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कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न महिलाओं के मौलिक अधिकारों का अपमान है : सुप्रीम कोर्ट

शीर्ष अदालत ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के एक आदेश को बरकरार रखते हुए ये टिप्पणियां कीं जिसने एक बैंक की महिला कर्मचारी के स्थानांतरण आदेश को रद्द कर दिया था। महिला ने अपने वरिष्ठ अधिकारी पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए थे।
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दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने कहा कि कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न महिलाओं के समानता, गरिमा के साथ जीने और किसी भी पेशे को अपनाने के उनके मौलिक अधिकारों का “अपमान” है। शीर्ष अदालत ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के एक आदेश को बरकरार रखते हुए ये टिप्पणियां कीं जिसने एक बैंक की महिला कर्मचारी के स्थानांतरण आदेश को रद्द कर दिया था।

महिला ने अपने वरिष्ठ अधिकारी पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए थे। न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़़ और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की पीठ ने कहा कि कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (बचाव, रोकथाम एवं निवारण) अधिनियम, 2013 कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न से बचाव के अलावा ऐसी शिकायतों के निपटान के लिए लागू किया गया था।

पीठ ने 25 फरवरी को दिए अपने आदेश में कहा, “कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 15 के तहत समानता के महिलाओं के मौलिक अधिकार और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त गरिमापूर्ण जीवन जीने के उसके अधिकार तथा किसी भी पेशे, व्यापार या कारोबार को अपनाने के अधिकार का अपमान है।” पीठ ने कहा कि उसके सामने रखा गया मामला दिखाता है कि महिला अधिकारी ने बैंक की इंदौर शाखा में अपनी तैनाती के दौरान अधिकारियों को कई बार पत्र लिखकर शराब ठेकेदारों के खातों के प्रबंधन में गड़बड़ी की तरफ ध्यान खींचा था और भ्रष्टाचार के खास आरोप लगाए थे।

पीठ ने कहा, ‘‘इसमें कोई संदेह नहीं है कि प्रतिवादी (महिला अधिकारी) को प्रताड़ित किया गया है। शाखा में अनियमितता की उनकी रिपोर्ट पर बदला लिया गया है। उनका स्थानांतरण कर दिया गया और ऐसी शाखा में भेजा गया जिसमें स्केल-1 के अधिकारी को जगह मिलनी चाहिए थी।” महिला अधिकारी को दिसंबर 2017 में इंदौर से जबलपुर जिले के सरसावा शाखा में स्थानांतरित कर दिया गया था। उन्होंने अधिकारियों को एक प्रतिवेदन सौंपा और इंदौर में ही तैनात रहने देने का अनुरोध किया था।

महिला अधिकारी ने आरोप लगाया था कि एक वरिष्ठ अधिकारी देर रात उसे घर पर फोन किया करता था और ऐसे कार्यों की चर्चा करता था जिनपर तत्काल गौर किए जाने की जरूरत नहीं होती थी। पीठ ने निर्देश दिया कि महिला अधिकारी को एक साल के लिए फिर से इंदौर शाखा में पोस्ट किया जाए।

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