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व्यंग्य : इमेज बड़ी चीज़ है!

"लगता है विश्व गुरु का ढोल मोदी जी ने कुछ ज़्यादा ज़ोर से ही पीट दिया। बेचारा ढोल ही फट गया और उसमें से अब बिना पीटे ही मदद की गुहार निकल रही है। अब तेरा क्या होगा री विश्व गुरु की इमेज!"
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सुप्रीम कोर्ट, तुम भी! मोदी जी के न्यू इंडिया के सुप्रीम कोर्ट से कम से कम ऐसी उम्मीद नहीं थी। कह रहे हैं कि सोशल मीडिया पर अस्पताल में बैड, आक्सीजन, रेमडेसिविर वगैरह की गुहार लगाने वालों पर, कोई सरकार कोई मामला/मुकद्दमा नहीं चलाएगी। और बात सिर्फ़ यह कहने तक ही रहती तो फिर भी गनीमत थी। सबसे बड़ी अदालत है, राष्ट्रपति की कुर्सी नहीं कि हमेशा म्यूट बटन ही दबा रहे। उसका कभी-कभार सरकार को सलाह देना तो बनता ही है। पर अदालत ने तो हुक्म दे दिया कि अगर किसी सरकार ने ऐसी किसी गुहार के ख़िलाफ़ कार्रवाई की, तो उसे अदालत की अवमानना का दोषी माना जाएगा। बंदर घुड़की ही सही, पर अदालत ने हुक्म तो दिया ही है।

कोरोना के मारे मोदी जी को कैसे-कैसे दिन देखने पड़ रहे हैं? न्यू इंडिया में भी उनके सिवा किसी और ने हुक्म चलाने की न सही, पर हुक्म देने की तो कोशिश की ही है। फिर भी तुषार मेहता चुनौती देना तो दूर, इस पर ज़ोरदार आपत्ति तक नहीं कर पाए। कहाँ तो उनकी सरकार अदालत का इतना सम्मान कर रही है कि उसे हुक्म तक सुनाने दे रही है। और कहां देश तो देश; विदेश तक में दुश्मनों ने ऐसी इमेज बना दी है कि न्यू इंडिया में न न्यायपालिका, न चुनाव आयोग, न संसद, मोदी जी के सिवा और किसी के मुंह में ज़ुबान ही नहीं रहने दी गयी है।

इमेज से याद आया, योगी जी भी चाहे कहें न कहें, बोबड़े साहब के जाते ही सुप्रीम कोर्ट से ग़लती हो गयी है। सुप्रीम कोर्ट से यह उम्मीद नहीं थी कि वह मीडिया में हर जगह आ रही आक्सीजन, दवाओं, बैड वगैरह-वगैरह की कमी की अफ़वाहों में बह जाएगा और सरकार जो सब ठीक-ठीक होने का वैकल्पिक सच दिखा रही है, उसे हल्के में ले जाएगा। वर्ना जब योगी जी, खट्टर जी, शिवराज जी, रूपानी जी आदि जी लोगों से लेकर हर्षवर्द्धन तक बार-बार कह रहे हैं कि न बैड की, न आइसीयू/ वेंटीलेटर, न आक्सीजन, न रेमडेसिविर, किसी भी चीज की कहीं कोई कमी नहीं है, तब क्या अदालत की भी जिम्मेदारी नहीं बनती थी कि इसी समानांतर सचाई पर विश्वास करे कि कहीं कोई कमी नहीं है। जब सरकार आंखें बंद कर सकती है, तो अदालत को ही आंखें फाड़-फाडक़र चारों तरफ देखने की क्या जरूरत थी। और अगर कोई कमी ही नहीं है, तो मदद की गुहार चाहे कितनी ही भावुक क्यों न हो, जैनुइन कैसे मानी जा सकती है। 

ये मदद की गुहारें नहीं हैं, ये तो मोदी जी से लेकर योगी जी आदि सभी जी लोगों तक, सरकारों को बदनाम करने की, नये इंडिया की इमेज खराब करने की साजिश की कडिय़ां हैं। पब्लिक का जीना-मरना तो लगा ही रहता है, पर इमेज बड़ी चीज है। सुप्रीम कोर्ट को मदद की गुहार ही सुननी थी तो, सरकार की इमेज बचाने की गुहार सुननी चाहिए थी। रही बात अस्पतालों के गलियारों, दरवाजों पर, एंबुलेंसों में, फुटपाथों पर, आक्सीजन सिलेंडर की लाइन में, घरों पर, आक्सीजन के इंतज़ार में, एक-एक सांस के लिए तड़प-तड़प कर जान देने वालों की तो, सरकार सब कुछ पहुंचाने के बावजूद, हर किसी से उसका इस्तेमाल तो नहीं करा सकती है। सारी सुविधाएं होते हुए भी कोई तड़प-तड़पकर अपनी जान देना चाहे तो सरकार क्या कर सकती है? अब तो आत्महत्या को अपराध मानने वाला क़ानून भी नहीं रहा। आख़िर, मुल्क में डैमोक्रेसी जो है। आत्महत्या क़ानून का डर तो रहा नहीं, इसलिए भी मोदी जी के न्यू इंडिया को बदनाम करने के लिए लोग मरने से पहले तड़प कर दिखा रहे हैं। और तो और मुर्दाघाटों/ कब्रिस्तानों में लाइनें लगाकर, तस्वीरें भी खिंचा रहे हैं। छप्पन इंच वालों की सरकार, एंटीनेशनलों के ऐसे षडयंत्रों को होते कैसे देखती रहे? पर सुप्रीम कोर्ट को कैसे समझाएं! कोरोना की सुनामी में न्यू इंडिया की इमेज को अकेले मोदी जी कैसे बचाएं! 

और जब ख़ुद अपने देश के अंदर, न्यू इंडिया की इमेज ख़राब करने के ऐसे षडयंत्रों को रोकने से सरकारों को रोका जा रहा है, तो देश के बाहर ऐसे भारतविरोधी षडयंत्रों को रोकने का तो सवाल ही कहां उठता है।

दुनिया भर में जिसका जो मन हो रहा है छाप रहा है। जिसका जो जी कर रहा है दिखा रहा है--कोई जलती चिताओं की तस्वीरें तो, कोई श्मशान में अर्थियों की लाइनें। आस्ट्रेलिया के एक अखबार ने तो इसे मोदी जी की प्रलय ही बता दिया। बेचारे भारतीय हाई कमीशन ने टोका भी कि क्या करते हो तो पट्ठों ने अगले दिन और सख्त हैडलाइन लगा दी। बेचारा विदेश विभाग भी मन मारकर बैठ गया है। नतीजा यह है कि कहां तो दुनिया भर में मोदी जी के न्यू इंडिया की कामयाबियों का डंका बजना था और कहां मुसीबत में मदद की मुनादी हो रही है। इंग्लेंड-अमरीका की बात तो फिर भी समझ में आती है, चीन-जापान की बात भी मान ली, पर यहां तो अफगानिस्तान और पाकिस्तान तक, और बाकी छोड़ दो तो भूटान तक मदद का हाथ बढ़ा रहे हैं और विदेश मंत्रालय को धन्यवाद देना पड़ रहा है।

जब देश के सुप्रीम कोर्ट को नहीं समझा सकते कि मरने वाले झूठ बोल रहे हैं, तो दूसरों को कैसे समझाएं कि तस्वीरें झूठ बोल रही हैं। अगर तस्वीरें सच बोल रही हैं तो उन्हें कैसे समझाएं कि हमें फिर भी किसी की मदद की ज़रूरत नहीं है। सारी अकड़ छोड़कर मदद लेनी पड़ रही है। लगता है विश्व गुरु का ढोल मोदी जी ने कुछ ज़्यादा ज़ोर से ही पीट दिया। बेचारा ढोल ही फट गया और उसमें से अब बिना पीटे ही मदद की गुहार निकल रही है। अब तेरा क्या होगा री विश्व गुरु की इमेज!

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