तिरछी नज़र: सरकार जी और बोर्ड एग्ज़ाम

आज कल सीबीएसई बोर्ड की परीक्षाएं चल रही हैं। बाकी राज्यों के बोर्ड की भी परीक्षाएं या तो चल रही हैं या फिर शुरू होने वाली हैं। लाखों छात्र छात्राएं दसवीं और बारहवीं की बोर्ड की परीक्षा दे रहे हैं। यह जानते हुए भी कि इन बोर्ड की परीक्षाओं का कोई महत्व नहीं है, बोर्ड की परीक्षा दे रहे हैं। अब तो बोर्ड की परीक्षा से किसी छोटे मोटे कॉलेज में भी दाखिला नहीं मिलता है। मेडिकल और इंजीनियरिंग में भर्ती के लिए तो नीट और जीट पहले से ही थे पर अब कॉलेज में, यूनिवर्सिटी में दाखिले के लिए भी सीयूईटी नाम की एक परीक्षा देनी पड़ती है। यह सरकार जी की सरकार का ही किया धरा है।
लेकिन इस बोर्ड की परीक्षा का एक लाभ है। बहुत बड़ा लाभ है। वह लाभ यह है कि सरकार जी को परीक्षा पे चर्चा नाम के कार्यक्रम को करने का मौका मिल जाता है। सरकार जी उस परीक्षा पर, जो उन्होंने कभी नहीं दी, चर्चा करते हैं। मैं ठीक ही बोल रहा हूँ ना। पहली से चौथी तक तो कहीं भी बोर्ड की परीक्षा नहीं होती है। गुजरात में भी नहीं। तो परीक्षा पे चर्चा में सरकार जी बताते हैं कि परीक्षा कैसे देनी चाहिए। कुछ वर्ष पहले ही, इसी कार्यक्रम में सरकार जी ने स्वयं बताया था कि कठिन प्रश्न पहले हल करने चाहियें।
अब अमेरिका में उन्होंने बताया है कि कठिन प्रश्न कैसे हल करने चाहियें। देश में तो सरकार जी साक्षात्कार देते ही रहते हैं। वे इंटरनल एग्जाम होते हैं। परीक्षक भी अपना होता है और प्रश्न पत्र भी आउट हो चुका होता है। बल्कि सच तो यह है कि प्रश्न पत्र तो सरकार जी स्वयं सेट करते हैं। देश में तो सरकार जी की परीक्षा कुछ इस तरह होती है। अब तो चार पांच लोग मिल कर सरकार जी की परीक्षा लेने लगे हैं।
सरकार जी की परीक्षा चल रही है। सारे कैमरे सरकार जी की ओर ही मुख किये हुए हैं। ज़ूम इन हो या ज़ूम आउट, हर फ्रेम में सरकार जी मौजूद हों, ऐसा विशेष निर्देश है।
एक परीक्षक सरकार जी से प्रश्न पूछता है, "सर, आप केला कैसे खाते हैं। मेरा मतलब है कि केला छील कर खाते हैं या उसे छिलके समेत खा लेते हैं। और अगर छील कर खाते हैं तो ऐसे ही खा लेते हैं या फिर काट कर, चाट मसाला छिड़क कर, नींबू निचोड़ कर, यानी कि चाट बना कर खाते हैं"।
"मैं केला नहीं खाता हूँ। पहले खाता था। जब मैं चाय बेचता था तब केला खाता था। केले में ना, एक खराबी है। यह कभी भी महँगा नहीं होता है। अधिक से अधिक हुआ तो साठ तक पहुंच गया, अस्सी तक पहुंच गया। केला कभी भी महंगा फल खाने का सुख नहीं दे सकता है इसलिए मैंने केला खाना छोड़ दिया है। हाँ, केले का छिलका जरूर काम की चीज है"।
"वह कैसे, सर", चार में से एक इंटरव्यूअर पूछता है।
"वह ऐसे कि मैं जब भी कैमरा टीम के साथ निकलता हूँ। और कैमरा टीम के बिना तो मैं निकलता ही नहीं हूँ। तो तब मैं पहले से ही कोई केले का छिलका, कागज का टुकड़ा फिकवा देता हूँ। फिर कैमरे के सामने मैं उसे उठा कर कूड़े दान में डालता हूँ" सरकार जी जवाब देते हैं।
"सर आप इतने साधारण कैसे हैं। कैसे सारे काम साधारण आदमी की तरह से कर लेते हैं", एक परीक्षक ने प्रशंसा की।
सरकार जी शरमा जाते हैं।
अब सरकार जी पर अगला प्रश्न दागा जाता है, "सर, आपने परसों रात के खाने में क्या खाया था"।
"मशरूम की सब्जी"।
"और उससे पिछली रात"।
"मशरूम की सब्जी"।
"और सर उससे पहली रात"?
"तब भी मशरूम की सब्जी। मैं हर रात मशरूम की सब्जी ही खाता हूँ"।
"देखा कितनी अच्छी स्मरण शक्ति है सर जी की। हम चारों में से किसी को भी याद नहीं होगा कि उसने परसों रात को खाने में क्या खाया होगा। और उससे पिछली रात का तो हरगिज़ ही नहीं याद होगा। और सरकार जी को सबकुछ याद है", साक्षात्कार लेने वाले लोगों में से एक ने चापलूसी की।
प्रशंसा सुन कर सरकार जी के गालों का रंग सुर्ख लाल हो गया। तो ऐसा होता है सरकार जी का इंटरनल एग्जाम।
और बोर्ड की परीक्षा? प्रश्न पत्र सेट करने वाला भी एक्सटर्नल, चेक करने वाला भी एक्सटर्नल। और सेंटर भी कहीं और। इंटरनल एग्जाम में जो प्रश्न आप आउट ऑफ़ सिलेबस घोषित कर चुके होते हैं, एक्सटर्नल एग्जाम में वह भी पूछा जा सकता है। प्रश्न आपके सिर के ऊपर से गुजर जाता है और आप फ़िल्मी कहानी सुनाने लगते हैं।
अभी अमेरिका में सरकार जी की बोर्ड की परीक्षा हो गई। वह प्रश्न पूछ लिया गया जो सरकार जी ने देश में होने वाली इंटरनल परीक्षाओं में आउट ऑफ़ सिलेबस घोषित किया हुआ है। पर था तो वह सिलेबस में ही। तो सरकार जी आयें बायें करने लगे। कहानियाँ सुनाने लगे।
"पहली बात है भारत एक लोकतान्त्रिक देश है। और हमारी संस्कृति वसुधैव कुटुंबकम की है। हम पूरे विश्व को अपना परिवार मानते हैं। हर भारतीय को मैं अपना मानता हूँ। और आगे यह भी, दूसरी बात है ऐसे व्यक्तिगत मामलों के लिए दो देश के मुखिया न मिलते हैं, न बैठते हैं, न बात करते हैं" सरकार जी का जवाब ऐसा था। प्रश्न सबको पता है। यहाँ सेंसरशिप के अंतर्गत काट दिया गया है।
तो बच्चों, आप बोर्ड के एग्जाम में अच्छा करो। किसी अनपढ़, अनभिज्ञ की मति अनुसार मत करो भले ही वह कितनी भी ऊँची पोस्ट पर हो। और हाँ, बोर्ड की परीक्षा के लिए सभी परीक्षार्थिओं को शुभकामनायें।
(इस व्यंग्य स्तंभ के लेखक पेशे से चिकित्सक हैं)
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