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पीएम केयर्स फंड की बौछार : झारखंड में प्रति व्यक्ति दो रुपये का उपहार!

कोरोना माहमारी और लॉकडाउन बंदी से उत्पन्न संकटों से घिरी राज्य सरकारों को केंद्र द्वारा दी जा रही सहायता के तहत पीएम केयर्स फंड से झारखंड प्रदेश को महज 8.67 करोड़ की राशि भेजी गयी।
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लॉकडाउन से त्रस्त बिहार की गरीब जनता के बीच देश के गृहमंत्री द्वारा 72 करोड़ एलईडी लगाकर, “जहां न पहुंचे राशन-वहाँ पहुंचे भाषण” के तहत बिहार विधानसभा चुनाव के भव्य आगाज़ को तंगहाल ग़रीबों का मज़ाक उड़ाने वाला कहा जा रहा है। यह प्रकरण अभी ठंडा भी नहीं पड़ा है कि पड़ोसी राज्य झारखंड को केंद्र द्वारा पीएम केयर्स फंड से दिए गए पर चंद करोड़ रुपये की रस्मी सहायता मामले में पुनः यही आरोप लगाया जा रहा है।

कोरोना माहमारी और लॉकडाउन बंदी से उत्पन्न संकटों से घिरी राज्य सरकारों को केंद्र द्वारा दी जा रही सहायता के तहत पीएम केयर्स फंड से झारखंड प्रदेश को महज 8.67 करोड़ की राशि भेजी गयी। प्रदेश के मुख्यमंत्री ने इस पर ट्वीट कर इसे राज्य की ग़रीब जनता का मज़ाक बताते हुए कहा है कि 3.74 करोड़ की आबादी वाले झारखंड को इस विकट आपदा काल में भी इतनी छोटी सी राशि देकर अपनी जिम्मेवारी से पल्ला झाड़ लेना है। क्योंकि पीएम केयर्स फंड से दी गयी इस राशि के हिसाब से प्रदेश के सभी नागरिकों को प्रति व्यक्ति मात्र 2 रुपये ही मिल सकेंगे।

भाकपा माले ने केंद्र सरकार के इस रवैये के खिलाफ तत्काल राज्यव्यापी विरोध प्रदर्शित कर जगह जगह सरकार का पुतला दहन किया। विशेषकर बगोदर समेत पूरे गिरिडीह जिले के सभी प्रखंडों में ‘पीएम् केयर्स फंड का हिसाब दो, झारखंड को भीख नहीं स्वीकार – हमें दो हमारा अधिकार’ इत्यादि नारे के साथ प्रतिवाद किया गया।

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भाकपा माले पोलित ब्यूरो सदस्य मनोज भक्त तथा विधायक विनोद सिंह द्वारा वक्तव्य जारी कर कहा गया है कि – विकट संकट की घड़ी में आपदाग्रस्त जनता और भूख – गरीबी – तंगहाली झेलते प्रवासी मजदूरों के साथ इससे ज़्यादा घिनौना मज़ाक और नहीं हो सकता। केवल गिरिडीह ज़िले में ही एक एक प्रवासी मजदूरों को मात्र 1000 रुपये भी दिए जाएँ तो यह राशि 15 करोड़ से भी अधिक हो जायेगी।

ख़बरों के अनुसार झारखंड को पीएम् केयर्स से मात्र 8.37 करोड़ दिए जाने पर सत्ताधारी दल झामुमो व कांग्रेस ने भी तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि अभी तक केंद्र से एक कोरोना संकट से निपटने के सहायतार्थ एक अदद वेंटीलेटर तक नहीं मिला है। पिछली भाजपा शासन से मिले खाली खज़ाना को लेकर हाल में बनी हेमंत सोरेन की सरकार अपने सीमित संसाधनों के बल पर महामारी चुनौती से अकेले ही जूझ रही है। भीख की तरह दी गयी सहयोग राशि को देखकर कहा जा रहा है कि कोरोना संकट के काल में भी भाजपा अपनी ओछी राजनीति कर रही है।

ख़बर यह भी है कि प्रदेश के सभी भाजपा सांसद–विधायक और नेतागण अपनी केंद्र सरकार के एक साल के कार्यों की उपलब्धियों और कोरोना महामरी से लड़ने में उसकी प्रभावकारी भूमिका को लेकर जारी संकल्प पत्र प्रदेश के 35 लाख घरों तक पहुंचाएंगे। जिसमें धारा 370 को हटाने, राम मंदिर बनाने और तीन तलाक़ बिल पास करने जैसे राष्ट्रीय हित के कार्यों का विशेष महत्व लोगों को बतलाया जाएगा।

केंद्र की सत्ता में बैठी पार्टी द्वारा बिहार तथा बंगाल चुनाव के मद्देनजर वहाँ की जनता व प्रवासी मजदूरों के लिए अनेकों योजनाओं व पैसे दिए जाने के दावों- घोषणाओं के बीच भी गैर भाजपा सरकारों के साथ किया जा रहा भेदभाव लगातार बढ़ता जा रहा है।

इसी 7 जून को राजधानी रांची पहुंचे केन्द्रीय विकास मंत्रालय के सचिव ने राज्य सरकार के अफसरों की बैठक में साफ साफ कह दिया कि उनकी सरकार मनरेगा को रोज़गार का मुख्य साधन नहीं मानती है इसलिए फिलहाल झारखंड में न तो मनरेगा की मजदूरी दर बढ़ेगी और न ही 100 दिन रोज़गार का प्रावधान बदलेगा। 

राज्य में भोजन के अधिकार अभियान से जुड़े सोशल एक्टिविस्ट धीरज कुमार के अनुसार केंद्र सरकार का यह फैसला कोरोना महामारी और लॉकडाउन बंदी से उत्पन्न महाआफत की चक्की में पिस रहे लाखों ग्रामीण गरीबों व प्रवासी मजदूरों को भूख से मौत की जानलेवा अंधी सुरंग में धकेल देना है। साथ ही मेहनत मशक्कत करके जीने खाने वाली एक विशाल आबादी के लोगों व उनके परिवार के जीवन से खिलवाड़ किया जाना है।

7 जून को ही पिछली भाजपा सरकार के शासन में मुख्यमंत्री रहे रघुवर दास द्वारा बयान जारी कर यह कहना कि - रोज़गार के लिए वर्तमान झारखंड सरकार पूर्ववर्ती सरकार की ही नीति लागू करे – को लेकर भी कई प्रतिक्रियाएं चल रहीं हैं, जिनमें कहा जा रहा है कि पहले अपने प्रधानसेवक जी को दुरुस्त कीजिये जो आपदा को अवसर में बदलने का नारा देकर इस आड़ में बड़े धनपतियों के तो अरबों के कर्जे माफ़ कर रहें हैं और वेतन व मजदूरी कटौती, टैक्स वृद्धि कर आम लोगों और गरीबों – मजदूरों पर हर दिन नयी नयी आपदा थोप रहें हैं। देश की जनता के पैसों से चल रहे रेलवे – कोयला व बिजली इत्यादि सार्वजनिक क्षेत्रों को निजी हाथों में बेच रहे हैं। नए सिरे से झारखंड प्रदेश को निजी कंपनियों की खुली लूट का चारागाह बनाने पर तुले हुए हैं। जिससे नए सिरे से मजदूरों के पलायन का दंश इस प्रदेश को ही झेलना पड़ेगा।

पीएम केयर्स फंड को लेकर अभी तक तो विभिन्न दायरों से छिटपुट तौर पर ही सवाल उठाये जा रहे थे, लेकिन इस फंड से केंद्र सरकार द्वारा की जा रही सहायता खानापूर्ति से मामला धीरे धीरे तूल पकड़ता जा रहा है। अब सार्वजनिक रूप से इस फंड के हिसाब किताब-जांच और पारदर्शिता की मांग सतह पर आने लगी है। देखना है –‘न खाउंगा और न खाने दूंगा’ का ज़मीनी सच किस रूप में सामने आता है।

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