Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

सीताराम येचुरी : वामपंथी विचारधारा के प्रति आजीवन प्रतिबद्ध रहे

जवाहर लाल नेहरू विश्वद्यालय के पूर्ववर्ती छात्रों ने पटना विश्वविद्यालय में सीताराम येचुरी को याद किया
yechury

जवाहर लाल नेहरू विश्विद्यालय (जे.एन.यू.) अल्युमिनाई असोसियेशन के बिहार चैप्टर की ओर से भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के महासचिव सीताराम येचुरी की श्रद्धांजलि सभा का आयोजन पटना कॉलेज के दिनकर संवाद कक्ष में किया गया। श्रद्धांजलि सभा को नाम दिया गया था "सेलीब्रेटिना सीता, रिमेंबरिंग सीता" । इस सभा में जवाहर लाल नेहरू विश्वदियालय के पूर्व छात्रों के अलावा पटना शहर के नागरिक, बुद्धिजीवी, सांस्कृतिकमी, रंगकर्मी, सामाजिक कार्यकर्ता मौजूद थे।

प्रारंभ में पटना कॉलेज के पूर्व प्राचार्य प्रो. तरुण कुमार ने सीताराम येचुरी का जीवन परिचय देते हुए कहा, "सीताराम येचुरी 1974 में एस.एफ.आई के सदस्य बने। मात्र बत्तीस साल की उम्र में माकपा के केंद्रीय समिति और फिर पालित ब्यूरो के सदस्य बन गए थे। इमरजेंसी के दौरान इंदिरा गांधी के आवास तक जाकर उनके खिलाफ ही आरोप पत्र पढ़ा था। यह इस दौर के राजनीति की विशेषता और मूल्य रहा था। उनके दौर में वामपंथ की संसद में उपस्थिति कम होती चली गई। सीताराम येचुरी ने पूरे देश में धर्मनिरपेक्ष ताकतों को इकट्ठा किया। उनकी मौत पर सभी दलों के लोगों ने जिस तरह उनके श्रद्धांजलि दी है वह अभूतपूर्व है। वे अपनी विचारधारा के प्रति हमेशा प्रतिबद्ध रहे।"

माकपा नेता अरुण मिश्रा ने बताया "सीताराम येचुरी पहली बार 1979 में इसी पटना में एस.एफ.आई के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने थे। मैं उनसे थोड़ा सीनियर था। मैं 1973 से एस.एफ.आई से जुड़ा था जबकि वे 1974 में जुड़े थे। सोवियत संघ के विघटन के बाद 1992 में उन्होंने ही विचारधारात्मक दस्तावेज तो तैयार किया उसे कांग्रेस में सीताराम येचुरी ने ही पेश किया था। सोवियत संघ के विघटन के बाद जहां कई कम्युनिस्ट पार्टियों ने झंडा फेंक दिया था वहीं भारत में ऐसा नहीं हुआ।"

अमेरिकन दूतावास के राजनीतिक सलाहकार कैलाशचंद्र झा ने बताया, "मैं अमेरिकी दूतावास के लिए काम करता था। कम्युनिस्ट पार्टियों के साथ जैसा रिश्ता रहा करता है उससे आप सभी वाकिफ हैं। वैसे मेरे कुछ रिश्तेदार माकपा के पूर्णकालिक कार्यकर्ता रहे हैं। लेकिन फिर भी मैं यहां उन्हें श्रद्धांजलि देने आया हूं तो उसकी प्रमुख वजह है कि वे बहुत अच्छे इंसान थे। उनसे मिलना कतई भी मुश्किल नहीं था उनसे कभी भी मिला जा सकता था। वे आसानी से मिलने वाले व्यक्ति थे।"

जवाहर लाल नेहरू विश्विद्यालय के पूर्व छात्र और पालीगंज के विधायक संदीप सौरभ ने बताया, " मैं जब जे.एन.यू. का छात्र था तो उनसे एक बार भेंट हुई थी। जे.एन.यू. में छात्र राजनीति के दौरान यह माना जाता था कि "आवर पाथ इज राइट पाथ"। हमारा रास्ता ही सही रास्ता है। आज देश भर में धर्मनिरपेक्ष शक्तियों के खिलाफ सभी राजनीतिक दलों को एकजुट करने में जो महत्वपूर्ण भूमिका निभाई वह अतुलनीय है। यह सीताराम येचुरी जैसे छात्र नेताओं की ही पीढ़ी थी जिसने जे एन यू के छात्र संघ को विश्विद्यालय प्रशासन से स्वतंत्र रखा। एक बार उन्होंने मुझसे सिगरेट भी पीने के लिए मांगा था।"

मांझी के माकपा विधायक सत्येंद्र यादव ने बताया "मेरा शोध नेपाल के ऊपर इसी पटना विश्विद्यालय से हुआ है। जब यूपीए वन की सरकार थी तब सीताराम येचुरी ने नेपाल के सभी राजशाही विरोधी ताकतों को एक मंच पर लाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसके कारण नेपाल में राजशाही का अंत हुआ। सीताराम येचुरी ज्योति बसु और हरिकिशन सिंह सुरजीत के बाद गठबंधन की राजनीति के सबसे प्रमुख चेहरा थे। यदि सीताराम येचुरी के बताए रास्ते पर चला जाए तो भारत में सांप्रदायिक शक्तियों को पराजित करने में सहायता मिलेगी।"

हिंदुस्तान टाइम्स से अवकाश प्राप्त संवाददाता अरुण कुमार ने बताया, "मैं जब जे एन यू गया तब वहां सीताराम येचुरी की काफी चर्चा थी। मैं देखा करता था कि वामपंथ की दूसरी धारा के लोग किताब के पन्ने के उद्धरण दिखाकर उनसे बहस किया करते थे। जे एन यू में लोग लड़ते भी थे और साथ में बैठकर काम भी करते थे। मैने दिल्ली विश्विद्यालय का भी चुनाव देखा लेकिन उसका बहुत खराब अनुभव था। धन और बल का वहां बहुत बोलबाला था। जब मैं पटना अखबार में काम करने लगा तो उनसे कहा करता था कि लालू प्रसाद की पार्टी से कम्युनिस्ट पार्टी का संबंध इसकी विश्वसनीयता को कमजोर करेगा। सीताराम येचुरी कहा करते थे कि ऐसा नहीं है। सांप्रदायिक ताकतों से लड़ने के लिए यह जरूरी है। इसका महत्व तुम्हे बाद में पता चलेगा।"

प्रगतिशील लेखक संघ के उपमहासचिव अनीश अंकुर ने बताया, "उनके साथ 1998 से मुलाकात होती रही थी। सफदर हाशमी की शहादत के दस साल पूरे होने पर वे पटना में आयोजित समारोह में शामिल हुए थे। फिदेल कास्ट्रो से उनकी और ज्योति बसु की मुलाकात दिलचस्प है। सोवियत संघ के विघटन के बाद जिन नेताओं ने वामपंथ को वैचारिक हमलों से बचाया उसमें वे प्रमुख हैं। वामपंथ के जटिल अवधारणाओं को वे सुगम भाषा में संप्रेषित कर सकते थे। एक बार तामिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री एम करुणानिधि ने उन्हें तामिल क्लासिकल साहित्य में बोलने के लिए बुलाया था। उन्होंने संगीत पर भी काफी कुछ लिखा है। साउंड ऑफ म्यूजिक उनका एक प्रसिद्ध आलेख है। जवाहर लाल नेहरू के बाद भारत की विविधता, व्यापकता को समझने वाला बौद्धिक स्तर उतने सचेत राजनीतिक नेता भारत में बहुत कम हुए हैं। शैलेंद्र शैली की आत्महत्या के समय उन्होंने स्पेनिश सिविल वार की नेत्री रही डोला रूस इबारुरी को उद्धृत करते हुए येचुरी ने कहा था कि कम्युनिस्ट मरते नहीं क्योंकि वे मरकर भी मरते नहीं। यही बात उनके लिए भी सही है सीताराम के विचार जिंदा रहेंगे भले शरीर न रहे। "

सी.पी.आई के पटना जिला सचिव विश्वजीत कुमार ने बताया, "सीताराम येचुरी ने भगत सिंह के किताब के मुड़े हुए पन्ने की विरासत को आगे बढ़ाया। मैं ए.आई. एस.एफ का महासचिव बना और जे एन यू पर हमला किया गया तब येचुरी के साथ मिलकर इस संस्थान को बचाने की कोशिश की गई।"

संचालनकर्ता और येचुरी के मित्र कमलकिशोर ने उनके साथ अपने संबंधों को याद करते हुए कहा, "सीताराम के साथ पुराना संबंध रहा है। उन्हें सिनेमा का शौक था। उनके साथ मैं थर्टी सिक्स चौरंगी लीन फिल्म देखने गया था। उनका ज्ञान और नॉलेज अगाध था। सत्तर से अस्सी दशक तक के सभी फिल्मी गानों को याद रखा करते थे। बसंत कुंज के जिस इलाके में वे रहा करते थे वहां पानी की किल्लत रहा करती थी। सीताराम खुद टैंकर से लाइन में लगकर पानी घर में लाया करते थे। वे लौन टेनिस के बहुत अच्छे खिलाड़ी थे। 2004 के लोकसभा चुनाव परिणाम आने के पूर्व सीताराम येचुरी ने मुझसे कहा कि आकर जल्दी से मिल लो बाद में पता नहीं व्यस्तता बढ़ जाने के बाद शायद मौका न मिले।"

ए.आई.एफ.यू. सी.टी.ओ. के राष्ट्रीय महासचिव प्रो अरुण कुमार, पटना विश्विद्यालय के आंबेडकर चेयर की चेयरपर्सन सीमा प्रसाद, ऐप्सो के राजीव रंजन, आदि ने सभा को संबोधित किया।

कार्यक्रम में पत्रकार प्रणव कुमार चौधरी, शोभन चक्रवर्ती, जयप्रकाश, सुधीर कुमार, सूर्यनाथ, तौसीफ, प्रो सुधीर कुमार, अभिषेक विद्रोही, मंजुल कुमार दास, सुनील सिंह, अविनाश, मनोज चंद्रवंशी, गोपाल शर्मा, बी के राय आदि मौजूद थे।

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest