, जब मोदी जी ने संवाददाता सम्मेेलन में पत्रकारों के सवालों के जवाब दिए हैं। और सिर्फ ट्रम्प को खुश करने के लिए तो मोदी जी ने हर्गिज-हर्गिज ऐसा नहीं किया है।
पिछले साल बाइडन के व्हाइट हाउस में रहते हुए भी, मोदी जी ने एक बार, दो-दो सवालों का जवाब दिया था और वह भी ऐसे ही मुंहतोड़ अंदाज में। तब भारतीय मूल की एक अमेरिकी पत्रकार ने भारत में जनतंत्र और धर्मनिरपेक्षता के लिए खतरे पर सवाल पूछा था और तब भी मोदी जी ने उसे भारत की महानता पर लैक्चर पिलाने के बाद, लंबे जवाब के आखिर में कहा था कि भेदभाव का कोई सवाल नहीं है क्योंकि सरकार की योजनाओं के लाभ सभी के लिए हैं! योजनाओं का सभी को लाभ यानी भेदभाव किसी से नहीं!
इस तरह, ग्यारह साल में दो बार अमेरिका में और पहले साल में एक इंग्लैंड में मिलाकर, कम से कम तीन बार तो मोदी जी संवादाताओं को संबोधित कर ही चुके हैं। औसत लगाएं तो ज्यादा से ज्यादा चार साल में एक बार का औसत बैठता है। यानी हजार दिन में एक बार।
एक यशस्वी प्रधानमंत्री को और कितने दिन संवाददाताओं को संबोधित करना चाहिए। आखिरकार, प्रधानमंत्री को दूसरे भी तो जरूरी काम करने होते हैं। तमाम शिलान्यास हैं, उद्घाटन हैं, हरी झंडियां दिखानी हैं, घोषणाएं करनी हैं, पैकेजों का एलान करना है, विदेश यात्राएं करनी हैं और सबसे बढक़र, चुनाव प्रचार और राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ प्रचार भी तो करना है। फिर संबोधित तो मोदी जी संवाददाताओं समेत देशवासियों को आए दिन करते ही रहते हैं; और तो और हर महीने अपने मन की बात में ही संबोधित करते हैं।
सब विरोधियों का झूठा प्रचार ही है कि विपक्षियों और आम लोगों की तरह, मीडिया वालों के लिए मोदी जी के दरवाजे बंद हैं। अगर दरवाजे वाकई बंद होते, तो क्या रात-दिन गोदी मीडिया, गोदी मीडिया का शोर सुनाई देता? गोदी में सवार होने के लिए मीडिया, दरवाजे बंद रहते हुए कैसे जा सकता था।
(इस व्यंग्य स्तंभ के लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लोक लहर के संपादक हैं।)
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