वैज्ञानिकों ने पश्चिमी अंटार्कटिका के ग्लेशियर में सफलतापूर्वक खुदाई की
थ्वाइट्स ग्लेशियर अंटार्कटिक में सबसे दूरदराज की जगहों में से एक है। अंटार्कटिक के पश्चिमी हिस्से में स्थित इस ग्लेशियर को मौसम परिवर्तन से सबसे ज्यादा खतरा है। दुनिया में महासागरों के जल स्तर को ऊंचा उठने में चार फ़ीसदी हिस्सा इसी ग्लेशियर का है। लेकिन अब भी यह ग्लेशियोलॉजिस्ट और मौसम विज्ञानियों के लिेए एक पहेली बना हुआ है। उनके लिए अबूझ सवाल है कि यह ग्लेशियर कितनी तेजी से पिघल रहा है और इसके पीछे की वजह क्या है?
पिछले दो महीनों में भयानक तूफानों और न्यूनतम तापमान वाली स्थितियों से जूझते हुए वैज्ञानिकों की टीम, थ्वाइट्स की गहरी बर्फ की खुदाई करने में कामयाब रही है। यहां टॉरपीडो के आकार वाला आईसफिन नाम का एक रोबोट भी काम में लगाया गया है। आईसफिन का लक्ष्य ग्लेशियर के भीतरी हिस्सों से जानकारी जुटाना है, ताकि बर्फ के पिघलने की गति और दूसरी जानकारियों का विश्लेषण किया जा सके।
थ्वाइट्स ग्लेशियर का क्षेत्रफल 1,92,000 वर्ग किलोमीटर है। यह ब्रिटेन या फ्लोरिडा के बराबर है। पिछले तीस सालों में थ्वाइट्स से बहने वाली बर्फ दोगुनी हो गई है। यह बर्फ एमुंडसेन सागर में गिरती है और महासागरों के सालाना जलीय स्तर के चढ़ाव में चार फ़ीसदी का इजाफा करती है। अगर यह ग्लेशियर पिघल जाता है, तो समुद्र का भराव स्तर एक मीटर तक ऊंचा हो जाएगा। यह बेहद चिंताजनक है। भविष्य के लिए यह भयावह आपदा हो सकती है। वैज्ञानिक इसके पिघलने की गति का पता लगाना चाहते हैं।
थ्वाइट्स ग्लेशियर क्यों अहम है?
दुनिया के ताजे पानी में अंटार्कटिक की बर्फ की हिस्सेदारी नब्बे फ़ीसदी है। कुल बर्फ का अस्सी फ़ीसदी हिस्सा महाद्वीप के पूर्वी भाग में है। पूर्वी अंटार्कटिक की बर्फ मोटी है, जो ऊंचे मैदान पर जमा है। इसकी औसत मोटाई एक मील से भी ज्यादा है।
दूसरी तरफ पश्चिमी अंटार्कटिक का भूगोल पूरी तरह अलग है। यह बदलावों को भी आसानी से आमंत्रित करता है। यहां की बर्फ ऊंचे मैदानों पर टिकी नहीं है। बल्कि ज्यादातर बर्फ समुद्र स्तर से नीचे है।
समुद्र का गर्म पानी लगातार इस बर्फ की परत को छूता है। परिणामस्वरूप वक्त के साथ-साथ बर्फ का पिघलना भी तेज हो गया है।
नीचे दिए आंकड़ों में इस प्रक्रिया को परिभाषित किया गया है
ग्लेशियर में भेदन
पिछले कुछ महीनों से अमेरिका-ब्रिटेन के वैज्ञानिकों के पांच संयुक्त दल थ्वाइट्स ग्लेशियर पर काम कर रहे हैं। इनमें से दो दलों ने इस बर्फ को भेदने में कामयाबी पाई है। MELT टीम ने 300 मीटर और TARSAN टीम ने 700 मीटर का भेदन किया है। दोनों टीमों ने इस खुदाई के लिए गर्म पानी का इस्तेमाल किया। यह सभी दल अमेरिका और ब्रिटेन के संयुक्त प्रोजेक्ट ITGC (इंटरनेशनल थ्वाइट्स ग्लेशियर कोलेबोरेशन) का हिस्सा हैं। यह प्रोजेक्ट थ्वाइट्स ग्लेशियर के अध्ययन के लिए चालू किया गया है।
आईसफिन के मुख्य वैज्ञानिक, अटलांटा में जॉर्जिया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी की डॉ ब्रिटनी स्किमडिट् के मुताबिक, 'ग्लेशियर जिन मैदानी आधारों पर जमे हुए हैं, हमने वहां पहुंचने के लिए आईसफिन को बनाया है। यह वह जगह हैं, जहां परीक्षण करना लगभग नामुमकिन है। वहां लगातार बदलाव हो रहे हैं। थ्वाइट्स ग्लेशियर में यह काम करना हमारी टीम के सपने का पूरा होना है। पश्चिमी अंटार्कटिक में स्थित यह ग्लेशियर बेहद खतरनाक बिंदु पर पहुंच चुका है। परीक्षण से जो आंकड़ें मिलेंगे, वे बेहद उत्साहित करने वाले होंगे।'
एक ओसिएनोग्राफर (समुद्र का अध्ययन करने वाले) और ब्रिटेन की MELT टीम के प्रमुख डॉ कीथ निकोलस के मुताबिक, 'हम जानते हैं कि समुद्र का गर्म पानी पश्चिमी अंटार्कटिक के कई ग्लेशियर को पिघला रहा है। लेकिन हम थ्वाइट्स के बारे में खासतौर पर चिंतित हैं। जो नए आंकड़ें और जानकारी सामने आएगी, उनसे हम भविष्य को ज्यादा निश्चित्ता के साथ समझ सकेंगे।'
प्रक्रिया की सफलता के साथ थ्वाइट्स ग्लेशियर के पिघलने की प्रक्रिया के समझ आने की आशा लगाई जा रही है। थ्वाइट्स ग्लेशियर मौसम परिवर्तन से प्रभावित होने वाले सबसे संवेदनशील जगहों मे से एक है। आईसफिन द्वारा दिया गया विजुअल और दूसरी तरह के डेटा से थ्वाइट्स के पिघलने की गति की बेहतर समझ बनाई जा सकेगी।
अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।
Scientists Successfully Drill into Remote West Antarctica Glacier
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