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नये अनुयायी बापू के

अपने अनुयायी जी का लेटेस्ट कारनामा आपने सुना भी है? बापू बोले हुआ क्या? अब मैं भी लग गया दानिश अली से रमेश बिधूड़ी की संसदीय मुठभेड़ का पूरा क़िस्सा सुनाने।
Gandhi
फ़ोटो साभार : गूगल

बुढ़ऊ को देखकर, अचानक दिमाग में घंटी सी बजी--बापू! वाकई बापू ही थे। वही सूखी सी काया। वही नंगा बदन। वही गंजा सिर। वही कमानीदार चश्मा। और हाथ की लाठी के बाद भी वही जवानों को पीछे छोड़ने वाली तेज चाल। पक्का, बापू ही थे। लोक कल्याण मार्ग पर चले जा रहे थे। पीछे से दौड़कर पकड़ा। हांफते-हांफते ही पूछा--आप, अभी से कैसे? अभी तो जन्म दिन भी दो दिन दूर है। और सुबह-सुबह ऐसे लपकते-झपकते जा कहां रहे हैं? बापू ने तरस खाकर चाल तो जरा धीमी कर दी, पर जवाब देने की जगह सड़क पर लगे साइन बोर्ड की तरफ इशारा कर दिया--लोक कल्याण मार्ग! पूछा--मार्ग तो ठीक है, पर जा कहां रहे हैं? बापू शरारत से कुछ मुस्कुराते हुए बोले--जिस ठिकाने के लिए मार्ग का ही नाम बदल गया, लोक कल्याण मार्ग पर जाने के लिए उसे छोड़कर क्या दूसरा भी कोई ठिकाना हो सकता है!

मैंने हाथ का इशारा कर के चाल धीमी करने को कहा जिससे ठीक से बात हो सके, तो बापू तरस खाकर रुक गए और जी-20 के लिए सौंदर्यीकरण के बाद छूटे एक छोटे से चबूतरे के किनारे पर मेरे लिए जगह छोड़कर बैठ भी गए। संकोच से सिकुड़ कर बगल में बैठते हुए एक बार ख्याल आया कि नमस्ते तो की ही नहीं। पर उसका समय कब का निकल चुका था। बल्कि बापू मेेरे बोलने का इंतजार कर रहे थे। और कुछ नहीं सूझा तो मैंने पहले वाला सवाल ही दोहरा दिया। आखिर, सुबह-सुबह कहां जा रहे हैं? बहुत जरूरी काम लगता है! बाद का टुकड़ा इसलिए जोड़ दिया, जिससे बुढ़ऊ फिर से पहले की तरह पहेली न बूझवाने लग जाएं। बापू भी समझ गए। फिर वह ठहरे कुछ भी छिपाने के विरोधी। कहने लगे कि हो सके तो नरेंदर दामोदर दास मोदी से मुलाकात करने निकला हूं। हैरानी से मेरे मुंह से निकल गया--बिना एप्वाइंटमेंट? बहुत जरूरी काम होगा? बापू कहने लगे कि दिल में आयी और मैं तो बस निकल पड़ा। अब अगर बात हो जाए तो ठीक, वर्ना मॉर्निंग वाक तो हो ही जाएगी!

बापू जितने आराम से बैठे थे, उससे सवाल पूछने की हिम्मत और बढ़ गयी। पूछा--जरूर कोई बहुत जरूरी काम होगा। सिर्फ मॉर्निंग वॉक पर तो 30 जनवरी लेन से आप भी नहीं चले आएंगे? बता ही दीजिए, मोदी जी से आप को क्या चाहिए? बापू तनिक सीधे होकर बैठ गए। बोले, वैसे काम कहने जैसा तो कोई काम है नहीं और कुछ चाहने का तो अब सवाल ही कहां उठता है। बस मोदी जी को एक जरा थैंक यू कहना है। मेरे इस दुनिया के कूच करने के पचहत्तर साल हो गए, फिर भी वह मेरे बताए रास्ते पर चल रहे हैं। ऐसे सच्चे अनुयायी बल्कि उत्तराधिकारी बड़े नसीब से ही मिलते हैं। सोचा, एक थैंक यू तो मेरी तरफ से भी बनता ही है। बस चला आया। देखते हैैं; हो सकता है मुलाकात हो ही जाए!

बापू की बात जितनी सरल थी, उतना ही दिमाग में खलल पैदा कर रही थी। बापू के सच्चे अनुयायी और वह भी मोदी जी! रोकते-रोकते मुंह से निकल ही गया--मुझे नहीं लगता है कि आप तक सही जानकारी पहुंच रही है। यहां हालात तो कुछ और ही हैं। माफ कीजिएगा, आप भी गोदी मीडिया के प्रचार में आ गए लगते हैं। मोदी जी, आप के रास्ते पर? बापू के चेहरे पर पल भर को कुछ तनाव सा आ गया। फिर भी शांति से बोले--मेरी जानकारियों में जरा सा भी खोट नहीं है। तुम्हें क्या लगता है, मैं गोदी मीडिया के भरोसे हूं। खबरें सारी डायरेक्ट मुझ तक पहुंचती हैं। पर मैं भी तब तक उखड़ चुका था। कुछ खीझकर कहने लगा--पता नहीं खबरें गलत पहुंच रही हैं या आप ही गलत समझ रहे हैं। पर मेरे हिसाब से आप गलती कर रहे हैं।

अपने अनुयायी जी का लेटेस्ट कारनामा आपने सुना भी है? बापू बोले हुआ क्या? अब मैं भी लग गया दानिश अली से रमेश बिधूड़ी की संसदीय मुठभेड़ का पूरा किस्सा सुनाने। मोदी जी के नये संसद भवन के स्पेशल उद्घाटन सत्र में बिधूड़ी के दानिश अली को चुन-चुनकर गालियां सुनाने का हिस्सा। बेबात गालियां सुनाने का किस्सा। भर-भर के गालियां सुनाने का किस्सा। सांप्रदायिक गालियां सुनाने का किस्सा। अब मेरा किस्सा ख्त्म ही नहीं हो। आखिरकार, बापू को ही अधीर होकर पूछना पड़ा--फिर क्या हुआ? मैं बताने लगा कि पीछे से कौन-कौन हंस रहा था, स्पीकर ने कैसे बिधूड़ी को दोबारा ऐसी शरारत न करने के लिए धमका कर छोड़ दिया, नड्डा जी ने कैसे कारण बताओ नोटिस का नाम लिया, वगैरह। अब बापू ने फिर टोका। इस सब में मिस्टर अनुयायी कहां हैं। तुम तो इतना बताओ को मेरे अनुयायी ने क्या किया? मैंने भी कुछ तुर्शी से कहा--क्या किया? यही तो किया कि कुछ नहीं किया! करना तो दूर एक शब्द तक नहीं कहा। मुंह में दही जमाए बैठे रहे। और अब तक बैठे हुए हैं। मुलाकात हो तो आप ही पूछ लेना अपने अनुयायी जी से क्या-क्या कर सकते थे, पर उन्होंने नहीं किया!

अब बापू बोले तो उनके सुर में समझाइश थी। तुम्हारी नाराजगी भी गलत नहीं है। गाली देना बुरी बात है। संसद में गाली देना और बुरी बात है। सांप्रदायिक गाली देना और भी बुरी बात है। किसी को किसी को भी गाली नहीं देनी चाहिए। पर जिसे तुम मेरे अनुयायी की चुप्पी कह रहे हो, वह तो मेरी शिक्षा से भी बढक़र, मेरे बंदरों की शिक्षा के अनुकरण का मामला है। मेरे तीन बंदरों का किस्सा तो तुमने सुना ही होगा। बुरा न सुनने, बुरा न देखने और बुरा नहीं बोलने वाले, मेरे बंदर। तुम्हारे मोदी जी वही तो कर रहे हैं। गाली को फैलाने से इंकार। वह तो मेरे बंदरों का भी सच्चे अंत:करण से अनुकरण कर रहे हैं और तुम्हें लगता है कि वह मेरे अनुयायी ही नहीं हैं!

बापू जैसे-जैसे समझाने की कोशिश करते गए, वैसे-वैसे मेरा धीरज छूटता गया। मैंने झल्लाकर, कहा--और आपके अनुयायी जी की लेटेस्ट करनी का क्या? संसद गाली कांड के लिए बिधूड़ी को चुनाव में मोदी पार्टी ने और बड़ी जिम्मेदारी देकर ईनाम दिया है, ईनाम। बापू भी कुछ खीझकर बोले, इस मामले में भी तुम अपने मोदी जी को गलत समझे। अगर इसमें किसी का कसूर है, तो मेरा ही है। मैंने ही कहा था कि पाप से घृणा करो पापी से नहीं। साफ है कि बंदे ने पापी से नफरत नहीं की; तभी तो बिधूड़ी को चुनाव में और बड़ी जिम्मेदारी दी है। गाली देने वाले से नफरत करने वाला क्या कभी ऐसा कर पाता! अपने ऐसे सच्चे अनुकरण के लिए ही तो मैं नरेंद्र भाई का थैंक यू करना चाहता हूं।

अब मैंने और भी चिढक़र कहा--आपने पापी से नफरत नहीं करने के लिए ही कहा था या उसे ईनाम देने के लिए भी कहा था? बापू इस पर कुछ झिझके, फिर कहने लगे कि सच्ची बात तो यह है कि अपने टैम में मैं तो ईनाम देने तक नहीं जा पाया था। मैं तो सिर्फ पापी से नफरत नहीं करने तक ही जा पाया था। पर अब मेरा कोई अनुयायी पापी को ईनाम देने तक पहुंच गया है, तो यह तो मेरी शिक्षा का विकास है। यह मेरे लिए तो खुश होने की बात है। मैंने चिल्लाकर कहा--और जो भाई लोगों ने खुद को पाप से घृणा करने से भी बरी कर लिया है, उसका क्या? बापू ने सिर हाथों में थाम लिया और बोले--चलो कोई आधा अनुकरण तो कर रहा है, कि पापी से घृणा नहीं करनी है। पचहत्तर साल बाद मेरी बातों को इतना ही सही, राज करने वाला याद तो कर रहा है।

इस बीच पुलिस ने हमें घेरे से में ले लिया। बुजुर्ग को देखकर, पुलिस वालों ने कुछ नरमी बरती और भागने के लिए कहने की जगह, सड़क से उल्टी दिशा में मुंह कर के खड़े होने का आदेश ही लागू कराया। कुछ ही देर में प्रधानमंत्री जी की गाडिय़ों का काफिला फर्राटे भरता हुआ निकल गया। बापू नरेंद्र भाई, नरेंद्र भाई करते ही रह गए; मोदी जी की झलक तक से नहीं मिल पाए। पुलिस का घेरा हटा तो बापू धीरे-धीरे उठते हुए बोले--मैं तो दो दिन एडवांस में आया था कि मेरी ओर से थैंक यू का कोई ईवेंट करना हो तो तय कर लें। अब नहीं चाहिए तो यूं ही सही। 2 अक्टूबर को तो बापू के लिए टैम निकालना ही पड़ेगा।

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