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स्कूल प्रदर्शन सूचकांक में सुधार, लेकिन देश में छात्र बढ़े तो हज़ारों स्कूल क्यों बंद हो गए?

शिक्षा मंत्रालय द्वारा जारी रिपोर्ट्स में ये बात सामने आई है कि एक ओर सरकारी कागजों में स्कूलों की स्थिति सुधर रही है, तो वहीं दूसरी और बड़ी संख्या में स्कूल ही बंद हो रहे हैं।
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फ़ोटो साभार: पीटीआई

भारत को विश्व गुरू बनाने की चाहत जताने वाली मोदी सरकार बीते लंबे समय से शिक्षा के मोर्चे पर विवादों में घिरी रही है। कभी नई शिक्षा नीति, तो कभी स्कूलों का मर्जर। कभी शिक्षकों के घटते पद, तो कभी सरकारी विश्वविद्यालयों में बेतहाशा फीस की बढ़ोत्तरी। इन सभी मुद्दों को लेकर सरकार पर शिक्षा और बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ के आरोप भी लगते रहे हैं, तो वहीं सरकार इन नीतियों को न्यू इंडिया के विकास का फॉर्मूला बताती रही है। लेकिन इन सब आरोप-प्रत्यारोप के बीच सरकारी रिपोर्ट में देशभर के स्कूलों की क्या स्थिति है इसे लेकर सरकार ने परफॉर्मेंस ग्रेडिंग इंडेक्स जारी किया है। इस रिपोर्ट का मकसद एक ऐसे वातावरण का निर्माण करना है जो हर एक राज्य और केन्द्रशासित प्रदेश को लगातार अपने प्रदर्शन में सुधार करने के लिए प्रेरित रहे।

बता दें कि देश के अलग-अलग राज्यों में स्कूली शिक्षा के स्तर और प्रदर्शन को दर्शाती केंद्र सरकार की परफॉर्मेंस ग्रेडिंग इंडेक्स (पीजीआई) रिपोर्ट 2020-21 बीते गुरुवार, 3 नबंर को जारी हो गई है। इस रिपोर्ट के मुताबिक केरल, पंजाब और महाराष्ट्र शीर्ष पर हैं तो वहीं पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश फिलहाल अपने प्रदर्शन काफी पीछे नज़र आ रहा है।

शिक्षा मंत्रालय की इस रिपोर्ट में राज्यों का प्रदर्शन बुनियादी ढाचें का निर्माण, सुविधाएं, शासन और सीखाने के परिणाम के आधार पर मापा गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कुल 27 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने 2019-20 की तुलना में साल 2020-21 में अपने पीजीआई स्कोर में सुधार किया है। हालांकि साल 2017-18 में पीजीआई पेश किए जाने के बाद से पिछले चार वर्षो में कोई भी राज्य अभी तक सूचकांक में लेवल 1 तक नहीं पहुंच पाया है।

मालूम हो कि शिक्षा मंत्रालय ने इसके साथ ही यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन प्लस (यूडीआईएसई+) की 2021-22 के लिए स्कूली शिक्षा की रिपोर्ट भी जारी की। जिसके मुताबिक कोरोना काल में 2020-21 के दौरान देशभर में 20 हजार से अधिक स्कूल बंद हुए और पिछले साल की तुलना में शिक्षकों की संख्या में 1.95 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। यानी एक ओर सरकारी कागजों में स्कूलों की स्थिति सुधर रही है, तो वहीं दूसरी और बड़ी संख्या में स्कूल ही बंद हो रहे हैं।

आइए दोनों रिपोर्ट्स को समझने की कोशिश करते हैं...

परफॉर्मेंस ग्रेडिंग इंडेक्स रिपोर्ट में राज्यों को विभिन्न बैंड स्तरों पर वर्गीकृत किया गया है जिसमें 951-1000 स्कोर को लेवल 1 जबकि 550 के स्कोर को लेवल 10 में रखा गया था जोकि सबसे निम्न था। केरल, महाराष्ट्र और पंजाब ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेश में सर्वाधिक स्कोर प्राप्त किया। इन राज्यों को 1000 में से 928 स्कोर प्राप्त हुआ जिसके कारण इन्हें पीजीआई में लेवल 2 प्राप्त हुआ।

केरल, पंजाब, चंडीगढ़, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान और आंध्र प्रदेश सहित कुल 7 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने 2017-18 के तुलना में 2020-21 में 901-950 स्कोर कर लेवल 2 मिला है। वहीं राष्ट्रीय राजधानी ने 851-900 अंकों के बीच स्कोर करते हुए सूचकांक के लेवल 3 में जगह बनाई है, तो उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, हरियाणा और तमिलनाडु सहित ग्यारह अन्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को साल 2020-21 में लेवल 3 के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

इस रिपोर्ट में लेवल 2 और लेवल 6 पर सबसे अधिक राज्यों को रैंक किया गया है। केवल अरुणाचल प्रदेश को लेवल 7 मिला है। लेवल 8 या फिर उससे कम पर कोई भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश नहीं है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2020-21 में राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा प्राप्त पीजीआई स्कोर और ग्रेड, पीजीआई प्रणाली के प्रभाव की गवाही देता है। कई राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने अपने शासन और प्रबंधन से संबंधित मापदंडों में औसत सुधार के साथ साथ कई चीजों में पर्याप्त सुधार किए हैं।

स्कूलों के बंद होने वाली रिपोर्ट में क्या है?

यूडाइस प्लस 2021-22 की विस्तृत रिपोर्ट में यह जानकारी साझा की गई है कि वर्ष 2021-22 में बीते वर्ष के मुकाबले देश में स्कूलों की संख्या में कमी आई है। वर्ष 2021-22 की बात करें तो इस दौरान देश भर में 14.89 लाख स्कूल रहे, जबकि वर्ष 2020-21 में स्कूलों की संख्या 15.09 लाख थी। यानी 2020-21 के मुकाबले लगभग 20 हजार स्कूल कम हैं।

इस बारे में जानकारी देते हुए केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने बताया कि स्कूलों की संख्या में यह कमी मुख्य तौर पर इसलिए हुई, क्योंकि निजी स्कूल और अन्य प्रबंधन वाले कई स्कूल बंद हो गए। शिक्षा मंत्रालय के मुताबिक वहीं स्कूलों में कमी आने का एक कारण यह भी है कि विभिन्न राज्यों द्वारा स्कूलों के समूह क्लस्टर बना दिये गए हैं।

साल 2021-22 के दौरान रिपोर्ट के अनुसार स्कूली शिक्षा में 95.07 लाख शिक्षक संलग्न रहे। इनमें से 51 प्रतिशत से अधिक संख्या शिक्षिकाओं की है। साथ ही वर्ष 2021-22 में शिष्य-शिक्षक अनुपात (पीटीआर) प्राथमिक कक्षाओं में 26, उच्च प्राथमिक में 19, माध्यमिक में 18 और उच्चतर माध्यमिक में 27 रहा। इस तरह वर्ष 2018-19 से इसमें लगातार सुधार आ रहा है। प्राथमिक, उच्च प्राथमिक, माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक में वर्ष 2018-19 के दौरान पीटीआर क्रमश 28, 19, 21 और 30 था।

कुल मिलाकर देखें तो, देश की शिक्षा व्यवस्था एक नए चुनौतीपूर्ण दौर से गुजर रही है। जहां शिक्षकों और ब्लैक बोर्ड की जगह ऑनलाइन डिजिटल लर्निंग क्लासरूम ले रहे हैं। तो वहीं छोटे-छोटे जगहों पर बने स्कूलों को बंद कर मर्जर के नाम पर एक भीड़ तैयार की जा रही है, जिसका भविष्य किसी को नहीं पता। शायद यही कारण है कि नई शिक्षा नीति के आलोचक लंबे समय से शिक्षा के निजीकरण की आशंकाओं को लेकर विरोध कर रहे हैं, और शिक्षक अपनी शिक्षा को बचाने का संघर्ष।

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